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आकृति निदान शक्लें बहुत कुछ हमारे आदर्शतक पहुँचती हैं । हमारे वर्तमान कारीगर और मूर्तिकार इन्हीं मूर्तियोंको अपना आदर्श मानते हैं । उनकी दृष्टिमें आजकलके वह सब खाये पिये और मोटे ताजे तोदैल स्त्री, पुरुष, सुन्दर नहीं है जिन्हें साधारण लोग सुन्दर समझते हैं।
स्वाभाविक आकृतिकी कुछ पहचान है । स्वाभाविक आकृति कैसी होनी चाहिये इसका पता आपको चित्र नम्बर १, ३, ४, ६
और १४ से लग जायगा। अब हम स्वाभाविक प्राकृतिक चिह्न दिखलायेंगे।
स्वाभाविक रूप (१)-शक्ल-स्वाभाविक रूप हर तरहसे हर अंगमें सुडौल होता है। कोई अंग देखने में भद्दा नहीं जान पड़ता। नं. १ के चित्रका नं० २ के साथ मिलान करनेसे तत्काल मालूम हो जायगा कि पहला चित्र एक सुन्दर मनुष्यका और दूसरा एक बेडौल मनुष्यका है, दूसरे चित्रवाले आदमीका शरीर फूला हुआ है और धड़के हिसाबसे उसकी टांगें बहुत ही छोटी हैं। धड़ उचितसे अधिक लम्बा है, और गर्दन तो मानों बिलकुल गायब ही हो गयी है।
स्वाभाविक आकृतिमें सिर मध्यम कदका और गदन न बहुत छोटी और न बहुत लम्बी है । न उभरी हुई है। उनका घेरा टाँगको पिण्डलीके बराबर है, छाती महराबदार है। पेट निकला हुआ नहीं है। न धड़ नीचेकी ओर बढ़ा हुआ है।
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