Book Title: Aakruti Nidan
Author(s): Lune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
Publisher: Hindi Pustak Agency
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ॥ योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ॥ ॥ कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ॥ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर Websiet : www.kobatirth.org Email: Kendra@kobatirth.org www.kobatirth.org पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. श्री जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक : १ महावीर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स: 23276249 जैन ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ॥ चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। अमृतं आराधना तु केन्द्र कोबा विद्या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 卐 शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृतिनिदान लूई कूने For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लूने कूने लिखित आकृति-निदान अनुवादक पं० जनार्दन भट्ट, एम० ए. सम्पादक श्री रामदास गौड़, एम० ए०. प्रकाशक हिन्दी पुस्तक एजेंसी ज्ञानवापी, बनारस For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशक हिंदी पुस्तक एजेंसी ज्ञानवापी, बनारस। - - मुद्रक कृष्णगोपाल केडिया वणिक प्रेस साक्षी विनायक, बनारस। शाखाएँ कलकत्ता, पटना, दिल्ली सर्वाधिकार स्वरक्षित चतुर्थ बार १६४६ मूल्य For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकका वक्तव्य प्राकृति-निदानका मूलरूप जर्मन है, उसके अंग्रेजी अनुवादका मूल्य १६) है। इतना अधिक मूल्य अवश्य ही इस ग्रंथकी उपयोगिताको दुर्लभताकी सीमाके भीतर संकुचित कर देता है। स्वाभाविक चिकित्साके प्रेमियोंके हृदयमें इसकी सुलभताको इच्छा बहुत बरसोंसे है। मुरादाबादके मोतीजीके उत्साह और उद्योगका फल जो प्रकाशित हुआ उसका भी मूल्य ४) से कम नहीं रखा जा सका। अनुवाद भी यथेष्टरीत्या नहीं हो सका। कोई चार बरस हुए हिन्दी पुस्तक एजेंसीके उस समयके मालिक हमारे मित्र बाबू महावीरप्रसाद पोद्दार बल-चिकित्साके अनुयायी हुए। कलकत्तेके प्रसिद्ध मारवाड़ी खेतान बंधुषोंमें भी स्वाभाविक चिकित्साका विशेष अनराग उत्पन्न हुआ। इससे चूक लाभ देख इसके प्रति इन मित्रोंकी श्रद्धा स्वार्थसाधनाकी सीमाये निकलकर परार्थकी विस्तीर्ण परिधिमें आयी। सलाह हुई कि जलचिकित्साकी पुस्तकोंका अच्छा उल्था करके सुन्दर सुलभ संस्करण निकाले जायें। इस काममें सबसे अधिक अनुरोध और प्रोत्साहन श्री चंडीप्रसाद खेतानका था जिसके फलस्वरूप बच्चोंकी रक्षा निकली, और उसीके साथ ही आकृति निदानके अनुरागका काम हमारे मित्र पं० जनार्दन भट्टको सौंपा गया। - सम्पादन-भार मैंने For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४ ] स्वीकार किया। पहले फरमेका प्र ूफ संयोगवश उसी दिन आया जिस दिन मेरी जेलयात्राका आरम्भ था । पैकट मेरे घर बेखुला रह गया। चौदह मास यह काम अगत्या स्थगित रहा, क्योंकि कापीका एक अंश उसी पैकटमें था । किसोने उसे खोलकर देखा नहीं । उसका पता कूने के अनुरागियों को भी न लगा । बिना मेरे उसका छपवाना भी प्रकाशकोंको मंजूर न था। मेरे मुक्त होनेपर नये सिरे से इस काममें हाथ लगाया गया । शोकके साथ लिखना पड़ता है कि इस कार्यके यशोभाजन श्री चंडीप्रसादजी खेतान केवल इक्कोस वर्षकी अवस्था में इसी बीच दिवंगत हो गये । यह प्रतिभाशाली होनहार युवक कलकत्ता विश्व- परीक्षालय में बी० ए० में १८ वर्षकी व्यवस्था में प्रथम हुआ, विश्व- परीक्षालय के पूर्वगत प्रथमोंसे भी ऊंचे अंक पाये। गणित में विशेषता पायो । सन् १६२२ में बी० एल० में विश्वपरीक्षालय में खेतान जी द्वितीय हुए। सालभर पढ़नेसे स्वास्थ्य बिगड़ चला था । देहरादून गये थे, वहीं कूतेकी चिकित्सा अनुराग हुआ । बी० एल० हुए दो ही प्रास हुए थे कि १२ मप्रैलको मृत्यु हो गयी । अपूर्व मानसिक प्रतिभा और विलक्षण मस्तिष्कपर प्राणशक्ति निछावर हो गयी । स्वाभाविक जीवन के लिये यह भी एक शिक्षाप्रद उदाहरण है । आकृति निदान अपने ढंग की अनूठी चीज है। उसी तरह कूनेकी "नवीन चिकित्सा प्रणाली" वा "नया आरोग्य साधन" जलचिकित्साको अत्युत्तम विधियोंका प्रतिपादन है जिसकी For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यथेष्ट परीक्षा संसारमें हो चुकी है। पर मजमून चुस्त नहीं है । उतनी बड़ी पुस्तक में अनेक विस्तीर्ण विषयोंका समावेश हो सकता है। स्वाभाविक चिकित्साका परिशीलनक्षेत्र भी तबसे बहुत बढ़ गया है। अब कूनेकी गिनती स्वाभाविक चिकित्साके ब्रह्माओं में की जाती है। अभीतक जितनी पुस्तकें देखने में आयी हैं उनके सर्वोत्तम तत्वोंपर अवलम्बित एक स्वतंत्र ग्रंथ लिखना ही अधिक लाभप्रद जान पड़ा। जेल में इसी विचारसे "नया आरोग्य साधन" नामक प्रथका सूत्रपात हुआ। वह अब पूरा किया जा रहा है और शीघ्र ही पाठकोंको भेट किया जायगा । एवमस्तु । श्री काशी। गुरु १५. १६८० रामदास गौड़ For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वास्थ्य--साधन लेखक -- अध्यापक श्रीरामदास गौड़ एम० ए० इस प्रन्थ में रोगकी मीमांसा, रोगीके लक्षण, मिथ्योपचार विमर्श और प्राकृतोपचार - दिग्दर्शन इत्यादि विषयकी व्याख्या बड़ी ही विद्वत्तासे की गयी है। यह ग्रन्थ प्रत्येक गृहस्थको अपने घरमें रखना चाहिये । प्राकृतिक चिकित्सा के सम्बन्धमें राष्ट्रीय भाषा हिन्दीमें यह प्रन्थ बिलकुल नया और बहुत ही विचारपूर्ण लिखा गया है। पौने पांच सौ पृष्ठकी कई चित्रोंसे विभूषित पुस्तक का मूल्य १५ ) मिलने का पता -- हिन्दी पुस्तक एजेंसी ज्ञानवापी, बनारस | For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय-सूची विषय अन्थकारकी भूमिका रोग-निदानकी और रीतियां प्राकृति-निदान क्या है ? स्वस्थ मनुष्य स्वाभाविक रूप शरीरका बादीपन मलजनित विकार (क) सामनेवाला बादीपन (ख) बगलवाला बादीपन (ग) पीठका बादीपन (घ) मिश्रित बादीपन भीतरी अंगोंकी बीमारियां चिकित्साका अभ्यास बादीपनका इलाज प्राणशक्तिको वृद्धि For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ८ 1 विषय (१) खाना कैसे पचना चाहिये ? (२) क्या खाना चाहिये ? (३) कहां खाना चाहिये ? (४) कब खाना चाहिये ? मस्तिष्क-विद्या और आकृति-निदानका सम्बन्ध उपसंहार For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रन्थकारकी भूमिका हमारी नवीन * चिकित्सा-प्रणालीके अनुसार रोगकी पहचान इसी प्राकृति-निदानसे हो सकती है । इसलिये जो लोग "आकृति-निदान"का अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें पहले नवीन चिकित्सा प्रणालीके सिद्धान्त पूरी तरह समझ लेना चाहिये। यहां नवीन चिकित्सा-प्रणालोके मुख्य सिद्धान्तोंका संक्षेप दिग्दर्शन कराया जाता है कि पाठकोंको इस पुस्तकके परिशीलनमें विशेष सुभीता हो। (१) यद्यपि बीमारी भिन्न-भिन्न रूपमें कम या ज्यादा जोरसे प्रगट होती है तथापि कारण केवल एक ही है। किसी आदमीके बदनके किसी खास हिस्से में बीमारीका जाहिर होना और उसका कोई विशेष रूप धारण करना इस बातपर निर्भर है कि उसके बाप-दादे कैसे थे, उसकी उम्र कितनी है, वह क्या काम करता है, क्या खाता है और कैसे जलवायुमें रहता है, इत्यादि। (२) बीमारी तभी पैदा होती है जब शरीरके भीतर विजातीय द्रव्य रहता है। इस तरहका द्रव्य पहले-पहल पेटके भीतर-वाले छिद्रों के पास जमा होता है। वहींसे वह शरीरके भिन्न-भिन्न लुई व कृत "नवीन चिकित्सा शास्त्र ।" For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । १० ] भागों में और खास करके गर्दन और सिरमें जाता है। यह द्रव्य सड़कर शरीरकी शकलको ही बदल देता है । इस परिवर्तनसे यह पता लग सकता है कि बदनके अन्दर कैसी गहरी बीमारी है । इसी बातपर आकृति निदानकी नीव डाली गयी है। (३) प्राय: बिना वर या तापके कोई बीमारी नहीं होती और न बिना बीमारीके किसी प्रकारका बुखार ही पैदा होता है। जब विजातीय द्रव्य शरीरके अन्दर प्रवेश कर लेता है और वहां जाकर जमा हो जाता है तो शरीर और सड़े हुए विनातीय द्रव्यमें एक युद्ध सा प्रारम्भ होता है । शरीरके अन्दर अब यह कारवाई या रगड़ पैदा होती है तभी ताप भी पैदा होता है। हर एक मनुष्यको अनुभवसे मासूम है कि जब किसी चीजका छोटासे छोटा कण भी शरीरके किसी अङ्गमें गड़ जाता है तो फौरन कुल बदन पीडासे व्याकुल होता है। उसके साथ ही एक तरहका अर शुरू हो जाता है जो तबतक शान्त नहीं होता जबतक वह चीज न दूर की जाय। इसी तरह शरीरके अन्दर विजातीय द्रव्य जमा हो जानेसे ताप पैदा होता है। पहले तो ताप प्रायः हलका ही रहता है और शरीर के भीतर ही भीतर बना रहता है, पर ज्योंही बदन में एकाएकी कोई विकार हो जाता है या कोई ऋतु ही बदल जाती है या मनमें किसी प्रकारकी उत्तेजना होती है त्योंही शरीरके विजातीय द्रव्यमें जोश पैदा हो जाता है और ज्वर बड़े वेगसे फूट निकलता है। रोगीकी पाकृति अर्थात् बाहरी सूरत देखकर शरीर के भीतर For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाली हालतका पता लगाना ही प्राकृति-निदान है। अब यह स्पष्ट है कि शरीरको तन्दुरुस्ती या बीमारीका हाल जाननेके लिये हमें नीचे लिखा हुई केवल दो बातोंकी ओर ध्यान देना चाहिये (१) शरीर में विजातीय द्रव्य कितना ज्यादा और किन-किन हिस्सों में जमा हुआ है ? (२) शरीरमें मल जमा होनेसे कौन कौन लक्षण प्रकट हुए हैं और भविष्यमें कौन कौनसे लक्षण प्रगट होनेवाले हैं ? आकृति-निदानका यह काम नहीं है कि शरीरके अन्दर और बाहर जितने छोटे छोटे विकार होते रहते हों उनका सूक्ष्म वर्णन किया जाय या बीमारीके भिन्न-भिन्न रूप निश्चित किये जाय या डाक्टरी विद्या या वैद्यकशास्त्र के अनुसार उन भिन्न-भिन्न स्वरूपोंके अलग-अलग नाम रखे जायें। प्राकृति-निदानका एकमात्र उद्देश्य यह है कि सारे शरीरकी हालत जांची नाय और मान लिया जाय कि शरीर स्वस्थ है या रोगो। अगर रोगी हो तो यह निश्चय किया जाय कि रोग कहाँतक बढ़ गया है या बढ़नेवाला है और रोगनिवारणको कहाँतक सम्भावना है, रोग साध्य है, दुःसाध्य है या असाध्य । For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोग निदानकी और रीतियां एलोपेथी उस चिकित्सा प्रणालीका नाम है जिसे पाश्चात्य राज्यों की ओर से सम्मान और प्रतिष्ठा मिली है । पच्छाहीं देशों में इन चिकित्सा प्रणालीका सबसे अधिक प्रचार है । इस प्रणाली में इस बातपर बड़ा जोर दिया जाता है कि रोगके सूक्ष्मसे सूक्ष्म कारणोंकी जाँच बड़े बिस्तार के साथ की जाय। इस मतलब से मुर्दों के ( एनाटोमी) चीरफाड़ के द्वारा शरीर के अवयवों की खूब अच्छी तरह जांच की जाती है। एलोपेथी के डाक्टर के लिये शरीरके हर एक सूक्ष्म से सूक्ष्म अङ्गका नाम हर इन्द्रियका ठीक ठीक स्थान और कार्य्य जानना बहुत आवश्यक है को टटोलकर, ठोककर, तथा यन्त्रोंके द्वारा जानकर शारीरिक अवयवोंके बारे में अपना मत निश्चित करता जाननेके लिये । इसलिये वह शरीर शरीरका भीतरी हाल है । शरीर के भीतरवाली हालत निश्चित रूपसे बहुतसे विचित्र प्रकारके दन्त्र बनाये गये हैं। मनुष्यकी उस आविष्कारणी बुद्धिको देखकर चकित होना पड़ता है, जिसकी बदौलत ऐसे सूक्ष्म यन्त्र बनाये गये हैं । एलोपेथिक डाक्टर विस्तार के साथ रोगी की भिन्न-भिन्न परीक्षा करते हैं इनमें यदि पारस्परिक सम्बन्ध हो जाय तो आकस्मिक होगा। एलोपेथिक डाक्टर धाम तौरपर कुछ कुछ नीचे लिखे हुए ढङ्गपर रोगकी जाँच करते हैं। डाक्टर पहले तो रोगी से तरह तरह के प्रश्न करता है । इसके बाद वह उसकी For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १३ ] जबान और नाड़ी देखता है। फेफड़े और दिलकी हालत जाननेके लिये छाती और पीठ में अङ्गुलीसे आवाज करता है और एक यन्त्रले छाती और पीठके भीतरवाले शब्द सुनता है। फिर जिगर, पेट और जननेन्द्रियकी जाँच करता है। स्त्रियोंके जननेन्द्रियकी परीक्षा भी एक ऐने यन्त्रसे करता है जिसमें शीशा लगा रहता है। उस शीशेमें जननेन्द्रियकी भीतरी दशा बिलकुल प्रतिविम्बिति हो जाती है। खून में कितनी गरमी है, इस बातका निश्चय थर्मामीटरकी सहायताले किया जाता है। खून, गल, थूक, पेशाब और पाखानेकी जाँच माइक्रासकोप या अनुवीक्षकके द्वारा की जाती है। कदाचित् बदनके चमड़े और पुट्ठोंकी जाँच भी इसी प्रकारसे की जाती है। इस साधारण परीक्षाके बाद अक्सर आँख कान आदि शरीरके अलग अलग अंगोंकी परीक्षा बड़े विस्तारके साथ प्रारम्भ होती है। किन्तु अलग-अलग अंगोंकी परीक्षा आम तौरपर उन डाक्टरोंसे करवायी जाती है जो उन उन अङ्गोंकी बीमारियोंके इलाजमें खास तौरपर होशियार होते हैं। अन्तमें इन सब परीक्षाओं के बाद डाक्टर कहता क्या है ? वह रोगीसे यह कहता है कि देखो तुम्हारे वदनका फलाँ हिस्सा तो बिलकुल तन्दुरुस्त है पर फलाँ हिस्सेमें कुछ कुछ गड़बड़ी है और फलाँ हिस्सा बहुत ही बुरी हालतमें है। इस बातके बारेमें डाक्टर लोग बहुत ही कम राय देते हैं कि कुल समूचे शरीरकी हालत कैसी है ? अगर कोई डाक्टर रोगीके समूचे शरीरके सम्बन्धमें कभी इस तरहकी राय जाहिर भी करे For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २४ ] तो यह न समझ लेना चाहिये कि वह रोगीकी परीक्षा करके यह राय जाहिर कर रहा है। बल्कि यह समझना चाहिये कि रोगीकी बाहरी आकृति देखकर और कदाचित् उसका बयान सुनकर जो भाव उसके हृदयमें पैदा हुए उन्हीं भावोंकी बदौलत वह अपनी इस तरह की राय जाहिर करता है । क्योंकि वर्षोंतक रोगियों की परीक्षा करते करते डाक्टरोंकी नजर तेज हो जाती है और वे फौरन जान लेते हैं कि रोगीकी आम तौर से हालत कैसी है। अब आप पूछ सकते हैं कि फिर इस एलोपेथी चिकित्सा शास्त्रकी क्या जरूरत है ? मैं तो कभी इस दावेको नहीं मानता कि इस चिकित्सा शास्त्र में वह सब गुण हैं जो आम तौरपर इसके सम्बन्धमें कहे जाते हैं । पहली बात तो यह है कि इसपर भरोसा नहीं किया जा सकता । यदि भिन्न-भिन्न डाक्टर एक ही रोगी की परीक्षा करें तो उस रोगी के बारेमें जितने डाक्टर उतनी रायें सुनकर आपको आश्चर्य होगा। बड़े-बड़े मशहूर डाक्टर भी अपनी परीक्षासे अक्सर एक दूसरे से बिलकुल विरुद्ध परिणाम निकालते हैं। अगर बदनके किसी खास हिस्से के चारों ओर विजातीय द्रव्य बहुत ज्यादा नहीं जमा है तो डाक्टर अक्सर धोखे में घा जाते हैं और यह कह देते हैं कि रोगी तो बिलकुल चंगा है । पर असल में रोगी ही इस बातको जानता है कि वह कितना बीमार है और उसकी हालत कितनी खराब होती जा रही है। ऐसी हालत खासकर उन For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १५ ] लोगों में देखी जाती है जिन्हें नाड़ी दौर्बल्य या वातरोग रहता है। ऐसे रोगी स्वयं तो जानते हैं कि अपनी हालत कैसी खराब है पर डाक्टरोंके कहनेसे वे निश्चिन्त बैठे रहते हैं। कभी-कभी तो उन्हें अपने जीवनसे हताश होना पड़ता है। यदि डाक्टरोंकी की हुई रोग परीक्षा निश्चित न हो तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है क्योंकि डाक्टरोंको अभी यह पता नहीं है कि रोग क्या चीज है। दूसरी बात यह है कि डाक्टरों के निदानके आधारपर उचित इलाज नहीं हो सकता । क्योंकि ऐलोपेथिक चिकित्सक पहलेसे ही जान लेते हैं कि यदि शरीरके किसी एक अङ्गमें कोई रोग हो तो उससे दूसरे अंगोंसे प्राय: कोई सरोकार नहीं होता। इसलिये केवल उसी अङ्ग के लिये औषध प्रयोग करते हैं। औषधियों का इस तरहका प्रयोग कैसा व्यर्थ और कभी कभी हानिकारक होता है, यह बात अनेक प्रमाणोंसे सिद्ध है। (१) पहला उदाहरण एक महाशयका है जिनकी जीभ बहुत ही सूजी हुई थी। इस बातको हर कोई आसानीसे देख सकता था, इसलिये डाक्टरने भी रोगकी जाँच बहुत ही आसानीके साथ कर ली। इलाज सिर्फ जीमहीका किया गया, क्योंकि डाक्टरने छमझा कि रोगका एकमात्र स्थान बस जीभ ही है । पर उस इलाजसे कोई फायदा न हुआ और बीमारकी हालत दिनपर दिन खराब होती गयी। उसकी जीभ लगातार सूचती गयी यहाँतक कि कुछ दिनोंके बाद वह जीभको विलकुल न हिला सकता For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir था। ऐसी हालतमें मैंने भाकृति-निदानके सिद्धान्तोंके अनुसार उसकी परीक्षा की। उसके लिये मैंने जो इलाज तजवीज किया उसमें पुरी सफलता हुई। (२) जर्मनीकी राजधानी बर्लिनमें एक छोटा बालक महीनोंसे बीमार था। उसका इलाज एक मशहूर डाक्टर कर रहा था। बहुत दिनोंतक वह यही न स्थिर कर सका कि उस बालकको वास्तविक बीमारी क्या है । अन्तमें अगुवीक्षणसे उसने यह निश्चय किया कि उस बालककी बीमारी एक किस्मके कीटाणुओंसे पैदा हुई है। ऐसा कहा जाता है कि ये कीटाणु केवल तिनकों में रहते हैं और वहीं अण्डे बच्चे देते हैं। वह लड़का बेचारा कभी भी तिनकों के सम्पर्कमें नहीं आया था। पर डाक्टरने कहने के लिये कुछ न कुछ निदान निकाल ही लिया। उसने कहा कि जबतक बालकके शरीरके अन्दर यह सब कीटाणु जड़से उच्छिन्न न किये जायेंगे तबतक वह चङ्गा नहीं हो सकता। इसका परिणाम बहुत ही बुरा हुआ। बेचारे रोगीकी हालत दिनपर दिन खराब होती गयी और कीटाणुओंकी संख्या भी दिनपर दिन बढ़ती गयी। ऐसी हालतमें उस बालकके माता पिताका ध्यान मेरी चिकित्सा-प्रणाली की ओर गया। मैंने उस बालककी परीक्षा की और बिना इस बातकी परवाह किये हुए कि उसके बदनके अन्दर कीटाणुओंका निवास है मैंने अपने ढंगपर उसकी चिकित्सा शुरू की। डाक्टरसे यह नहीं कहा गया कि मैं उसकी चिकित्सा कर For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १७ ] रहा हूँ । इसलिये उसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने अनुवीक्षक से देखा कि कीटाणु की संख्या बहुत अधिक घट गयी है । इसपर उसने अपनी यह राय जाहिर की कि कभी-कभी प्रकृति इस तरहके कीटाणुओं को आप ही आप दूर कर देती है । ( ३ ) एक महाशय, जो पहले बहुत ही हृष्टपुष्ट और बलवान थे, करीब दस बरसोंसे बीमारी के कारण बिलकुल काम करनेके लायक न रह गये थे । उनके हृदय में सदा आत्मघात करनेका विचार उठा करता था । वे अपने जीवनसे इतने ऊब गये थे कि आत्मघातके द्वारा दुःखोंसे निवृत्ति चाहते थे । इसलिये बराबर उनके ऊपर कड़ी नजर रखी जाती थी। कई डाक्टरोंने उनकी परीक्षा करके यही कहा कि वे बिलकुल चंगे हैं, हां, उन्माद रोग उन्हें कुछ-कुछ जरूर है, बेहतर है कि वे कुछ दिनों तक पहाड़ों में रहकर अपना दिलबहलाव करें। डाक्टरोंने जैसा कहा उन्होंने वैसा ही किया, पर उनकी हालत में कोई सुधार न हुआ। इसके बाद वे मेरे पास आये। मैंने निश्चय कर लिया कि उनके शरीर में विजातीय द्रव्य के कारण बहुत ज्यादा बाहीपन है । मेरे इलाजसे उन्हें बहुत ज्यादा फायदा हुआ। थोड़े ही दिनों में उनकी हालत बदल गयी। अब वह खुश दिखलाई पड़ने लगे और आत्मघातका विचार उनके दिलसे बिलकुल जाता रहा । इसलिये इलाज के खयाल से रोगकी परीक्षा करनेका पुराना तरीका किसी कामका नहीं है, क्योंकि पुरानी रोति मिथ्या २ For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १६ ] विश्वासोंपर निर्भर है। उस तरीके में यह मान लिया गया है कि शरीर के भिन्न-भिन्न अंग बाकी दूसरे अंगोंसे स्वतन्त्र रहकर भी बीमारी के चंगुल में फँस सकते हैं; अर्थात् एक अंग यदि रोगी हो तो उसका असर दूसरे अङ्गपर नहीं पड़ सकता । यही गलती हैं जिसकी बदौलत अलग-अलग बीमरीके लिये अलग-अलग डाक्टर हो गये हैं । यह गलती अब इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि बहुत से डाक्टर भी इसके विरुद्ध आवाज उठाने लगे हैं । उदाहरण के लिये यदि किसी मनुष्यकी आंख, नाक और कान तीनों में एक साथ कोई बीमारी हो तो उसका इलाज तीन अलग-अलग डाक्टर करेंगे जो बीमारियों में अलग-अलग खास तौरपर होशियार होंगे। अगर वह रोगी ऐसी हालत में किसी चौथी बीमारीके पंजे में फँस जाय तो शायद उसे लाचार होकर एक चौथा डाक्टर बुलाना पड़ेगा । विचित्र बात तो यह है कि डाक्टर स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें अभी तक इस बात का पता नहीं लगा है कि वस्तुतः बीमारी क्या चीज है। हाल में डाक्टरोंके बीच आपस में इस बातपर बड़ा झगड़ा होता रहा है कि बीमारीके बहुतसे भयानक लक्षणोंके जैसे कि हैजा इत्यादिके कारण क्या है | लेकिन अगर कोई आदमी आगे आकर इन लक्षणोंका कारण बताये या अगर वह इनके लिये कोई नये तरीकेका इलाज लोगोंके सामने रखे तो उसकी बातें हँसी में उड़ा दी जाती हैं 1 अगर गलत तरीकेपर रोगकी परीक्षा होनेपर भी एलो For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १६ ] पेथिक डाक्टरको कहीं-कहीं सफलता हो जाती है तो इसका कारण यह है कि वह आम तौरपर कुछ शरीरके लिये भी कोई न कोई इलाज तजबीज करता है। ज्यादातर हालतों में तो सिर्फ ऊपरी फायदा होता है अर्थात् बीमारीके लक्षण इलाज करनेसे दब जाते हैं, जिससे लोग समझते हैं कि रोग अच्छा हो गया। उदाहरणके लिये पारसे कोई गेग वास्तविक रूपसे दूर नहीं हो सकता, बल्कि उससे हमेशा और भी ज्यादा खराब हालत हो जाती है। पर इसके द्वारा कुछ जननेन्द्रिय संबन्धी बीमारियोंके लक्षण दब जा सकते हैं । जो रोगी पारेके प्रयोगसे चंगा किया जाय वह अभागा छोड़कर और क्या कहा जा सकता है ! पारेकी तरह अफीमका सत्त, आयोडीन, ब्रोमीन, कुनैन, संखिया इत्यादिका भी बड़ा बुरा असर होता है। इस विषय पर हमारे नवीन चिकित्साप्रणालीके बारहवें संस्करणमें विस्तारके साथ लिखा गया है। तीसरी बात यह है कि डाक्टर लोग रोगका निदान तभी कर सकते हैं जब बीमारी खूब बढ़ जाती है; क्योंकि शुरूमें नहीं पहिचान सकते। वे यह भी निश्चयके साथ नहीं कह सकते कि आगे बीमारी कौन सा रास्ता अख्तियार करनेवाली है। पर रोगीके लाभके लिये यह बहुत ही जरूरी है कि बीमारी शुरूवाली हालतमें ही पहचान ली जाय और यह फौरन बतला दिया जाय कि भागे बीमारो बढ़नेवाली है या नहीं। अगर बीमारीकी हालत ठीक समयमें ही मालूम For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । २० ] कर ली जाय तो रोगीके चंगा होनेकी बहुत अधिक संभावना रहती है। होमियोपेथी एलोपेथोसे निकली है। होमियोपेथीके अधिकतर डाक्टर पुराने तरीकेपर ही रोगकी परीक्षा करते हैं। वास्तवमें वे एलोपेथिक डाक्टरोंकी अपेक्षा खास-खास रोगोंमें अधिक विशेषता प्राप्त करने का यत्न करते हैं। हां, यह सच है कि होमियोपेथिक चिकित्साप्रणालीमें बीमारियोंकी पहचान बाहरी लक्षणोंसे की जाती है। बहुत-सी बातोंमें तो इस प्रणालीको रोग-परीक्षा हमारे नवीन चिकित्साप्रणालीसे की हुई रोग-परीक्षा. से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। पर हामियोपेथीकी चिकित्साप्रणाली सष्ट और निश्चित नहीं । रोगी या उसके घरवाले बीमारीके बारेमें जो कुछ बयान करते हैं उसीके आधारपर बहुधा होमियोपेथिक डाक्टर इलाज करना शुरू कर देते हैं। चिकित्साके सम्बन्धमें एक बात होमियोपेथी में अच्छी है कि इस चिकित्सा प्रणालीके अनुसार बहुत थोड़ी मात्रामें औषधिका प्रयोग किया जाता है। इससे शरीरको उतना नुकसान नहीं पहुँचता जितना कि अधिक मात्रामें औषधिका प्रयोग करनेसे शरीरको हानि पहुँचती है; बल्कि स्वल्प मात्रामें औषधिका प्रयोग करनेसे एक प्रकारकी उत्तेजना आ जाती है। प्रभाग्यसे ऐसे होमियोपेथिक डाक्टर भी हैं जो रोगियोंको जहरीली औषधियाँ अच्छी मात्रामें देते हैं। . "मैग्नेटोपेथी" में रोगकी कोई परीक्षा नहीं की जाती। इसका For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २१ ] इलाज सब बीमारियों में एक ही सा रहता है। इसलिये एक प्रकारसे "मैग्नेटोपेथी" के डाक्टर यह सिद्ध करते हैं कि बीमारी एक ही है। मैग्नेटोपेथी" के डाक्टर रोगीका इलाज करने के वक्त यह जाननेकी भी कोशिश करते हैं कि बीमारीका स्थान कहां है अर्थात् बदनके किसी खास हिस्से पर बीमारी अपना असर डाले हुए है। लेकिन बहुतसे लोगोंपर इस प्रणालीके अनुसार बने हुए चुम्बक-पत्थरके यंत्रका असर नहीं पड़ता और बहुतोंपर सिर्फ बहुत ही थोड़ा असर पड़ता है। इसलिये इस प्रणालीके अनुसार रोगकी परीक्षा भी वैसी ही अनिश्चित है जैसी कि रोगकी चिकित्सा । हां, बहुत-सी दशाभों में इस प्रणाली द्वारा चिकित्सा करनेसे अच्छे नतीजे हासिल हो सकते हैं। अन्तमें हम "नेचर क्योर सिस्टम" अर्थात् प्राकृतिक चिकित्साप्रणालीकी ओर आते हैं। इस प्रणाली में रोगकी परीक्षा करनेका कोई स्वास तरीका नहीं दिया गया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उचित भोजनके द्वारा रोगकी चिकित्सा करनेवाले डाक्टरमें धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते श्राम तौरपर रोगीकी दशा मालूम करनेकी शक्ति आ जाती है। किन्तु यह ज्ञान उसे सिर्फ मोटे तौरपर बिना किसी आधार के पैदा होता है। यदि किसी डाक्टर के द्वारा पुगनी प्रणालीके अनुसार रोगीकी परीक्षा कर ली गयी हो तो प्रायः "प्राकृतिक चिकित्साप्रणाली” के डाक्टरको सन्तोष हो जाता है । यदि प्राकृतिक चिकित्साप्रणालीके अनुसार चिकित्सा करनेवाला स्वयं एक योग्य डाक्टर है तो वह रोगीकी परीक्षा For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २२ ] एलोपेथिक रीतिसे करता है। प्राकृतिक चिकित्साप्रणालीके दूसरे अनुयायी रोगकी परीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं समझते; क्योंकि इस प्रणालीके अनुसार चिकित्सा करनेवाला डाक्टर शरीरकी खास खास अंगोंकी नहीं, बल्कि संपूर्ण शरीरकी चिकित्सा करते हैं। इस तरहके हर डाक्टरने अन्तर देखा होगा कि कुछ हालतोंमें तो उसकी तजवोजसे फौरन और जरूर फायदा हुआ, पर कुछ हालतों में उसकी चिकित्सा असफल हुई। लेकिन अगर इस तरीकेके डाक्टर प्राकृति-निदानने सम्पूर्ण शरीरकी जांचकी रीति जानते होते तो अपनी असफलतापर कोई आश्चर्य उन्हें न होता। अब हम आकृति निदानपर विचार करेंगे। - - - For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृति-निदान आकृति निदान क्या है ? नामसे ही वस्तुका वास्तविक रूप जाननेकी चेष्टा करना बड़ी भूल है । "प्राकृति-निदान" शब्दसे चिकित्साकी एक नवीन प्रणालीके केवल एक अङ्गका ही बोध होता है। वर्णन करनेके लिये विषयका संक्षिप्त नाम रखने के प्रयत्नमें प्रायः ऐसी ही कठिनाई पड़ती है। ___ आकृति-निदानका सम्बन्ध केवल मनुष्यके शरीरसे है, पर मनुष्य के शरीरकी परीक्षा मुखसे सबसे अधिक और सहज में हो सकती है, क्योंकि मनुष्यके मुखपर केवल मानसिक भाव ही नहीं बल्कि शरीर के भीतरी कार्य झलकलेसे रहते हैं । अतः सबने पहले मनुष्यके मुखकी ही परीक्षा करनी चाहिये। . शरीरके किसी विशेष भागपर ही रोग अपना प्रभाव नहीं डालता, बीमारी कोई हो उससे सारे शरीरको थोड़ी बहुत पीड़ा अवश्य पहुँचती है। बीमारीसे शरीरका रूप-रङ्ग बदल जाता है, पर यह परिवर्तन केवल कुछ ही भागों में अधिक प्रभावपूर्ण होता है। शेष भागों में इतना तीव्र नहीं होता कि नजर आ सके। For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान बीमारीसे मनुष्यकी चेष्टा भी बदल जाती है, पर वह तबतक नहीं दिखलाई पड़ सकती जबतक कि मनुष्यके शरीरमें अत्यधिक परिवर्तन न हो जाय । स्थूल और भारी शरीरकी क्रिया स्वस्थ शरीरकी अपेक्षा भिन्न प्रकारकी होती है। अतएव शरीरकी चेष्टा और कार्यसे भी निश्चय हो सकता है कि भामुक मनुष्य स्वस्थ है या नहीं! श्राकृति-निदानमें शीरकी बनावट, चेष्टा, रङ्गत और गतिकी ओर ध्यान दिया जाता है। पर पहले हमें स्वस्थ मनुष्यकी पहिचान मालूम होनी चाहिये क्योंकि इसके बिना हम पता नहीं लगा सकते कि किस मनुष्यके शरीरमें क्या रोग है। स्वस्थ मनुष्य स्वस्थ मनुष्यका वर्णन करना सहज नहीं है, क्योंकि आजकल पूर्ण स्वस्थ मनुष्य मुश्किलसे मिलते हैं। वनमें बीमार पशु बहुत ही कम पाये जाते हैं। इसलिये उनकी स्वाभाविक आकृत का पता लगाना सइज है पर सभ्य मनुष्यकी दशा इस. के विपरीत है। क्रम-क्रमसे बहुत खोज और परिश्रमके बाद मैं इस बात का चित्र खींचने में समर्थ हुआ कि मनुष्यका शरीर स्वाभाविक रूपसे कैसा होना चाहिये । वास्तविक स्वास्थ्यकी दशाका अनुमान मैंने पहले पहल शरीरके कामोंसे लगाया, क्योंकि जो शरीर स्वस्थ होगा वह अपने सब काम उचित रीतिसे किसी कठिनाई और कष्टके बिना पूरा करेगा। उसे अपने काममें किसी कृत्रिम सहायता तथा उत्तेजनाकी आवश्यकता न For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है पड़ेगी। भोजन को पचाना और शरीर के भीतरी मलको बाहर निकालना जीव के लिये आवश्यक काम है । स्वस्थ मनुष्यको भूख लगती है और यह भूख प्राकृतिक खुराकसे भली भांति दूर हो जाती है। पेटको ठूस ठूसकर भरनेसे एक तरह की पीड़ा देनेवाला भाव शरीर में उत्पन्न होता है, पर प्राकृतिक खुराकने ऐसा नहीं होता । पेटके अन्दर पचानेका काम आप ही आप ऐसी शान्तिसे जारी रहता है कि मनुष्य को पतातक नहीं लगता । खानेके बाद किसी तरहका भारीपन अनुभव करना और कोई चटपटी चीज खाने या कोई तेज चीज पीने की इच्छा करना प्रकृतिविरुद्ध है, रोगका चिह्न है । प्यास बुझानेके लिये केवल सादे पानीकी इच्छा होना ही आवश्यक है । मत्र - पेशाब गुर्दे या वृकसे बनकर मूत्राशय में आता है। पेशाब के समय किसी प्रकारकी पीड़ा या उसमें अधिक गर्मी न होनी चाहिये । रंग. अम्बरी या सूखे पयालका सा होना चाहिये । पेशाब करने के बाद जिस जगह पेशाब किया जाय वहाँ कोई बालूदार और सफुफ जैसी चीज भी नजम जानी चाहिये। उसकी महक न तो मीठी और न कड़वी होनी चाहिये । मल - स्वस्थ मनुष्यका मल गोल और लम्बी शक्तका होता है । मल बँधा होना चाहिये, पर साथ ही कड़ा न होना चाहिये । स्वस्थ मनुष्यका मल गुदाद्वार से इस तरह निकलता है कि वह भङ्ग बिलकुल गन्दा नहीं होने पाता । साधारणतः पाखाने की रंगत हरी और सफेद नहीं बल्कि बादामी और भूरी होनी चाहिये, For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति निदान - पाखाना पतला और खूनदार कभी न होना चाहिये, उसमें कीड़े भी न पड़े रहने चाहिये । जैसे कड़ा, गोल, काला दस्त बीमारोको पहचान है वैसे ही पतला दस्त भी हमेशा रोगका चिह्न है । त्वचा स्वस्थ मनुष्य के चमड़ेसे बदबू न निकलना चाहिये । यथा उसका चमड़ा उन जानवरोंके चमड़ेकी तरह न होना चाहिये जो दूसरे पशुओंका मांस खाते हैं। खासकर त्वचाकी दुर्गन्धि वैसी कभी न होनी चाहिये जैसी लाश खानेवाले जानवरोंकी होती है । चपड़े नर्मी तो होनी चाहिये पर उसमें गीलापन न होना चाहिये । छूने में कुछ गरम और ऊपरी तल सुन्दर, चिकना, और लोचदार होना चाहिये । बालवाले अङ्ग सुन्दर बालोंसे अच्छी तरह ढके रहने चाहिये क्योंकि गंजापन रोगी शरीरकी पहचान है । फेफड़े - स्वस्थ शरीर में फेफड़े अपना काम बिना किसी कठिनाई करते हैं । हवा नाकके द्वारा भीतर जानी चाहिये, प्रकृतिने नाकको सांस लेनेके ही लिये बनाया है । दिन में सोते हुए मुँह खुला रखनेके स्वभावसे बीमारीकी पहचान होती है । जब स्वस्थ मनुष्य मेहनतका काम करता है, उसके शरीरमें थकावट होते ही पता लग जाता है कि अब वह उचित अधिक परिश्रम कर रहा है, पर स्वस्थ मनुष्यकी थकावट कभी कष्टकर नहीं होती । उससे ऐसा आराम मिलता है कि आदमी सुखकी नींद सो सकता है । स्वस्थ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति-निदान क्या है मनुष्यकी निद्रा मधुर, शान्त और निर्विघ्न होती है । जागनेपर स्वस्थ मनुष्य प्रसन्न, तत्पर और सन्तुष्ट जान पड़ता है. उसाआलस्य या चिड़चिड़ापन नहीं होता। स्वस्थ मनुष्यको कभी भाकस्मिक गम्भीर मानसिक पीड़ा होनेपर भी वह शीघ्र ही फिर प्रसन्नचित हो जाता है। प्रकृतिने हमें आँसू इसीलिये दिये हैं जिसमें हम दो चार बूद आँसू बहाकर अपने दिलके बोझको हलका करें। इन सब चिह्नोंको आप इन्द्रियोंद्वारा, किसी कृत्रिम उपायके बिना सहज ही अनुभव कर सकते हैं : इसमें से अधिकतर चिह्न तो आप आँखोंसे ही देख सकते हैं। ___ इन सब बातों की परीक्षा बोवित मनुष्योंपर की गयी है। आप इसकी सच्चाईकी परख अब चाहें स्वयं कर सकते हैं। किसी मुर्दे पर जाँच करनेसे वास्तविक तात्पर्य सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य उपर्युक्त रीतिसे पूर्ण स्वस्थ है उसके शरीरकी बनावट अवश्य ही ठीक तरहकी होती है अर्थात् उसके शरीरमें कोई विजातीय द्रव्य नहीं रहता। अबतक मैंने एक भी पूरी तरहसे स्वस्थ मनुष्य नहीं देखा। हाँ, साधारण स्वस्थ मनुष्य प्रायः मिले हैं। इन्हींपर जाँच करके मैंने पता लगाया है कि स्वाभाविक रूपसे शरीरकी बनावट कैसी होनी चाहिये। स्वस्थ मनुष्य की आकृति सौन्दर्य में आदर्शतक बहुत कुछ पहुँचती है। यवनानके पुराने कारीगर और मूर्तिकारोंकी सच्ची सुन्दर मूर्तियाँ मिलती हैं। उन मूर्तियोंकी For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान शक्लें बहुत कुछ हमारे आदर्शतक पहुँचती हैं । हमारे वर्तमान कारीगर और मूर्तिकार इन्हीं मूर्तियोंको अपना आदर्श मानते हैं । उनकी दृष्टिमें आजकलके वह सब खाये पिये और मोटे ताजे तोदैल स्त्री, पुरुष, सुन्दर नहीं है जिन्हें साधारण लोग सुन्दर समझते हैं। स्वाभाविक आकृतिकी कुछ पहचान है । स्वाभाविक आकृति कैसी होनी चाहिये इसका पता आपको चित्र नम्बर १, ३, ४, ६ और १४ से लग जायगा। अब हम स्वाभाविक प्राकृतिक चिह्न दिखलायेंगे। स्वाभाविक रूप (१)-शक्ल-स्वाभाविक रूप हर तरहसे हर अंगमें सुडौल होता है। कोई अंग देखने में भद्दा नहीं जान पड़ता। नं. १ के चित्रका नं० २ के साथ मिलान करनेसे तत्काल मालूम हो जायगा कि पहला चित्र एक सुन्दर मनुष्यका और दूसरा एक बेडौल मनुष्यका है, दूसरे चित्रवाले आदमीका शरीर फूला हुआ है और धड़के हिसाबसे उसकी टांगें बहुत ही छोटी हैं। धड़ उचितसे अधिक लम्बा है, और गर्दन तो मानों बिलकुल गायब ही हो गयी है। स्वाभाविक आकृतिमें सिर मध्यम कदका और गदन न बहुत छोटी और न बहुत लम्बी है । न उभरी हुई है। उनका घेरा टाँगको पिण्डलीके बराबर है, छाती महराबदार है। पेट निकला हुआ नहीं है। न धड़ नीचेकी ओर बढ़ा हुआ है। For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है टांगोंकी बनावट मजबूत है । न अन्दर झुकी हैं और न बाहर। स्वाभाविक रूपसे स्वस्थ मनुष्यके यह विशेष गुण भी ध्यान देने योग्य हैं। माथेमें सिकुड़न न होनी चाहिये। माथा चिकना होना चाहिये। कोई ऐसा माहा न होना चाहिये कि वह गद्दीकी तरह दिखाई पड़े। आँखें साफ होनी चाहिये। उनमें नसोंका दीखाना ठीक नहीं है। नाक चेहरेके बोच और सीधी होनी चाहिये । न तो बहुत मोटी हो न बहुत पतली। दिन में और रातके समय भी मुंह सदा बन्द रहना चाहिये । ओठ सुन्दर और पतले । ओठका मोटा होना भदापन है। चेहरा कोनेदार नहीं बल्कि गोल अण्डाकार होना चाहिये। कानके ठीक नीचे एक ऐसी साफ लकीर होनी चाहिये जिससे चेहरेकी गोल बनावट साफ तौरपर मालूम पड़ सके । उसी लकीरके कारण आदमीके चेहरेकी सुन्दरता और सुडौलपन बढ़ता है। अधिकतर लोग स्वाभाविक रीतिसे इस तरह के चेहरेकी सुन्दरतापर विशेषतः आकर्षित होते हैं पर सष्टरूपसे बतला नहीं सकते कि उस चेहरे में क्या सुन्दरता है। टुड्डी नुकीली नहीं बल्कि गोल होनी चाहिये । सिरके पीछेवाले हिस्से और गर्दन के बीचमें एक ऐसी साफ लकीर होनी चाहिये जिससे सिरका पीछेवाला हिस्सा गर्दनसे अलग मालूम पड़े। (२) रक्त-चेहरेका रङ्ग न तो पीला न हलका न जर्द और न बहुत लाल होना चाहिये। सबसे ऊपर यह बात है कि For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चेहरा देखनेमें चमकदार न होना चाहिये। आर्य लोगोंका कुदरती रङ्ग हलका गुलाबी है। चाहे श्यामता लिये हो चाहे गोराई। चेहरे में बुढ़ापेतक ताजगी और तेजी बनी रहनी चाहिये। (३) गति-शरीरकी दशाके विचार के साथ उसकी गतिपर भी विचार करना आवश्यक है। यदि किसी प्राकृतिक गतिमें रुकावट पड़े तो समझ लेना चाहिये कि उस शरीरमें कुछ गड़बड़ी अवश्य है। यदि कोई शरीर स्वच्छन्दताये अपना काम नहीं कर सकता तो समझ लेना चाहिये कि उसके अन्दर मल इकट्ठा हो गया है और उसके काम में रुकावट डालता है। भाकृति-निदानके अनुसार किसी रोगकी पहचान सिरकी हरकतोंके ऊपर ध्यान देना विशेष आवश्यक है । स्वस्थ मनुष्यका सिर इच्छानुसार जब चाहे तब दाहिने बायें घुमाया जा सकता है। सिर उठाने में हलकके पास कोई तनाव न होना चाहिये। इस प्रकार हम रूप, रङ्ग और गतिके अनुसार इस बातकी जांच करते हैं कि शरीरकी दशा कैसी है । शरीरका बादीपन यदि शरीरकी आकृति या रङ्गत प्राकृतिक ढङ्गकी न हो या उसकी गतिमें रुकावट पड़ती हो तो यह समझ लेना चाहिये कि शरीर मलके बोझसे लदा हुआ है। शरीरके अन्दर किसी For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति-निदान क्या है। प्रकारका मल रहनेसे ही बादीपन पैदा होता है ! तभी उसकी भाकृतिमें अन्तर पड़ जाता है। अब प्रश्न यह है कि यह विजातीय द्रव्य जो शरीरका कोई अङ्ग नहीं है और इसलिये जिसका नाम मल या विष होना चाहिये -मनुष्य शरीर में किस तरह प्रवेश करता है ? यह द्रव्य उसी तरह शरीरके अन्दर प्रवेश करता है जिस तरह कोई दूसरा द्रव्य बदनके अन्दर जा पहुँचता है। पहले पहल तो विजातीय द्रव्य शरीरके मलमूत्रवाहक इन्द्रियों के पासके अङ्गों में जमा होता है। यह विजातीय द्रव्य कुछ कालतक तो छोटे छोटे रोगों द्वारा जैसे कि दस्तकी बीमारी-अत्यन्त पसीना और बहुत ज्यादा पेशाबके द्वारा शायद निकल सकता है। इस तरहसे कभी-कभी तो शरीरके अन्दर बहुत ज्यादा जमा हुआ सदा पदार्थ भी निकल जाता है तथापि साधारणतःकुछ न कुछ गंदा पदार्थ शरीरमें रह ही जाता है या नया पढ़ार्थ फिरसे जमा हो जाता है। शरीरके जिन भागों में विजातीय द्रव्य जमा रहता है वहाँ बड़ी तेज गर्मी पैदा होती है । उसी गर्मी से दस्तकी बदौलत विजातीय द्रव्यमें भी एक तरहका परिवर्तन हो जाता है। गर्मी पैदा होनेसे शरीरके अन्दर एक तरहका खमीर या जोश उठता है और उसी खमीर या जोशके जरिये से एक तरहकी गैस या हवा पैदा होती है। यह हवा कुछ तो बदनके चमड़ेके सूराखोंके द्वारा बाहर निकलती है और कुछ शरीरके भीतर ही ठोस बनकर जम जाती है। यही जमा हुआ पदार्थ शरीर में बादीपन पैदा करता है। विजातीय द्रव्य कई ओर For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति निदान जमा होता है। उसीके अनुसार बादीपन भी कई किस्मका होता है। __पेट और आंतें जब एक बार कमजोर पड़ जाती हैं और उनमें विजातीय द्रव्य व्याप जाता है तो प्राकृतिक और स्वास्थ्यकर भोजन भी ठीक-ठीक नहीं पचाया जा सकता। भली-भांति न पचा हुका समस्त भोजन विजातीय द्रव्य बन जाता है, एक बार भी सड़ा गला मल इस तरहसे इकट्ठा होना प्रारम्भ हो जानेसे फिर यह काम तेजीसे बढ़ता रहता है और शरीर में प्रायः गड़बड़ होने लगता है। इसीलिये बालकोंको अनेक रोग धर दबाते हैं । ये रोग मुख्यतः विजातीय द्रव्यको निकालनेके लिये ही होते हैं। __प्रायः विजातीय द्रव्य रोमकूपों और फेफड़ों के द्वारा ही शरीरमें प्रवेश करता है। यद्यपि ऐसा विजातीय द्रव्य बहुधा फिर बाहर निकाल दिया जाता है तथापि कुछ दशाओंमें वह शरीरके भीतर संचित होकर बादीपन पैदा करता ही है। पाचनशक्ति अच्छी होनेसे तो शरीरमें इतनी काफी ताकत रहती है कि वह फेफड़े के द्वारा भीतर आये हुए किसी विजातीय द्रव्यको बाहर निकाल देता है पर पाचनशक्तिकी दुर्बलताएं निकालना असम्भव होता है। गंदी हवामें रहनेसे हमारे शरीरके अन्दर बिलकुल उसी तरह और उतना ही ज्यादा विजातीय द्रव्य प्रवेश करता है जितना और जिस तरह कि अप्राकृति भोजनके द्वारा शरीरके अन्दर प्रवेश करता है। For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है ? कभी कभी तो ऐसा मल या विष बदनके बाहर निकलने के लिये आप ही आप बनावटी रास्ता निकाल लेता है। इस तरहके रास्ते फोड़े, फुंसी, घाव, नासूर भगन्दर, पैरोंका पसीजना, रक्तस्राव इत्यादि हैं । इन दशाओं में शरीर के अन्य भाँग प्रायः स्वस्थ जान पड़ते हैं क्योंकि तब बादीपनसे तकलीफ नहीं मिलती। इस तरहके रास्ते सिर्फ उसी वक्त आप ही आप बन जाते हैं जबकि बदन के अंदर बहुत अधिक विजातीय द्रव्य भरा रहता है । जैसे फोड़ा, फुंसी होनेपर डाक्टर लोग चीरा लगाते हैं वैसे ही मनुष्यका शरीर भी या तो आप ही भाप इन बीमारियोंके द्वारा चोग लगाता है या इस तरहके फोड़े और बाब वगैरह कोई तेज और उभाड़नेवाला कारण होनेपर ही पैदा हते हैं। उस रास्तेको एक दम एकाएक बन्द कर देनेसे जो द्रव्य बहकर बाहर निकल जाना चाहिये वह बदन के किसी हिस्से में जमा हो जाता है । इसका असर फौरन देखने में आता है; क्योंकि जिस भाग में विजातीय द्रव्य जम जाता है वह या तो सूख जाता है या उसमें नासूर हो जाता है । मैं यहां कुछ आंखों देखे उदाहरण देना चाहता हूँ । (१) - एक आदमी को करीब दस बरससे खूनी बवासीर की बीमारी थी । अन्तमें बीमारी बढ़ जाने और बहुत ज्यादा खून गिरने लगनेपर उसने इलाज शुरू किया । पहले तो अपने डाक्टरकी बतलायो मामूली दवा इस्तेमाल की, पर कोई फल नहीं हुआ, For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान फिर एक प्रसिद्ध डाक्टरकी सलाहसे उसने 'डरमेटोल" का प्रयोग किया, खून बन्द हो गया और उस आदमीने समझा कि बस अब मैं चगा हो गया। पर कुछ दिन पीछे ही उसने देखा कि गलैके पास एक अजीब ढंगकी सुजन पैदा हो रही है। उसे खयाल हुआ कि हलककी सूजनका कुछ न कुछ सम्बन्ध बवासीरके एकाएक गायब हो जानेसे जरूर है। सूजन इतना अधिक बढ़ गयी कि कुछ महीने बाद उसका दम घुटने लगा और हालत बहुत नाजुक हो गयी। यह बिलकुल स्वाभाविक बात थी। ___ बवासीरका मार्ग बन्द होनेपर जब विजातीय द्रव्य आंतोंसे बाहर न निकल सका तो उसने गर्दनको अपने जमा होने का स्थान बना लिया। वह द्रव्य पीछेकी पोरसे दिमागमें चढ़ जाता तो वहां उसमें कुछ फितूर या पागलपन पैदा करता । ___ उसने कुछ मित्रोंकी सलाहसे उदरस्नान करना स्वीकार किया क्योंकि उसे अपने दम घुटनेका ऐसा डर था कि उससे जो कहा जाता वही माननेके लिये वह तैयार हो जाता। पहले ही स्नानसे उसे बड़ा बाराम मालूम हुआ। कारण, विजातीय द्रव्य अभी हाल में ही इकट्ठा हुआ था और उस समयता कड़ा न होने पाया था। नहीं तो उसे देरमें फायदा होता। विजातीय द्रव्य शरीर में पेट, फेफड़े और त्वचा द्वारा पहुँचता है। फेफड़े और चमड़ेके द्वारा हम हवा खींचते या सांस लेते हैं। मुह द्वारा हम खाने पीनेकी चीजें पेट में पहुँचाते हैं। अबतक हम प्राकृतिक नियमोंका पालन करते रहते हैं तबतक For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है ११ विनातीय द्रव्य पहले तो भरसक शरीरमें नहीं पहुँचता। अगर अकस्मात् पहुँच भी जाता है तो जल्द बाहर निकाल दिया जाता है, क्योंकि प्रकृतिने शरीर में ऐसी रचना कर रखी है कि यदि कोई हानिकारक पदार्थ भीतर चला जाय तो फौरन निकाल बाहर किया जाय। ___ स्वस्थ शरीरकी अंतड़ियां, गुर्दे, चमड़े और फेफड़े निरर्थक वस्तुको दूर करते रहते हैं। पर यदि बहुत अधिक विजातीय द्रव्य शरीरके अन्दर चला जाता है तो अंतड़ियां, गुर्दे, फेफड़े वगैरह से पूरी तरहसे नहीं निकाल सकते और विजातीय द्रव्यका कुछ हिस्सा भीतर रह ही जाता है । अधिकतर बच्चे गर्भावस्थामें ही विजातीय द्रव्यसे बहुधा इतना लद जाते हैं कि वे बीमार ही पैदा होते हैं। इस तरहके बहुतसे बालक बचपनमें ही मौतके शिकार बन जाते हैं। ____ बच्चेको आरम्भमें क्या खुराक दी जाय प्रश्न बड़े महत्वका है। भोजन प्राकृतिक होगा तो शरीर भी प्राकृतिक रूपसे बढ़ेगा। बच्चे के लिये प्राकृतिक भोजन केवल माताका दूध है। पर दुर्भाग्यवश बहुतेरे बच्चोंको माताका दूध नसीब नहीं हो सकता क्योंकि प्रायः माताओंका शरीर विजातीय द्रव्यसे इतना भरा रहता है कि दूध बिलकुल पैदा नहीं होता। ऐसी दशामें माँके दूधके बदले कोई दूसरी चीज देनेकी जरूरत पड़ती है पर दूसरी कोई चीज माताके दूधकी बराबरी कभी नहीं कर सकती। पैदा होनेके बाद पहले कुछ महीनेतक तो बकरो या गायका बिना For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान उबाला हुआ दूध सबसे अच्छा है। उदाते हुए दूधसे और खास करके उस दूधसे जो आजकलकी डाक्टरी रीतिसे "निर्जीव" कर दिया जाता है कितना नुकसान पहुंचता है इसका प्रमाण आपको चित्र नं० ४६, ५७. ५१ के देखनेसे मिल सकता है। ये चित्र असली फोटोसे नकल किये गए हैं। ___ अप्राकृतिक भोजन कभी पूरी तरह नहीं पहुँच सकता। यदि प्रतिदिन प्राकृतिक भोजन किया जाय तो वही दशा हो जायगी जो ऊपर लिखी गयी है, क्योंकि शरीरमें अंतड़ियां, गुर्दे और फेफड़े वगैरह ठीक-ठीक तरहसे उस द्रव्यको बाहर नहीं निकाल सकते जो शरीरके लिये किसी कामका नहीं रह गया है। इसके साथ ही शरीरके अन्दर असली पौष्टिक-पदार्थको कमी होने से स्वास्थ्यकी हानि पहुँचती है। (२)-एक स्त्रीकी उम्र तीस वर्षकी थी। उसे बहुत दिनोंसे दस्तोंकी बीमारी थी। जिससे यह पता लगता था कि स्वभाव या शरीर विजातीय द्रव्योंको दस्तोंद्वारा निकाल रहा है।। डाक्टरकी दवासे दस्त तो बन्द हो गये पर उसके बाद ही गहरा कब्ज शुरू हुआ। विजातीय द्रव्य कारकी ओर चढ़ने लगा और तीन हफ्तेके अन्दर गर्दनके ऊपर वैसी हो सूजन हो गयी जैसी कि चित्र नम्बर १२ में दिखलाई गयी है। उस स्त्रीको फौरन पता लग गया कि यह सूजन डाक्टरकी दवाओंका नतीजा है। दस्तकी बीमारी बन्द हो जानेके बाद अगर गर्दनके ऊपर सूजन फौरन ही न होकर धीरे-धीरे होती तो उसे यही निश्चय होता कि जो दवा मैंने खायो है वह फायदेमंद है। For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है अभाग्यसे लोगोंके ख्यालमें यह बात बिलकुल नहीं आती कि दवाओंके जहरसे कितना ज्यादा नुकसान पहुँच सकता है । पैरका पसीजना बन्द हो जानेपर भी अक्सर गर्दन सूख जाती है और कभी कभी सिर में बादीपन भी पा जाता है। उसके साथ ही बहुत ही कमजोरी और दिमाकी गड़बड़ी भी पैश हो जाती है। अक्सर विजातीय द्रव्य फेफड़ा, दिल और शरीर के अन्दर दूसरे हिस्सों में चला जाता है। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि शरीरके अन्दरवाली अधिकतर बीमारियाँ और खास करके क्षयकी बीमारी इसलिए पैदा होती है कि ऊपर लिखे हुए तरीकेसे बीमारियों के बाहरी चिह्न दबा दिये जाते हैं। खांसी इस तरहका एक चिह्न है; क्योंकि खांसीके द्वारा जो कफ बाहर निकलता है उसके साथ बहुत सा विजातीय द्रव्य बाहर निकल जाता है। यदि औषधिद्वारा उचितसे अधिक गर्मी पहुँचानेसे या ताजी हवामें न रहनेसे कफका आना बन्द हो जाता है तो शरीरकी और खास करके फेफड़ेकी हालत पहलेसे खराब हो जाती है। विजातीय द्रव्य सीधे खून के अन्दर जा सकता है। मामूली तरीके से घूम फिरकर जो विजातीय द्रव्य शरीरके अन्दर जाता है वह उतना नुकसान नहीं पहुँचाता जितना कि सीधे खूनके अन्दर पहुँचनेवाला विजातीय द्रव्य पहुँचाता है। सांपका काटना इस बातका एक अच्छा उदाहरण है। सांपके काटनेसे जहर सीधे खूनमें पहुँचता है। इसलिए यह जहर बड़ी ही तेजी For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - आकृति निदान से काम करता है और उसके सबबसे खूनमें एक तरहका उफान और ऊँचे दरजेका बुखार पैदा होता है। लेकिन अगर सांपका जहर उतनी ही मात्रा में पेट के अन्दर पहुँचाया जाय तो कोई बड़ा नुकसान न होगा क्योंकि पेट में जाकर उसका असर मारा जाता है और उसका कुछ हिस्सा आंतोंके द्वारा बाहर निकल जाता है। पागल कुत्ते के काटनेसे भी यही हालत होती है। इस तरह जितने विजातीय द्रव्य सीधे खूनके अन्दर जाते हैं सभी ऐसी तेजीके साथ अपना काम नहीं करते और न उनका परिणाम ही सदा प्राणघातक होता है। पर विजातीय द्रव्यसे किसी न किसी सूरत में नुकसान जरूर पहुँचता है। प्रार किसी मौरेसे विजातीय द्रव्य घावोंके द्वारा खूनके अन्दर प्रवेश करे तो इससे बड़ी शोचनीय घटना हो सकती है। अगर इस तरहका विजातीय द्रव्य खूनके अन्दर जान बूझकर पहुँचाया बाय तो ऐसा करना एक बड़ा भारी जुर्म होगा। टीका लगानेकी प्रथा एक ऐसी भूलसे भरी हुई प्राण वातक प्रथा है कि उसके जोड़की मिसाल इतिहासमें मिलना मुश्किल है। गत शताब्दीका पाश्चात्य सभ्यताका बनाया हुआ यह अति खेदजनक स्मारक है। यदि मनुष्य-जाति सदाके लिए गोमार और कमजोर नहीं होना चाहती तो उसे अब उचित समय है कि टीका लगानेकी प्रथा बिलकुल बन्द कर देनी चाहिये । यह सच है कि जो भादमी कुछ भी स्वस्थ होगा उसका शरीर उस जहरका कुछ हिस्सा For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है १७ फिर बाहर फेंक देगा। साधारणतः जहाँ टीका लगाया जाता है वहींसे जहर बाहर निकल जाता है । जिस हिस्सेपर टीका लगाया जाता है वह हिस्सा सूज जाता है और वहांपर कुछ पीप मा जाती है। लेकिन कुछ थोड़ा बहुत विष प्रायः शरीरमें रह जाता है। यदि शरीरमें शक्ति बहुत कम हुई तो वह जहरीले पदार्थको कठिनतासे बाहर निकाल सकता है। इसलिये उस बहरीले पदार्थका अधिकांश शरीरके भीतर हो बना रहता है। इस तरहके लोग फिर दूसरी या तीसरी मर्तबा टीका लगवाते हैं क्योंकि डाक्टरों की समझमें उनका पहला टीका "असफल" गिना जाता है। असलमें जो बात टीका लगानेमें "सफलता" के नामसे गिनी जातो है वह अभाग्यसे लाभदायक नहीं बल्कि हानिकारक है क्योंकि जो ( बाहरी चीजें 'विजातीय द्रव्य" शरीरके अन्दर हैं लनमें नया विजातीय द्रव्य जाकर और भी मिल जाता है। __मलजनित विकार जैसा कि ऊपर कह आये हैं विजातीय द्रव्य शरीरके भीतर नयी चीज होनेसे उचित स्थानपर पहुँचनेका यत्र करता है। इस तरह का विजातीय द्रव्य पहिले पाखाना और पेशावके रास्तेके पास पेटमें जमा होता है। पर ज्यों ही यह क्रिया प्रारम्भ होती है, त्यों ही सड़ा हुमा विजातीय द्रव्य अधिक दूरके अङ्गोंमें जैसे कि सिर और बाजुओंमें अपना घर करने लगता है। अगर कोई खराब हालत नहीं होती तो For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान विजातीय द्रव्यके बटवारेका काम बहुत धीरे-धीरे जारी रहता है। विजातीय द्रव्य साधारणत: शरीर के एक सिरेसे दूसरे सिरे. तक जाने की कोशिश करता है। शरीरके एक सिरेसे दूसरे सिरे तक जानेमें विजातीय द्रव्यको गलेके तग रास्तेसे होकर गुजरना पड़ता है। गलेके रास्ते में जमा हुआ विजातीय द्रव्य सबसे अधिक अासानीके साथ दिखलाई पड़ सकता है। पहले तो मलके वहां जम जानेके बाद ऐसा मालूम पड़ता है कि मानों वह हिस्सा कुछ बढ़ गया हो, इसके बाद वहां सूजन या गांठ सी पड़ जाती है। नाड़ी आदमी इस विषयमें सहज ही धोखेमें आ सकता है, उसे वहां कोई भारीपन या सूजन न मालूम होगी, पर परीक्षासे पता लगेगा कि गलेपर कड़ी लकीरें सी षड़ी हुई हैं जिनसे गला टेढ़ा या बेडौल हो गया है। इस दशामें सिरकी. गति विशेषरूपसे अस्वाभाविक होगी, रंगत भी अप्राकृतिक अर्थात् साधारणतः भूरी, बादामी या उचितसे अधिक लाल होगी। प्रायः साधारण प्राकृतिसे भी शरीरके बादीपनका बहुत कुछ ठीक-ठीक अनुमान हो सकता है पर और दशाओं में प्रत्येक बातको होशियारीसे देखे बिना बिमारीका स्पष्ट रूप नहीं मालूम होता! गले और सिरकी सूजन पेटकी सूजन सी होती है और वह दोनों हिस्सोमें समान रूपसे बढ़ती है। पर कभी-कभी पेटका विजातीय द्रव्य घट जाता है और गलेवाला बढ़ जाता है। For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir on प्राकृति-निदान क्या है जल-चिकित्सासे गलेका विजातीय द्रव्य घट जाता है और पेटवाला साथ ही बढ़ जाता है। __पेटसे चलकर सिरतक पहुँचनेमें विजातीय द्रव्य सदा एक ही मार्गसे नहीं जाता। यह बात शायद उन भिन्न-भिन्न अंगोंकी शक्तिपर निर्भर है जिनके मार्गसे होकर यह मल चलता है । मनुष्य साधारणत: जिस करवट सोता है उसपर भी यह बात कुछ कुछ निर्भर है। इस तरह मल शरीरके सामनेवाले भागमें या एक ओर अथवा पीछेकी ओर सबसे अधिक अंशमें रहता है। इसलिये शरीरका बादीपन तीन तरहका हो सकता है १) शरीरके सामनेवाला बादीपन । (२) शरीरके बगलवाला बादीपन । । ३ शरीरके पीछेवाला बादीपन । बगलवाला बादीपन दाहिनी ओर भी हो सकता है और बाई ओर भी। प्रायः एक ही प्रकारका बादीपन आदमियों में नहीं रहता। उपर्युक्त दोनों या तीनों प्रकार के बाढीपन एक साथ पाकर इकट्ठे हो जाते हैं। सामने और बगलबाला या बगल और पीठवाला या कभी-कभी कुन शरीरका बादीपन एक साथ इकट्ठा हो जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकारके बादीपनको साफ तौरसे समझनेके लिये हम हर एकके ऊपर अलग अलग विचार करेंगे। (क) सामनेवाला बादीन ( देखिये तस्वीर नं. ५, ७, ३६ और ३७) For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान सामनेवाले बादीपनका सम्बन्ध विशेषतः शरीरके सामनेवाले हिम्सेसे है। तस्वीर नम्बर ५, ७, ३६ और ३७ इस तरहके बादीपनके उदाहरण हैं। इस बादीपन को भली भाँति समझने के लिये मैंने तस्वीर नं. ६ में जैसी चाहिये वैसी स्वाभाविक आकृति दे दी है। पाठक उन दोनों चित्रों का मिलान करके दोनोंका अन्तर देखें। सामनेवाले बादीपनकी दशामें गला सामनेकी ओर साधारणतः कुछ बढ़ा रहता है । तस्वीर न० । और चेहरा बहुत बड़ा और भरा हुआ मालूम पड़ता है। प्रायः केवल मुख ही आगेकी ओर निकला सा रहता है । चेहरेके बारे में यह एक विशेष बात ध्यानमें रखनी चाहिये कि चेहरेके चारों ओर एक ऐसी लकीर सी रहती है जो सिरके दूसरे हिस्सेसे चेहको अलग करती है: जब सामनेकी ओर बादीपन रहता है तब यह लकीर साधा. रणतः अपने स्वाभाविक स्थानपर नहीं बल्कि कुछ पीछेकी ओर रहती है। (तस्वीर नं० ७, ८)। भार सामने वाला बादीपन बहुत ज्यादा रहता है तो चेहरा फूला हुआ मालूम पड़ता है और माथेपर एक चर्बीदार गद्दी सी बन जाती है। पर इस तरहकी चर्बीदार गद्दी पीठके बादीपनमें भी रहती है। इसलिये सामनेवाले वादीपनकी यह कोई खास पहचान नहीं है । इससे केवल यह सूचित होता है कि बादीपन दिमागतक पहुँच गया है। ___ बहुत सी दशाओं में गलेपर गांठ सी पड़ जाती है ( तस्वीर नं. १०, ३८, इससे यह सुचित होता है कि बादीपन बहुत For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान क्या है ज्यादा बढ़ गया है। इस हालत में अगर विजातोय द्रव्य सुखा दिया जाय और पुढे क्षीण कर दिये जाय तो जबड़ेके पासवाली चेहरेकी लकीर फिर अपने स्वाभाविक आकार में भा सकती है, पर गलेपरकी गांठे और उनका रङ्ग इस बातको बतलानेके लिए काफी हैं कि शरीरके सामनेवाले हिस्से में विजातीय द्रव्यका एक बड़ा समूह इकट्ठा है। पार बादीपन सामनेकी ओर होता है तो बदनकी रङ्गत या तो पीली या उचितसे अधिक लाल होती है और जिन हिस्सों में सबसे ज्यादा बादीपन होता है वे बहुत ज्यादा तने रहते हैं और देखने में चमकदार मालूम पड़ते हैं । सिरकी गतिपर भी बहुत ध्यान देनेकी मावश्यकता है। सामनेवाले बादीपनमें सिर सरलतासे पीछेकी ओर नहीं घुमाया जा सकता। घूमने की कोशिश करनेसे गरदनपर बड़ा तनाव दिखलाई पड़ेगा । तस्वीर नं. ३८)। ऐसी दशामें छोटी या बड़ी गांठें, जो साधारणतः नहीं दिखलाई पड़ती, साफ जाहिर हो जाती हैं। इस प्रकार समान भावसे कुछ चेहरा या उसके विशेष भाग विजातीय द्रव्यके एकत्र होनेसे कुछ न कुछ अवश्य बिगड़ जाते हैं। कभी-कभी तो बादीपन सिर्फ एक ही ओर होता है जिससे चेहरेका एक आधा हिस्सा दूसरे प्राधे हिस्सेसे भारी या लम्बा दिखलाई पड़ता है । ( तस्वीर नं० % )। __ बादीपनका असर क्या होता है, यह बिलकुल इस बातपर निर्भर है कि बादीपन किस तरहका है। For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org २२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान इस दशा में बदनके सामनेवाले बादीपन में सिरसे लेकर टाँगोंतक शरीर के हरएक हिरसेपर बादीपनका असर रहता है, इसलिए उसके कारण शरीर के हर एक अङ्गको पीड़ा पहुँचती है। इससे चेचक, लाल बुखार, डिप्थेरिया, फेफड़ेकी सूजन इत्यादि लगभग हर एक प्रकार के तीव्र रोग पैदा हो सकते हैं। सामनेवाले भागोंपर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चों की बीमारियों के साथ-साथ जो फोड़ा फुन्सी भी निकल जाता है. उससे यह बात साबित होती है । बहुत सी पुरानी बीमारियाँ और खास करके हल और गलेकी बीमारियाँ सामनेवाले बादीपनके कारण पैदा होती हैं। पर चेहरेवाली बीमारियाँ इतनी ज्यादा बादीपनके कारण नहीं पैदा होतीं जितनी कि गले और हलकवाली बीमारियाँ | चेहरेकी सुर्खी और फोड़ा फुन्सी, मुहांसे वगैरह अनाड़ी और होशियार दोनों तरहके डाक्टरोंकी नजर में इसी तरह की बीमारियोंमें शामिल किये जा सकते है । प्रायः आरम्भ में ठुड्डीपर ही इसका असर पड़ता है । दाँत गिर जाते हैं और साधारणत: सामनेवाले बादीपन में नीचेके दाँत पहले गिरते हैं। चित्र नं० ५ और ७ मे देखिये, दोनों आदमियों के नीचे के दाँत, मालूम पड़ता है, बहुत जल्दी ही गिर गये हैं । कभी-कभी तो नसों और आँखोंकी बीमारियाँ भी पैदा हो जाती है । बादीपन जब सिर में ऊपरतक पहुँच जाता है तो सिर गम हो जाता है, विशेषकर सिरके सामनेवाले वाले बाल भर जाते हैं । For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान क्या है २३ जिस आदमीके सिर्फ सामनेवाले हिस्से में बादीपन होगा उस आदमी के दिशगमें कभी कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती। । प्राय: सामनेकी ओर बादीपन होनेपर भी शरीरके भीतर मर्म-स्थान बहुत दिनोंतक अच्छी दशा में बने रहते हैं, क्योंकि विजातीय द्रव्य विशेषतः गालोंमें और माथेके अन्दर जमा रहता है । इसलिए इन अंगों में कोई न कोई बीमारी खासकर सिरदर्द, फुन्सी, मुहांसे और दाद वगैरह हो जाता है। इन रोगवालोंको गर्मी या सर्दीकी कमी बेशीमें विशेषरूपसे कष्ट होता है। विजातीय द्रव्य शरीरमें शायद बहुत धीरे-धीरे जमा होता है। इसलिए बहुतसे लोगोंको वर्षोंतक उपयुक्त कोई न कोई रोग लगा रहनेपर भी वे कोई कड़ा कष्ट नहीं अनुभव करते । लेकिन एकाएक दूसरे अंगोंपर जो अबतक बादीपनसे खाली थे, असर पड़नेपर उन्हें तकलीफ होने लगती है। ___ इन सब रोगोंका सिर्फ एक ही इलाज है कि रोगोंकी उत्पत्तिके कारण दूर किये जायें क्योंकि विजातीय द्रव्य के दूर हो जानेसे ही बीमारीके कुल लक्षण दूर हो जायेंगे। और अंगोंकी अपेक्षा शरीरके सामनेके भागके बादीपनका इलाज अधिक सरलतासे हो सकता है। प्रायः इस बादीपनसे पैदा हुए रोग उतने भयंकर नहीं होते। बच्चोंको बुखारके साथ पैदा होनेवाले दूसरे रोग सामनेके बादीपनके कारण पैदा होते हैं। यह अधिक भयंकर नहीं होते। जल-चिकित्सासे सामनेका बादी For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान पन प्रायः दो तीन अठवारोंमें दूर हो सकता है । यहाँ शायद बहुतसे लोग आश्चर्यमें भाकर यह पूछेगे कि मेरी चिकित्साप्रणाली के अनुसार एक रोगी ऐसा जल्दी और दूसरा रोगी बहुत धीरे-धीरे क्यों चंगा होता है। ___ इस तरहसे सिर्फ कुछ हो अठवारोंमें मैंने एक ऐसे रोगीको जो १८ वर्षोंसे खुजलीसे पीड़ित था लगभग बिलकुल चंगा कर दिया। उसे यह गेग सामनेके बादीपनसे पैदा हुआ था। - यह स्वाभाविक है कि जो अङ्ग बिलकुल ही नष्ट हो जाते हैं वे फिर बनाये नहीं जा सकते । जैसे जो दांत गिर जाते हैं उनकी जगह फिर नये दांत नहीं निकाल सकते, पर प्राय: यह देखा गया है कि जो मनुष्य कई सालतक गञ्जा रहा है उसके सिरपर बाल फिरसे उग आये। (ख) बगलवाला बादीपन (तस्वीर नं०८, १५, १६, १७, १८ और १६) बगलवाले बादीपनमें जिधर बादीपन रहता है उधर गरदन स्पष्ट रूपसे बढ़ी हुई दिखलाई देती है। प्राय: उधरके कुल भाग अधिक चौड़े होते है जिससे सारा शरीर बेडौल सा मालूम पड़ता है । चित्र नं. १७ में यह बात स्पष्टरूपसे दिखलायी गयी है। इसमें कुल बायीं बगल दाहिनी बगलसे अधिक चौड़ी है । चित्र नं० १६में चेहरेका कुल दाहिनी-भोरवाला हिस्सा बायीं ओरवाले हिस्सेसे कितना अधिक लम्बा और चौड़ा है। यह बात टांगों में For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान क्या है भी बहुत अच्छी तरह दिखलाई पड़ सकती है। इसलिये सिर बदनके ऊपर सीधे बीचोबीच नहीं है। जिस ओर बांदीपन रहता है उस ओर वह लकीर साफ तौरपर नहीं दिखलाई देती जो जांघके पास टांग और धड़को जुदा करती है क्योंकि वहां अधि. कतर विजातीय द्रव्य जमा रहता है। सिर भी धीरे-धीरे एक ही ओरको बढ़ता हुआ दिखलाई पड़ता है। गरदन और सिर पर प्रायः गांठे भी पड़ जाती हैं चित्र नं० १८ देखिये । बालवाला बादीपन सिर मोड़नेके समय स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। क्योंकि सिर मोड़नेमें गरदनके जिन्न भागमें बादीपन रहता है। वहाँ तनाव जरूर रहता है । प्रायः भलीभांति बटी हुई रस्सीकी तरह नसें भी उभड़ी हुई दिखलाई पड़ती हैं जिनसे यह स्पष्ट सूचित हो जाता है कि विजातीय द्रव्य किस ओरसे होकर गया है और किस ओर बना रहेगा। बगल के बादीपनका परिणाम प्रायः सामनेके बादीपनकी अपेक्षा अधिक भयानक होता है, वह अधिक कठिनाईसे दूर किया जा सकता है । जिधर बादीपन होता है उधर धीरे-धीरे दातोंमें दर्द होने लगता है, दांत गिर जाते हैं। बगल और सामने दोनों ओरका बादीपन इकट्ठा हो जाने पर तो प्रायः कान बहरे हो जाते हैं। ऐसी दशा में कानोंतक सूजन दिखलाई पड़ सकती है। आंखोंपर भी इस बादीपनका प्रभाव पड़ता है, या काला मोतियाबिन्द पैदा हो जाता है। स्वाभाविक रूपसे यह मोतियाबिन्द सदा उसी भोर पहले निकलता है जिधर बादीपन होता है। For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ आकृति निशन यदि सिरके बिलकुल आधे हिस्से में बादीपन रहता है तो आधे सिर में दर्द होने लगता है। वर्षोंतक इस तरहका सिर दर्द रहने के बाद भी शायद कोई बुरी दशा न दिखलाई पड़े पर अन्तमें उस भागका बादोपन इतना बढ़ जाता है कि शरीर के विजातीय द्रव्यको लाचार हो दूसरी जगह अपने लिये स्थान ढूंढ़ना पड़ता है। मेरे जान पहचान की एक स्त्री पन्द्रह वर्षोंसे लगातार अधकपारीसे तकलीफ उठा रही थी। डाक्टरोंकी दवा से उसे कुछ लाभ न पहुँचा। डाक्टर साहब उसे दम दिलासा देते रहे कि कुछ दिन बाद यह दर्द आप मिट जायगा । वास्तवमें उसका दर्द पन्द्रह बरस बाद बिलकुल जाता रहा, पर दर्द के साथ ही साथ उसकी माँखोंको रोशनी भी गायब होने लगी। कोई कल्पना भी न कर सका कि अधकपारीसे इस अधेपनका कोई सम्बन्ध है । पुरानी तकलीफ दूर हो जाने के बाद अब सिर्फ इस बातपर खेद प्रगट किया जाने लगा कि एक नई मुसीबत उठ खड़ी हुई है । वास्तव में यह एक सरल समस्या थी । विजातीय द्रव्य आँखोंतक पहुँच गया था । उस स्त्रीके शरीरकी बनावट इतनी ज्यादा मजबूत थी कि वह अन्धेपनसे इतनी मुद्दत तक बची रही। बरबादीपन से प्रायः शरीर के चमड़े के काम में रुकावट पड़ती रहती हैं। अतएव बाई भोरका बादीपन दाहिनी ओर बादोपन से अधिक हानिकर होता है । दाहिनी ओरके For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है २७ बादीपनमें प्रायः बहुत अधिक पसीना निकलता है जिससे बादोपन बढ़ने नहीं पाता । जैसे, जिसके दाहिनी ओर बादीपन होता है उसके दाहिने पैर से प्रायः पसीना निकलता रहता है। जिस आदमी में दाहिनी ओर बादीपन रहता है उसमें भीतरी बुखार प्राय: इतना तेज नहीं होता, जितना बाई ओरवाले बादीपनमें। लेकिन यदि किसी कारण से दाहिनी ओर के बादीपनकी दशा में पसीना आना बन्द हो जाय तो दशा तत्काल सोचनीय हो जाती है । (ग) पीठका वादीपन ( तस्वीर नं० २० से लेकर २५ तक 1 तीनों प्रकार के बादीपन में पीठवाला बादीपन सबसे अधिक भयंकर है। यह बादीपन पीछे की ओर ऊपर तक चढ़ जाता है, और उससे आकृति में अनेक परिवर्तन हो जाते हैं । कभी-कभी विजातीय द्रव्य सिर तक नहीं पहुँचता पीठ में ही बना रहता है जिससे पीठ सूत्र जाती है। ऐसी सूजन आरम्भ में साधारण होती है पर बढ़ते-बढ़ते वह बड़ी शकज़की हो जाती है। कभी-कभी उसके कारण दोनों कन्धे गोल हो जाते हैं, कभी पीठपर बड़ी भारी कूबड़ निकल आती है । पर विजातीय द्रव्यका सिरतक न पहुँचना बड़े सौभाग्य की बात है, क्योंकि जब विजातीय द्रव्य पीछे की ओरसे सिर में पहुँचता है तो बहुत ही भयंकर परिवर्तन उत्पन्न होते हैं । गरदनके पीछेको जोड़वाली हड्डी बढ़ जाती हैं। और गरदन तथा सिर के पीछेवाले हिस्से के बीच में जो जुदा ४ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ आकृति निदान करनेवाली लकीर होती है वह बिलकुल ही मिट जाती है। धीरेधीरे यह जगह विजातीय द्रव्यके समूहसे तो बिलकुल भर जाती है। (चित्र नं०२०-२४ और २५) सिर ऊपर की ओर चौड़ा होता जाता है और माथेमें चर्बी बढ़ जानेसे एक गद्दी सी बन जाती है। चेहरेपर भी इस बादीपनका प्रभाव पड़ता है । पर ऐसी दशा. में विजातीय द्रव्य सिरके ऊपरी हिस्सेसे मीचेकी छोर चेहरेम आकर जमा होता है। शरीरके पीछेवाले बादीपनके साथ लगभग सदा बवासीरका रोग होता है । इसका प्रभाव प्राय: कूल्हे श चूतड़पर ही पड़ता है, इसलिये रोगी लड़खड़ाकर चलता है। पीछेकी-ओरबाले बादीपनकी दशामें जो तीव्ररोग होते हैं बड़े भयंकर होते हैं। प्रायः मौत के मुंहमें डाल देते हैं। रोगी के लिये इन बीमारियोंसे बचनेका सिर्फ एक उपाय है, कि मेरी बतलाई हुई विधिसे कई बार ठण्ढे पानीके स्नान कर लिये जायें और शरीरसे खूब पसीना निकाला जाय। प्रायः ज्वरके साथ होनेवाली गहरी बीमारियाँ सिर्फ बच्चोंको होती हैं। जिन पुरुषोंको पीछेकी ओर बादीपनकी तकलीफ रहती है उन्हें बच्चोंकी अपेक्षा ऐसे रोग बहुत कम सताते हैं । ___ उन्हें शरीरके पीछेवाले बादीपनसे पैदा होनेवाले अन्य भयंकर रोग होते हैं। एक बार जब सिर बाबीपन आ जाता है तो नसोंकी कमजोरीके साथ-साथ स्मरण शक्तिकी कमजोरी, उत् For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति-निदान क्या है साहका अभाव इत्यादि कई दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कभी कभी तो मस्तिष्क बिलकुल ही खराब हो जाता है । जिसके पीछेकी ओर बादीपन रहता है उसके दिमाग में गड़बड़ी या पागलपन होनेका डर सदा बना रहता है। इस विषयमें मुखाकृति-निदानका महत्व बहुत अच्छी तरह प्रकट हो जाता है। इसके द्वारा आगन्तुक मोगकी खबर पहले ही मिल जा सकती है। पीछेकी भोरके बादीपनवालेका मस्तिष्क प्रारम्भिक दशामें अपना काम मच्छी तरहसे कर सकता है। हाँ, उसमें कुछ-कुछ चम्बलता रहती है। बच्चे उचित समयसे पहले ही बढ़ जाते हैं पर आगे चलकर उनसे कोई आशा पूरी नहीं होती, उनका दिमाग कमजोर पड़ जाता है, स्मरण शक्ति जाती रहती है। पर डाक्टर लोग कबतक इस बातका पता नहीं लगा सके हैं कि ऐसा क्यों होता है। लोग पनी शारीरिक दशाको भली-भांति जानते रहते है जब वे डाक्टरोंसे पूछते हैं कि हमारे मस्तिष्ककी कमजोरी और स्मरण शक्तिके ह्रासका कारण क्या है, तो जवाब मिलता है कि कुछ नहीं, केवल तुम्हारा भ्रम है। वास्तव में उनका फूला हुआ बदन और सुर्ख चमकदार चेहरा देखकर प्रायः यह समझा जाता है कि वे तन्दुरुस्तीके नमूने हैं। पीछेकी ओर बादीपन होनेसे मनुष्यों में कामेच्छा उचित समयके पहले ही जागृत हो जाती है और बच्चे तथा युवक और युवतियाँ हस्त मैथुन द्वारा वीर्य नष्ट करने लगते हैं। इससे बहुत जल्द नपुंसकता और बन्ध्यापन भा जाता है। जिन लोगों में For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - आकृति निदान पीछे की ओर बादीपन होता है उनके करीब-करीब सभी सन्तानोसत्तिके अयोग्य होते हैं। यदि स्त्री और पुरुष दोनोंमें बादीपन है और उनसे एकको सिर्फ पीठ, बादीपन है या उसकी पीठका बादीपन ज्यादा नहीं बढ़ा हैं तो उन दोनों के बच्चे पैदा हो सकते हैं पर वह बच्चे प्रायः कमजोर होंगे और जीवित न रहेंगे। जिस स्त्रीकी पीठमें बादीपन होगा उसका गर्भ या तो गिर जायगा या उचित समयसे पहले ही बच्चे पैदा होंगे। यदि उसके बच्चे पैदा हो भी जाय तो वह उनका पालन पोषण नहीं कर सकती। यदि पीठका बादीपन और उससे होनेवाले बुरे परिणाम किसी जाति में साधारणतः दिखलाई पड़ने लगें तो यह जरूर समझ लेना चाहिये कि उस जातिमें खराबी पैदा हो रही है, उसका अधःपतन हो रहा है । प्राचीन पारसियों (चित्र नं० २४) और प्राचीन रोमनोंकी (चित्र नं. २५) मूर्तियोंके देखनेसे यह पता लगता है कि उनके पीछेका भाग बादीपनसे भरा हुआ था। इस तरह आकृति-निदान द्वारा हमें आज यह पता लगा सकता है कि यह जातियाँ इतनी अधिक सभ्य होनेपर भी नष्ट क्यों हो गयी। ___ जिन लोगों में पीछेकी ओर बादीपन रहता है उनकी बुद्धि हीन रहती है। उदाहरणके लिए वे कुटिल राजनीतिमें भाग लेने तथा काट छाँटको बात करनेके सदा अयोग्य रहते हैं। छठे चित्र में जिस मनुष्यका चित्र दिया गया है उसका उदाहरण For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है ३१ लीजिये । निःसन्देह उस मनुष्यकी बुद्धि उन लोगोंसे अच्छी है । जो तस्वीर नं २०,२१ में दिखाये गये हैं। हां, शायद उसकी साधारण शिक्षा इतनी न हो, जितनी कि इन दोनों श्रादमियोंकी है । दग्द्रोंकी अपेक्षा धनवानों में पीछे की ओर बादीपन साधारण दिखलाई पड़ता है। कारण खान पान में धनी प्राकृतिक नियमोंका अधिकतर उल्लंघन करते हैं । जिस मनुष्य में पीछे की ओर बादीपन हो उसे तत्काल अपने इलाजकी फिक्र करनी चाहिये क्योंकि ज्यों-ज्यों उसकी उम्र बढ़ती जायगी त्यों-त्यों इस रोग से पिण्ड छुड़ाना उसके लिये कठिन होता जायगा । इस प्रकार के बादीपनका सबसे बुरा परिणाम यह होता है कि जो लोग इस बादीपनके शिकार होते हैं उनमें से इस बीमारी को दूर करने के लिये आवश्यक पौरुष और उत्साह धीरे-धीरे लोप हो जाता है। जबतक विजातीय द्रव्य नरम रहता है और उसमें हरकत होती रहती है तबतक उसका दूर करना कहुत कुछ सहज है । पर जब एक बार विजातीय द्रव्य कड़ा होकर स्थिर हो बाता है तो उसके दूर करनेके लिये बड़े धीरज और माथापच्ची की जरूरत होती है। तब चाहे जितनी फिक्र करे चङ्गा होना प्रायः असम्भव हो जाता है । (घ) मिश्रित बादीपन ( नं. ८, १८, १६ और २६ से लेकर ३४ तक ) पहले कहा जा चुका है कि केवल एक दो प्रकारका बादीपन बहुत कम दिखलाई पड़ता है । प्रायः दो या कुल किस्म के For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ श्राकृति-निदान बादीपन एक साथ इकट्ठे हो जाते हैं और प्रत्येक प्रकारके बादीपनके परिणाम अपनी अपनी मात्रा के अनुसार एक साथ प्रकट होते हैं । प्रायः सामने और बगलवाला बादीपन एकसाथ ( तस्वीर नं ६, १०, १८, और १६ १, बहुत अकसर बगल तथा पीठवाला बादीपन एक साथ ( तस्वीर नं० २२ और २५ और कभी कभी सामने तथा पीठवाला बादीपन एक साथ प्रकट होता है। साधारणतः जिनके शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में उनकी दशा अधिकतर शोचनीय होती है । बादोपनवाते ( तस्वीर नं० २६ से लैकर ३४ तक और तस्वीर नं ३६ तथा ४० ), लोग अशक्त, धैर्यहोन, चञ्चल, भक्की और असन्तुष्ट रहते हैं । इन्हें कोई तीव्र रोग हो जानेपर बड़ा खटका रहता है । तीव्र रोग होनेकी सम्भावना बराबर रहती है। उनका बदन खूत्र मोटा ताजा और भरा रहता है। इसलिये उनकी तन्दुरुस्ती अव्वल दरजेकी गिनी जाती है, उनमें बाह्यरूपसे ज्वर कठिनता दिखलाई पड़ता है, इसलिये उनकी मृत्यु एकाएक हो जाने पर यह लोग श्राश्चर्य करते हैं कि ऐसा स्वस्थ मनुष्य एकाएक किस तरह मर गया । जबतक शरीर फूला रहता है ( तस्वीर नं) तबतक च होनेकी आशा भी रहती है । पर शरीर के सूखते और पचकते ही दशा पहले से खराब हो जाती है । उस समय किसी उपायसे काम नहीं चल सकता | चाहे कितनी ही फिक्र और कितना ही इलाज For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है किया, पर चंगे होनेकी आशा बहुत ही कम बल्कि बिलकुल ही नहीं रहती। अस्तु, यह बात बहुत कुछ आयु और शक्तिपर भी निर्भर है। इस तरह के बहुतसे लोगोंमें इतनी काफी ताकत रहती है कि वे विजातीय द्रव्यको अपने शरीर के बाहर निकाल सकें। पर जिन लोगों में जीवन-शक्ति कम रहती है उनके लिये ऐसा करना प्रायः असम्भव होता है। भीतरी अंगोंकी बीमारियां मिन पारिभाषिक शब्दों का साधारणतः डाक्टर उपयोग करते हैं उनसे आकृति-निदानका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है, इसलिये इस निदान में प्रत्येक रोगका पृथक्-पृथक् कोई विशेष नाम नहीं रक्खा जा सकता। हां, इस निदानद्वारा यह जाना जा सकता है कि शरीर के भीतरवाली इन्द्रियों में से कौन सी इन्द्रियां सबसे अधिक रोगले चङ्गुल में फंसी हुई है। यहाँ हा रोगका पता लगाने में सहाय 5 लक्षणों का कुछ विशद वर्णन करेंगे। उन लक्षणोंसे जो बात अनुमान की जाती हैं । उनके संबन्धमें भी कुछ व्योरेवार हाल विशेष रूपसे लिखा जायगा। __पीछे के कुल वर्णनसे आपको यह पता लग गया होगा कि चाहे किसी किस्मका बादीपन क्यों न हो उससे पचानेवाले अङ्गों में जरूर गड़बड़ी हो जाती है और हानिमा बिगड़ जाता है। इन्हीं अङ्गोंसे रोग प्रारम्भ होता है। ज्यों-ज्यों सड़ा गला विजातीय द्रव्य उनमें व्यापता जाता है त्यों-त्यों उनकी शक्ति For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ आकृति निदान घटती जाती है। ऐसा भी होता है कि जिस आदमी में यह रोग होता है वह कोई कष्ट अनुभव नहीं करता, क्योंकि जब शरीर के अन्दरवाली इन्द्रियोंकी सड़न और उनकी खराब हालत पुगनी पड़ जाती है तो उनसे बहुधा किसी प्रकारकी पीड़ा नहीं होती । पचनेन्द्रियोंको सदा इस प्रकार अपना काम करना चाहिये कि हमें यह बिल्कुल ही न मालूम पड़े कि वे काम कर रही हैं। यह बात कमसे कम सिर्फ उन्हीं लोगोंमें देखी जाती है। जो अपना अधिकतर समय खुली हवा में बिताते हैं। अधिकतर लोगोंको पेट या प्रांतोंमें हलकी सी पीड़ा उठा करती है। अगर उन हिस्सों में कोई बड़ी पीड़ा नहीं उठती तो वे अपनेको भाग्यवान् समझते हैं। लेकिन ऐसी अच्छी पाचनशक्ति जैसी कि मैने बतायी है बादीवाले आदमी में कभी नहीं मिल स्वभावतः उन लोगोंकी पाचनशक्ति बहुत ही खराब जिनके शरीर में महल सूख जाता है । ऐसी हालत में पाचन इन्द्रियां सड़ जाती हैं और कब्ज या दस्तकी बीमारी शुरू हो जाती है । कब्ज और दस्तकी बीमारियां शरीरकी भीतरी गरमी से पैदा होती हैं। कब्ज उस समय पैदा होता है । जब कि आंतोंकी लसदार भिल्ली सुख जाती है । ऐसी दशा में पाखाना बाहर नहीं निकल सकता, क्योंकि इसकी नमी जाती रहती है और वह कड़ा तथा ठोस बन जाता है। दस्तकी बीमारी तब शुरू होती है जब कि प्रांतो में इतनी काफी ताकत For Private And Personal Use Only पृष्ठ ३ में सकती । होती है Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति-निदान क्या है ३५ मौजूद रहती है कि वे अपने भीतरी गंदे मलको बाहर निकाल सकें। पर मल वा पाखाना मुनासिब शकलमें पानेके पहिले ही बाहर निकल जाता है। दोनों दशाओं में भोजन ठीक तरह नहीं पचता। एक तो पाचन दुरुस्त न होनेसे शरीरका यथेष्ट उपकार नहीं होता दूसरे लगातार विजातीय द्रव्य शरीर में अपना घर करता रहता है। जिसका फल यह होता है कि शरीरमें खून कम हो जाता है और कुल शरीर क्षीण होने लगता है। क्षय. रोगका चिह्न यह है कि चाहे कैसा ही "पौष्टिक" भोजन किया जाय पर कमजोरी दिनपर दिन बढ़ती जायगी और शरीर क्षीण होता जायगा। इससे स्पष्ट होता है कि भोजनकी अपेक्षा पाचनयन्त्रकी दशाका दुरुस्त रहना अधिक आवश्यक है। चाहे किसी प्रकारका बादीपन क्यों न हो पर उपर्युक्त रीतिसे आप पाचन शक्तिकी गड़बड़ीका अनुमान तुरत कर सकते हैं। यदि बादीपन बायीं ओर हो तो समझ लें कि पाचनेन्द्रियोंके बायीं ओरके भागों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी है। उस भागमें कभी कभी . या लगातार पीड़ा होती रहती है, पेट कोचता रहता है। बादीपन दाहिनी ओर होनेसे विशेषकर उसी ओर पीड़ा होती है। और बादीपन पीछेको ओर होते खासकर प्रांतोंके पीछेवाले हिस्से में पीड़ा होती है। ऐसी दशामें पूर्व कथनानुसार प्रायः खूनी बवासीर हो जाता है। बदन के सामनेवाले भागमें बादीपन रहनेसे तो पाचनेन्द्रियों में उतना गड़बड़ नहीं होता जितना अन्य प्रकार के बादीपन में पैदा होता है। पीड़ा और बेचैनी अन्य For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Harmanan आकृति निदान प्रकार के बादीपनके समान हो सकती है पर शरीरके पोषण में कोई विशेष बाधा नहीं पड़ती। ऐसी दशामें या तो किसी नैरुज्य परमावसर या मेरी बतलायी स्नान-विधि तथा नियम-पूर्वक जीवन व्यतीत करनेसे आदमी चङ्गा हो सकता है। ___ पाचनेन्द्रियों से एक इन्द्रिय 'यकृत" (जिगर भी है जो दाहिने भागने है। दाहिनी ओरके बादीपन में प्रायः सर्वदा यकृतपर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीरका रङ्ग पीला पड़ जाता है, क्योंकि यकृत रक्तसे पित्तको पृथक नहीं कर सकता। शाहिनी ओरके बादीपनके साथ ही साथ त्वचाका भी रङ्ग पीला होना यकृतकी बीमारीका लक्षण हैं। यकृत के रोगों और दाहिनी धोरके बादीपनका मुख्य लक्षण बहुत अधिक पसीना भाता है। इस तरह के बाहीपनवालोंको बहुत जल्दो पसीना आ जाता है जिसने उन्हें बड़ा फायदा होता है। प्रायः ऐसे लोगों को पैर पसीजनेकी बीमारी होती है, जिससे उन्हें कष्ट तो होता है लेकिन उन्हें इससे तबतक बड़ा फायदा होता है अबतक कि विजातीय द्रव्य उनके शरीरके अन्दर रहता है। कुल विजातीय द्रव्यके निकल जानेर पैरोंका पसोजना आप ही आप बन्द हो जाता है पर इसके बन्द होनेसे कोई बुराई नहीं होती। पर यदि पैरका पसीजना दवाइयोंसे रोका जाय तो * नैरुज्य परमावसर रोगीकी उस दशाको कहते हैं जिसमें दारीर स्वभावसे ही तीव्ररूपसे मल विसर्जन होने लगता है और प्राणशक्ति यदि होन न हुई तो इसी कार्य की सफलताके साथ मनुष्य नीरोग हो जाता है । इस विष-विसर्जनकी क्रियाको चतुर वैद्य नहीं रोकते । For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति-निदान क्या है भयानक परिणाम हो सकता है, क्योंकि जो विजातीय द्रव्य पसीनेसे निकलता वह उस शरीरमें भीतर हो जमा होने लगता है। सम्भव है वह विजातीय द्रव्य किसी विशेष मर्म-स्थानमें एकत्र हो जाये। ___ गुर्दा भी पाचनका काम करनेवाली इन्द्रियों में से है। बदनके दादीपनकी प्रत्येक दशामें मुह बीमारीका शिकार हो सकता है। गुर्दे की दशाका अनुशन गुर्दे से निकलनेवाले पेशाबकी रङ्गतसे लगा सकते हैं। (देखो पृष्ठ ३) पीठ और बगलके बादीपनमें गुर्दे की दशा चिन्ता बनक हो जाती है क्योंकि ऐसी दशामें पसीना काफी नहीं निकलता और आँखों के नीचे मुलायम और पानीदार थैली सी बन जाती है ओ गुर्दे में किसी रोगके होनेका निःसंशय चिह्न है। पाचनेन्द्रियोंमें बहुत ज्यादा बादीपन रहनेपर जननेन्द्रियों में और विशेषतः स्त्रियोंकी जननेन्द्रियों में बादीपन श्रा जाता है। लेकिन साधारणतः जननेन्द्रियों में बादोपन बहुत समयके बाद आता है और तभी आता है जब कि बादीपन बहुत गहरा रहता है। इससे प्रकृतिका यह प्रबन्ध स्पष्ट होता है कि प्रजाकी उत्पत्तिमें बहुत जल्दी रुकावट न पड़े। खियों में जननेन्द्रियकी बीमारियाँ दो तरहसे पैदा हो सकती हैं । एक तो आंतवाले रास्ते में बहुत ज्यादा बादीपन का जानेसे गर्भाशयका दब जानः या दबकर एक तरफ हो जाना है और उससे गर्भाशयका टेढ़ा पड़ जाना दूसरे स्वयं जननेन्द्रिय में ही बादीपन आ जाता है। पर दूसरी हालत तभी पायी जाती है जब कि पीठको ओर बादीपन For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ आकृति निदान रहता है । जब इस तरहका बादीपन स्त्रियों में रहता है तो वे या तो बांझ रहती हैं या गर्भावस्था में उन्हें तकलीफ पहुँचती है और प्रसव बड़ी कठिनता से होता है ! बादीपनकी कमी बेशी से स्तन से दूध निकलना या तो बिलकुल बन्द हो जाता है या थोड़ा थोड़ा जारी रहता है। पूर्व कथनुसार पीठकी ओरके बादीपन में सन्तानोस्पत्ति में बड़ी बाधा पड़ती है । यदि बदन के ऊपर या नीचेवाले हिस्सों में बादीपन बढ़ जाता है और उसे दूर करनेके लिये काफी पसीना नहीं निकलता तो प्रायः गठियाका रोग हो जाता है । विशेषकर तब जब कि बादीपन बायीं ओर रहता है और बदनसे सहज ही पसीना नहीं मिकलता। बांई ओर के बादीपनमें सदा गठियाको बीमारीका खटका रहता है । पर इसके लिये बादोपनका अधिक परिमाण में होना आवश्यक है क्योंकि जबतक सारे शरीर में विजातीय द्रव्य व्याप्त नहीं होगा तबतक वह सब पीड़ा देनेवाले चिह्न न प्रगट होंगे जो गठिया के नामसे पुकारे जाते हैं । साधारणतः गठिया तभी होती है जब शरीरकी गरमी में एकाएक कमी हो जाती है । बदनमें ठण्ढक आते ही एकाएक सिकुड़न पैदा हो जाती है, जिससे विजातीय द्रव्य जबरदस्ती पीछे की ओर दबा दिया जाता है । इस तरहसे विजातीय द्रव्य गांठोंके आसपास जमा होकर बड़ी तकलीफ पहुँचाता है । इस तरहका गांठका दर्द हमेशा गांठके भीतर नहीं बल्कि बाहर होता है । जिस स्थानपर दर्द हो उस स्थानपर यदि वान For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ आकृति-निदान क्या है। स्नान द्वारा त्वचाके छेद खोल दिये जायें, और इस तरहसे एकत्र विजातीय द्रव्यमें हलचल पैदा कर दी जाय तो सड़ा गला पदार्थ कुछ निकल जायगा और पीड़ा दूर हो जायगी । बाहर न निकलनेसे विजातीय द्रव्य धीरे-धीरे ठोस पड़ता जायगा जिससे गठिया हो जायगा और गठिया तभी पैदा होती है जब कि वातरोग अच्छा नहीं होता। गठियाकी बीमारी उस समय भी पैदा होती है जब कि बातरोग सूखी गरमी पहुँचाकर दूर कर दिया जाता है। सूखी गरमीके द्वारा वातरोग बिलकुल अच्छा नहीं हो जाता। उससे सिर्फ रोग दब जाता है। स्वाभाविक रूपसे वातरोगकी अपेक्षा गठियाको चिकित्सा अधिक कठिन है । वातरोगकी भाँति गठिया भी बदनके बाई ओर बादीपन रहनेसे होती है। हमें जब कभी किसी भादमीके बाई भोर बादीपन दिखलाई पड़े तो समझ लेना चाहिये कि उसे वातरोग और गठियाकी बीमारी जरूर पैदा होगी। पीछेकी ओर बादीपनके साथ-साथ गुर्दे की बीमारीकी दशाएँ अधिक भयङ्कर होती हैं क्योंकि उस दशामें गुर्दे अपना काम उचित रूपसे नहीं कर सकते। इसलिये बहुत सा ऐसा विजातीय द्रव्य जो अन्यान्य दशा में निकल जाता शरीरमें बना रहता है। बाई ओरके बादीपनमें और विश्लेषतः सामनेकी ओरके बादीपनका सम्बन्ध रहनेपर साधारणतः हृदयपर भी बादीपन पहुँच जाता है। For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० भाकृति-निदान फेफड़ेका रोग भयङ्कर रोगोंकी गिनतीमें है। रोगीको अपने फेफड़ेकी बीमारीका पता जब चलता है या डाक्टर जब इसकी परीक्षा करके इसका पता देते हैं, उसके बहुत पहले ही शरीरपर बादीपन या विषका अत्यधिक प्रभाव पड़ चुका रहता है। पर मुखाकृति-निदानकी सहायतासे रोग बहुत शीघ्र पहचाना जा सकता है और यदि समयसे उचित चिकित्सा की जाय तो और रोगोंकी तरह यह भी सहज हो दूर हो सकता है । पूर्व कथनानुसार इसमें फेफड़ेपर ही प्रभाव नहीं पड़ता। फेफड़ोंके रोगी होनेके पहले सारे बदन में विजातीयद्रव्य सड़ गलकर व्याप्त हो जाता है । गन्दी हवा भी तबतक फेफड़ेपर अपना असर नहीं डाल सकती अबतक सारे शरीर में विजातीय द्रव्य बिलकुल भर न गया हो। कभी कभी फेफड़ेके रोग किसी दूसरे रोगकी चिकित्सामें साधारणतः दी हुई औषधियोंके परिणामस्वरूप भी हो जाते हैं, विशेषकर उस ज्वरके बाद जो दवाइयोंसे दबा दिया जाता है। जबतक डाक्टरी ज्वरके मूल कारण न जानेगी तबतक चिकित्सा की यह भ्रममूलक प्रणाली चलती रहेगी और इसके दुष्परिणाम भी होते रहेंगे। इसका एक बहुत ही साधारण परिणाम फेफड़ोंका रोग है। . ऊपरके अङ्गसे विजातीय द्रव्य भाकर फेफड़ों में जमा होता है। फिर और कंधोंसे फेफड़ों में मल तभी आता है जब सिर और कंधे बाशीपनसे बहुत अधिक भर जाते हैं। कभी-कभी तो सिर बादीपनसे खाली रहता है और बादीपन For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है ४१ सीधा कंधे और गले से आरंभ होता है ( तस्वीर नं० ३८ ) । इस तरह सड़ा गला विजातीय द्रव्य पहले नीचे से ऊपर की ओर जाता है और तब ऊपर से नीचे की ओर आकर भीतरी अंगों में अपना द्रव्य नीचे की ओर आता घर करता है । जब विजातीय है तो उसका पहला आक्रमण साधारणतः फेफड़ों के होता है । अग्रभागपर साधारणतः यह देखा जाता है कि क्षयरोगके शिकार होनेवाले युवावस्था में मोटे ताजे और तगड़े होते हैं। उनको उस दशा में भी आप देख सकते हैं कि उनके ऊपर की ओर विजातीय द्रव्यका F बड़ा दबाव पड़ रहा है और पेटमें गांठेंसी पड़ रहीं है । उस समय उनका चेहरा लाल और चमकदार होता है। धीरे-धीरे उनका चेहरा चौकोर होता जाता है। तस्वीर नं० ३७, ३८ और ३६), बादको उनका मुँह कभी-कभी, विशेषतः निद्राकालमें, बंद नहीं रहता । आरम्भ में यह बात ध्यानमें नहीं आती पर धीरे-धीरे दोनों ओठोंके बीच की दूरी बढ़ती जाती है। भीतरसे नाक कुछकुछ सूजने लगती है और नाक तथा फेफड़े में सरदीका प्रभाव दिखलाई देने लगता है । नाकके भीतर कभी-कभी कालापन भी आ जाता है, जो बीमारीके बढ़नेका चिह्न है। जबतक शरीर में शक्ति रहती है तबतक नाक बढ़ती जाती है फिर वह पतली विशेष करके बीचवाली हड्डीके पास पड़ती जाती है । तब दिन-दिन दशा चिन्तनीय होती जाती है। बहुत बार सिरपर बिलकुल प्रभाव पड़ता, क्योंकि नहीं For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NRN ४२ आकृति निदान विजातीय द्रव्य सिर्फ गलेमें भाकर जमा हो जाना है। इससे गलेकी लम्बाई बढ़ने लगती है, और कंधा सिकुड़ने लगता है। मैं इस बातको दुहराना चाहता हूँ कि जिसका झुकाव फेफड़ेबाली बीमारीकी ओर रहता है वह प्रायः पहले फूला रहता है और उसका ऊपरी भाग दबासा रहता है । हमें इस रोगके आरम्भहीसे-विशेषकर बच्चोंके सम्बन्धमे-जड़ काटनेका यन्त्र करमा चाहिए। जिन बच्चोंका सिर बड़ा होता है ( तस्वीर नं० ३७, ३८, ४६ और ५१) अर्थात् जिन बच्चों में कंठमालाका रोग होता है उनमें क्षय रोकके कीटाणु भी होते हैं। यह कीटाणु या तो उन्हें अपने माता पितासे, जिनमें बादीपन रहता है, मिलते हैं या गलत तरीकेसे खिलाने पिलाने अथवा उनके जीवन के पहले कुछ महीनों या पहले कुछ सालों में दवाइयोंके देनेसे उत्पन्न साधारणतः बच्चेका शरीर विजातीय द्रव्य बाहर निकालनेकी चेष्टा करता है। उसीसे अक्सर उन्हें सरदी और खांसी होती रहती है । यदि किसी बच्चोको सरदी और खांसी बराबर हो या बहुत दिनोंतक जारी रहे तो समझना चाहिये कि शायद वह क्षयरोगसे पीड़ित है। युवा शरीर भी इसी प्रकार विजातीय द्रव्य बाहर फेकनेकी चेष्टा करता है। बादीपन सामनेकी ओर रहनेपर शरीर प्रायः बहुत दिनोंतक विजातीय द्रव्य बाहर निकालने में सफल रहता है। इस प्रकारके बादीपनवाले लोग For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान क्या है क्षय रोगसे पीड़ित होनेपर भी बहुत दिनोंतक जीवित रहते हैं। पर बगलकी ओर या खासकर पीठकी ओर बादीपनवालों में प्राण शक्ति बड़ी शीघ्रतासे कम हो जाती है जिससे वे बड़ीबड़ी बीमारियों का मुकाबिला नहीं कर सकते । बदन कभीकभी प्राय: घाव, नासूर, फोड़ा, फुन्नी और पीठ तथा छातीमें जहरबादके द्वारा विजातीय द्रव्यको निकालनेकी चेष्टा करता है। यदि इन रोगों को चिकित्सा ठीक तरहपर की जाय तो शरीरको कुछ न कुछ आराम अवश्य पहुँचता है, क्योंकि बहुतसा सड़ा गला पदार्थ शरीरसे पीबके रूप में निकल जाता है। पर जिनमें जोवनी-शक्ति कम रहती है उनके शरीरमें विजातीय द्रव्य सिकुड़कर छोटे छोटे ढेलोंकी शकलमें बन जाता है और विजातीय द्रव्यके यही छोटे-छोटे ढेले फेफड़ेकी गिल्टी या गांठे कही जाती हैं। इन्हें एक प्रकारके फोड़े समझना चाहिये जो उस समयतक पके नहीं हैं। यह गिल्टियाँ प्राणशक्तिकी कमीर ही पैदा होती हैं। - ऐसी गिल्टियोंसे कोई दर्द नहीं पैदा होता । इससे साधा. रणतः रोगीको इस बातका ध्यान भी नहीं होता कि उसकी दशा कैसी गम्भीर है । शारीरिक शक्तियोंका ह्रास तो दिखलाई पड़ सकता है लेकिन उससे शरीरमें कोई पीड़ा नहीं होती। इसलिये किसीके ध्यानमें भी वह बात नहीं माती कि मौत कैसी तेत्रीसे उसकी ओर बढ़ती आ रही है। अन्य सब प्रकारकी सूबनें भी इसी तरह पैदा होती हैं। For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ आकृति निदान हाँ, उनके नाम अलबत्ता अलग-अलग रख दिये गये हैं जैसे बवासीर, नासूर वगैरह | प्लेगकी गिल्टियाँ भी इसी तरह पैदा होती हैं । इसमें भी बदन अपने अन्दरकी पूरी-पूरी सफाई करनेकी कोशिश करता है, पर प्राण-शक्ति कम होनेसे इस उद्योग में उसे सफलता नहीं होती। इसीलिए गांठें और गिल्टियाँ पड़ जाती है । कोढ़की भयानक बीमारी के आरम्भ में अङ्गोंमें बड़ी-बड़ी गांठेंसी पड़ जाती हैं। उन भागों में पड़ती हैं जहाँ कि चमड़े में हो जाता है। गांठें कैसी ही क्यों न हों, वे हमेशा इस बातका चिह्न हैं कि शरीर में पूर्ण रूप से गोलमाल है और प्राण-शक्ति कम हो रही है। इसी कमी से देह पूरी तरह से फोड़ा या नासूर पैदा करने में अशक्त होता है । भी शरीर के छोरवाले यह गांठें पहले पहल पसीना निकालना बन्द साधारणतः जब पीठका बादोपन बहुत गहरा होता है तभी यह चिह्न दिखलाई पड़ते हैं, पर सामने की ओर मामूली बादीपनमें यह चिह्न बहुत कर्म पाये जाते हैं, क्योंकि इस दशा में जीवनीशक्तिपर बुरा प्रभाव कम पड़ता है । यदि इस दशा में हम जीवनी-शक्तिको किसी तरहसे बढ़ा सकें तो गांठें फोड़े रूप में हो जायेंगी और स्वास्थ्य सुधर जायगा या बीमारी बिलकुल दूर हो जायगी । एक सज्जन वर्षोंसे आँखकी बीमारीसे कष्ट भोग रहे थे, For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mom आकृति-निदान क्या है ४५ लगभग अन्धे हो गये थे। उनके सिरपर बहुतसी गांठे पड़ी हुई यीं । जो हर साल बढ़ती जा रही थीं। उन्होंने मेरे चिकित्सालयमें इलाज कराना प्रारम्भ किया, जिससे उनके दोनों शरीरकी जीवनी-शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ गयो। उनके दोनों गालोंपर बड़े. बड़े फोड़े पैदा हो गये और उनसे बहुत सी पीब निकलने लगी। इसके साथ ही साथ उनकी आँखोंकी हालत बहुत सुधर गयी और थोड़े ही दिनों में वे फिर बिलकुल अच्छी तरहसे देखने लगे। उनकी नजरकी कमजोरी भी जाती रही। ___ बीस वर्षकी उम्रके एक नवयुवकके चेहरे और हाथोंपर बहुतसे मसे थे। गरमीके दिनोंमें उसे खुली हवामें रहनेका बहुत ज्यादा मौका मिला। इस तरहसे उसका बदन मजबूत हो गया और बिना कोई इलाज किये हुए उसकी दशा सुधरने लगी। एक बड़ा भारी फोड़ा उसके एक हाथ में निकला और कई अठवारेतक उस फोड़ेसे पीब बहती रही। उस रोगीको और उसके मित्रोंको यह देखकर बड़ा अचम्भा हुआ कि उसके हाथ और चेहरेपरके मसे भाप ही आप गायब हो गये। उस भादमीकी देहने मानों अपनी चिकित्सा भाप ही करनी भारम्भ की। इस तरहकी शक्ति बहुत कम देखने में आयी है। कोढ़ भी बहुतसी बातों में फेफड़ेवाले क्षय रोगके समान है। कोद गरम देशों में बहुत अधिक पाया जाता है, बहुत ज्यादा बादीपनका नतीजा है और प्राय: किसी दूसरी बीमारीसे पैदा होता है। यह विशेषकर तब पैदा होता है जब बुखार और गरमीका For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ Www.suuuN आकृति निशान इलाज दवाइयों द्वारा किया जाता है । जब गरमी साधारण रीतिसे देहमें दबा दी जाती है तो चङ्गा होना असम्भव हो जाता है, क्योंकि पारा, जिसे डाक्टर लोग साधारणतः गरमीकी बीमारी में दवाकी भांति देते हैं, शरीरको उस शक्तिको बहुत घटा देता है जिसके द्वारा आदमी चंगा हो सकता है। .. कोढ़ स्वाभाविक रूपसे और बीमारियोंकी भांति एक ज्वर सम्बन्धी बीमारी है। क्योंकि शरीर गाँठोंको गलाकर विजा. तीय द्रव्य बाहर निकालनेकी चेष्टा करता है। यदि शरीरमें नासूर या फोड़े पैदा हो जाते हैं तो गांठें उसके साथ ही साथ लुप्त हो जाती हैं और उसके शरीरकी जो त्वचा पहले सूखो और चमकदार थी अब अपनी वास्तविक आर्द्रताकी दशा फिर आ जाता है । त्वचाके छिद्र खुल जाते हैं। यदि शरीरमें इतनी शक्ति नहीं रहती कि नासूर या फोड़े पैदा हो सके तो गांठे बहुत बड़ी-बड़ी हो जाती हैं या सूखकर सड़ जाती हैं। पर शरीरका शेष भाग पहलेकी भांति जीवित दशामें बना रहता है। इस पुस्तकके अन्तमें कोढ़ियोंका जो चित्र दिया गया है वह एक असली फोटोसे लिया गया है। उसमें कोढ़ियोंका एक समूह दिखाया गया है। इनमें से कुछ कोढ़ियोंके कुल अङ्ग बिलकुल साबित हैं, पर वे इतने दुबले हो गये हैं कि उनमें सिर्फ हड्डियाँ ही हड्डियां दिखलाई पड़ती हैं । ऐसे आदमियों के चंगे होनेकी आशा अधिकतर दुगशामात्र है, क्योंकि ऐसी हालत में For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निशन क्या है उनका आप ही आप चंगा हो जाना असम्भव है। हां, अगर बदन खूब मोटा ताजा हो और उसके अन्दरका विजातीय द्रव्य सूखकर सड़ने न लगा हो तो शायद यह बीमारी दूर हो सकती है । डाक्टरों का यह ख्याल है कि इस रोगके धाराम होनेकी काशा रखना व्यर्थ है, पर उनका यह विश्वास इसलिये है कि वे वरकी और साधारणतः कुल रोगोंकी, वास्तविक दशासे बिलकुल अनजान हैं । कोढ़की बीमारीका कोई दिखावटी इलाज भी वे नहीं बतला सकते, क्योंकि सारे शरीर में बाढ़ीपन होनेसे कोई ऐसा भाग नहीं बचा रहता जहांका विज्ञातीय द्रव्य हटाया जा सके । इसलिये डाक्टरी विद्या अपनी शक्तिको एक दूसरे प्रकार से काम में लाती है। डाक्टर लोग कहते हैं कि कोढ़ी अपने कुटुम्बसे अलगा करके किसी उजाड़ टापूमें भेज दिये जायें। पर वह चीज या वह स्थान दूर कर देनेपर भी कोढ़ लगातार पैदा होता जा रहा है डाक्टरोंकी चिकित्सा इसे रोकने में बिलकुल असमर्थ है । कहा जाता है कि एक विशेष प्रकारके कीटाणु इस रोगको पैदा करते है, पर डाक्टर लोग शरीर के बादीपनके विषय में कुछ भी नहीं जानते । प्राकृति- निदानका एक मामूली नौसिखिया भी इस बातका पता तुरन्त लगा सकता है कि बादीपनसे कैसी-कैसी बीमारियां पैदा हो सकती है। इस बातका जानना कुछ कठिन नहीं है कि कोई बीमारी तबतक नहीं पैदा हो सकती जबतक कि बदन में बहुत ज्यादा बादीपन न हो। इसीलिये नये निदानद्वारा आप मनुष्यको For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति निदान इस बातसे पहले ही सचेत कर सकते हैं कि देखो यदि तुम अपना बादीपन दूर करने में देर करोगे या उसकी भोरसे बिलकुल बेपर. वाह रहोगे तो इसका बड़ा बुरा फल तुम्हें मिलेगा और तुम रोगके चंगुल में फंस जाओगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि स्वाभाविक उपचारोंसे ठीक समयपर उत्साहसे उचित चिकित्सा प्रारम्भ की जाय तो बहुतसे कोढ़ी चंगे हो सकते हैं। बहुतसे ईसाई मिश्नरियोंने इस चिकित्साको अपने हाथ में लिया है, कोढ़ियोंमें इस चिकित्साका प्रचार कर रहे हैं जिससे बहुत कुछ सन्तोषजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। यह बीमारी भी उसी तरह पैदा होती है जिस तरह दूसरी बीमारियाँ, और इसलिये जबतक कि शरीर में यथेष्ट प्राण शक्ति है तबतक यह बीमारी भी ऊपर लिखे हुए उपायसे दूर हो सकती है। For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास मैंने पाठकों को कई ऐसे भिन्न-भिन्न लक्षण बतला दिये हैं जिनसे साधारणतः प्रत्येक रोग और विशेषतः उसके प्रधान प्रधान रूपोंकी पहचान की जा सकती है। अब मैं पाठकों को कुछ ऐसी बातें बतलाना चाहता हूँ जिनसे आकृति-निदान की सहायता से किसी आदमीका चेहरा देखते ही यह जान सकते हैं कि उसमें कौनकी बीमारी है। विशेषकर वे अपने और अपने कुटुम्बियों के रोगोंकी पहिचान तो बहुत जल्द कर सकते हैं । पर अभ्यास से ही मनुष्य हर बात में होशियार हो सकता है, रोगकी पहचान में होशियारी तेजी के साथ तभी बढ़ेगी जब कि अभ्यास करनेवाले मनुष्यकी श्रांखें तेज और नजर पक्की है। साथ ही मैं पठकों को यह भी स्वरण दिलाना चाहता हूँ कि जो लोग अपने रोगकी चिकित्सा वा निदान नहीं कराना चाहते, उनको ध्यान पूर्वक देखकर वा घूरकर रुष्ट करना और अपने को अशिष्ट सिद्ध करना उचित नहीं है । मैं कई ऐसे आदमियोंका व्योरेवार हाल आपको सुनाना चाहता हूँ जिनकी चिकित्सा मैंने की है। इस प्रन्थ में जो चित्र दिये गये हैं उनका हवाला भी आपको दिया जाता है, पर कुछ बातें ऐसी हैं जो तस्वीरोंमें नहीं प्रगट की जा सकती जैसे शरीर की For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान ५ ै रंगत और शरीरके भिन्न-भिन्न अंगों का तनाव । अक्सर सिर्फ एक ही हिस्सेका बादीपन तस्वीर में दिखलाया जा सकता है पर जो बातें गौर के साथ देखनेसे मालूम हुई हैं उनका बिलकुत्त ठीक-ठीक वर्णन किया गया है । अन्तमें विशेष बात याद रखने लायक यह है कि सभी दशाओं में ध्यान से देखकर ही आवश्यक परिणाम निकाला जाय । [१] I मान लीजिये कि चित्र नं० ११ में जिस लड़कीको दिखाया गया है वह हमारे पास अपने रोगकी पहचान कराने के लिये आये तो हम पहले क्या करेंगे। सबसे पहले हम उसकी चालढाल और रङ्गतपर ध्यान करेंगे । उसकी चालढाल किसी तरह अच्छी नहीं है। सिर लागेकी ओर झुका हुआ है, रङ्ग पीला है, देखने से यह बात तुरन्त मालूम हो रही है कि विजातीय द्रव्यके दबावसे उसकी आँखें माधी बन्द सी हो गयी हैं । वास्तव में यह लड़की एक तरहसे अन्धी हो रही है । हमें तुरन्त पता लग सकता है कि यह लड़की बहुत बुरी तरहसे बीमार है और उसका सिर बादीपनसे बहुत अधिक भरा हुआ है । अब हमें इस बातका निश्चय करना चाहिये कि यह किस प्रकारका बादीपन है। उसके सिरकी ओर देखनेसे ही हमें अच्छी तरह पता लग सकता है कि इस लड़कीके सामनेवाले भागमें बड़ा गहरा बादीपन है, क्योंकि चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली जो लकीर होती है वह इस लड़की में उचित स्थानपर For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास -- - -- - - - - -- नहीं बल्कि उसके बहुत पीछे कान के पास है। उसकी पीठमें बहुत ही हलका सा बादीपन है। उसकी गरदनके पीछे जोड़ वाली हड्डीपर जो लकीर है वह करीब-करीब अपने ठीक स्थानपर है। अगर सिर ठीक ढंगपर रक्खा जाय तो यह बात अधिक स्पष्टतासे दिखलाई पड़ सकती है । इसके बाद यदि हम उससे कहें कि वह अपना सिर ऊपरकी ओर मोड़े तो हम उसकी दशा और भी अधिक ध्यानसे देख सकते हैं। ध्यानसे देखनेपर आपको मालूम पड़ेगा कि गरदनमें तनावके साथ-साथ सूजन भी है। यदि सिर एक तरफसे दूसरी तरफ मोड़ा जाय तो बगलमें भी हलका सा बादीपन दिखलाई पड़ेगा। लेकिन वहाँपर तनाव बहुत ही कम प्रकट होगा। उसकी आँखों में जो बीमारी है वह सामनेकी मोरके बादीपनसे उत्पन्न हुई है। हम निश्चित रूपसे कह सकते हैं कि उसके बदनका कुल सामनेवाला भाग बाहीपनसे भरा हुआ है। देखिये उसका पेट खास तौरपर बादीपन के कारण आगेकी ओर निकला हुआ है। पर इस लड़कीके बगलवाले भागोंमें बादीपन इतना अधिक नहीं है कि उससे कोई घबड़ाहट पैदा हो। सिरमें बादीपन बढ़ता जा रहा था इसीसे नेत्रोंपर भी उसका प्रभाव पड़ा, पर सौभाग्यरे हम उस लड़की को यह सान्त्वना दे सकते हैं कि तुम्हारे शरीर में विशेषतः सामने की ओर बादीपन है इसलिये तुम्हारा रोग अन्य रोगोंकी अपेक्षा अधिक सरलतासे दूर हो सकता है। For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान हमें चाहिये कि हम केवल आंखोंकी ही दवा न करने लगें । बल्कि हमारा उद्देश्य यह होना चाहिये कि हम उस विजातीय द्रव्यको निकाल दें जो पेटमें जमा हुआ है । उसके साथ ही साथ आखोंकी दशा सुधरने लगेगी और कुछ समय में आंखों की बीमारी बिलकुल जाती रहेगी। 5 पाठकों को उसके हाथमें कुछ घाव सा देखकर आश्चर्य होगा | यह घाव कृत्रिम रीतिसे टीका लगानेसे पैदा हुआ था । इस बालिकाका रक्त भी "ट्य वरक्युलिन” नामक दवाकी टीका लगाने से बिलकुल विषेला हो गया है । पर यह बात परीक्षा से निश्चित नहीं हो सकती । यह बात उसकी माँसे मालूम हुई है । इससे हम इतना पता अवश्य लगा सकते हैं कि उसके चंगे होने में देर लगेगी। इस बाधा होते हुए भी उसकी आँखें कुछ ही सप्ताह में अच्छी हो गयीं और उसके सिरका बादीपन बहुत कुछ दूर हो गया ! [ २ ] जिस लड़केकी शकल चित्र नं० ३८ में दी गयी है उसे साधारण रूपसे देखनेसे हमें कोई बात ऐसी दिखलाई नहीं दे सकती कि जिससे उसका रोग प्रकट हो । वास्तव में अधिकतर मनुष्य तो उसे स्वस्थ ही समझेंगे । उसकी ऊपरी चाल-ढाल अच्छी है और देखने में भी उसकी रङ्गतसे यह नहीं पता लगता कि वह बीमार है । हाँ, यह बात अवश्य है कि उसकी रङ्गतसे For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास युवाकाल की वैसी ताजगी नहीं देख पड़ती जैसी कि चाहिये। लेकिन यदि हम यह ध्यान रखें कि साधारणतः युवावस्था कैसी ताजगी होनी चाहिये तो हमें थोड़ा ध्यान देनेसे ही यह पता लग जायगा कि उसके सिरका चोटीवाला हिस्सा कुछ अधिक बड़ा है। ____ अब हम उसके रोगकी व्योरेवार पहचान आगे लिखते हैं। उसके पीठमें कोई बादीपन नहीं है, उसके चेहरेके चारों ओर जो अलग करनेवाली लकीर है वह जैसी चाहिये वैसी हो है इससे शायद आप कह सकते हैं कि उसके सामनेकी ओरमें भी कोई बादीपन नहीं है पर ध्यानपूर्वक देखनेसे हमें पता लग सकता है कि उसकी गरदनकी बाई ओर गांठे पड़ी हुई हैं। जब वह अपना सिर एक ओरको मोड़ता है, यह गांठे और भी स्पष्ट हो जाती हैं, जब वह अपना सिर पीछेकी ओर झुकाता है तो हमें उसके सामनेकी ओर बहुत अधिक सूजन और तनाव दिखलाई देता है। इस तरह हम देखते हैं कि उसके न सिफ बाई ओर बल्कि सामनेकी ओर बादीपन खराबी पैदा कर रहा है। ___अब हम समझ सकते हैं कि जैसा हमलोगोंने पहिले ख्याल किया था उससे अधिक बादीपन उसमें है। उसके शरीरमें 'विजातीय द्रव्य स्पष्टरूपसे ऊपरकी ओर दबाव डाल रहा है और भीतरकी ओर बहुत ज्यादा गरमी मालूम पड़ रही है। सड़ा हुआ विजातीय द्रव्य किसी कदर माथेतक पहुँच गया है, उसका For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति निदान कुछ हिस्सा गले में भी जम गया है जिससे वहाँपर गांठे पैदा हो गयी हैं। इस तरहकी गांठें कुछ कम या अधिक संख्यामें पेटके ऊपर विशेषत: बायीं ओर दिखलाई पड़ सकती हैं। ___ इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस बालकको दिल के धड़कनकी बीमारी है। उसे पसीना भी बहुत कम आता है, इस कारण उसकी पाचन शक्ति कमजोर हो गयी है, क्योंकि पसीनेका पाचनशक्तिके ऊपर सदा बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। ___ यदि सड़ा हुआ विजातीय द्रव्य बायीं तरफ सिरकी ओर और भी अधिक चढ़ जाता है तो उस ओर सिर और कानका दर्द पैदा हो जाता है और बाल उड़ जाते हैं। कुछ वर्षोंमें सिरपर गांठें पड़ने लगती हैं। यदि बादीपन बाई ओर होता है तो घात रोग पैदा हो जाता है। छातीमें भी बीमारी पैदा हो जानेका भय रहता है, क्योंकि, जैसा कि आप तस्वीरमें देख सकते हैं, उसकी गरदनके इधर उधर विष जमा हो गया है। यह पहले सिरकी ओर जायगा या छातीकी भोर, तबतक निश्चित नहीं हो सकता जबतक कि हमें कोई विशिष्ट लक्षण न खिलाई पड़े। उदाहरणकी भांति सूखी खांसी इस बातका चिह्न है कि फेफड़ेतक बादीपनका असर पहुँच गया है। अब कर्त्तव्य यह है कि विजातीय द्रव्य पीछे की ओर हटा दिया जाय। विजातीय द्रव्य पीछेकी ओर तभी हट सकता है जब कि स्नान और उचित भोजनके द्वारा शरीर के अन्दरवाली गरमी कम कर दी जाय । यह रोगी नवयुवक है और उसके . For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास ५५ पीछे की ओर कोई बादीपन नहीं है। इसलिये हम उससे यह वादा कर सकते हैं कि भाई तुम अवश्य चंगे हो सकते हो, पर इसके लिए धैर्य्यकी आवश्यकता होगी, क्योंकि विजातीय द्रव्य गांठों की शक्ल में पहले से जमा हो गया है। इसी तरहसे बगल - की ओर भी बादीपन दिखलाई पड़ सकता है। और सामनेकी ओर सीधा-सादा बारीपन हो तो उसके चंगा होने में इसका थाधा समय भी न लगेगा और अधिक सरलता से रोग दूर हो जायगा । [ ] चित्र नं० ७ में जिस आदमीकी शकल दिखलायी गयी है। उसका डील अच्छा है। चेहरे के ऊपरी भागों का रंग साधारणत: जैसा चाहिये वैसा ही है, पर निचले हिस्सेकी रंगत कुछ-कुछ भूरी है । उसमें बादीपन भी है। उसके शरीर के दोनों बगलों पर ध्यान देनेसे पता लगेगा कि इस आदमी में भी बादीपन सामनेकी र है ! उसके चेहरेके चारों ओर गरदनसे पृथक करनेवाली जो लकीर होनी चाहिये बिलकुल ही मिट गयी है । यदि सिर ऊपर की ओर उठाया जाय तो गरदनकी वह सूजन जो ठुड्डीतक फैली हुई है अच्छी तरह दिखाई देगी। सिरको दाहिनी या बाईं ओर घुमाने - से बगल में कोई तनाव न दिखलाई पड़ेगा । इससे यह प्रकट होता है कि उसके दोनों बगलों में बादीपन नहीं है। उसकी पीठ में भी कोई बादीपन न दिखलाई पड़ेगा । यों आप देख सकते हैं कि रोगीको सिर्फ गरदनपरकी तक For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान लीफ है । गरमी में कुछ कमी होनेसे उसे दांतका दर्द बहुत ज्यादा सताने लगता है। उसकी उम्रसे हम अनुमान कर सकते हैं कि शायद उसके कुछ दांत गिर गये हैं। विजातीय द्रव्य विशेषतः चेहरेके नीचेवाले भाग जमा हुआ है और कुछ ऊपरवाले भागमें भी प्रवेश कर गया है, जिससे उसके बाल गिर गये हैं। शायद आंखोंपर भी किसी वक्त कुछ असर पहुँचनेका खटका है । ___ इसवा बादीपन केवल सामनेवाले भागमें हैं, इसलिये रोगीको यह विश्वास दिलाया जा सकता है कि उदर-स्नान और मेहनस्नानके द्वारा वह जल्द चङ्गा हो सकता है । साधारणतः वह वृद्धा. वस्थातक पहुँचनेकी आशा कर सकता है। । ४ ] जिस युवा स्त्रीका चित्र तस्वीर नं० १६ में दिया गया है उसका सिर कुछ-कुछ बायीं भोर झुका हुआ है। इस बातसे हम तुरन्त यह परिणाम निकाल सकते हैं कि उसके दाहिनी ओर बादीपनकी शिकायत है । बायीं ओरकी अपेक्षा चेहरेका दाहिनी ओरवाला भाग अधिक चौड़ा और लम्बा है । दाहिनी ओर चेहरेका चमड़ा चमकदार मालूम पड़ता है, पर दूसरी ओर चमड़ेकी रङ्गत जैसी चाहिये वैसी ही है। ___ यदि उसका सिर घुमाया जाय तो हम इस बातका निश्चय कर सकते हैं कि बादीपन दाहिनी ओर तथा कुछ-कुछ बायीं भोर है। इसलिये हम बेखटके यह परिणाम निकाल सकते हैं कि For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास पेटके दाहिनी ओरवाले मुलायम भागों में बहुतसा सड़ा गला विजा. तीय द्रव्य जमा हुया है जिससे उस ओरके अंा दबेसे हैं । जितने अंग और जितनी इन्द्रियां बदनके बायीं ओर हैं उन सभोंपर भी बादीपनका प्रभाव पड़ेगा जिससे इस बातका डर हो सकता है कि शायद उसके दांतों और कानों में दर्द उठे और उसकी आंखों में सूजन हो जाय या उसके भाधे सिरमें दर्द होने लगे। जितनी तेज बीमारियां हैं, जैसे कि हलककी सूजन, उन सबोंका पहले. पहल दाहिनी ओर अवश्य प्रभाव पड़ेगा लेकिन अगर पसीना जैसा चाहिये वैसा निकलता है तो उस रोगीको सरदी या जुकामसे बहुत कम तकलीफ होगी। इस चिकित्सा, होशियार आदमी तत्काल यह देख लेगा कि तस्वीर नं० १७ में जिस आदमीकी शक्ल दिखलायी गयी है वह वैसी ही नहीं है जैसी चाहिये । उसका बायां कन्धा दाहिने कन्धेसे ज्यादा ऊँचा है। हम यह भी देखते हैं कि उसका सिर बदनके बीचों-बीचवाली लकोरके सीधपर नहीं है बल्कि ज्यादातर दाहिनी ओर झुका हुआ है। बदनका कुल बाई ओर. वाला हिस्सा दाहिनी ओरवाले हिस्से ज्यादा चौड़ा और ज्दा मजबूत है। उसका रंग पीला है। उसके चेहरेपर नाउम्मेदी साफ तौरपर झलक रही है, जिससे जाहिर होता है कि उसके बदनमें सड़ा हुआ विजातीय द्रव्य बहुत ज्यादा जमा For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान ज्यादा गौरसे देखनेपर हमें पता लगता है कि उसके बायीं ओर बहुत ज्यादा बादीपन है । उसके सामनेकी ओर बादीपन हलकासा है पर पीछेको ओरवाले हिस्सेपर बहुत ज्यादा बादीपनका असर है । हां, दाहिनी ओरवाले हिस्से में बादीपन बिलकुल नहीं है। बायीं ओर बहुत ज्यादा बादीपन होनेसे यह जाहिर होता है कि पेट में बादीपन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि विशेषतः बायीं ओर पेटमें बहुत अधिक सृजन है। जिससे हर प्रकारकी खराबी पैदा होनेका डर हो सकता है। - इस रोगीको हृदयका रोग भी जरूर है। उसका झुकाव कुछ. कुछ बातरोगकी ओर है। बहुत अधिक बादीपन होने के कारण उसे पक्षाघात भी हो सकता है। और हो तो शायद दाहिनी ओर होगा। बादीपनकी ऐसी बढ़ी हुई हालतमें पूरी तरहसे चङ्गा होना असम्भत्र सा है। हाँ, रोगीकी दशामें कुछ सुधार जरूर हो सकता है। चित्र नं० २०में देखिये, एक ऐसे मनुष्यका रूप है, जो देखने में मजबूत और खूब आराममें पला हुआ मालूम पड़ता है। पर आप देख सकते हैं कि उसके शरीरका डील ठीक For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास नहीं है। उसका सिर कुछ आगेकी भोर झुका हुमा है। चेहरा एक दम सुर्ख है और उसपर घबड़ाहट या जोशके चिह्न दिखलाई पड़ते हैं। माथेपर चर्बीकी गद्दीसी उभरी हुई मालूम पड़ती है। ___ हम तुरन्त देख सकते हैं कि इस आदमी में पीछेकी ओर बादीपन है। अधिक ध्यान देनेसे पता लगता है कि गरदनके पीछे जोड़वाली हड्डी सड़े हुए विजातीय द्रव्यके भरी हुई है जिससे वह अपना सिर इधर-उधर नहीं हिला सकता। जब मैंने उससे सिर इधर उधर हिलानेको कहा तो ऐसा करने में उसे अपना कुल बदन हिलाना पड़ा। बगलकी मोरवाले बादीपनके चिह्न दोनों तरफ दिखलाई पड़ सकते हैं। गरदनकी हर ओर कड़ी सूजन है उससे यह स्पष्ट होता है कि उसके सामनेकी ओर बिलकुल बादीपन नहीं है। यह रोगी बहुत ही कमजोर है और शायद वह और अधिक मानसिक परिश्रम या बहुत देरतक लगातार शारीरिक परिश्रम करनेके अयोग्य है । उदाहरणार्थ वह किसी व्याख्यानको प्रारम्भसे अन्ततक समझनेके लिये मनको यथेष्ट एकाग्र नहीं कर सकता। उसमें इतनो शान्ति या स्थिरता नहीं है कि वह लगातार कुछ देरतक बैठकर गाना बजाना सुन सके या नाटक वगैरह देख सके। वह किसी कमरेमें बहुत देरतक बैठनेमें भी असमर्थ है। इस बातका बड़ा डर है कि शायद इसके मस्तिष्कमें कुछ विकार न हो जाय। For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान बवासीर के रोगसे मोटी गांठें सी पड़ जाती हैं और उसीसे सड़ा हुआ विजातीय द्रव्य पीठकी ओर भी बढ़ता है । यह रोगी मेरी चिकित्सा के अनुसार कई बरस इलाज करने के बाद पूरी तरह से चङ्गा होनेकी आशा कर सकता है । पर एकत्रित विजातीय द्रव्य अभी उसके शरीर में बहुत कड़ा नहीं हुआ है इसलिये कुछ ही हफ्तोंके अन्दर ज्योंही सिर विजातीय द्रव्यसे कुछ कुछ खाली हो जाय त्यों ही सुधारकी आशा हो सकती है लेकिन पूरी तरहसे चङ्गा होनेके लिये कुल पीठवाला और बगलवाला बाद्दीपन निकाल दिये जानेकी जरूरत है । [ ७ ] जिस मनुष्यका चित्र नं० २ है, देखिये उसका शरीर कैसा मोटा, तोंद कैसी फूली हुई है । वह बहुत ही धीरे-धीरे हमारी ओर आ रहा है । उसकी चाल-ढाल खराब नहीं है पर उसका रङ्ग बहुत ज्यादा लाल है और उसके चमड़ेकी रङ्गत बहुत ही अधिक चमकदार है जिससे मालूम पड़ता है कि बीमारीने इसके बदन में बहुत दूरतक घर कर लिया है। उसकी मोटाई यह बात कह रही है कि उसमें बहुत ही अधिक बादीपन है । माथा चर्बी से भरा हुआ गद्दीदार मालूम होता है । वह इस तरह आंखोंको दाबे हुए हैं कि आंखें छोटी मालूम पड़ती हैं और मुश्किल से खोली जा सकती हैं। हम तुरन्त देख सकते हैं कि बादोपन उसके पीछे की ओर है। बादीपनका दबाव उसके माथे से लेकर पीछे की ओर नीचेतक है। उसके ढले-ढाले For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ चिकित्साका अभ्यास लटकते हुए गाल प्रकट कर रहे हैं कि उसका सिर विजातीय द्रव्यसे बिलकुल भरा हुभा है। जिस तरह वह एकटक देख रहा है, उससे यह डर होता है कि कदाचित उसके मस्तिष्कमें पागलपन प्रारम्भ हो गया है। आइये उसे अधिक ध्यानसे देखें। देखिये उसकी गरदन लगभग उतनी ही मोटी है जितना उसका सिर। इसलिये दोनों में कुछ भी फरक नहीं मालूम पड़ता। गरदन चारों ओर सूजी हुई और बिलकुल कड़ी मालूम पड़ती है। इस वजहसे सिर एक ओरसे दूसरी मोर नहीं घुमाया जा सकता। हां, वह सिर्फ ऊपरकी ओर उठाया जा सकता है । गरदनके पीछे जोड़वाली हड्डी और जबड़ेपर चेहरेको गरदनसे अलग करनेवाली लकीर बिलकुल ही गायब है। अब हम देख सकते हैं कि इस आदमीके सारे शरीर में बहुत अधिक बादीपन है। पर आजकल लोगोंको इस बातका बहुत कम ज्ञान है कि स्वाभाविक प्राकृति कैसी होनी चाहिये, इसलिये अधिकतर लोग इस रोगीको दृढ़ और स्वस्थ मनुष्य समझेंगे। यह स्पष्ट प्रकट है कि यह रोगी चिरकालसे चित्तकी मस्थिरता और अशक्यतासे पीड़ित है। युवावस्थासे ही उसे अपच और विशेषतः कब्जियतकी शिकायत थी। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि उसे बवासीरकी भी शिकायत है। यह भी निश्चय है कि उसे शान्तिके साथ ऐसी नींद कभी नहीं आती कि जिससे उसे अपने बदनमें ताजगी मालूम पड़े शायद उसे. For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति निदान लगातार वर्षोंसे नींद न आनेकी बोमारी है। यद्यपि उसके मस्तिष्कमें लकवासा लग गया है तथापि उसे कहीं चैन नहीं मिलती, क्योंकि बहुत अधिक आन्तरिक ज्वर होने के साथही साथ विजातीय द्रव्यका दबाव भी ऊसरकी तरफ बहुत अधिक मालूप पड़ता है। उसके बायीं ओर भी बादीपन होने पसीना कम निकलता है, जिससे विजातीय द्रव्यका दबाव ऊपर की ओर बढ़ रहा है। यद्यपि अमी उसकी अवस्था बहुत अधिक नहीं है तथापि वह कोई काम ठीक ढंगपर नहीं कर सकता। वह बहुत दिनों से नपुंसक भी हो रहा है। __ ऐसा आदमी हर तहकी बीमारीका शिकार हो सकता हैं। यदि उसकी चिकित्सा तत्काल न की जायगी तो उसका मस्तिष्क अवश्य बिल्कुल खराब हो जायगा। इस रोगी में शक्तिकी मात्रा बिलकुल कम है इसलिये उसका पूरी तरहसे चंगा होना असम्भव सा है। अगर रोगीको हालत में थोड़ा भी सुधार हो जाय तो समझ लेना चाहिये कि बड़ी भारी सफलता ___ तस्वीर नं. ४१ में करीब ३० बरसके आदमीका रूप है। उसका सिर आगेकी ओर उमड़ा हुआ और छाती भीतरकी ओर धसी हुई है। उसका रंग पीला है और वह देखने में निर्जीव तथा सुस्त मालूम पड़ता है। उसका चेहरा दुबला और उतरा हुमा तथा उसके गालकी हड्डियाँ उभरी हुई हैं। For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास इन लक्षणोंसे पता लगता है कि इस रोगीको भच्छी खुराक नहीं मिली है, जिससे उसकी पाचन शक्ति खराब हो गयी है और उसका शरीर दिनपर दिन क्षीण होता जा रहा है। अधिक ध्यान देनेसे हमें पता लगता है कि उसकी गरदन आवश्यकतासे अधिक लम्बी है और उसमें गाठे पड़ी हुई हैं। तस्वीर नं. ४२ में उसी आदमीका सामनेवाला हिस्सा दिखलाया गण है । इस आदमीमें बादीपन सामनेकी ओर है, लेकिन उसके शरीरके भीतर विजातीय द्रव्य सूख गया है और उसके पुढे क्षीण हो गये हैं । इसलिये चेहरे के ओर गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर फिर अपने ठीक ढङ्गपर भा गयी है। अगर उसका सिर ऊपरकी ओर उठाया जाय तो हमें उसकी गरदनपर बहुत अधिक तनाव दिखलाई पड़ेगा। इसपर गांठें भी ऐसी स्पष्ट दिखलाई पड़ रही है कि इस बातमें कुछ भी शक नहीं रह जाता कि उसके बदनमें बादीपन सामनेकी ओर है । गरदनके दोनों ओर भी बहुत अधिक बादीपन है, क्योंकि गरदनके दोनों ओरवाले हिस्से तने हुए दिखलाई पड़ते हैं। यह एक ध्यान देनेकी बात है कि बादीपन बहुत अधिक ऊपरकी ओर नहीं बढ़ा है, क्योंकि उसका माथा बादीपनसे खाली है और उसके बाल अच्छी हालतमें हैं। उसकी पीठ में बिलकुल ही बादीपन नहीं है। विजातीय द्रव्य विशेषतः गरदनमें जम गया है और उसके सामने तथा बगलवाले हिस्सेमें पूरी तरह से फैल गया है। विजातीय द्रव्य फेफड़ोंको पार For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ प्राकृति निदान करता हुआ नीचेकी ओर भी चला गया है। इसलिये उसकी छाती और कन्धे धंस गये हैं। चूंकि उसके पोछेकी ओर बिलकुल बादीपन नहीं है इसीलिये उसके दिमागमें कोई गड़बड़ी नहीं है। उसकी बीमारी पुरानी हो गयी है इसीलिये उसे कोई कष्ट या वेचैनी नहीं होती और इसीलिये उसका चेहरा भी शांत दिखलाई पड़ता है। वह उन रोगियों में गिना जा सकता है जो आखिरी घड़ीतक भी चङ्गे होने की उम्मीद करते हैं । हमें चाहिये कि हम उसे सच्ची बातें बतलाकर नाउम्मेद न कर दें, पर हमें यह बात अवश्य मालूम है कि उसके चंगे होनेकी बहुत कम आशा है। हाँ, उसकी हालतमें कुछ न कुछ सुधार जलर हो सकता है। अभाग्यसे उस रोगीकी हालत ठीक तरहपर और पहले नहीं जांची गयी, नहीं तो एक या दो साल पहले इलाज करनेसे शायद वह चङ्गा हो जाता। देखिये तस्वीर नं० ५० और ५१ में एक छोटा लड़का आपकी ओर चला आ रहा है । उसे देखनेसे फौरन यह पता लगता है कि सिर जरूरतसे ज्यादा बड़ा और आगेकी ओर झुका हुआ है। उसका चेहरा लाल दिखलाई पड़ता है। देखिये उसकी गरदन कितनी छोटी है। ज्यादा गौरसे देखनेपर यह पता लगा है कि उसके शरीर में साधारणतः बादीपन छाया हुआ है। यह तमाम बादीपन चारों ओरसे बढ़ता हुआ आंखोंकी ओर गया है। देखिये For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्साका अभ्यास ६५ उसका पेट भी बहुत ज्यादा बड़ा है । बहुतसे लोग शायद उसे बहुत ही तन्दुरुस्त और मोटा-ताजा ख्याल करेंगे, पर हम जानते है कि वह कितना अधिक बीमार है। आप आसानी से देख सकते हैं कि उसकी आँखों पर बादीपनका बड़ा गहरा असर है । जब यह लड़का मेरे पास इलाज के लिये लाया गया तो वह करीब करीव अंधा था । तस्वीरों में उसकी हालत एक महीने के इलाज के बाद दिखलायी गयी है । इलाज के आरम्भ में उसका पेट बहुत अधिक की ओर निकला हुआ था और आँखोंकी ओर बादीपनका इतना ज्यादा दबाव था कि उसकी तस्वीर नहीं ली जा सकती थी । For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज रोगकी चिकित्साकी उचित विधि केवल एक ही हैशरीर से बादीपन या विजातीय द्रव्यको दूर करना । शरीर में एकत्र विजातीय द्रव्यको शरीर के एक भागसे दूसरे भाग में कर देना या उसे शरीर के भीतर ही रहने देना और उसीमें सूखने के लिये छोड़ देना चिकित्सा नहीं हैं, रोगके चिह्नोंको भीतर दबा देना मात्र है । रोगके चिह्नोंको भीतर दबा देनेकी चिकित्साको पुराने ढंगपर चिकित्सा करने वाले हकोम डाक्टर अच्छी चिकित्सा समते हैं। कई अन्य प्रकारकी चिकित्साएँ भी हैं जो कभी-कभी aar-बू हुए भी बीमारी के कारणोंको दूर करनेके काम में लायी जाती हैं। इनमें प्राय: बराबर सफलता नहीं होती । चिकित्सा की सबसे अच्छी रीति मेरे चिकित्साशास्त्रमे व्योरेके साथ लिखी है । इस चिकित्सा प्रन्थ में बिना औषधि और चीर-फाड़ के आरोग्यता प्राप्त करनेकी विधि लिखी है । मैं अपने पाठकों का ध्यान उस पुस्तककी ओर दिलाता हूँ और उसे पढ़नेकी सलाह देता हूँ । · उसका नाम नया आरोग्य-साधन है । मैं सबसे पहले यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि चिकित्सा उसको कहते हैं जिससे शरीरका बादीपन बिलकुल दूर हो For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज जाय। यह सच है कि साधारणत: बादीपन कुछ दूर होते. ही रोगीको यह थोड़ा भान होने लगता है कि मैं बिलकुल चंगा हो गया। आकृति-निदानकी सहायतासे हम यह निश्चय कर सकते हैं कि रोगी पूरी तरहसे चंगा हुआ है या सिर्फ उसकी दशामें एक बड़ा सुधार हुआ है। चित्र नं० ४३ और ४४ में देखिये,. एक स्त्रीके शरीरमें सामने और बगलकी ओर बादीपन है। उसकी गरदनपर गांठें हैं । इन गांठोंको मिटानेके लिए वह दस बरसतक हर तरहकी चिकित्सा करके हार गयी। अन्तमें ढाई वर्षतक मेरी विधिके अनुसार चिकित्सा करनेपर वह बिलकुल चंगी हो गयी। चित्र नं. ४५. में देखिये ! इस इलाजके बाद रोगीका चित्र दिया गया है। केवल उसकी गांठें ही नहीं गयीं वरन् रोगके अन्य लक्षण भी दूर हो गये हैं। देखिये उसके चेहरेसे चिन्ताके चिह्न जाते रहे हैं । गाल भर आये हैं। मुँह बन्द है, पर पहिले उसका मुँह लगातार खुला रहता था। उसको गरदन भी 'चिकनी और गोल हो गयी है । पहले उसका रंग पीला था पर अब उसमें ताजगी दिखलाई पड़ती है। जबतक वह पूरी तरहसे चंगी नहीं हुई थी तबतक उसकी पाचनशक्ति बिलकुल खराब थी। पर अब बिलकुल सुधर गयी है। अब उसे जीवन भार नहीं मालूम पड़ता। उसकी आकृतिमें भी बहुत सुन्दरता आ गयी है। चित्र नं. ४६ और ४७ देखिये, यह एक व्यक्तिका उस अवस्थाका रूप है जब वह बीमार था। नं. ४. में देखिये, मेरी For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति निदान चिकित्साके अनुसार उसमें कितना बड़ा परिवर्तन हो गया है । इस सज्जनने मुझे जो पत्र भेजा है उसे नीचे छापता हूँ, पर मैं पहले यह कह देना चाहता हूं कि तस्वीर नं० ४६ में रोगी कुल शीरके बादीपनसे पीड़ित मालूम पड़ता है। उस समय वह बहुत कमजोर था और इस बातका डर नित्य रहता था कि कहीं वह किसी गहरी बीमारीका शिकार न हो जाय। चित्र नं०४७ में देखिये, उसका बादीपन कितना कम हो गया है। इस चित्रमें वह बहुत ही दुबला दिखलाई पड़ता है, लेकिन कुछ दिन बाद उसका मांस अवश्य भर आवेगा। उस समय बीमारीसे भरे हुए थलथल मांसके स्थानमें यह तन्दुरुस्त मांस आ जायगा। मैं यहां यह भी कह देना चाहता हूं कि इस नीचेवाली चिट्ठीमें जिस चिकित्साका वर्णन लिखा गया है वह मैंने जबानी नहीं बतलाया था। अपनी जिस पुस्तककी चर्चा मैंने ऊपर की है उसे पढ़कर रोगी भाप ही आप अपनी चिकित्सा करने लगा था। इतनी बड़ी अवस्थावाले मनुष्य के लिये मेरी समझमें यह चिकित्सा बहुत ही कठिन थी। तथापि चिकित्साके बाद उसका शरीर बहुत कुछ चङ्गा दिखलायी पड़ने लगा। पत्रकी नकल प्रिय मिस्टर कूने, कई महीनेसे मैं भापको पत्र लिखनेको विशेष उत्सुक था, पर लगातार चिकित्सा और स्नानोंमें लगे रहने के कारण अब For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज तक न लिख सका था। पर विशेष बातें लिखनेके पूर्व मैं उस समयकी चर्चा कर देना चाहता हूं जिस समय मैं आपसे मिला था जिसमें आपको मेरा स्मरण आ जाय । मैं सन् १८६० में फरवरी मासमें आपके घरपर आपसे मिला था। उस समय मेरी दाढ़ी खूब भरी हुई थी, इसलिये स्वाभाविक रूपसे मैं आजकलकी अपेक्षा कुछ भिन्न दिखलाई पड़ता था। मुझे आपकी सेवामें अपने चित्र भेजते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है। यह असली चित्र है। फोटोग्राफरने इनमें कुछ भी परिवर्तन नहीं किया है। पहला चित्र सन् १८८ के सितम्बर महीने के अन्तमें लिया गया था। उस समय एक डाक्टरके अस्पतालसे मैं बिलकुल चंगे होनेका सर्टिफिकेट लेकर निकला था। उस अस्पताल में चार महीनेतक मेरी जो चिकित्सा हुई उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। पर सिवाय पागल आदमीके कौन ऐसा होगा जो इस चित्रको देखकर मुझे पङ्गा बतलायेगा। मेरे चित्रको देखकर मुझे अगर कोई चङ्गा बतलाये तो हँसी आये बिना नहीं रह सकती। हाँ, मेरी दुःख भरी दशा देखकर शायद लोगोंकी हँसी रुक जाय तो रुक जाय । दूसरी तस्वीर आपकी चिकित्साके अनुसार ठीक साढ़े तीन वर्षोंतक इलाज और भोजन करने के बाद ली गयी है। अगर किसीने आपकी चिकित्साके अनुसार बहुत कड़े नियमके साथ इलाज और भोजन किया है तो मैंने किया है। इस 'चिकित्सासे जो परिणाम निकला उससे मुझे बड़ा सन्तोष है। For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राकृति निदान दोनों चित्रों में जो अन्तर और परिवर्तन दिखलाई पड़ता है उनपर लोग सहसा विश्वास नहीं करते । आप किसी पत्रमें या अपनी पुस्तकके किसी दूसरे संस्करणमें उन्हें छपाना चाहें तो खुशीसे छपा सकते हैं। आपके चिकित्साशास्त्रमें जो सिद्धान्त बतलाये गये हैं बिलकुल उन्हीं के अनुसार मैंने अपनी चिकित्सा आरम्भ की और उन्हींके अनुसार भोजन भी करने लगा। यदि आप चाहें तो मैं यह लिखकर आपको भेज सकता हूँ कि मैंने आपकी चिकित्सा-प्रणालीके अनुसार किस तरह चिकित्सा भारम्भ की और किस तरह उसपर चलता रहा। मैं आरम्भसे हो अपनी चिकित्साके विषयमें सब बातें डायरी में दर्ज करता रहा हूँ। __ मैं अब भी नित्य तीन बार मेहन-स्नान करता हूँ। हरएक स्नान ३० से लेकर ४० मिनिटतक जारी रहता है । पहला स्नान करीब ६ बजे सवेरे करता हूँ। ८ बजे सवेरेसे लेकर १० बजे सधेरैतक मैं नङ्गे पैर घाममें घूमता हूँ। उसके बाद हर रोज थोडीसी कसरत भी करता हूं। घूमने या कसरत करनेके समयमें सिर्फ कमीज या पाजामा पहने रहता हूं। ६ या १० बजेसे लेकर ११ बजेतक मैं खुली खिड़की के पास बैठकर पढ़ता हूं या खुनी हवाका आनन्द लेता हूं। ११ से लेकर १२ तक मेहन-स्नान करता हूं। १२ से लेकर १ बजेतक भोजन कर लेता हूँ। १ से २ बजेतक मैं आराम करता हूँ। २ जेसे ४ वा ५ बजेतक पढ़ाता हूँ। ५ बजेसे लेकर ६ या ७ बजेतक दूसरी बार For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज घूमता हूँ। ७ बजे फिर एक बार मेहन-स्नान करता हूं और ६ बजे सो जाता हूँ। हर मङ्गल और बुधको साढ़े सात बजेसे लेकर साढ़े नौ बजेतक मुझे शामको एक दरजेमें ड्राइङ्ग सिखलानी पड़ती है। दोनों दिन मास लेनेके पहले और क्लास लेनेके बाद मैं आध घंटेके लिये मेहन-स्नान करता हूँ। १८६० की जनवरीसे लगाकर १८६२ की पहली अगस्ततक मैं हर रोज तीन बार भोजन करता था। सवेरे और शाम मोटे आटेकी रोटी दलिया और फल खास करके सेब और अंगूर खाता था। दोपहरको साग, तरकारी, दलिया और फल खाता था। फल मैं हमेशा बिलकुल पका हुभा नहीं बल्कि गदरा खाता था। पहली अगस्त १८६२ से लेकर मैं खाता तो तीन बार था पर हर चीज बिना आगपर पकी हुई खायी जाती थी। सवेरे और शामको पहलेकी तरह भोजन होता था। दोपहरको हर एक तरहकी तरकारी बिना पकी हुई स्नायी जाती। हाँ पालु आधे पका लिये जाते थे और उनमें नीबूका रस छोड़ दिया जाता था। रोटीकी जगह मैं कच्चा दलिया खाता था पहली जनवरी १८६३ से लेकर पहली अगस्त १८६३ तक हर रोज दो बार भोजन करता था। सवेरे में कुछ भी न खाता था, क्योंकि मैं पहलेसे कम परिश्रम करने लगा था। दोपहरको नीबूके रसके साथ कच्ची तरकारी दलिया, या दाँतमें कभी-कभी दर्द हो जानेसे मोटे आटेकी रोटी और कच्चा कक्ष खाता था। शामको कच्चा दलिया और कच्चा फल लेता For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ आकृति निदान था। पहली अगस्त सन् १८६३ से लेकर आजतक सिर्फ दो बार भोजन करता हूँ। सवेरे दलिया और फल या मोटे आटे. की रोटी और फल, दोपहरको ऊपर लिखे हुए क्रमके अनुसार कच्चा साग दलिया और कच्चा फल, पर शामको कोई चीज भी न खाता था। ____ इस चिकित्सिासे जो लाभ हुआ वह चित्रसे प्रकट है । मैं अपनी ओरसे कुछ नहीं कहना चाहता। चित्र स्वयं ही कह रहा है। हां, इतना मैं अवश्य कह देना चाहता हूँ कि पहले मैं बहुत कुछ गंजा था पर अब वह गंजापन दूर हो गया है और बाल फिर उग आये हैं। मेरा बदन इतना ज्यादा बदल गया है कि साढ़े तीन वर्षों के अन्दर मुझे बूटसे लेकर हैटतक बदलनी पड़ी और इस बातपर तो शायद आप विश्वास न करेंगे कि ५५ बरसकी उम्रमें मेरी सबसे पीछेवाली दाढ़ नये सिरेसे फिर निकल आयी है। यह बात बिना कुइनेके इलाजके होनी असम्भव थी। आजकल मेरे स्कूलमें छुट्टी है, इसलिये जब कभी दिन अच्छा रहता है तो मैं सूर्य-स्नान, वायुस्नान और प्रकाशस्नान भी करता हूँ। इससे मुझे बड़ा लाभ पहुँचता है। प्रभाग्यसे मैं यह क्रम घरपर जारी नहीं रख सकता, क्योंकि मेरा काम धन्धा ऐसा है कि मुझे इसके लिये समय नहीं मिलता। अब मैं इस पत्रको समाप्त करता हूँ और फिर यह कहता हूँ कि यह दोनों तसवीरें आपकी सेवामें हैं। मेरे इलाज के बारेमें अगर For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राण-शक्तिको वृद्धि ७३ आप कुछ और बातें जानना चाहेंगे तो मैं खुशीसे उनके बारे में आपको सूचना दे सकूंगा । आपकी ही चिकित्सा से मैं चङ्गा हुआ हूँ। इसके लिये मैं आपको हृदय से धन्यवाद देता हूँ। आपकी तथा आपके कुटुम्बकी भलाई के लिये मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ -- भवदीय एन० । प्राण-शक्तिको वृद्धि फिरसे स्वस्थ होनेके लिये शरीर में शक्तिका लाना आवश्यक है और इसकी सिद्धिके लिये हर प्रकार के साधनसे काम लेना चाहिये | चिकित्साकी कोई विधिमें जिसका उद्देश्य शरीरसे विजातीय द्रव्य दूर करना है कुछ-कुछ जीव- शक्तिका होना बहुत आवश्यक है । यही बात मेरी चिकित्सामें भी है। जब शरीर में विजातीय द्रव्य जमा हो जाता है और उससे गांठें पड़ जाती हैं। तो यह समझना चाहिये कि उस मनुष्य में जीवन-शक्ति बहुत ही कम हो गयी है, नहीं तो विजातीय द्रव्य शरीर के भीतर इतना कड़ा नहीं हो सकता । ऐसे आदमीको चङ्गा करनेके लिये हमें इस बातका भरसक यत्न करना चाहिये कि उसकी जीवन शक्ति जो कमजोर पड़ गयी है फिरसे बढ़ जाय । इसके साथ ही साथ इस बात की भी कोशिश होनी चाहिये कि जिन बातों से जीवनशक्ति कमजोर पड़ती हो दूर कर दी जायें । यहां मैं इस बात पर कुछ नहीं लिखना चाहता कि प्राणशक्ति क्या है | इतना ही विचार करना चाहता हूँ कि हम उस शक्तिको किस तरह प्राप्त कर सकते हैं । For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ७४ आकृति निदान हम नित्य जो आहार करते हैं और जो हवा सांस लेते हैं उसके द्वारा नित्य एक नयी शक्ति अपने में उत्पन्न करते हैं । इस तरह प्राण-शक्ति प्राप्त करने और उसकी उन्नति करने के लिये भोजन बहुत आवश्यक वस्तु है । इसलिये अपने भोजन के सम्बन्धमें ऐसी प्रत्येक बातका ध्यान रखना चाहिये जिससे हमारी प्राण-शक्तिपर अच्छा प्रभाव पड़े। नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर देते हुए मैं इस विषय में पूर्णरूपसे लिखने की चेष्टा करूंगा कि आहार कैसा होना चाहिये । प्रश्न यह हैं ――― Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) हमारा भोजन कैसे हमारे अङ्ग लगे ? ( २ ) क्या खाना चाहिये ? ( ३ ) कहाँ खाना चाहिये ? ( ४ ) कब खाना चाहिये ? ( १ ) खाना कैसे पचना चाहिये ? हम जो कुछ भोजन करते हैं उसमेंसे हमारा शरीर उन सब वस्तुयोंका सार खींचनेकी चेष्टा करता है जो शरीरकी पुष्टि और गतिके लिये आवश्यक हैं। हमारा शरीर खाई हुई वस्तुखे जिस तत्वको खींच लेता है उसे ही पचाता है। भोजन पचते समय शरीर में कई प्रकारकी क्रियायें होती हैं। पर हमें उनपर विचार नहीं करना है क्योंकि भोजन पचनेके कुल कामको अलग अलग भागों में विभक्त न समझकर समूचा एक काम समझा जाता है । जबतक शरीर में पचनेके लिये कोई पदार्थ रहता है For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज तबतक पचनेको क्रिया बराबर होती रहती है। ज्यों ही हम मुंहमें भोजन डालते हैं और उसे चबाना प्रारम्भ करते हैं त्योही पचनेका काम भी आरम्भ हो जाता है। शरीरके अन्दर जाकर भोजनका एक भाग पचनेके पश्चात् पाखाने आदिके रूपमें बाहर निकल जाता है और दूसरा भाग जो भीतर रह जाता है वह यकृत फेफड़ों और नसोंद्वारा और भी अधिक पचाया जाता है । अन्तमें पचने के बाद जो बच जाता है वह शरीरके चमड़े और गुर्दो द्वारा बाहर निकल जाता है। शरीर अपनी गतिको आप ही ठीक करता है। शरीरकी सारी गति एक समझी जाती है । यदि उसमें कुछ भी फर्क पड़े तो समझना चाहिये कि शरीरकी कुल पाचन शक्ति गड़बड़ हो गयी है और पाचन-शक्तिकी खराबी सारे शरीरके विकारका सूचक है। अब आप देख सकते हैं कि पाचन शक्ति के द्वारा शरीर उन सब वस्तुओंको पचाता है जो स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है। जिस तरह किसी वस्तु के अर्क खींचनेकी भांति पाचन-शक्तिकी क्रिया द्वारा शरीर में भोजनका सत्व खींचा जाता है। पाचन शक्तिकी क्रियासे अन्य किसी क्रियाकी तुलना नहीं की जा सकती। पाचन-शक्ति की क्रिया बहुत ही पूर्ण है । पाचन-शक्तिकी इन्द्रियोंको अपने किसी कामसे छुट्टी दिलानेकी चेष्टा करना बड़ी भारी भूल है। यह उन्हें अशक्त करनेकी चेष्टा है और मनुष्यको इस विषयमें न अबतक सफलता मिली है न कभी मिलेगी कि भोजन पचानेका काम कृत्रिम रीतिसे हो सके। For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ७६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान यदि पाचन-‍ - शक्ति निर्बल हो जाय तो हमें उसे फिरसे सुधारनेका उपाय करना चाहिये । शरीर जितना भोजन पचा सकता हैं उससे अधिक भोजन शरीरमें कभी न पहुँचाना चाहिये । यदि हम अपनी पाचन शक्तिको प्राकृतिक रूपसे ठीक कर लें तो कुछ समय में शरीर आप ही आप दृढ़ हो जायगा और उसीके साथ हमारी जीवन शक्ति भी बढ़ जायगी । जिन बातों से हमारी पाचन शक्ति ठीक रह सकती है अब उनके विषय में हम कुछ लिखना चाहते हैं । ( २ ) क्या खाना चाहिये ? इस विषय में मैं अपने नये आरोग्यसाधनमें विस्तार पूर्वक लिख चुका हूँ पर यहां कुछ मुख्य मुख्य बातों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ । 1 भोजन हमारी प्रकृतिके अनुकूल होना चाहिये । प्रकृति के विरुद्ध कभी कोई चीज न खानी चाहिये । इसीलिये मैं मांस खाने के पक्ष में नहीं हूं, क्योंकि अप्राकृतिक है नये आरोग्य साधनमें भोजन प्रकरण देखिये । we प्रकृति ने हमें दांत इसलिये दिये हैं कि हम भोजनको चबाकर निगलें | इससे यह सिद्ध होता है कि हमें खासकर ठोस भोजन खाना चाहिये, पर मैं किसी तरह इस बातकी सिफारिश नहीं कर सकता कि सूखे फल खाये जायं १ जिन लोगोंको अनपच रहता हो उन्हें तो खास तौरपर यह बात For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बापनका इलाज ध्यान में रखनी चाहिये। जिन लोगोंको अजीर्णकी बीमारी रहती है वे पतला खाना उचित रीतिपर नहीं पचा सकते | उनका यह ख्याल करना गलत है कि शोरबा, दूध, कहवा, चाय, शराब वगैरह उन्हें फायदा पहुँचा सकती है । मैंने अजी के बहुतसे रोगियोंका इलाज किया है। उन रोगियोंके इलाज से जो अनुभव मुझे प्राप्त हुआ है वह मैं यहाँ लिखता हूँ । कच्चे भोजनकी अपेक्षा पका हुआ भोजन ज्यादा मुशकिलसे पचाया जा सकता है। जो चीज ताजी और गदरी है वह बहुत ही आसानी के साथ पच सकती है । जो चीज बिलकुल पक गयी है या जो बहुत जल्द सड़नेवाली है उसका पचाना बड़ा मुशकिल है । इसलिये कच्चा फल और सागपात अजीर्णके रोगी बहुत ही आसानी और जल्दी के साथ पचा सकते हैं । इस तरहका खाना जरूरत से ज्यादा नहीं खाया जा सकता, क्योंकि यह ज्योंही काफी तौरपर खा लिया जाता है त्योंही शरीर इस बात की सूचना दे देता है कि बस अब अधिक भोजन मत करो। ७७ पहले पहल तो कच्चा फल खानेसे शायद दस्तकी बीमारी हो सकती है, क्योंकि आसानी के साथ पचनेके लिये बदनके अन्दर से वह दूसरी चीजोंको निकाल बाहर करता है, पर दस्तकी बीमारी फौरन दूर हो जायगी और इस तरहके फल खानेसे पाचन शक्तिको नियमानुसार ठीक करनेमें बड़ी भारी For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति निदान मदद मिलेगी । कच्चा फल सबसे अच्छा वही है जो सीधे पेड़से तोड़ लिया जाय, क्योंकि जमीनपर गिरनेसे उसकी खूबी जातो ती है, इसलिये विदेशी फलोंकी अपेक्षा देशी फल ज्यादा अच्छे हैं, क्योंकि विदेशी फत्त दूरसे श्राने जाने में खराब हो जाते हैं और जल्दी नहीं पच सकते। __आम तौरपर हम यह कह सकते हैं कि जिस स्थानमें जो लोग रहते हैं उनके लिये उचित भोजन प्रकृति आप ही पैदा कर देती है। उदाहरण के तौरपर इस बातकी कोशिश की गयी है कि योरपके दक्षिणी प्रान्तोंमें पैदा होनेवाली चीजें उत्तरी प्रान्तों में पैदा को जायँ, जिसमें कि उन प्रान्तोंके लोगोंकी हालत और तन्दुरुस्ती सुधार हो, पर उनकी तन्दुरुस्तीमें सुधार होना तो दूर रहा इन चीजों की बदौलत उनकी तन्दुरुस्ती और भी चौपट हो गयी है। ___अगर किसी देश में आदमियोंके खानेके लायक कोई चीज नहीं पैदा होती तो समझ लेना चाहिये कि वह जगह मनुष्यों. के रहने के लायक नहीं है। उत्तर खण्ड, उत्तर कुरु मादि बहुत ठंढे प्रदेश इसी तरह के हैं। उन प्रदेशों में रहनेवाले कभी तन्दुरुस्त न रहते हैं और न बहुत दिनोंतक जिन्दा ही रहते हैं। साथके चित्रमें ग्रीनलैंडके बहुत ही शोतल प्रदेशके रहनेवालोंका एक झुंड दिखलाया गया है। यह सच है कि वे लोग देखने में खूब हृष्टपुष्ट मालूम पड़ते हैं, पर असल में उनमें से हर एक वादीसे फूला हुआ है । अभाग्यसे यह बात अच्छी तरहसे For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज ७६ इस चित्रके द्वारा नहीं प्रगट होती, क्योंकि इस चित्रको एक नौसिखिया चित्रकारने बनाया था। इस प्रान्तके रहनेवालोंकी जीवन-शक्ति बहुत ही कम है और शायद थोड़े समयके बाद ही बिलकुल नेस्तनाबूद हो जायेंगे। ___ उनका नेस्तनाबूद हो जाना स्वाभाविक ही है, क्योंकि उन्हें लाचारीसे करीब-करीब बिलकुल मांस ही पर गुजारा करना पड़ता है। हाँ जिन दिनों जमीनपर बर्फ नहीं जमा रहता उन दिनों वह जो कुछ नाजा पौधा या साग भाजी पैदा होती है बड़ी उत्सुकताके साथ भोजन करते हैं। पर जितना साग पात उन्हें खानेको मिलता है वह उस नुकसानको दूर करने के लिये काफी नहीं है जो अप्राकृतिक भोजन खानेले पैदा होता है। हाँ, थोड़ा बहुत सागभाबी खानेसे कुछ न कुछ सुधार जरूर होता है । जो उत्तरी प्रदेश समुद्र के किनारे हैं वहांके रहनेवाले मछलियाँ ज्यादा खाते हैं। इसलिये उनमें बादोपन कम रहता है, क्योंकि उबाली हुई मछली दूसरे मांसकी अपेक्षा कम नुकसान पहुँचानेवाली होती है। करसे कम चरबोदार आनवरों के मांसकी बनिस्बत उबाली हुई मछली ज्यादा अच्छी होती है। ___ जो प्रदेश न तो बहुत गरम और न बहुत सर्द है वहाँके रहनेवाले अधिक भाग्यवान हैं। वहाँके चश्मोंका पानी ऐसा अच्छा है कि पीने से पाचन शक्ति बढ़ती है। ताजे ताजे पौधे, साग भाजी और फल खावेसे जीवन-शक्ति भी बहुत बढ़ती है। For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाकृति निदान आम तौरपर लोग इन सब चीजोंको फजूल समझते हैं, क्योंकि जीवन के नियमोंको बिलकुल नहीं जानते । एक चीजका नाम मैं यहां खास तौरपर लेना चाहता हूँ जो मनुष्य शरीर के लिये बहुत जरूरी है । पर जिसे लोग बिलकुल बेफायदा समझते हैं। यह चीज और कुछ नहीं सिर्फ बालू है । बालूसे पाचन शक्ति में निस्सन्देह सहायता पहुँचती है । प्राकृतिक दशा में खानेकी चीजोंके साथ हमेशा कुछ न कुछ कालू जरूर मिली रहती है। खाने की चीजें कितनी ही ज्यादा क्यों न धोयी जायँ पर उनमें से बालू पूरी तरहसे दूर नहीं हो सकती। बहुत सी बातों में तो पानी से धोना फायदेमन्द है पर धोने से एक ऐसी चीज निकल जाती है जो बदन के लिये बहुत ही जरूरी है । खुरे हो जायें । शुतुर वे रेगिस्तान के ही रहने जानवर लोग कुदरती तौरपर बालू खाया करते हैं। बालू उन्हें नहीं मिलती तो बीमार हो जाते हैं। उदाहरण के तौरपर मुर्गियोंको लीजिये | अगर बालू उन्हें खानेको न मिले तो उनके पर बहुत जल्द भदे और खुर मुर्गके पर कितने बढ़ियां होते हैं, पर वाले है। जिन जगहों में बालू ज्यादा मुर्गके पर अधिक सुन्दर नहीं होते। उन्हें कितना ही बढ़िया से बढ़िया खाना क्यों न दिया जाय मगर बिना बालूके उनके पर नहीं सुधर सकते । इसी तरह से मनुष्य के लिये भी थोड़ासा बालू बहुत ही जरूरी है । इसलिये महोन आटे और मैदेकी बनी नहीं होती वहां शुतुर For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज ८१ हुई रोटी खानेकी अपेक्षा दलिया और मोटे आटे की रोटी खाना ज्यादा अच्छा है, क्योंकि अनानके ऊपरकी पोर बालूके छोटेछोटे करण जरूर लगे रहते हैं । जानवरों के बारेमें खूब जांच करनेके बाद मैं इस बातके निश्चय करने में लग गया कि बालूके छोटे-छोटे कणों के खाने से मनुष्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस जांच के जो नतीजे निकले हैं उनसे मुझे बड़ा सन्तोष हुआ है और मैं उन्हें यहांपर प्रकाशित कर देना चाहता हूँ। मैंने समुद्र के किनारेपरकी बढ़िया से बढ़िया बालू चुनकर मँगवायी, पर नदीके किनारेवाली बढ़िया बालू से भी काम चल सकता है। मैंने बालू जर्मन समुद्र के किनारेपर से मँग वायी थी । यह बालू इतनी उम्दा और महीन थी कि आसानी के साथ निगली जा सकती थी । इस तरह की बालू में छुतैले जहरको मारनेवाली खासियत भी रहती है । यह आजमाइश आप खुद कर सकते हैं। जिस कमरेकी हवा बिनौला या दूध जलने से खराब हो गयी हो उसमें दो चार मुट्ठी बालूको तपे हुए तवेपर गरम कर लीजिए। आपको यह देखकर ताज्जुब होगा कि इस उपाय से उस कमरे की दुर्गन्ध कैसे जल्दी गायब हो गयी । जबतक यह आजमाइश जारी रहे तबतक खिड़कियों और दरवाजोंको बन्द रखना चाहिये, जिसमें कि बालूका पूरा असर ज्यादा अच्छी तरह देखा जा सके | बालूदार प्रदेशों की हवा हमेशा साफ रहती है, क्योंकि वहां बालू प्रकृतिकी भोर मानों छूत और जहर मारनेवाली दवाका For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर आकृति निदान काम करती है। अगर बालू में किसी कदर चिकनी मिट्टी मिली होगी तो असर इतना अच्छा न होगा। अब आप यह पूछ सकते हैं कि क्या बालू शरीरके भीतरकी खराब हवा और खराब चीजें बरबाद करके वैसा ही अच्छा असर नहीं पैदा कर सकती अर्थात् क्या बालू शरीर के अन्दर उस चह. बच्चेको नहीं सुखा सकतो जिसमें भयानक बीमारियोंके जहरीले कीटाणु पैदा होते और बढ़ते हैं ? बालूका असर क्या होता है इसका निश्चय करनेके विचारसे मैंने कई आजमाइशें की हैं। इन आजमाइशोंके नतीजोंसे पता लगा है कि बालू में बहुत बड़े गुण हैं। मैं यहांपर इस बातका एक अच्छा उदाहरण देना चाहता हूँ। ___एक स्त्रीको युवावस्थासे ही कोष्ठबद्धका रोग था। उसने कई तरहके इलाज किये पर किसीसे भी कुछ फायदा न हुआ पचास बरसकी उमर में उसकी यह शिकायत इतनी बढ़ गयी और उसे इतनी तकलीफ होने लगी कि उसकी हालत बहुत ही खतरनाक दिखलाई पड़ने लगी। किसी तरह के जुलाबसे भी उसका पेट साफ न होता था। कभी-कभी तो हफ्तोंतक और एक बार तो लगातार पांच हफ्तेतक उसे दस्त न हुआ। जब वह मेरे पास आयो तो मैंने उससे कहा कि वह दिनमें चार या पांच मतैबा उदर-स्नान करे दलिया तथा खट्टे फल खाये। इस इलाजसे कोष्ठबद्ध में जरूर फायदा होता है, पर इस स्त्रीके सम्बन्ध यह इलाज काफी न था। इसलिए मैंने यह आजमा For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज इशकी कि अगर खानेके बाद ही उस स्त्रीको एक चुटकी समुद्री बालू दिनमें दो तीन बार दिया जाय तो उससे क्या नतीजा होगा। जैसी भाशा न थी उससे कहीं अच्छा नतीजा बड़ी तेजीके साथ दिखलाई पड़ा। दूसरे ही दिन पेटकी भांतें ढीली पड़ गयीं। पहले तो पाखाना काले रंगका, सख्त और गोल हुआ, पर बादको बिलकुल ठीक ढंगका होने लगा। जिस तरहका स्नान और जिस तरहका भोजन पहले बतलाया गया था वही जारी रखा गया। ___ अब आप देख सकते हैं कि बालूका कितना अच्छा असर उस स्त्रीकी बीमारीपर पड़ा। निःसन्देह बालू पाचन शक्तिको ठीक हालतमें रखने और उसे सुधारनेका एक अच्छा कुदरती जरिया है। __ अपनी पुरानी प्रणालीके अनुसार डाक्टर और हकीम इस बातको कभी न मानेंगे कि बालू खानेसे कुछ फायदा हो सकता है, क्योंकि बालू प्रायः घुल नहीं सकती । डाक्टर लोग रसायन शास्त्रकी सहायतासे इस बातका ठीक-ठीक निश्चय करनेका यत्न करेंगे कि शरीरके निर्माणके लिए कौनसे पदार्थ पावश्यक हैं । अन्तमें वे यह निश्चय करेंगे कि हर एक पदार्थ गिनती और वजनमें कितना हररोज खाना चाहिये । उस मनुष्यके अभाग्यका क्या ठिकाना है जो इस तरह के सिद्धान्तोंके अनुसार भोजनके द्वारा अपना इलाज कगता है ! इस बातकी भी कोशिश की गयी है कि खानेके पदार्थोंमें जो पौष्टिक अंश For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ प्राकृति निदान रहता है वह जहांतक हो सके वहांतक बिलकुल शुद्धरूप में खींचकर निकाल लिया जाय। यह बड़ी गलती है, क्योंकि शरीर. को न केवल पदार्थोंकी ही आवश्यकता है बल्कि इस बातकी भी आवश्यकता है कि उसके शरीर के भिन्न-भिन्न अंग काम भी करें। शरीरके अंग तन्दुरुस्त और अच्छी हालतमें तभी बने रह सकते हैं जब वे काम भी करते रहें। पाचनेन्द्रियों को चाहिये कि वे आप ही भोजनसे सार खींचकर शरीर के लिए जरूरी खून, मांस, हड्डी, नसें, बाल वगैरह बनायें। पाचनेन्द्रियोंको चाहिये कि वे भोजनसे उन रसीको खींचें जो पाचन-शक्ति में सहायता देनेवाले हों। शरीरके लिये जरूरी चीजें स्वाभाविक भोजनमें काफी मिकदार में रहती हैं। सिर्फ जरूरत इस बात की है कि शरीरमें इतनी ताकत हो कि वह खाये हुए पदार्थो से सत्त खींच सके। शरीरमें गैस ( एक प्रकारको हवा) पैदा करने की भी शक्ति होनी चाहिये, जिसमें कि खाया हुआ भोजन शरीरके अन्दर उचित गातेसे नीचे की ओर जा सके। अगर शरीरके अन्दर काफी गैस न पैश हो तो पेटकी भांतों में रुकावटें पड़ जाती हैं और अंतड़ियां बिल्कुल बेकाम पड़ जाती हैं। ऐसी हालत में खाया हुआ भोजन प्रायः ऊपरकी ओर जाता है जिससे सिरमें दर्द होने लगता है। पर इस तरहकी गड़बड़ी तभी पैदा होती है जब शरीरमें बादीपन रहता है या जब अप्रा. कृतिक भोजन खाया जाता है। मैं अब कुछ बातें बच्चोंके खिलाने पिलाने के बारेमें कहना For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वादीपनका इलाज चाहता हूँ। बच्चोंके लिये प्राकुतिक भोजन केवल एक वस्तु है, अर्थात् माताका दूध। जिन बच्चोंको माताका दूध नहीं मिलता उनकी बड़ी हानि होती है। ऐसे बचोंके शरीर अवश्य सड़े हुए पदार्थसे लद जाते हैं और उसमें बाहीपन भा जाता है। नं०४८ माताके दूधसे पले हुए एक लड़केका चित्र है। इस बालकको उन बालकोंसे मिलाइये जो नं. ४६ और ५० के चित्रोंमें दिये गये हैं। यह दोनों बालक कृत्रिम भोजनके द्वारा पाले गये थे। दोनोंके सिर बहुत ज्यादा बड़े और पेट बहुत ज्यादा मामे की ओर निकले हुए हैं। इस तरह के प्रायः सब बालक उचित समयके पहले ही प्रौढ़ या बड़े हो जाते हैं। यह समयकी खूबी है कि आज कल इतने ज्यादा प्रतिभावना बच्चे दिखलाई पड़ते हैं। ऐसे बच्चे बहुत छोटी उम्र में ही आश्चर्य जनक बुद्धिका परिचय देते हैं। ऐसे बच्चे केवल दयाके पात्र हैं, क्योंकि कुछ समयतक वे असामान्य बुद्धिका परिचय देते रहते हैं और उनके माता पिता यह समझते हैं कि हमारा बच्चा बहुत ही बुद्धिमान होगा, पर इस तरहका कोई भी बालक बड़े होनेपर आशाके अनुकूल नहीं निलकता क्योंकि उचित समयके पहले ही प्रौढ़ हो जाना एक खराब लक्षण है। उचित समय के पहले प्रौढ़ता तभी दिखलाई पड़ती है जब दिमागको मोर विजातीय द्रव्यका अत्यन्त दबाव होनेसे मस्तिष्कमें एक प्राकृतिक परिवर्तन हो जाता है। यदि शरीर के किसी अंगमें विजातीय द्रव्य घर कर लेता है तो उसमें तेजी आ जाती है। मस्तिष्क विद्यामें निपुण For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ आकृति निदान मनुष्य भी यह कहते हैं कि प्रायः मनुष्योंके कुछ अंगोंमें और अंगोंकी अपेक्षा अधिक उन्नति देखने में आती है, पर वे यह नहीं जानते कि यह बात अस्वाभाविक है, क्योंकि उन्हें यह नहीं मालूम कि इस बातका कारण क्या है । मैंने तो ऐसे बालक देखे हैं जो सात वर्षकी उम्र में बीस वर्षवाले मनुष्यों की तरह समझकी बातें करते थे, पर बादको बड़े होने पर ऐसे बालक अपने साथियोंसे बहुत ही पीछे रहे । यही बात उन प्रतिभाशाली गानेवाले बालकों के बारे में भी कही जा सकती है जिनकी पहले तो बड़ी ख्याति रहती है पर बादको कुछ वर्ष बीतनेपर उनकी कोई याद भी नहीं करता क्योंकि उनमें उस प्रकारकी बुद्धि नहीं रहती जो अच्छा गवैया होने के लिये बहुत जरूरी है । नं० ५२ में पोलर नामक एक बालकका चित्र दिया गया है। उम्र के लिहाज से इस बालक में कहीं अधिक उन्नति दिखलाई पड़ती है । उसकी शारीरिक अवस्थाके बारेमें डाक्टरोंको कुछ भी विचित्रता नहीं मालूम पड़ती। वे उसे एक प्रतिभाशाली बालक समझते हैं। पर प्राकृति विज्ञानकी राय इस सम्बन्ध में भी डाक्टोंकी रायसे भिन्न है। यद्यपि इस बालककी तसवीर हमारे मतलब के मुताबिक नहीं खींची गयी है तथापि उसके उभरे हुए माथेसे हम इस बातका पता लगा सकते हैं कि आँखोंकी भोरे विजातीय द्रव्यका कितना दबाव है । इससे साफ जाहिर है कि इस बालककी पाचन शक्ति अच्छी नहीं है । For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज इसमें कोई सन्देह नहीं कि सामने और बगल दोनों ओर उसके शरीर में विजातीय द्रव्यसे बादीपन फैला हुआ है, पर तसवीर से हम इस बातका पूरा निश्चय नहीं कर सकते । उसका सिर चोटीपर बहुत ज्यादा चौड़ा है। इसीलिये इस बालककी जो उम्र है उसके लिहाज से उसका मस्तिष्क उचित अधिक उन्नत अवस्था में है। कहीं खाना चाहिये ? यह प्रश्न शायद व्यर्थ समझा जायगा पर वास्तवमें ऐसा नहीं । शरीरका स्वास्थ्य बहुत कुछ इस बातपर निर्भर है किफेफड़ोंको ठीक गिजा मिलती है या नहीं | जिन्दगी कायम रखने और शरीरकी शक्ति बढ़ाने के लिये अच्छी और साफ हवा उतनीही जरूरी है जितना कि अच्छा भोजन । खानेके वक्त हम आप ही आप बहुत तेजी से सांस लेते हैं और फेफड़ों को ज्यादा हवाकी जरूरत पड़ती है खाने के साथ-साथ हवा भी पेटके अन्दर जाती है । जो हवा खानेके साथ पेटके अन्दर जाती है वह अच्छी है या बुरी इसपर हमें कभी उदासीन न रहना चाहिये | अगर मौसिम अच्छा हो तो दरवाजेके बाहर बरामदे में भोजन करना सबसे उत्तम है या कमसे कम यह तो जरूर होना चाहिये कि जिस कमरे में खाना खाया जाय वह खूब रौशन और हवादार रहे । उन रोगियों और निर्बलोंके लिये यह बात खास तौरपर For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ - आकृति निदान जरूरी है जो अपनी तन्दुरुस्ती सुधारना और अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। कब खाना चाहिये ? इस प्रश्न के बारेमें विस्तारके साथ लिखना परम आवश्यक है। माम तौरपर आप इस प्रश्न के उत्तर में यह कह सकते हैं कि जब भूख लगे तभी खाना चाहिये। पर हममें वह शक्ति है जिसकी बदौलत हम अपने जीवनको इस तरहसे नियमित कर सकते हैं कि हम अपनी भूखको दूसरे समयके लिये टाल सकें। अधिकतर लोग ऐसो अप्राकृतिक रीतिपर जीवन व्यतीत करते हैं कि उन्हें भूख अनुचित समयोंपर लग भाती है। इसके अलावा जो भूख अनुचित समयपर लगती है वह तन्दुरुस्ती देनेवली नहीं है । अमर हम जानवरोंकी जिन्दगीपर नजर डालें तो हमें पता लगेगा कि उनमें से प्रायः सबके सब भूखके अधिकतर चिह्न सबेरे ही प्रगट करते हैं और उसी समय अपना प्रधान चारा खाते हैं। इसका कारण सूर्यका प्रभाव है। दिन दो हिस्सों में बांटा गया है पहला हिस्सा उत्तेजना देनेवाला और दूसरा हिस्सा शांति देनेवाला है। उत्तेजना देनेवाला भाग सूर्योदयसे प्रारम्भ होता है । सूरज ही उदय होकर कुल प्रकृतिको फिरसे कार्यमें लगाता है। हर एक माली और प्रामके रहनेवाले मनुष्यको यह अच्छी तरहसे विदित है कि प्रात:कालीन सूर्यका कितना प्रभाव पेड़ पौधोंपर पड़ता For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज ८९ है। जिन पेड़ोंको प्रातःकालीन सूर्यका प्रभाव नहीं प्राप्त होता उनमें या तो बहुत कम फल लगते हैं या बिलकुल ही नहीं लगते। अगर सवेरेका सूर्य पेड़के सिर्फ कुछ ही हिस्सोंपर अपना प्रकाश डालता है तो आम तौरपर यह देखा जाता है कि सिर्फ उन्हीं हिस्सोंपर फूल लगते हैं। इसी तरहसे मनुष्य कितना ही चाहे तब भी सूर्य के प्रभावसे दूर नहीं रह सकता। अगर वह प्राकृतिक नियमोंका पालन करे और सवेरे उठकर खुली हवामें चला जाय तो उसे फौरन मालूम होगा कि सूर्य्यकी किरणोंका कितना अच्छा और कितना उल्लास देनेवाला प्रभाव पड़ता है। इसी तरह वह दिनके दूसरे अर्थात् शांति देनेवाले भागके प्रभावको भी अवश्य देखेगा। दिनका दूसरा भाग उसी क्षणसे प्रारम्भ होता है जिस क्षणमें सूर्य प्रकाश मध्यको पारकर पश्चिमकी ओर जाने लगता है अर्थात् दिनका यह भाग्य मध्याह्नसे प्रारम्भ होता है। इस भागका प्रभाव यह है कि तेजी और फुरतीलापन धीरे-धीरे कम होने लगता है यहांतक कि सूरज डूबते डूबते बिल्कुल शांति मा जाती है और जानवरोंकी तरह मनुष्य भी सोनेकी इच्छा प्रकट करता है।। ____ उत्तेजना देनेवाले भागमें काम और परिश्रम करनेकी इच्छा हममें पैदा होती है और हमारे बदन में तेजी और फुरनीलापन आ जाता है। शांति देनेवाले भागमें हमारा शरीर शिथिल पड़ जाता है और बदनमें थकावट आ जाती है और हम भाराम. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति निदान करने की इच्छा प्रकट करते हैं। यही नियम पाचनेन्द्रियोंके सम्बन्ध में भी व्यापक है। तीसरे पहरकी अपेक्षा सवेरे पाचनशक्ति अच्छी रहती है। सन्ध्या समय तो पाचन शक्ति और भी कमजोर पड़ जाती है। ___ इससे यह नतीजा निकलता है कि खाना खास करके सोरे और दिनके पहलेवाले हिस्से में खाना चाहिये और तीसरे पहर सिर्फ बहुत ही थोड़ी मिकदारमें भोजन करना चाहिये। रोगी और निर्बल मनुष्यको यह नियम खास तौरपर पालन करना चाहिये। क्योंकि इस नियमका पालन करनेसे वे यथासम्भव अपनी शक्तिका उपयोग कर सकते हैं और उसे फिर अच्छी हालतमें ला सकते हैं। ___ शायद भाप यह कह सकते हैं कि जो लोग बीमार होते हैं उन्हें सवेरे बहुत ही कम भूख लगती है और बिना भूखके वे कैसे खा सकते हैं। पर सवेरे भूखका न लगना इस बातका निश्चित प्रमाण है कि पाचनेन्द्रियां या तो बहुत कमजोर हैं या गलत समयपर अपना काम करनेके लिये मनबूर की गयी हैं । आजकल रोशनी करनेका ऐसा ढंग निकाला गया है. कि रातको भी दिनको तरह प्रकाश हो जाता है। मनुष्यने अपनी सभ्यताकी बदौलत जो सफलतायें प्राप्त की हैं, उन्हें अकसर हम हानिकर कामों में ही लगाते हैं। इसलिये कोई आश्चर्य नहीं कि लोगों में बातरोग और नाड़ी दौर्बल्य इतना अधिक खिलायी पड़ रहा है यहांतक कि वर्तमान शताब्दी यदि नाड़ी For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज १ दौर्बल्यकी शताब्दी कही जाय तो अनुचित नहीं । पर नाड़ो दौर्बल्यका कारण वर्तमान समय या शताब्दी नहीं बल्कि वह गलत तरीका है जिसके अनुसार हम अपना जीवन निर्वाह करते हैं । इस गलत तरीकेके द्वारा खास करके पीठमें बादीपन जरूर पैदा होता है । खाना अकसर बहुत देरको खाया जाता है और बहुतसे लोग तो शामका खाना ऐसे समय खाते हैं जब कि उन्हें सोते होना चाहिये। जो खाना इतनी देरको खाया जाता है वह पूरी तरह से नहीं पचाया जा सकता । उससे पाचनेन्द्रियों पर इतना जोर पड़ता है कि उसका असर सवेरेतक भी बना रहता है । सवेरे भूख न लगने का यही कारण है । इसके अलावा बिना पचा हुआ खाना शरीरको उत्तेजित करता है, जिससे बदनको असली आराम नहीं मिलता। इसलिये शायद सवेरे रातकी अपेक्षा ज्यादा थकावट मालूम होती है । इस आदतको बदलने के लिये सिर्फ थोड़ेसे निश्चयकी आवश्यकता है। बीमार आदमी अगर अच्छा होना चाहते हैं तो उन्हें इस आदतको जरूर बदल देना चाहिये । अगर आप रातको बिना खाये हुए या बहुत ही हलका भोजन खाकर सोये तो सवेरे जरूर आपको भूख लगेगी। इसमें सन्देह नहीं कि इस नियम के अनुसार चल्लनेसे आपको अपने बीवनका कुल क्रम बदलना पड़ेगा । बहुतों को तो शायद जल्दी सोनेकी भादत डालना बहुत ही मुश्किल मालूम पड़ेगा । पर ५ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ भाकृति निदान असल में यह सब आदतकी बात है। तड़के उठिये और अगर आपको कुछ थकावट मालूम पड़े तो उसकी परवाह न करिये। ऐसा करनेसे शामके वक्त आपको जरूर जल्दी सोनेकी इच्छा मालूम होगी। इस तरह से प्राकृतिक नियमोंके अनुसार जीवन व्यतीत करनेकी आदत बहुत जल्द पड़ जायगी। हमें ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये कि जहाँतक हो सके वहाँ. तक हम अपना काम दिनके पहले भाग अर्थात् उत्तेजना देनेवाले भागमें करें, क्योंकि दूसग अर्थात् शान्ति देनेवाला भाग नहीं बल्कि उत्तेजना देनेवाला भाग ही प्रकृतिकी ओरसे काम करनेके लिए नियत किया गया है। उसी भागमें वह काम अर्थात् सन्तानोत्पत्तिका काम भी करना चाहिये जो मनुष्य जातिके लिये इतने विशेष महत्त्वका है। दिनके पूर्व भागमें गर्भोत्पादनका काम अधिक सफलताके साथ हो सकता है और अच्छी सन्तान पैदा हो सकती है। याद रहे कि हमारा कर्त्तव्य ऐसी सन्तान उत्पन्न करना है जो अच्छी और तन्दुरुस्त हो। इसलिये हर एक मनुष्यको गर्भोत्पादनके लिये सबसे अच्छा समय और सबसे अच्छी हालत चुनना चाहिये। अक्सर यह देखा गया है कि बहुतसे लोग अपनेको नपुंसक समझे हुए थे, क्योंकि शान्ति देनेवाले अर्थात् दिनके उत्तर भागमें गर्भोत्पत्ति करनेकी शक्ति उनके शरीर में नहीं रह जाती थी, पर अनुभवसे उन्हें मालूम हुआ कि उत्तेजना देनेवाले भागमें वे गर्भोत्पादन करनेके पूरी तरहसे योग्य हैं। दोनों भागों में क्या खास फर्क है यह आप इस दा For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज हरण से देख सकते हैं। पर तन्दुरुस्त आदमियों को हम यह सलाह देते हैं कि वे रातके वक्त मैथुन न करें, क्योंकि ऐसा करने से शरीर में कमजोरी आ जाती है और कामकी फिक्र, मंट और बेकायदा ढंगकी जिन्दगी आदि बातोंका बुरा असर सन्तानपर पड़ता है । कौन ऐसा मनुष्य है जो ऐसे कामसे अपनेको न रोके जिसका खराब असर सन्तानपर पड़ता हो ? जो लोग अप्राकृतिक ढंगपर जीवन व्यतीत करते हैं वे यदि सवेरे ही मैथुन करें तो उनके गलत तरीके से जिन्दगी बसर करनेका बुरा नतीजा गर्भपर इतनी प्रत्यक्ष रीतिखे न पहुँचेगा, क्योंकि रातके वक्त बदन अपनी कुछ न कुछ ताकत जरूर हासिल कर लेता है । उदाहरण के लिए सोचिये कि शराब और दूसरी नशीली सन्तानोंपर पड़ता होगा जो चीजोंका कितना बुरा असर उन नशे की हालत में पैदा की जाती हैं। ऐसी सन्तानोंकी बुद्धि करीब करीब हमेशा कुण्ठित रहती है और उनका दिमाग बिल्कुल कमजोर रहता है । इसलिए मैं फिर इस बातको दोहराता हूँ कि अगर हम उन्तेजना और शान्ति देनेवाले भागों का उपयोग ठीक तरहसे करें तो हमारी शक्ति ठीक तरह से कायम रह सकती है और यदि शक्ति चीरण हो गयी है तो वह फिर अधिक शीघ्रता से कायम की जा सकती हैं । हमें अपना जीवन इस नियमसे व्यतीत करना चाहिये कि हम अपने सबसे आवश्यक कर्त्तव्योंको सवेरे ही करें और उसी समय प्रधान भोजन भी पेटके अन्दर पहुँचायें जिसमें कि. For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ आकृति - निदान तीसरे पहर धीरे-धीरे हम अपनी शक्तिको शिथिल कर दें और शाम के वक्त जल्दी ही बिस्तरेपर चले जाँय । तेज और गहरी बीमारियाँ दिनके उत्तर भागमें अधिक भयानक और अधिक पीड़ा देनेवाला स्वरूप प्रहण करती हैं क्योंकि उस समय शरीर रोगका मुकाबला इतनी अच्छी तरह नहीं कर सकता । कौन ऐसा मनुष्य है जिसने इस बातपर ध्यान न दिया हो कि बुखार हमेशा शाम के वक्त बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि उस समय शरीर के सब अंग शिथिल और कमजोर पड़ जाते हैं । इसी तरह से साल भी दो भागों में बांटा जा सकता है अर्थात् एक उत्तेजना देनेवाला और दूसरा शांति देनेवाला भाग । पहला भाग उत्तरायणसे प्रारम्भ होता है । उस समय हर एक जाति में इस घटना की यादगारमें कोई न कोई बड़ा त्यौहार या उत्सव मनका भाव आपही आप पैदा हो जाता है। कुहरा और सरदी में भी उत्तेजना देनेवाले समयका प्रभाव आप ही आप प्रगट हो जाता है । बसन्त ऋतु में तो यह प्रभाव आप हर एक जगह साफ तौरपर अनुभव कर सकते हैं। पेड़ोंपर इसका प्रभाव आसानीसे मालूम किया जा सकता है। जो शहतीर शरद ऋतु गिरायी जाती है वह अच्छी और मजबूत बनी रहती है पर जो शहतीर फरवरीतक में नहीं गिरायी जाती वह मजबूत नहीं रहती और बहुत जल्द उसमें दीमक लग जाते हैं। वर्षके उत्तेजना देनेवाले भागमें हम कुल प्रकृति में नव जीवन For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज के चिह्न देख सकते हैं। जानवरोंमें नयी जिन्दगी और तेजी आ जाती है और उसी समय वे बच्चे भी पैदा करते हैं। पेड़ पौधे भी उसी समय खूब फलते-फूलते और बढ़ते हैं। वर्षका उत्तेजना देनेवाला भाग उन्नति और वृद्धिका समय है । शांति देनेवाले भागकी अपेक्षा उत्तेजना देनेवाले भागमें फूलोंकी सुगन्ध कुछ भिन्न ही होती है और कुछ पौधे तो जैसे कि गुलाबके पौधे शरद और गरमीके ऋतुओं में वैसे बढ़िया फूल नहीं पैदा करते जैसे कि वसन्त और गरमीके आरम्भमें पैदा करते हैं। ___ जब सूरज एक बार अपने ऊँचेसे ऊँचे स्थानतक पहुँच जाता है और वहाँसे नीचेकी ओर उतरने लगता है तो वर्षका शान्ति देनेवाला भाग तेजीके साथ शुरू हो जाता है। जानवर लोग पहलेकी अपेक्षा शांत हो जाते हैं। पेड़ पौधोंमें वैसी तरक्की नहीं दिखलायी पड़ती जैसी कि पहले दिखलायी पड़ती थी। आम तौरपर सिर्फ वही फल इस समय पकते हैं जो पहलेवाले भागमें उग आये थे। __उत्तेजना देनेवाले भागकी अपेक्षा शांति देनेवाले भागमें प्लेग इत्यादि महामारियाँ अधिक उत्पन्न होती हैं। क्योंकि शान्ति देनेवाले भागमें शरीर बुखारका मुकाबिल कम कर सकता है। ___ जङ्गली जानवर जो प्राकृतिक दशा में रहते हैं शान्ति देनेवाले भागमें भोजनकी इच्छा कम प्रकट करते हैं और सरदीकी ऋतु भाते ही वे ऐसे कमजोर हो जाते हैं कि आम तौरपर जो कुछ For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाकृति निदान थोड़ा बहुत चारा उस समय मिल सकता है उसीसे उनका सन्तोष हो जाता है। शान्ति देनेवाले भागमें पाचन शक्ति धीरे धीरे कमजोर पड़ जाती है । इसलिये मनुष्यों को भी चाहिये कि वे उस भागमें कम भोजन करें। इसीलिये जाड़ेमें उपवास करना अच्छा है। अभाग्यसे हम बिल्कुल इसके विपरीत आचरण करते हैं । बाड़ेमें हम हर एक प्रकारका त्यौहार और उत्सव मनाते हैं। डाक्टर लोग भी हमें इस बातका उपदेश देते हैं कि इस ऋतुमें ज्यादा खाना खाना चाहिये, जिसमें कि हम सरदीका मुकाबिला अच्छी तरह कर सकें। यह एक ऐसी गलती है जिसका परिणाम बड़ा ही दुःखमय है । प्राकृतिक दशामें रहनेवाले जङ्गली जानवरोंपर एक नजर डालनेसे आपकी आँखें खुल सकती हैं । जानवरों की रखवाली करनेवाले और जङ्गलोंको ताकनेगले मनुष्य यह अच्छी तरहसे जानते हैं कि जो जानवर जाड़ेमें बहुत ज्यादा चारा खाते हैं वे तन्दुरुस्त नहीं रहते। ____ उष्णकटिबन्ध प्रदेशों में जहाँ कि सूर्यको अवस्थामें बहुत कम परिवर्तन होता है चन्द्रमाका प्रभाव अधिक पड़ता है । उक्त प्रदेशों में उत्तेजना और शान्ति देनेवाले भाग बारी बारीसे महीने में दो बार आते हैं. पर दैनिक परिवर्तन वैसा ही होता है जैसा कि और प्रदेशों में देखा जाता है । उष्णकटिबन्ध प्रदेशोंमें यह देखा नका है कि जो शइतीरें चन्द्रमाके बढ़ने के समय गिरायी जाती हैं वे सुरक्षित नहीं रहती पर जो शहतीरें चन्द्रमाके क्षीण होने के समय मिरायी जाती हैं के बहुल उत्तम होती हैं। इसी बसहये जो बातें For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज वर्ष के सम्बन्ध में देखी जाती है वही बातें आप उक्त प्रदेशों में महीनेके सम्बन्ध में देख सकते हैं । आप पूछ सकते है कि इसकी कार क्या है । मैंने इसका एक कारण सोच करके निकाला हैं पर यह अभी निश्चय नहीं है कि मेरा अनुमान ठीक है या गलत। मैं उसे यहाँपर पाठकों के सामने रखता हूँ आशा है कि पाठकगण उसपर विचार करेंगे । 1 जिन कारणोंसे दिन और रात तथा गरमी और जाड़ेकी ऋतुएँ पैदा होती हैं उन्हीं कारणोंकी बदौलत उत्तेजना और शांति देनेवाले भाग भी पैदा होते हैं। हर एक आदमी जानता है कि उत्तेजना और शांति देनेवाले भाग सूर्य और पृथ्वीको गतिपर निर्भर हैं। इमलोग हमेशा से यह सुनते आये हैं कि सूर्य ही हमें प्रकाश और गरमी देता है । मेरी राय में यह विचार गलत है। कदाचित पृथ्वी ही अपनी चक्रगतिके द्वारा प्रकाश और गरमी उत्पन्न करती है। सूर्य्य भी कुदरती तौरपर अपना प्रभाव डालता है और काचित् कुछ ऐसी किरणें हमारी ओर फेंकता है. जो चुम्बक पत्थरंकी तरह असर डालती हैं । जब यह किरणें पृथ्वीसें रगड़ खाती हैं तभी प्रकाश और गरमी पैदा होती है । उस प्रकाश और गरमीको पृथ्वी चारों ओर फैलाती है । यई भांप लोगोंको अच्छी तरहसे मालूम है कि हम जितना हो ऊपर जाते हैं उतनी ही तेजी से गरमी और प्रकाश घटने लगता है । अगर गरमी और प्रकाशकी किरणें साँधे For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान सूर्य्यसे आती तो ऊँचाईपर भी वे अपना प्रभाव पैदा करतीं। पृथ्वी बहुत जल्द हवाको गरम बना सकती है। अगर सूर्य वांस्तवमें गरमीको चारों ओर फैलाता है तो वह हवाको भी क्यों गरम नहीं बना सकता? ___ यदि पृथ्वी ही रोशनी और गरमीको पैदा करती है तो यह साफ जाहिर है कि रोशनी और गरमी उन जगहोंमें अर्थात् उन्कटिबन्ध प्रदेशोंमें बहुत ही तेज होगी जहां पृथ्वीकी गति और उसकी रगड़ सबसे ज्यादा होगी। उत्तरी और दक्षिणी ध्रु बोंमें पृथ्वीका रगड़ आमतौरपर बिल्कुल ही नहीं लेती। इसीलिए वहां बिल्कुल ही सरदी और निर्जीविता बनी रहती है। अगर हवाके द्वारा गरम प्रदेशोंसे गरमी वहांतक न पहुँचे तो सरदी और भी तेज होगी। इस प्रकार यह भी साफ जाहिर है कि क्यों सिर्फ एक ही उष्ण प्रदेश, दो समशीतोष्ण प्रदेश और दो शीत प्रदेश हैं। __वसवीर नं० ५३ और ५४ में यह दिखलाया गया है कि पृथ्वी घूम रही है। तीरका मुंह बिस ओर है उसी ओर पृथ्वी घूम रही है। "म" से वह स्थान सूचित किया गया है। जहांसे हम खड़े हुए इस घटनाको देख रहे हैं। सूर्यकी किरणें एक दूसरेसे समानान्तरपर एक ही ओर गिरती हैं, पर पृथ्वी अपना स्थान बदलती रहती है । तसवीर नं० ५३ में ठीक सूर्योदयके समय पृथ्वीकी अवस्था दिखलायी गयी है। तसवीर नं. ५४ में, पृथ्वीकी वह अवस्था दिखलायी गयी है जब कि सूर्य्य अस्त हो रहा है। For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ बादीपनका इलाज आप यह आसानीसे देख सकते हैं कि चुम्बक पत्थरका असर रखनेवाली सूर्यको किरणें सवेरेके वक्त जब हमपर गिरती हैं तो हमारे साथ उनकी रगड़ उस रगड़से ज्यादा तेज होगी जो तीसरे पहर पैदा होती है, क्योंकि तीसरे पहर सूर्यकी किरणें हमारी पीठको भोर रहती हैं। इसलिये यह साफ जाहिर है कि हमारे सामनेकी ओर जो किरणें होंगी उनका असर कहीं ज्याला तेज होगा। इस बातका उदाहरण हम चाकू तेज करनेके यंत्रसे दे सकते हैं । जिस ओर वह यंत्र घूम रहा है उसके विरुद्ध यदि हम चाकूकी धार रक्खें तो जितना तेज असर होगा उतना तेज असर चाकूको उस ओर रखनेसे न होगा जिस ओरको यन्त्र घूम रहा है। ___ हरकतके लिहाजसे पृथ्वीकी तुलना एक बड़े भारी डाइनमोसे की जा सकती है जिसका चक्कर खानेवाला हिस्सा उन ब्रुश जैसी शकलवाली चीजों के खिलाफ रगड़ खाता है जिनके द्वारा बिजली ले जायी जाती है। शायद कुछ लोग यह कहें कि आम तौरपर सवेरेकी अपेक्षा तीसरे पहर गरमी ज्यादा तेज होती है। इसका कारण सिर्फ यह है कि जो गरमी पैदा हो रही है उसके सबबसे वह गरमी सुरक्षित रक्खी और बढ़ायी जाती है जो पहलेसे पैदा हो चुकी है। पर जब हवा नहीं होती तो सबेरेकी अपेक्षा तीसरे पहर गरमीकी वृद्धि कम होती है। तेज हवा के द्वारा कदाचित् गरम For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० आकृति निदान ठंडी हवा दूसरे प्रदेशोंसे आकर हालतको बदल सकती है । इसलिये निरीक्षणं उस रोज करना चाहिये जिस रोज श्रांधी या तेज हवा न हो । . पृथ्वीके चक्कर से जो शक्ति पैदा होती है उसका प्रभाव भी हमपर पड़ता है । शान्ति देनेवाले भागकी अपेक्षा उत्तेजना देनेवाले भाग में सूर्य की किरणें अधिक प्रभाव डालती हैं और हमें काम करनेके लिये उत्तेजित करती हैं। हमें अपना जीवन भी इसीके अनुसार नियमित करना चाहिये । सूर्य्यकी किरणोंका असर हम लोगों पर भी कुछ समयतक जारी रहता है यहांतक कि तीसरे पहर में जाकर हम धीरे-धीरे अपनी शक्ति में कमीका अनुभव करते हैं । तीसरे पहर और सबेरे काम करने की जो जुदा जुड़ा शक्ति हममें रहती है उसका मुकाबिला अगर हम एक दूसरेके साथ करें तो हमें फौरन फ़र्क मालूम पड़ेगा । प्रातःकाल जो शक्ति और जो तेजी हममें रहती है उसका कारण केवल यही नहीं है कि हम रात में गहरी नींद सोते हैं। अगर गहरी नींद सोना ही इस बातका कारण होता तो दोपहर को भी गहरी नींद सोनेसे वही असर पैदा होता । पर असल में ऐसा नहीं होता। मेरी राय में निःसन्देह इसका कारण वही शक्ति है जो रोशनी और गरमी पैदा करती है। इसलिये कृत्रिम उपायोंसे प्रकृतिके अपरिवर्त्तनीय नियमोंके विरुद्धं युद्ध करना खेर-जनक भूल है । मैं एक बार फिर यह कह देना चाहता हूँ किं ऊपर जो For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज. १०१ कुछ लिखा गया है वह केवल मेरा ही विचार है । यह विचार इस बात को समझानेके लिये यहांपर लिखा गया है कि वर्ष और दिन के उत्तेजना और शांति देनेवाले जो दो भाग हैं वे किन कारणों से पैदा होते हैं। आशा है पाठकगण इसपर विचार करेंगे और खूब अच्छी तरह विचारनेके बाद तब मेरे मतका - खंडन या मंडन करेंगे । मस्तिष्क विद्याके साथ श्राकृति-निदानका सम्बन्ध मस्तिष्क - विद्याका सम्बन्ध भी मनुष्यके सिरकी प्रकृतिके साथ है, इसलिये मैं यहां कुछ शब्द इस बारे मैं भी लिखना चाहता हूं कि प्रकृति - निदान के साथ मस्तिष्क विद्याका क्या सम्बन्ध है । मस्तिष्क-विद्या पहले हीसे इस बातको मान लेती है कि दिमागका हर एक एक हिस्सा कोई न कोई खास मानसिक शक्तिका स्थान है । इसलिये अगर कोई हिस्सा उचित अधिक बढ़ा हो तो ऐसा ख्याल किया जाता है कि उस हिस्से में रहनेवाली : शक्ति उतनी ही ज्यादा बढ़ी हुई होगी । मैं यहां इस प्रश्नपर विचार नहीं करना चाहता कि मस्तिष्क विद्या का हर एक पहलू सत्य सिद्धान्तोंपर स्थित है या नहीं, पर - यह बात बिना किसी संशयके कही जा सकती है कि यदि मस्तिष्क For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ प्राकृति-निदान कोई खास शकल अख्तियार करे तो मानसिक शक्तियां भी एक दूसरा रूप धारण करेंगी। आम तौरपर मस्तिष्ककी बनावट ऐसी रहती है कि एक शक्ति दूसरी शक्तियोंसे बढ़ने नहीं पाती। इस प्राकृतिक नियमका भंग तभी होता है जब सिरमें विजातीय द्रव्य इकट्ठा हो जाता है। बच्चोंमें विजातीय द्रव्यके इकट्ठा होने का पहला नतीजा हमेशा यह होता है कि उनमें उत्तेजना पैदा हो जाती है । यह बात खास करके उन बच्चोंके बारेमें देखी जाती है जो उचित समयके पहले ही प्रौढ़ हो जाते हैं, पर बादको शरीरके अन्दर विजातीय द्रव्य सड़ जानेसे उनकी तेजी जाती रहती है। यहाँपर एक ध्यान देने लायक बात यह भी है कि बिन लोमों में सामनेकी ओर बादीपन रहता है उनमें दया, भक्ति, उदारता, आशा और विश्वास यह सब गुण खास तौरपर दिखलाई पड़ते हैं। मस्तिष्कविद्याके अनुसार इन सब गुणोंका स्थान दिमागका सामनेवाला हिस्सा कहा जाता है। जिन लोगों में केवल सामनेहीकी ओर बादीपन रहता है वे बड़े चतुर और समाजके बड़े प्रेमी होते हैं पर जिन लोगोंमें पीछेकी ओर बादीपन रहता है वे उन कामों के करनेसे हिचकते हैं जिनके सम्बन्धमें उन्हें दूसरे लोगोंके साथ बहुत अधिक मिलना-जुलना पड़ता है। अगर ऐसे काम करनेके लिये वे मजबूर किये जाते हैं तो उन्हें हताश होना पड़ता है। मस्तिष्क-विद्यावालोंकी समझमें यह बात आती ही नहीं For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादीपनका इलाज १०३ कि अक्सर मनुष्यकी मानसिक उन्नति एक ही तरह क्यों होती है । पर आकृति विज्ञान इसके बारेमें मस्तिष्क-विद्यावालोंको कुछ-न-कुछ बातें जरूर बतला सकता है । कुछ बातों में मस्तिष्ककी उन्नति और कुछ बातों में उसकी अवनतिका कारण किसी-नकिसी तरहका बादीपन जरूर है । इससे यह भी नतीजा निकलता है कि अगर बादीपन दूर कर दिया जाय तो मस्तिष्कको उन्नति में जो विषमता है वह भी दूर हो जायगी । मस्तिष्ककी उन्नतिमें विषमता होने अक्सर बड़े भयानक परिणाम पैदा हो जाते हैं । अक्सर मानसिक उन्नति में विषमता होनेसे क्रोध, निराश, अनुत्साह आत्मघातकी ओर प्रवृत्ति ये सब दोष पैदा हो जाते हैं। अक्सर यह खयाल किया जाता है कि यह सब दोष वर्तमान समय के प्रभाव से पैदा होते हैं। यह भी खेदके साथ कहा जाता है कि यह सब दोष बच्चों में भी दिखलाई पड़ते हैं। पर यह ख्याल गलत है। इन सब बातोंका कारण यह है कि चारों ओर जहां देखो वहां लोगों के शरीर में रोग अपना घर किये हुए है । अभाग्यसे लोगोंका ध्यान अभी काफी तौरपर इस ओर नहीं गया है जो लोगोंके नेता गिने जाते हैं और जिनकी बातें लोग ध्यानसे सुनते हैं । For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपसंहार हमारे पाठक कदाचित यह विचार करें कि इस प्रन्थमें जो बातें लिखो गयी हैं वे काफी तौरपर वैज्ञानिक नहीं है । पर मेरा उद्देश्य यह था कि मैं इस तरहसे असली बातें सीधे सादे लफजोंमें लिखू कि जिससे सब लोग मेरी बातोंको समझ जायें । इससे यह नहीं कहा जा सकता कि मेरे प्रन्थका विषय ही अवैज्ञानिक है। विज्ञान उन अनुभवोंके समूह के सिवाय और क्या है जिन्हें मनुष्योंने स्पष्ट सिद्धान्तोंके आधारपर नियमबद्ध कर दिया है ? पर हर एक मनुष्य अनुभव प्राप्त करनेके लिये स्वतंत्र है चाहे वह किसी खास सम्प्रदाय या विचारका हो अथवा न हो और चाहे वह किसी खास विषयकी शिक्षा पाये हो अथवा न पाये हो। हमारा यह ग्रन्थ तीस वर्षोंके अनुभवका परिणाम हैं । इस पुस्तकमें हम जिन नतीजोंपर पहुंचे हैं वे हजारों बार ठीक साबित हो चुके हैं । मैं यह नहीं कहता कि मैंने पूर्णता प्राप्त कर ली हैं पर कमसे कम मैं सच्चे अन्तःकरणके साथ यह कह सकता हूँ कि जो बातें मैंने इस ग्रन्थमें लिखी है खूब अच्छी तरहसे जांच ली गयी हैं और परीक्षामें पूरी उतर चुकी हैं। tama For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान १०४ चित्र १-स्वाभाविक आकृति देखिये कुल बदनकी बनावटकितनी सुन्दर और सुडौल है। अंगोंका उतार चढ़ाव बहुत हीसुघड़ और गोलाकार है जिससे शरीरकी शोभा बढ़ गयी है। सिर जैसा चाहिये वैसा ही है। सिर चिकना है पर उसमें वह चरबीदार मादा नहीं है जिससे सिर अक्सर गद्दीकी तरह दिखलायी पड़ता है । आंखें बड़ी और साफ, नाक सीधी, मुँह बन्द, चेहरा गोल अण्डाकार कानके ठीक नोचे एक लकीरसी है जिससे चेहरेको गोल बनावट साफ तौरपर मालूम पड़ती है। गरदन गोल और स्वाभाविक है। छाती मेहराबदार और सुडौल है। टांगें सीधो और पुढे दार हैं। जाँघोंको अलग करने वाली लकीर साफ दिखलायी पड़ती है। For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०६ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चित्र २ - कुल बदन बादीपनसे लदा हुआ है देखिये इस आदमीका बदन कैसा भद्दा, बेडौल और फूला हुआ है। सिर अत्यन्त मोटा, माथा झुका हुआ और चर्बी से इतना भरा हुआ है कि देखने में गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है। माथेका सिरा गंजा हो गया है। आँख आधी बन्द सी है। नाक सूजी हुई है । मुँह कुछ कुछ खुला है। चेहरेको गरदन से अलग करनेवाली लकीर गायब है। गरदन बहुत ही छोटी और बहुत ही मोटी है। गर दनके पीछे सिरको गरदनसे अलग करनेवाली लकीर गायब है । पेट हद से ज्यादा फूला है । उसमें पौष्टिक भोजन बहुत ज्यादा पहुँचाया गया है। टांगे बहुत ही छोटी और बहुत ही मोटी है। For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र ३-स्वाभाविक आकृति For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०८ www. kobatirth.org आकृति निदान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र ४ - स्वाभाविक आकृति te For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान १०६ चित्र ५-सामनेवाला बादीपन सिर जैसा चाहिये वैसा ही है । माथेमें झुर्रियां पड़ी हुई हैं। आंखें स्वाभाविक ढङ्गकी हैं। नाक भी स्वाभाविक ढङ्गकी है। गालों में सिकुड़न पड़ी हुई है। मुँह स्वाभाविक प्रकारका है। उम्र के लिहाजसे चेहरा स्वाभाविक प्रकारका है, पर कानके नीचे चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर बहुत पीछेकी भोर चली गयी है। गरदन सामनेकी ओर बढ़ी हुई है, पर गरदनके पीछे सिरसे गरदनको अलग करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकार की है। चित्र ६-स्वाभाविक आकृति For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चित्र ७ - सामनेवाला बादोपन सिरका कद जैसा चाहिये वैसा ही है । माथा सिरपर गंजा है, पर उसमें चर्बीदार गद्दी नहीं है। आंखें निस्तेज और आलस्य से भरी हुई हैं। नाक सीधी और सुडौल है। मुँहके नीचेवाला ओंठ सूजा हुआ है। ठुड्डी बढ़ी हुई है। चेहरे से गरदनको जुदा करनेवाली लकीर कान के बहुत पीछे चली गयी है। मुँहका नीचेवाला आधा भाग बहुत ही ज्यादा भरा हुआ है। गरदन सामनेकी ओर बहुत बढ़ी हुई है। गरदन के पीछे सिरको गरदनसे अलग करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकारकी है। चित्र - सामने और बगलवाला बादीपन सिरकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है। माथा चिकना और चर्बोदार गद्दीसे खाली है। आंखें स्वाभाविक प्रकारकी हैं। नाक स्वाभाविक प्रकार की है। भोंठ बहुत ज्यादा मोटे हैं। चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर गायब है। बाईं ओरकी अपेक्षा दाहिनी ओर चेहरा ज्यादा भरा और ज्यादा लम्बा है । गरदन सामनेकी ओर बहुत सूजी हुई है, बगलकी ओर भी कुछ कुछ सूजी हुई है। गरदन के पीछे सिरको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकारकी है। For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र - सामनेवाला बादीपन सिर और खास करके उसका ऊपरी हिस्सा बहुत हो बड़ा है जिससे सूचित होता है कि लड़का उचित समय के पहले हो प्रौढ़ हो गया है। माथे में चर्बोका अधिक हे जिससे माथा गद्दीदार हो गया है। आंखें कुछ कुछ संकुचित हो गयी हैं। नाक और मुँहको आकृति स्वाभाविक प्रकारको है। चेहरेको गरदन से जुदा करने वाली लकोर कान के बहुत पोछे चलो गयी है। गरदन स्वाभाविक प्रकारको है, लेकिन सिरपर तनाव मालूम पड़ता है, जिससे सिर पीछे की ओर बढ़ गया है। गरदन के पीछे की ओर सिरखे गरदनको जुदा करनेवालो लकोर स्वाभाविक प्रकारकी है । चित्र १० - सामने और बगलवाला बादीपन सिरका ऊपरी हिस्सा जरा ज्यादा बड़ा है । माथे के सिरे पर चरबीका अंश ज्यादा है इससे माथा गद्दीदार दिखलाई पड़ता है। आंख, नाक, मुँहकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है । गरदनकी सतह ऊँची नीची है और उसपर गांठें पड़ी हुई हैं जिनकी वजइसे चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर ठीक तरहपर प्रगट नहीं होती । सिर के पीछे वाला भाग बादीपनसे खाली है । १११ For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ आकृति-निदान चित्र ११-सामनेवाला बादीपन शरीरके अङ्गोंका कद स्वाभाविक प्रकारका है। सिर खास करके चोटीके पास टेढ़ा-मेढ़ा है। माथेमें चरवीका अंश अधिक For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति-निदान है जिससे वह गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है। आंखें भी हैं नाक और मुँहकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है। चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर कानके बहुत पीछे हैं । गरदन कड़ी मालूम पड़ती है । पेट बहुत ज्यादा बड़ा है । बदनपर जो काला काला दाग दिखलाई पड़ रहा है वह टीकेकी बदौलत फूट निकला है । I For Private And Personal Use Only ११३ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र १२-सामने और बगलवाला बादीपन सिर बहुत कुछ स्वाभाविक प्रकारका है। माथा, आँख, नाक और मुहकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है । चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर भी स्वाभाविक प्रकारकी हे गरदन बहुत बड़ी, सूजी और कड़ी है। बादीपन सिर्फ गरदन तक पहुँचा है जिससे घेघा पैदा हो गया है। सिर बादीपनसे करीब करीब बिलकुल हो खाली है। चित्र १३-सामने और बगल वाला बादीपन (जिस स्त्रीकी तस्वीर नं०१२ में दी गयी है उसीकी लड़की ) सिर कुछ ज्यादा बड़ा है। माथेमें चरबी होनेसे वह कुछ कुछ गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है। आंखें संकु. चित हैं। नाककी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है। मुह कुछ कुछ खुला है। चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकारकी है । गरदन बढ़ा हुई है और उसमें घेघा भी दिखलाई पड़ता है। बादीपन आम तौरपर जितना मांके बदन में है उतना ही इसके बदन में भी है, पर कुछ कुछ विजातीय द्रव्य इसके सिर में भी पहुंच गया है। For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र १४ - स्वाभाविक आकृति चित्र १५ - बगलवाला बादीपन ११५ सिरका कद न बहुत बड़ा न बहुत छोटा । माथा, आंख, नाक और मुँहको आकृति स्वाभाविक, चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकारकी, गरदन कड़ी और उसके दोनों ओर मोटी रस्सीकी तरह लम्बी गांठें पड़ो हुई हैं। For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११६ www. kobatirth.org आकृति निदान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र १६ – बगलवाला बादीपन दाहिनी ओर सिर न बहुत बड़ा न बहुत छोटा । पर वह बाईं ओर झुका हुआ है । ] माथा, आँख, नाक और मुंहकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है। चेहरा दाहिनी ओर अधिक लम्बा है । दाहिनी ओर चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर साफ तौरपर नहीं जाहिर होती । गरदन कड़ी और दाहिनी ओर बहुत बढ़ी हुई है। For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चित्र १७ - बगलवाला बादीपन बायीं ओर ११७ इस मनुष्यका बाईं ओर वाला हिस्सा दाहिनी ओरवाले हिस्से से ज्यादा चौड़ा है। सिर न बहुत ज्यादा बड़ा न बहुत ज्यादा छोटा । लेकिन वह बदन के बिलकुल बीचोबीचवाली लकीरकी सोध नहीं है। माथा, आँख, नाक और मुंहकी आकृति स्वाभाविक प्रकारकी है। चेहरेको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर भी स्वाभाविक प्रकारकी है। गरदन बायीं ओर ज्यादा बढ़ी हुई है। बायाँ कन्धा दाहिने कन्धे से ज्यादा चौड़ा है। बदनका बाय मोरवाला हिस्सा दाहिनी ओरवाले हिस्से से ज्यादा चौड़ा है। बायीं जाँघकी बदन के ऊपरवाले हिस्से से जुदा करनेवाली लकीर गायब है। पेट के बायाँ ओर देखिये साफ तौरपर मालूम पड़ रहा है कि विजातीय द्रव्य वहीं अपना घर किये हुए है। बायाँ ओरवाली टांग दाहिनी ओरवालो टांगसे ज्यादा मोटी है । For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ आकृति-निदान चित्र १८-बगल, सामनेवाला बादीपन सिर कुछ ज्यादा बड़ा। माथा चरबीदार जिससे वह गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है। आँखें संकुचित । नाककी आकृति स्वाभाविक। मुंहकी आकृति टेढ़ी-मेढ़ी। चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर साफ तौरपर नहीं जाहिर होती। ठुड्डी बढ़ी हुई। गरदन करीब-करीब गायब सी है। गरदनके दाहिनी ओर रस्सीकी तरह मोटी गाँठ और मस्सा दिखलाई पड़ रहा है। चित्र ११-सामने और बगलवाला बादीपन । सिर बहुत बड़ा। माथा चरबीदार जिससे गद्दीकी तरह दिखलाई पड़ता है। आँखें संकुचित। नाक कुछ ज्यादा बड़ी। मुँह खुला हुआ। चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर स्वाभाविक प्रकारकी। गर. दन सिरके समान मोटी। उसपर विजातीय द्रव्य जमा हो जानेसे मांगें पड़ गयी हैं। For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चित्र २० - पीछेवाला बादीपन सिर बहुत बड़ा और आगे ओर झुका हुआ। माथा चरबीदार जिससे गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है । आँखें कुछ-कुछ निकली हुई जो तस्वीर में नहीं दिखलाई पड़ सकतीं । नाककी आकृति स्वाभाविक प्रकार की है। मुँह और ठुड्डी कुछ कुछ बढ़ी हुई है । 'चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर गायब । गरदन करीब करीब सिर की तरह बड़ी । गरदन के पीछे सिरको गरदन से जुदा करनेवाली लकीर गायब । पीछे की ओर कन्धे गोल हो गये हैं । सिर कुछ ज्यादा बड़ा । माथा चरबादार जिससे गद्दीकी तरह मालूम पड़ता है माँखें निस्तेज, आलस्य से भरी हुई और संकुचित हैं। नाक सामने की ओर बहुत मोटी है । मुँह कुछ खुला हुआ है पर मों के सबब से दिखलाई नहीं पड़ता । चेहरेको गरदनसे जुदा करनेवाली लकीर गायब । सिर दाहिनी चित्र २१ - पीछे वाला बादीपन ११६ या बायीं ओर नहीं घुमाया जा सकता । पीछे की ओर कन्धे बिलकुल गोल हो गये हैं। For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२० www. kobatirth.org आकृति-निदान चित्र २२ - पीछेका बादीपन पीठका और बगलका बादीपन । सिर पीछे की ओर बड़ा माथा बहुत चौड़ा गद्दीदार। आँखें, नाक, मुँह और चेहरेकी रेखाएँ यथेष्ट । गरदन बहुत मोटी, मोड़ पर की रेखा नदारद बगल में प्रत्यक्ष वृद्धि । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र - २३ गरदन कुछ ज्यादा मोटी है, बग• लकी रेखा कुछ मिटसी गयी है शेष सब ठीक है। For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान १२१ चित्र-२४ ( एक पारसी मूर्तिका भग्नावशेष ) सिर पीछेकी ओर बड़ा। गरदन बहुत मोटी, पीछेकी रेखा गायब । शेष सब ठीक है। चित्र--२५ सिर पीछेको ओर बड़ा । माथा कुछ गद्दीदार । गरदन बहुत मोटी, पीछेकी रेखा नदारद । शेष ठीक। For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२२ चित्र - २७ www. kobatirth.org यह चित्र २६ का पृष्ठदेश है। सिर लगभग वर्गाकार है और गरदन एकदम मोटी और फूली हुई है। आकृति निदान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र - २६ सिर बहुत बड़ा एक तरफ झुका हुआ। माथा बहुत ऊँचा गद्दीदार । आँखें चञ्चल । नाक प्रायः ठीक । मुँह कुछ खुला । चेहरेपर विभाजक रेखाएँ नदारद । बायीं ओर गरदन बहुत मोटी । For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान १२६ चित्र २८-सब ओर बादीपन सिर बहुत बड़ा । माथा गदोदार । नाक बहुत पतली । मुंह कुछ खुला हुमा। चेहरे और गरदनके पीछे की विभाजक रेखाएँ गायब। गरदन सब ओरसे मोटो और बढ़ी हुई। चित्र २६-सब ओर बादीपन सिर बहुत बड़ा। माथा चमकोला । आँखें बैठी हुई। नाक कुछ ज्यादा चौड़ो, मुँह कुछ खुला। चेहरा वर्गाकार विभाजक रेखा नदारद । गर. दन बहुत मोटी, कड़ी, पीछेको ओरकी रेखा गायब । For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ चित्र - ३१ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान चित्र ३० - सब ओर बादीपन सिर बहुत बड़ा । आँखें चञ्चल । मुँह कुछ खुला । चेहरा बेडौल, ऊपरवालेसे नीचेवाला भाग ज्यादा चौड़ा । विभाजक रेखा अदृश्य । माथा प्रायः ठीक । चित्र ३० का पृष्ठदेश । कान के पीछे एक दम फूला हुआ और गरदन कड़ी और बढ़ी हुई । For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org चित्र ३२ आकृति-निदान 1- सब ओर बादीपन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिर ऊपर अत्यधिक चौड़ा | माथा और आँखें घुसी हुई । चेहरा पीला, गरदन कड़ी और बहुत मोटी। चित्र ३३ – सब ओर बादीपन सिर ऊपर बहुत बड़ा नीचे बहुत छोटा । माथा और आँखें बैठी हुई। चेहरा जर्द, बेडौल । गर्दन मोटी और कड़ी । १२५ For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ आकृति-निदान चित्र ३४-साधारण बादीपन आकृति बेडौल, कंधोंसे अत्यन्त अधिक ढाल । सिर कोनेदार पीछेका हिस्सा बहुत ऊँचा। गरदन बहुत मोटी पीछेकी रेखा नदारद । शेष ठीक है। चित्र ३५-पीछेका बादीपना गरदन पीछेकी ओर कुछ अधिक मोटी। पीठपर विजातीय द्रव्यका एक बड़ा थैला । इसीसे और सब अवयव ठीक है और सिर में मलभार नहीं है। For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र ३६ -- आगे और बगलका मलभार यह एक कंठमाला-रोगो बालकका चित्र है । सिर अत्यन्त बड़ा । माथा गद्दीदार । आँखें बैठी हुई । नाक बहुत मोटी। मुंह खुला। चेहरा चौकोर, रेखाहीन । गरदन बहुत नाटी और मोटी। चित्र ३७ - [ ३६ का ही प्रतिरूप ] सिर बहुत बड़ा । माथा गद्दीदार । नाक बहुत मोटी । मुँह खुला । चेहरा चौकोर रेखाहीन । गरदन बहुत नाटी और मोटी । १२७ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ आकृति-निदान चित्र ३८-प्रागे और बगलका बादीपन सिरके नीचे का भाग बहुत चौड़ा । नाकमें सूचन, जीर्ण । मुँह खुला। चेहरा चौकोर, रेखाहीन । गरदन में गुटके और कड़ी। शेष प्रायः ठीक। चित्र ३६-साधारण मलभार । क्षयरोग अांखें कुछ घुसी हुई, तेजहीन । नाक मोटो। मुँह खुला। For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान १२६ चित्र ४०-सब ओर बादीपन माथा गद्दीदार । आंखें तेजहीन । नाक मोटी । मुँह खुला। चेहरेपरकी विभाजक रेखाएं नदारद । गरदन कड़ी, बहुत लम्बी। सीना, बैठा हुआ। सिर ठीक है। For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र ४१-आगे और बगलका बादीपन m arpan क्षयरोगी। शकल दुबली। सिर आगेकी ओर झुका हुमा आंखें तेजहीन। नाक भीतरसे सूजी हुई। मुँह खुला। चेहरा बहुत बैठा हुआ। खाकी रंग, रेखाएँ मौजूद। गरदन बहुत ऊँची,कड़ी और गुटके पड़ी हुईं। सीना बैठा हुआ।शेष ठीक। For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चित्र ४३ - चित्र ४४ देखो www. kobatirth.org आकृति निदान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१ चित्र ४२ - आगे और बगलका बादीपना चित्र ४९ वाले रूपका सामनेवाला चित्र । गरदनकी असाधारण लम्बाई और चेहरेका वर्गाकार स्पष्ट है । For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३२ www. kobatirth.org आकृति-निदान चित्र ४४ - आगे और बगलका मलभार चित्र ४५ - स्वस्थ रूप ४३, ४४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र ४३-४४ की स्त्रीकी ढाई बरसतक चिकित्सा होने के पीछे उसका रूप ऐसा हुआ । मुँह खुला । चेहरा दुबला । विभाजक रेखाएँ मिटी हुई । गरदन में बड़ी-बड़ी गुट्टियां । शेष ठीक । For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र ४६-सब ओर मलभार सिर बहुत बड़ा। माथा गद्दीदार आंखें बैठी हुई। नाक बहुत मोटी। मुंह खुला। चेहरेपरको विभाजक रेखाएमिटी हुई । गरदन बहुत मोटी । कन्धे ढलवां । चित्र-४७ चित्र ४६ वाले पुरुषका रूप साढ़े तीन बरसकी चिकित्साके पीछे । For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ www. kobatirth.org आकृति निदान डील मोटा भद्दा । सिर बहुत बड़ा । माथा गद्दीदार । नाक मोटी । मुँह खुला । गरदन नाटी मोटी । रेखा नदारद । पेट बढ़ा हुआ । हाथ पाँव फूले हुए। इस बालकको निर्जीव दूध पिला कर पाला गया। पौने दो बरसका था पर अपने सहारे बैठ भी नहीं सकता था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र:४८ - उचित स्वास्थ्य इस बालक के सब अंग ठीक वृि अवस्था में है। पेट विशेषत: ठीक है । यह बच्चा मांके दूधपर ही ६ महीनेका था तभी चलने ल एक वर्षकी अवस्थाका चित्र है चित्र ४६ - सब ओर मलभार For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra _www. kobatirth.org Lat आकृति - निदान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्र ५०-५१ - सब ओर मलभार १३५ । | एक ही बालक के सामने और बगल के चित्र हैं। तीन बरसका है। रूप भारी, भद्दा । सिर बड़ा माथा फूला हुआ। आंखें बैठी सी । गरदन की रेखा नदारद, सिर मुश्किल से फिरता है । पेट फूला लटका हुआ। कड़े और भद्दे । इसकी परवरिश भी निर्जीव दूधसे हुई थी । हाथ पाँव मोटे For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान चित्र ५२-आगे और बगलका मलभार सिर ऊपरकी तरफ बहुत चौड़ा। माथा उभरा हुआ। आंखें कांजसी चमकती हुई / शेष ठीक। For Private And Personal Use Only