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। १० ] भागों में और खास करके गर्दन और सिरमें जाता है। यह द्रव्य सड़कर शरीरकी शकलको ही बदल देता है । इस परिवर्तनसे यह पता लग सकता है कि बदनके अन्दर कैसी गहरी बीमारी है । इसी बातपर आकृति निदानकी नीव डाली गयी है।
(३) प्राय: बिना वर या तापके कोई बीमारी नहीं होती और न बिना बीमारीके किसी प्रकारका बुखार ही पैदा होता है। जब विजातीय द्रव्य शरीरके अन्दर प्रवेश कर लेता है और वहां जाकर जमा हो जाता है तो शरीर और सड़े हुए विनातीय द्रव्यमें एक युद्ध सा प्रारम्भ होता है । शरीरके अन्दर अब यह कारवाई या रगड़ पैदा होती है तभी ताप भी पैदा होता है। हर एक मनुष्यको अनुभवसे मासूम है कि जब किसी चीजका छोटासे छोटा कण भी शरीरके किसी अङ्गमें गड़ जाता है तो फौरन कुल बदन पीडासे व्याकुल होता है। उसके साथ ही एक तरहका अर शुरू हो जाता है जो तबतक शान्त नहीं होता जबतक वह चीज न दूर की जाय। इसी तरह शरीरके अन्दर विजातीय द्रव्य जमा हो जानेसे ताप पैदा होता है। पहले तो ताप प्रायः हलका ही रहता है और शरीर के भीतर ही भीतर बना रहता है, पर ज्योंही बदन में एकाएकी कोई विकार हो जाता है या कोई ऋतु ही बदल जाती है या मनमें किसी प्रकारकी उत्तेजना होती है त्योंही शरीरके विजातीय द्रव्यमें जोश पैदा हो जाता है और ज्वर बड़े वेगसे फूट निकलता है।
रोगीकी पाकृति अर्थात् बाहरी सूरत देखकर शरीर के भीतर
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