________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४०
भाकृति-निदान फेफड़ेका रोग भयङ्कर रोगोंकी गिनतीमें है। रोगीको अपने फेफड़ेकी बीमारीका पता जब चलता है या डाक्टर जब इसकी परीक्षा करके इसका पता देते हैं, उसके बहुत पहले ही शरीरपर बादीपन या विषका अत्यधिक प्रभाव पड़ चुका रहता है। पर मुखाकृति-निदानकी सहायतासे रोग बहुत शीघ्र पहचाना जा सकता है और यदि समयसे उचित चिकित्सा की जाय तो और रोगोंकी तरह यह भी सहज हो दूर हो सकता है । पूर्व कथनानुसार इसमें फेफड़ेपर ही प्रभाव नहीं पड़ता। फेफड़ोंके रोगी होनेके पहले सारे बदन में विजातीयद्रव्य सड़ गलकर व्याप्त हो जाता है । गन्दी हवा भी तबतक फेफड़ेपर अपना असर नहीं डाल सकती अबतक सारे शरीर में विजातीय द्रव्य बिलकुल भर न गया हो। कभी कभी फेफड़ेके रोग किसी दूसरे रोगकी चिकित्सामें साधारणतः दी हुई औषधियोंके परिणामस्वरूप भी हो जाते हैं, विशेषकर उस ज्वरके बाद जो दवाइयोंसे दबा दिया जाता है। जबतक डाक्टरी ज्वरके मूल कारण न जानेगी तबतक चिकित्सा की यह भ्रममूलक प्रणाली चलती रहेगी और इसके दुष्परिणाम भी होते रहेंगे। इसका एक बहुत ही साधारण परिणाम फेफड़ोंका रोग है। . ऊपरके अङ्गसे विजातीय द्रव्य भाकर फेफड़ों में जमा होता है। फिर और कंधोंसे फेफड़ों में मल तभी आता है जब सिर और कंधे बाशीपनसे बहुत अधिक भर जाते हैं। कभी-कभी तो सिर बादीपनसे खाली रहता है और बादीपन
For Private And Personal Use Only