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- आकृति निदान से काम करता है और उसके सबबसे खूनमें एक तरहका उफान और ऊँचे दरजेका बुखार पैदा होता है। लेकिन अगर सांपका जहर उतनी ही मात्रा में पेट के अन्दर पहुँचाया जाय तो कोई बड़ा नुकसान न होगा क्योंकि पेट में जाकर उसका असर मारा जाता है और उसका कुछ हिस्सा आंतोंके द्वारा बाहर निकल जाता है। पागल कुत्ते के काटनेसे भी यही हालत होती है।
इस तरह जितने विजातीय द्रव्य सीधे खूनके अन्दर जाते हैं सभी ऐसी तेजीके साथ अपना काम नहीं करते और न उनका परिणाम ही सदा प्राणघातक होता है। पर विजातीय द्रव्यसे किसी न किसी सूरत में नुकसान जरूर पहुँचता है। प्रार किसी मौरेसे विजातीय द्रव्य घावोंके द्वारा खूनके अन्दर प्रवेश करे तो इससे बड़ी शोचनीय घटना हो सकती है। अगर इस तरहका विजातीय द्रव्य खूनके अन्दर जान बूझकर पहुँचाया बाय तो ऐसा करना एक बड़ा भारी जुर्म होगा। टीका लगानेकी प्रथा एक ऐसी भूलसे भरी हुई प्राण वातक प्रथा है कि उसके जोड़की मिसाल इतिहासमें मिलना मुश्किल है। गत शताब्दीका पाश्चात्य सभ्यताका बनाया हुआ यह अति खेदजनक स्मारक है। यदि मनुष्य-जाति सदाके लिए गोमार और कमजोर नहीं होना चाहती तो उसे अब उचित समय है कि टीका लगानेकी प्रथा बिलकुल बन्द कर देनी चाहिये । यह सच है कि जो भादमी कुछ भी स्वस्थ होगा उसका शरीर उस जहरका कुछ हिस्सा
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