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यथेष्ट परीक्षा संसारमें हो चुकी है। पर मजमून चुस्त नहीं है । उतनी बड़ी पुस्तक में अनेक विस्तीर्ण विषयोंका समावेश हो सकता है। स्वाभाविक चिकित्साका परिशीलनक्षेत्र भी तबसे बहुत बढ़ गया है। अब कूनेकी गिनती स्वाभाविक चिकित्साके ब्रह्माओं में की जाती है। अभीतक जितनी पुस्तकें देखने में
आयी हैं उनके सर्वोत्तम तत्वोंपर अवलम्बित एक स्वतंत्र ग्रंथ लिखना ही अधिक लाभप्रद जान पड़ा। जेल में इसी विचारसे "नया आरोग्य साधन" नामक प्रथका सूत्रपात हुआ। वह अब पूरा किया जा रहा है और शीघ्र ही पाठकोंको भेट किया जायगा । एवमस्तु ।
श्री काशी। गुरु १५. १६८०
रामदास गौड़
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