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स्वीकार किया। पहले फरमेका प्र ूफ संयोगवश उसी दिन आया जिस दिन मेरी जेलयात्राका आरम्भ था । पैकट मेरे घर बेखुला रह गया। चौदह मास यह काम अगत्या स्थगित रहा, क्योंकि कापीका एक अंश उसी पैकटमें था । किसोने उसे खोलकर देखा नहीं । उसका पता कूने के अनुरागियों को भी न लगा । बिना मेरे उसका छपवाना भी प्रकाशकोंको मंजूर न था। मेरे मुक्त होनेपर नये सिरे से इस काममें हाथ लगाया गया ।
शोकके साथ लिखना पड़ता है कि इस कार्यके यशोभाजन श्री चंडीप्रसादजी खेतान केवल इक्कोस वर्षकी अवस्था में इसी बीच दिवंगत हो गये । यह प्रतिभाशाली होनहार युवक कलकत्ता विश्व- परीक्षालय में बी० ए० में १८ वर्षकी व्यवस्था में प्रथम हुआ, विश्व- परीक्षालय के पूर्वगत प्रथमोंसे भी ऊंचे अंक पाये। गणित में विशेषता पायो । सन् १६२२ में बी० एल० में विश्वपरीक्षालय में खेतान जी द्वितीय हुए। सालभर पढ़नेसे स्वास्थ्य बिगड़ चला था । देहरादून गये थे, वहीं कूतेकी चिकित्सा अनुराग हुआ । बी० एल० हुए दो ही प्रास हुए थे कि १२ मप्रैलको मृत्यु हो गयी । अपूर्व मानसिक प्रतिभा और विलक्षण मस्तिष्कपर प्राणशक्ति निछावर हो गयी । स्वाभाविक जीवन के लिये यह भी एक शिक्षाप्रद उदाहरण है ।
आकृति निदान अपने ढंग की अनूठी चीज है। उसी तरह कूनेकी "नवीन चिकित्सा प्रणाली" वा "नया आरोग्य साधन" जलचिकित्साको अत्युत्तम विधियोंका प्रतिपादन है जिसकी
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