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आकृति निदान क्या है ?
कभी कभी तो ऐसा मल या विष बदनके बाहर निकलने के लिये आप ही आप बनावटी रास्ता निकाल लेता है। इस तरहके रास्ते फोड़े, फुंसी, घाव, नासूर भगन्दर, पैरोंका पसीजना, रक्तस्राव इत्यादि हैं । इन दशाओं में शरीर के अन्य भाँग प्रायः स्वस्थ जान पड़ते हैं क्योंकि तब बादीपनसे तकलीफ नहीं मिलती। इस तरहके रास्ते सिर्फ उसी वक्त आप ही आप बन जाते हैं जबकि बदन के अंदर बहुत अधिक विजातीय द्रव्य भरा रहता है । जैसे फोड़ा, फुंसी होनेपर डाक्टर लोग चीरा लगाते हैं वैसे ही मनुष्यका शरीर भी या तो आप ही भाप इन बीमारियोंके द्वारा चोग लगाता है या इस तरहके फोड़े और बाब वगैरह कोई तेज और उभाड़नेवाला कारण होनेपर ही पैदा हते हैं।
उस रास्तेको एक दम एकाएक बन्द कर देनेसे जो द्रव्य बहकर बाहर निकल जाना चाहिये वह बदन के किसी हिस्से में जमा हो जाता है । इसका असर फौरन देखने में आता है; क्योंकि जिस भाग में विजातीय द्रव्य जम जाता है वह या तो सूख जाता है या उसमें नासूर हो जाता है ।
मैं यहां कुछ आंखों देखे उदाहरण देना चाहता हूँ ।
(१) - एक आदमी को करीब दस बरससे खूनी बवासीर की बीमारी थी । अन्तमें बीमारी बढ़ जाने और बहुत ज्यादा खून गिरने लगनेपर उसने इलाज शुरू किया । पहले तो अपने डाक्टरकी बतलायो मामूली दवा इस्तेमाल की, पर कोई फल नहीं हुआ,
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