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आकृति-निदान क्या है। स्नान द्वारा त्वचाके छेद खोल दिये जायें, और इस तरहसे एकत्र विजातीय द्रव्यमें हलचल पैदा कर दी जाय तो सड़ा गला पदार्थ कुछ निकल जायगा और पीड़ा दूर हो जायगी । बाहर न निकलनेसे विजातीय द्रव्य धीरे-धीरे ठोस पड़ता जायगा जिससे गठिया हो जायगा और गठिया तभी पैदा होती है जब कि वातरोग अच्छा नहीं होता। गठियाकी बीमारी उस समय भी पैदा होती है जब कि बातरोग सूखी गरमी पहुँचाकर दूर कर दिया जाता है। सूखी गरमीके द्वारा वातरोग बिलकुल अच्छा नहीं हो जाता। उससे सिर्फ रोग दब जाता है। स्वाभाविक रूपसे वातरोगकी अपेक्षा गठियाको चिकित्सा अधिक कठिन है । वातरोगकी भाँति गठिया भी बदनके बाई ओर बादीपन रहनेसे होती है। हमें जब कभी किसी भादमीके बाई भोर बादीपन दिखलाई पड़े तो समझ लेना चाहिये कि उसे वातरोग और गठियाकी बीमारी जरूर पैदा होगी। पीछेकी ओर बादीपनके साथ-साथ गुर्दे की बीमारीकी दशाएँ अधिक भयङ्कर होती हैं क्योंकि उस दशामें गुर्दे अपना काम उचित रूपसे नहीं कर सकते। इसलिये बहुत सा ऐसा विजातीय द्रव्य जो अन्यान्य दशा में निकल जाता शरीरमें बना रहता है।
बाई ओरके बादीपनमें और विश्लेषतः सामनेकी ओरके बादीपनका सम्बन्ध रहनेपर साधारणतः हृदयपर भी बादीपन पहुँच जाता है।
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