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प्राकृति निदान रहता है वह जहांतक हो सके वहांतक बिलकुल शुद्धरूप में खींचकर निकाल लिया जाय। यह बड़ी गलती है, क्योंकि शरीर. को न केवल पदार्थोंकी ही आवश्यकता है बल्कि इस बातकी भी आवश्यकता है कि उसके शरीर के भिन्न-भिन्न अंग काम भी करें। शरीरके अंग तन्दुरुस्त और अच्छी हालतमें तभी बने रह सकते हैं जब वे काम भी करते रहें। पाचनेन्द्रियों को चाहिये कि वे आप ही भोजनसे सार खींचकर शरीर के लिए जरूरी खून, मांस, हड्डी, नसें, बाल वगैरह बनायें। पाचनेन्द्रियोंको चाहिये कि वे भोजनसे उन रसीको खींचें जो पाचन-शक्ति में सहायता देनेवाले हों। शरीरके लिये जरूरी चीजें स्वाभाविक भोजनमें काफी मिकदार में रहती हैं। सिर्फ जरूरत इस बात की है कि शरीरमें इतनी ताकत हो कि वह खाये हुए पदार्थो से सत्त खींच सके। शरीरमें गैस ( एक प्रकारको हवा) पैदा करने की भी शक्ति होनी चाहिये, जिसमें कि खाया हुआ भोजन शरीरके अन्दर उचित गातेसे नीचे की ओर जा सके। अगर शरीरके अन्दर काफी गैस न पैश हो तो पेटकी भांतों में रुकावटें पड़ जाती हैं और अंतड़ियां बिल्कुल बेकाम पड़ जाती हैं। ऐसी हालत में खाया हुआ भोजन प्रायः ऊपरकी ओर जाता है जिससे सिरमें दर्द होने लगता है। पर इस तरहकी गड़बड़ी तभी पैदा होती है जब शरीरमें बादीपन रहता है या जब अप्रा. कृतिक भोजन खाया जाता है।
मैं अब कुछ बातें बच्चोंके खिलाने पिलाने के बारेमें कहना
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