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आकृति निदान
रहता है । जब इस तरहका बादीपन स्त्रियों में रहता है तो वे या तो बांझ रहती हैं या गर्भावस्था में उन्हें तकलीफ पहुँचती है और प्रसव बड़ी कठिनता से होता है ! बादीपनकी कमी बेशी से स्तन से दूध निकलना या तो बिलकुल बन्द हो जाता है या थोड़ा थोड़ा जारी रहता है। पूर्व कथनुसार पीठकी ओरके बादीपन में सन्तानोस्पत्ति में बड़ी बाधा पड़ती है ।
यदि बदन के ऊपर या नीचेवाले हिस्सों में बादीपन बढ़ जाता है और उसे दूर करनेके लिये काफी पसीना नहीं निकलता तो प्रायः गठियाका रोग हो जाता है । विशेषकर तब जब कि बादीपन बायीं ओर रहता है और बदनसे सहज ही पसीना नहीं मिकलता। बांई ओर के बादीपनमें सदा गठियाको बीमारीका खटका रहता है । पर इसके लिये बादोपनका अधिक परिमाण में होना आवश्यक है क्योंकि जबतक सारे शरीर में विजातीय द्रव्य व्याप्त नहीं होगा तबतक वह सब पीड़ा देनेवाले चिह्न न प्रगट होंगे जो गठिया के नामसे पुकारे जाते हैं । साधारणतः गठिया तभी होती है जब शरीरकी गरमी में एकाएक कमी हो जाती है । बदनमें ठण्ढक आते ही एकाएक सिकुड़न पैदा हो जाती है, जिससे विजातीय द्रव्य जबरदस्ती पीछे की ओर दबा दिया जाता है । इस तरहसे विजातीय द्रव्य गांठोंके आसपास जमा होकर बड़ी तकलीफ पहुँचाता है । इस तरहका गांठका दर्द हमेशा गांठके भीतर नहीं बल्कि बाहर होता है । जिस स्थानपर दर्द हो उस स्थानपर यदि वान
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