Book Title: Aakruti Nidan
Author(s): Lune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
Publisher: Hindi Pustak Agency

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १६ ] विश्वासोंपर निर्भर है। उस तरीके में यह मान लिया गया है कि शरीर के भिन्न-भिन्न अंग बाकी दूसरे अंगोंसे स्वतन्त्र रहकर भी बीमारी के चंगुल में फँस सकते हैं; अर्थात् एक अंग यदि रोगी हो तो उसका असर दूसरे अङ्गपर नहीं पड़ सकता । यही गलती हैं जिसकी बदौलत अलग-अलग बीमरीके लिये अलग-अलग डाक्टर हो गये हैं । यह गलती अब इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि बहुत से डाक्टर भी इसके विरुद्ध आवाज उठाने लगे हैं । उदाहरण के लिये यदि किसी मनुष्यकी आंख, नाक और कान तीनों में एक साथ कोई बीमारी हो तो उसका इलाज तीन अलग-अलग डाक्टर करेंगे जो बीमारियों में अलग-अलग खास तौरपर होशियार होंगे। अगर वह रोगी ऐसी हालत में किसी चौथी बीमारीके पंजे में फँस जाय तो शायद उसे लाचार होकर एक चौथा डाक्टर बुलाना पड़ेगा । विचित्र बात तो यह है कि डाक्टर स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें अभी तक इस बात का पता नहीं लगा है कि वस्तुतः बीमारी क्या चीज है। हाल में डाक्टरोंके बीच आपस में इस बातपर बड़ा झगड़ा होता रहा है कि बीमारीके बहुतसे भयानक लक्षणोंके जैसे कि हैजा इत्यादिके कारण क्या है | लेकिन अगर कोई आदमी आगे आकर इन लक्षणोंका कारण बताये या अगर वह इनके लिये कोई नये तरीकेका इलाज लोगोंके सामने रखे तो उसकी बातें हँसी में उड़ा दी जाती हैं 1 अगर गलत तरीकेपर रोगकी परीक्षा होनेपर भी एलो For Private And Personal Use Only

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