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वाली हालतका पता लगाना ही प्राकृति-निदान है। अब यह स्पष्ट है कि शरीरको तन्दुरुस्ती या बीमारीका हाल जाननेके लिये हमें नीचे लिखा हुई केवल दो बातोंकी ओर ध्यान देना चाहिये
(१) शरीर में विजातीय द्रव्य कितना ज्यादा और किन-किन हिस्सों में जमा हुआ है ?
(२) शरीरमें मल जमा होनेसे कौन कौन लक्षण प्रकट हुए हैं और भविष्यमें कौन कौनसे लक्षण प्रगट होनेवाले हैं ?
आकृति-निदानका यह काम नहीं है कि शरीरके अन्दर और बाहर जितने छोटे छोटे विकार होते रहते हों उनका सूक्ष्म वर्णन किया जाय या बीमारीके भिन्न-भिन्न रूप निश्चित किये जाय या डाक्टरी विद्या या वैद्यकशास्त्र के अनुसार उन भिन्न-भिन्न स्वरूपोंके अलग-अलग नाम रखे जायें। प्राकृति-निदानका एकमात्र उद्देश्य यह है कि सारे शरीरकी हालत जांची नाय और मान लिया जाय कि शरीर स्वस्थ है या रोगो। अगर रोगी हो तो यह निश्चय किया जाय कि रोग कहाँतक बढ़ गया है या बढ़नेवाला है
और रोगनिवारणको कहाँतक सम्भावना है, रोग साध्य है, दुःसाध्य है या असाध्य ।
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