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ग्रन्थकारकी भूमिका हमारी नवीन * चिकित्सा-प्रणालीके अनुसार रोगकी पहचान इसी प्राकृति-निदानसे हो सकती है । इसलिये जो लोग "आकृति-निदान"का अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें पहले नवीन चिकित्सा प्रणालीके सिद्धान्त पूरी तरह समझ लेना चाहिये। यहां नवीन चिकित्सा-प्रणालोके मुख्य सिद्धान्तोंका संक्षेप दिग्दर्शन कराया जाता है कि पाठकोंको इस पुस्तकके परिशीलनमें विशेष सुभीता हो।
(१) यद्यपि बीमारी भिन्न-भिन्न रूपमें कम या ज्यादा जोरसे प्रगट होती है तथापि कारण केवल एक ही है। किसी आदमीके बदनके किसी खास हिस्से में बीमारीका जाहिर होना और उसका कोई विशेष रूप धारण करना इस बातपर निर्भर है कि उसके बाप-दादे कैसे थे, उसकी उम्र कितनी है, वह क्या काम करता है, क्या खाता है और कैसे जलवायुमें रहता है, इत्यादि।
(२) बीमारी तभी पैदा होती है जब शरीरके भीतर विजातीय द्रव्य रहता है। इस तरहका द्रव्य पहले-पहल पेटके भीतर-वाले छिद्रों के पास जमा होता है। वहींसे वह शरीरके भिन्न-भिन्न
लुई व कृत "नवीन चिकित्सा शास्त्र ।"
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