Book Title: Praudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग-1) डॉ. कमलचन्द सोगाणी का ज्जायो जीयो बन विचारले बीमहावीरडी 1APATHADOTRA प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग-1) डॉ. कमलचन्द सोगाणी (सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र) सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर माणुज्जयो जोया तारिखार प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जनविद्या संस्थान ..... दिगम्बर जैन प्रतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, श्रीमहावीरजी-322220 (राजस्थान) 0 प्राप्ति-स्थान 1 जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी 2. अपभ्रंश साहित्य अकादमी दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-302004 । प्रथम बार, 1999, 700 D मूल्य पुस्तकालय संस्करण 120/विद्यार्थी संस्करण 100/ 0 मुद्रक मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस 6-7, गीता भवन, आदर्श नगर जयपुर-302004 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पाठ संख्या विषय पृष्ठ संख्या प्रारम्भिक प्रकाशकीय 1-77 11 39 सूत्र विवेचन संज्ञा-प्रकरण सर्वनाम-प्रकरण संख्या-प्रकरण अन्य सूत्र शौरसेनी प्राकृत सम्बन्धी सूत्र 65 67 76 78-104 79 84 संज्ञा-शब्दरूप पुल्लिग शब्द-देव, हरि गामणी, साहु, सयंभू नपुंसकलिंग शब्द--कमल, वारि, महु स्त्रीलिंग शब्द-कहा, मात्रा, माअरा, मइ, ' लच्छी, घेणु, बहू अतिरिक्त रूप-पिउ, पिपर, कत्त, कत्तार, अप्प/प्रत, अप्पाण, अत्ताण, राय/राम, रायाण 87 87 94 105-143 105 116 सर्वनाम-शब्दरूप पुल्लिग शब्द-सव्व, त, ण ज, क, एत, एअ, इम, अमु, अन्न नपुंसकलिंग शब्द ... सव्व, त, ण, ज, क, एत, एअ, इम, अमु. अन्न स्त्रीलिंग शब्द - सम्वा, ता, णा ती, जा, जी, का, की, एमा, एइ, इमा, इमी, अमु, अन्ना 126 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ संख्या 4. परिशिष्ट- 1 परिशिष्ट-2 विषय तीनों लिंगों में - तुम्ह तीनों लिंगों में - प्रम्ह सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि नियम सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण परिशिष्ट - 3 पाठ-4 के अभ्यास के वाक्यों का अनुवाद संख्यावाचक शब्दरूप संख्याएँ (1 से 100 ) क्रमवाचक संख्याशब्द अभ्यास (संख्यावाचक शब्द ) शुद्धि पत्र सहायक पुस्तकें एवं कोश पृष्ठ संख्या 140 142 144-173 145 163 171 i V Lvii Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरम्भिक 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' प्राकृत अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है । यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनमाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजनों के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया। माषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है । उसका जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई थी। अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से अपभ्रंश व प्राकृत का अध्यापन किया जाता है। 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' के प्रकाशन से प्राकृत की विशिष्ट जानकारी प्राप्त की जा सकेगी । इससे पूर्व डॉ. कमलचन्द सोगाणी द्वारा लिखित प्राकृत रचना सौरम, प्राकृत अभ्यास सौरभ पुस्तकें प्रकाशित हैं। ये सभी पुस्तकें प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन को गति देने में सहायक सिद्ध होंगी, ऐसी हमें आशा है। हमें लिखते हुए गर्व है कि प्रबन्धकारिणी कमेटी के सहयोग से डॉ. सोगाणी अपभ्रंश-प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन को देश में एक सुदृढ प्राधार प्रदान करने की दिशा में सतत प्रयत्नशील हैं। प्रस्तुत पुस्तक 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' के प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं । नरेशकुमार सेठी प्रकाशचन्द्र जैन मन्त्री अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (i) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय प्राकृत भाषा भारतीय आर्य परिवार की एक सुसमृद्ध लोक भाषा रही है । वैदिक काल से ही यह लोकभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। इसका प्रकाशित, अप्रकाशित विपुल साहित्य इसकी गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है। भारतीय लोक-जीवन के बहुआयामी पक्ष दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएं प्राकृत साहित्य में निहित हैं। महावीर के युग में और उसके बाद विभिन्न प्राकृतों का विकास हुआ, जिन में से तीन प्रकार की प्राकृतों के नाम साहित्य क्षेत्र में गौरव के साथ लिये जाते हैं, वे हैं - अर्धमागधी प्राकृत, शौरसेनी प्राकृत और महाराष्ट्री प्राकृत । जैन अागम साहित्य एवं काव्य-साहित्य इन्हीं तीन प्राकृतों में गुम्फित है । महावीर की दार्शनिकआध्यात्मिक परम्परा अर्धमागधी एवं शौरसेनी प्राकृत में रचित है और काव्यों की भाषा सामान्यतः महाराष्ट्री प्राकृत कही गई है। इन तीनों प्राकृतों का भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है । यह प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश भाषा के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्राकृत भाषा को सीखना-समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसी बात को ध्यान में रखकर 'प्राकृत रचना सौर म' व 'प्राकृत अभ्याम सौरभ' नामक पुस्तकों की रचना की गई थी। उसी क्रम में 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' प्रकाशित है। ___ 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' में संस्कृत भाषा में रचित प्राकृत व्याकरण के संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है साथ ही संख्यावाची शब्द व उसके विभिन्न प्रकारों को समझाने का प्रयास किया गया है । सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रो को समझ सकें। सूत्रों को पांच सोपानों में समझाया गया है --1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियां लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दाथं लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5 सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं । परिशिष्ट मे सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम एवं सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण भी दिया गया है जिससे विद्यार्थी सुगमता से समझ सके । (ii) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे पूर्ण विश्वास है कि 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ, भाग-1' के प्रकाशन से प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन के कार्य को गति मिल सकेगी। मुझे सूचित करते हुए हर्ष है कि 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' शीघ्र प्रकाश्य है एव 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-2' लेखन प्रक्रिया में है। इसके माध्यम से प्राकृत व्याकरण के क्रिया-सूत्र, सन्धि, समास आदि समझाये जा सकेगे। पुस्तक के प्रकाशन की व्यवस्था के लिए जनविद्या संस्थान समिति का प्राभारी हूँ। अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं। कार्तिक कृष्ण अमावस्या, वीर निर्वाण दिवस वीर निर्वाण सं. 2526 7.11.99 डॉ. कमलचन्द सोगारणी संयोजक जनविद्या संस्थान समिति (iii) Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ 1 संज्ञा, सर्वनाम, संख्यावाची शब्द - सूत्र - विवेचन भूमिका हेमचन्द्राचार्य ने प्राकृत की व्याकरण लिखी । उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की। प्राकृत व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृत - व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये । किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की प्रावश्यकता है । संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं । हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी प्राकृत - व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है । अगले पृष्ठों में हम प्राकृत - व्याकरण के संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्य ज्ञान की श्रावश्यकता है* । साथ ही संस्कृत-प्रत्ययसंकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न विभक्तियों में रूप समझे जाने चाहिए । प्राकृत में केवल दो ही वचन होते हैं – एकवचन तथा बहुवचन | अतः दो ही वचनों के संस्कृत - प्रत्यय - संकेतों को समझना आवश्यक है । ये प्रत्यय - संकेत निम्न प्रकार हैं विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी एकवचन के प्रत्यय सि प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ ] अम् टा 6, ल षष्ठी सप्तमी * सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट देखें । ङसि ङस् ङि बहुवचन के प्रत्यय जस् शस् मिस् भ्यस् भ्यस् ग्राम् सुप् [ 1 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इनमें से (1) सि, सि, और डि के रूप हरि की तरह चलेंगे । जैसे 'सि' का सप्तमी एकवचन में 'सौ' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में "सिना' रूप बनेगा। इसी प्रकार दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिए । (2) प्रम, जस्, शस्, भिस्, भ्यस्, प्राम् और सुप् प्रादि के रूप हलन्त शब्द भूभृत् की तरह चलेंगे। जैसे भिस् का सप्तमी एकवचन में रूप बनेगा 'भिसि', 'मम्' का प्रथमा एकवचन में रूप बनेगा 'प्रम्', 'सि' का षष्ठी एकवचन में रूप बनेगा 'ङसेः' । इसी प्रकार दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिए। (3) 'टा' के रूप 'गोपा' की तरह चलेगे। जैसे 'टा' का सप्तमी एकवचन में 'टि' रूप बनेगा, षष्ठी एकवचन में 'ट:' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में 'टा' बनेगा । इसी प्रकार दूसरे रूप बना लेने चाहिए । (4) उत्→उ, प्रोत्→ो , एत् →ए, इत्→इ, मात्→मा आदि हलन्त शब्दों के रूप भी 'भूभृत्' की तरह चलेंगे। 'लुक्' शब्द के रूप भी इसी प्रकार चलेंगे। (5) इनके अतिरिक्त कुछ दूसरे शब्द सूत्रों में प्रयुक्त हुए हैं। उन शब्दों के रूप कहीं 'राम' की तरह, कहीं 'स्त्री' की तरह, कहीं 'गुरु' की तरह, कहीं 'मातृ'? की तरह, कहीं 'राजन्'8 की तरह, कहीं 'पात्मन' की तरह, कहीं 'नामन्'10 की तरह, कहीं 'पितृll की तरह, कहीं 'कर्तृ'12 की तरह, कहीं 'पुस्'13 को तरह चलेंगे। इसी तरह शेष शब्दों के रूपों को संस्कृत व्याकरण से समझ लेना चाहिए । सूत्रों को पांच सोपानों में समझाया गया है - (1) सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धिविच्छेद किया गया है, (2) सूत्रों में प्रयुक्त पदों की बिभक्तियां लिखी गई हैं, (3) सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, (4) सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा (5) सूत्रों के प्रयोग लिखे गए हैं । अगले पृष्ठों में संज्ञा, सर्वनाम एवं संख्यावाची शब्दों से सम्बन्धित सूत्र दिए गए हैं। इन सूत्रों से निम्नलिखित संज्ञा शब्द, सव्व आदि सर्वनाम शब्द, एक्क आदि संख्यावाची शब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे--- 2 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) पुल्लिग शब्द -- देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू । (ख) नपुंसकलिंग शब्द-कमल, वारि, महु । (2) (3) स्त्रीलिंग शब्द-कहा, मइ, लच्छी, घेणु, बहू । इन रूपों के अतिरिक्त कुछ दूसरे शब्द-रूपों को भी सूत्रों में समझाया गया है । सूत्रों को समझाते समय कुछ गणितीय चिह्नों का प्रयोग किया गया है जिन्हें संकेत-सूची में समझाया गया है । 1. हरि शब्द एकवचन प्रथमा हरिः द्वितीया तृतीया हरिणा चतुर्थी हरये पंचमी षष्ठी सप्तमी हरी संबोधन हे हरे द्विवचन हरी हरी हरिभ्याम् हरिभ्याम् हरिभ्याम् hoc बहुवचन हरयः हरीन् हरिभिः हरिभ्यः हरिभ्यः हरीणाम् हरिषु हे हरयः no होः हयों: हे हरी द्विवचन भूभृतो भूभृतो 2. भूभृत शब्द एकवचन प्रथमा भूभृत् द्वितीया भूभृतम् तृतीया भूभृता चतुर्थी भूभृते पंचमी भूभृतः षष्ठी भूभृतः सप्तमी भूभृति संबोधन हे भूभृत् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् बहुवचन भूभृतः भूभृतः भूभृद्भिः भूमृद्भ्यः भूमृद्भ्यः भूभृताम् भूमृत्सु हे भूभृतः भूभृतोः भूभृतो. हे भूमृती प्रौढ प्राकृत रचना सौरच ] [ 3 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. गोपा शब्द एकवचन द्विवचन वहुबचन गोपाः गोपौ गोपाः गोपाम् गौपौ गोपः प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी गोपा गोपाभ्याम् गोपाभिः गोपे गोपाभ्याम् गोपः गोपाभ्याम् गोपाभ्यः गोपाभ्यः गोपाम् षष्ठी गोपः गोपोः सप्तमी गोपि गोपासु गोपोः हे गोपी संबोधन हे गोपाः हे गोपाः 4. राम शब्द एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा रामः रामो रामा: रामम् रामो रामान् द्वितीया तृतीया रामेण रामाभ्याम् रामैः चतुर्थी रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः रामात रामेभ्यः पंचमी षष्ठी रामस्य रामाभ्याम् रामयोः रामयोः हे रामो सप्तमी संबोधन रामे हे राम रामाणाम् रामेषु हे रामाः 4 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. स्त्री शब्द एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा स्त्री स्त्रियो स्त्रियः द्वितीया स्त्रियो स्त्रियः, स्त्रीः तृतीया चतुर्थी स्त्रियम्, स्त्रीम् स्त्रिया स्त्रिय स्त्रीमिः स्त्रीभ्यः स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रियोः पंचमी स्त्रीभ्यः स्त्रियाः स्त्रियाः षष्ठी सप्तमी स्त्रियाम् स्त्रियोः हे स्त्रियो स्त्रीणाम् स्त्रीषु हे स्त्रियः संबोधन हे स्त्रि 6. गुरु शब्द एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा गुरू गुरुवः गुरु गुरून् गुरुभिः गुरुभ्यः गुरुः द्वितीया गुरुम् तृतीया गुरुणा चतुर्थी गुरवे पंचमी षष्ठी गुरोः सप्तमी गुरौ संबोधन हे गुरो गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुर्वोः गुरोः गुरुभ्यः गुरुणाम् गुर्वोः गुरुः हे गुरवः हे गुरू प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 5 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. मातृ (माता) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा माता मातरौ मातरः द्वितीया मातरम् मातरौ मातृ मात्रा मातृभ्याम् मातृभिः तृतीया चतुर्थी पंचमी मात्रे मातृभ्यः मातृभ्याम् मातृभ्याम् मात्रोः मातुः मातुः मातृभ्यः षष्ठी मातृणाम् सप्तमी मातरि मात्रो मातृषु संबोधन हे मातः हे मातरी हे मातरः 8. राजन् (राजा) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा राजा राजानौ राजानः द्वितीया राजानम् राजानी राज्ञः राजश्याम् राजभिः तृतीया चतुर्थी पंचमी राज्ञा য राजश्याम् राजभ्यः राज्ञः राजभ्याम् राजभ्यः राज्ञः राज्ञोः राज्ञाम् षष्ठो सप्तमी संबोधन राज्ञि, राजनि हे राजन् राज्ञोः हे राजानी राजसु हे राजानः 6 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. प्रात्मन् (प्रात्मा) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा प्रात्मा प्रात्मानी मात्मानः द्वितीया प्रात्मानम् मात्मानौ मात्मनः तृतीया मात्मना प्रात्मभ्याम् मात्मभिः चतुर्थी आत्मने प्रात्मभ्याम् प्रात्मभ्यः पंचमी प्रात्मनः प्रात्मभ्याम् प्रात्मभ्यः षष्ठी मात्मनः मात्मनोः मात्मनाम् मात्मसु सप्तमी संबोधन आत्मनि हे प्रात्मन् प्रात्मनोः हे पात्मनौ हे प्रात्मानः 10. नामन् (नाम) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा नाम नामानि नाम्नी, नामनी नाम्नी, नामनी नामश्याम् नामानि नामभिः नामभ्याम् नामग्यः द्वितीया नाम तृतीया नाम्ना चतुर्थी नाम्ने पंचमी षष्ठी नाम्नः सप्तमी नाम्नि, नामनि संबोधन हे नाम, नामन् नाम्नः नामभ्याम् नामभ्यः नाम्नोः नाम्नाम् नाम्नोः हे नाम्नी, नामनी नामसु हे नामानि प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 7 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. पितृ (पिता) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा पितरः पितरो पितरो पितृन् तृतीया पिता द्वितीया पितरम् पित्रा चतुर्थी पित्रे पंचमी पितुः षष्ठी पितुः सप्तमी पितरि संबोधन हे पितः पितृभिः पितृभ्यः पितृश्यः पितृभ्याम् पितृग्याम् पितृभ्याम् पित्रोः पित्रोः हे पितरी पितृणाम् पितृषु हे पितरः 12. कर्तृ (करनेवाला) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा कर्ता कर्तारी कारः द्वितीया कर्तारम् कर्तारी कर्तृन् क; तृतीया चतुर्थी पंचमी करें कतु: कर्तृभिः कर्तृभ्यः कर्तृभ्याम् कर्तृभ्याम् कर्तृभ्याम् कों कों हे कर्तारी कर्तृभ्यः कर्तृणाम् षष्ठी सप्तमी संबोधन कर्तुः कतरि हे कर्तः कर्तृषु हे कर्तारः 8 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13. पुंस् (पुरुष) एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा पुमान् पुमांसो पुमांसः द्वितीया पुमांसम् पुमांसो पुंसः पुंसा पुंभ्याम् तृतीया चतुर्थी पंचमी पुंग्याम् पुंग्यः पुंच्याम् पुंग्यः षष्ठी पुंसोः पुंसाम् सप्तमी पुंसोः पुंसु सम्बोधन हे पुमन् हे पुमांसौ हे पुमांसः 14. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी, डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन; वाराणसी। प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 9 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत सूची अ-अव्यय •) -इस प्रकार के कोष्ठक में मूलशब्द रखा गया है । • () + ()+ ().... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न शब्दों में संधि का द्योतक है। यहां अन्दर के शब्दों में मूलशब्द ही रखे गए हैं । •[()- ()- ( ) .... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' समास का द्योतक है । •जहां कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/2, 2/1. प्रादि) ही लिखी हैं वहां उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है । 1/1-प्रथमा/एकवचन 1/2 -प्रथमा/द्विवचन 1/3-प्रथमा/बहुवचन 2/1-द्वितीया/एकवचन 2/2-द्वितीया/द्विवचन 2/3-द्वितीया/बहुवचन 3/1-तृतीया/एकवचन 3/2 - तृतीया/द्विवचन 3/3-तृतीया/बहुवचन 4/1-चतुर्थी/एकवचन 4/2- चतुर्थी/द्विवचन 4/3 -- चतुर्थी/बहुवचन 5/1- पंचमी/एकवचन 5/2-पंचमी/द्विवचन 5/3-पंचमी/बहुवचन 6/1-षष्ठी/एकवचन 6/2 - षष्ठी/द्विवचन 6/2-~षष्ठी/बहुवचन 7/1-- सप्तमी/एकवचन 7/2- सप्तमी/द्विवचन 7/3- सप्तमी बहुवचन 8/1-संबोधन/एकवचन 8/2- संबोधन द्विवचन 8/3-संबोधन/बहुवचन 16 1 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा-सर्वनाम-संख्यावाची शब्द-सूत्र 1. अतः सेोः 3/2 प्रतः से?: [ (सेः)+ (डो:)] प्रतः (प्रत्) 5/1 से: (सि) 6/1 डोः (डो) 1/1 (प्राकृत में) प्रत् से परे सि के स्थान पर डो→प्रो (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे 'सि' (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'प्रो' होता है। देव (पु)- (देव+सि)=(देव+ो)= देवो (प्रथमा एकवचन) वैतत्तदः 3/3 वैतत्तदः [ (वा) + (एतत्) + (तद:)] वा=विकल्प से [(एतत्) - (तदःततः) 5/1] एतत् और तद्→तत् से परे (सि के स्थान पर) विकल्प से ('प्रो' होता है ।) एतत्→एस और तत्-स से परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डो→यो की प्राप्ति होती है । एत (पु.) - (एतत् →एस) (एस+सि)=(एस+०, प्रो)=एस, एसो (प्रथमा एकवचन) त (पु.)-(तत्→स) (स+सि)=(स+०, ओ)=स, सो (प्रथमा एकवचन) 3. जस्-शसोलुंक 3/4 जस्-शसोलुंक [ (शसोः)+(लुक्) ] [ (जस्) - (शस्) 6/2 ] लुक् (लुक्) 1/1 [प्राकृत में] जस् और शस् के स्थान पर लोप (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) तथा शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर लोप→० होता है । देव (पु.)- (देव+जस्)- (देव+०) __(देव+शस्)-(देव+०) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 11 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. प्रमोऽस्य 3/5 अमोऽस्य [ (अमः)+ (अस्य)] प्रमः (अम्) 6/1 अस्य (अ) 6/1 (प्राकृत में) अम् के प्र का (लोप होता है) (और 'म्' शेष रहता है)। मोनुस्वार 1/23 [ (मः)+ (अनुस्वारः) ] मः (म्) 6/1 अनुस्वारः (अनुस्वार) 1/1 'म्' का अनुस्वार (-) (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के 'प्र' का लोप हो जाता है और बचे हुए 'म्' का अनुस्वार (-) हो जाता है । देव (पु.)- (देव+अम्)=(देव+म्)=(देव+-)=देवं (द्वितीया एकवचन) 5. टा-सामोरणः 3/6 टा-सामोर्णः [ (प्रामोः)+ (गः)] [ (टा)- (प्राम्) 6/2] णः (ण) 1/1 (प्राकृत में) टा और ग्राम के स्थान पर रण (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) और पाम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ण होता है । देव (पु.)-(देव+टा)=(देव+ण) (देव+आम्) = (देव+ ण) भिसो हि हि हि 3/7 भिसो हि हिँ हि [ (मिसः)+ (हि)-(हिं)-(हिं) ] भिसः (भिस्) 6/1 हि (हि) 1/1 हिं (हिँ) 1/1 हिं (हिं) 1/1 (प्राकृत में) भिस् के स्थान पर हि, हिं और हिं (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर हि, हिं और हिं होते हैं। देव (पु.)-(देव+भिस्)=(देव+हि, हि, हिं) 12 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. ङसेस् तो- दो-दु-हि- हिन्तो-लुक : 3/8 ङसेस् तो-दो -दु-हि- हिन्तो - लुक. [ (ङसे ) + (तो) - (दो) - (दु - (हि) - ( हिन्तो ) - ( लुक :) ) ङसे: (ङसि) 6/1 [ (तो) - (दो) - (दु) - (हि) - ( हिन्तो) - ( लुक् ) 1 / 3] ( प्राकृत में ) ङसि के स्थान पर तो, दोश्रो, दुउ, हि, हिन्तो और लोप (होते हैं) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर तो, श्रो, उ, हि, हिन्तो और ० होते हैं । देव (पु) -- (देव + ङसि ) = (देव + तो, प्रो, उ, हि, हिन्तो और ० ) 8. भ्यसस् तो दो दु हि हिन्तो सुन्तो 3/9 भ्यस् तो दो दुहि हिन्तो सुन्तो [ ( भ्यस :) + (तो) ] दो दुहि हिन्तो सुन्तो F: (a) 6/1 at (at) 1/1 at (a) 1/1 g (g) 1/1 fg (fg) 1/1 हिन्तो ( हिन्तो) 1 / 1 सुन्तो ( सुन्तो) 1 / 1 9. ( प्राकृत में ) भ्यस् के स्थान पर तो, दोश्रो, दुउ, हि, हिन्तो और सुन्तो (होते हैं) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर तो, श्रो, उ, हि, हिन्तों और सुन्तो होते हैं । देव (पु) - (देव + भ्यस् ) = (देव + त्तो, प्रो, उ, हि, हिन्तो, सुन्तो) ङसः स्सः 3/10 इस: ( ङस् ) 6/1 स्स: ( स ) 1 / 1 ( प्राकृत में ) ङस् के स्थान पर स्स (होता है) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर स होता है । देव (पु.) - (देव + ङस् ) = (देव + स्स) देवस्स (षष्ठी एकवचन ) प्रौढ प्राकृत रचना मौरम ] [ 13 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. डे म्मि : 3/11 डे (डे) 1/1 म्मि (म्मि) 1/1 : (ङि) 6/1 (प्राकृत में) डि के स्थान पर डे→ए और म्मि (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में कि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ए और म्मि होते हैं। देव (पु.)-(देव+ङि)=(देव+ए, म्मि)=देवे, देवम्मि (सप्तमी एकवचन) 11. जस्-शस्-सि-तो-दो-द्वामि दीर्घः 3/12 जस्-शस्-ङसि-तो-दो-[(दु)+ (मामि)] दीर्घः [(जस्)-(शस्)-(ङसि)-(तो)-(बो)-(दु)-(प्राम्) 7/1' दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) जस्, शस्, ङसि और (पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों में से) तो, दो→ो , दु→उ तथा प्राम् परे होने पर दीर्घ (हो जाता है) ।। अकारान्त पुल्लि ग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय), शस (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), इसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और (पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों में से) त्तो, मो, उ तथा प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर दीर्घ हो जाता है। देव (पु.)-(देव+जस्), जस्=० 3/4 (देव+जस्)=(देव+.) = देवा (प्रथमा बहुवचन) (देव-+शस्), शस्= 3/4 (देव+शस्)=(देव+०)=देवा (द्वितीया बहुवचन) (देव+सि), इसि- तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, 3/8 (देव-+-सि)= (देव+त्तो)=देवात्तो-देवत्तो (पंचमी एकवचन) दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाता है। (ह्रस्वः संयोगे 1/84)। (देव + ङसि)= (देव-प्रो) = देवानो (पंचमी एकवचन) इसी प्रकार देवाउ, देवाहि, देवाहिन्तो, देवा (पंचमी एकवचन) 14 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (देव+तो, दो, दु)=[ (देव+प्रांशिक भ्यस्) ] अांशिक भ्यस्=त्तो, दो-प्रो, दु→3 3/12 (देव + अांशिक भ्यस्)=(देव+तो) =देवात्तो-देवत्तो (1/84) (पंचमी बहुवचन) इसी प्रकार देवानो, देवाउ (पंचमी बहुवचन) (देव+आम्), प्राम्=ण 3/6 (देव+पाम्)=(देव+ ण) (देवा+ण)=देवाण (षष्ठी बहुवचन) 12. भ्यसि वा 3/13 भ्यसि (भ्यस्) 7/1 बा=विकल्प से (प्राकृत में) भ्यस् परे होने पर विकल्प से (दीर्घ होता) है । अकारान्त पुल्लिग शब्दों में (बचा हुआ) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से दीर्घ हो जाता है । देव (पु.)-- [देव+ (बचा हुआ) भ्यस्] = (देव+हि, हिन्तो, सुन्तो)= देवाहि, देवाहिन्तो, देवासुन्तो (पंचमी बहुवचन) 13. टाण-शस्येत् 3/14 टाण-शस्येत् [(शसि)+(एत्)] [ (टाण)- (शस्) 7/1 ] एत् (एत्) 1/1 (प्राकृत में) टा के स्थान पर ण होने पर तथा शस् परे होने पर अन्त्य स्वर एत्→ए (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर रण होने पर तथा शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य स्वर ए होता है। देव (पु)- (देव + टा)=(देव+ण)=(देवे+ण) = देवेरण (तृतीया बहुवचन) (देव+शस्), शस्-० 3/4 (देव+शस्)= (देव+०) = (देबे+०) =देवे (द्वितीया एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 15 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. भिस्भ्यस्तुपि 3/15 भिस्भ्यस्सुपि [ (भिस्) + (भ्यस्) + (सुपि)] [(भिस्) - (भ्यस्) - (सुप्) 7/1] (प्राकृत में) भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर (ए हो जाता हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) तथा सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर ए हो जाता है। वेव (पु)- (देव+भिस्), भिस्-हि, हि, हिं 3/7 (देव+भिस्)=(देव-+हि, हिँ, हिं)= (देवे + हि, हि, हिं) =देवेहि, देवेहि, देवेहिं (तृतीया बहुवचन) (देव+भ्यस्), भ्यस्=हि, हिन्तो, सुन्तो 3/13 (देव+म्यस्)= (देव+हि, हिन्तो, सुन्तो)=(देवे+हि, हिन्तो, सुन्तो) देवेहि, देवेहिन्तो. देवेसुन्तो (पंचमी बहुवचन) (देव+सुप्), सुप्→सु (देव+सुप्)=(देव+सु) = (देवे+सु) = देवेसु (सप्तमी बहुवचन) 15. इदुतो दीर्घः 3/16 इदुतो दीर्घः [(इत्)+(उतः)+(दीर्घः)] [ (इत्) - (उत्) 6/1] दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) (पु., स्त्री., नपु.) (शब्दों में) (भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर) ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर दीर्घ (हो जाता है)। ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय), भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ह्रस्व का दीर्घ हो जाता है । (और दीर्घ दीर्घ ही रहता है)। हरि (पु.)-(हरि+मिस्), मिस्=हि, हि, हिं (3/7), (3/124) (हरि + मिस्)= (हरि+हि, हिं, हिं) =हरीहि, हरीहि, हरीहिं (तृतीया बहुवचन) 16 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वारि (नपुं)-वारीहि, वारीहि, वारोहिं (तृतीया बहुवचन) मइ (स्त्री.)-मईहि, मईहि, मईहिं (तृतीया बहुवचन) साहु (पु.)- (साहु +भिस्)=(साहु +हि, हिं, हिं) साहूहि, साहूहिँ, साहहिं (तृतीया बहुवचन) महु (नपुं.)-महूहि, महूहि, महहिं (तृतीया बहुवचन) धेणु (स्त्री.)- धेहि, धेहि, धेहिं (तृतीया बहुवचन) । हरि (पु.)-(हरि-भ्यस्) भ्यस्=त्तो, ओं, उ, हिन्तो, सुन्तो (हि का निषेध - सूत्र 3/127) (3/9), (3/124) (हरि-भ्यस् = (हरि+त्तो, प्रो, उ, हिन्तो, सुन्तो) =हरीत्तो→हरित्तो (1/84), हरीमो, हरीउ, हरीहिन्तो, हरीसुन्तो (पंचमी बहवचन) वारि (नपु)-वारीत्तो->वारित्तो (1/84) वारोमो, वारीउ, वारीहिन्तो, वारीसुन्तो (पंचमी बहुवचन) मइ (स्त्री.)-मइत्तो→मईत्तो 1/84, मईयो, मईउ, मईहिन्तो, मईसुन्तो __(पंचमी बहुवचन) साहु (पु.)- साहूत्तो→साहुत्तो (1/84), साहूयो, साहूउ, साहूहिन्तो, साहू सुन्तो - (पंचमी बहुवचन) महु (नपु.)-महुत्तो, महूओ, महूउ, महूहिन्तो, महसुन्तो (पंचमी बहुवचन) घेणु (स्त्री.)-घेणुत्तो, घेणूमो, घेणूउ, घेणू हिन्तो, घेणूसुन्तो (पंचमी बहुवचन) हरि (पु.)-(हरि+सुप्), सुप्→सु (3/15), (3/124) (हरि+सु)=हरीसु इसी प्रकार-वारीसु, मईसु, साहूसु, महसु तथा घेणूसु रूप बनेंगे । इसी प्रकार-गामणी (पु.), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री.) और बहू (स्त्री) के रूप तीनों विभक्तियों में बनेंगे । 16. चतुरो वा 3/17 (चतुरः) (वा) चतुरः (चतुर्) 5/1, वा= विकल्प से प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 17 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर → र→ चर से परे ( भिस्, भ्यस् और सुप् होने पर) विकल्प से ( ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर) दीर्घ हो जाता है । चतुर्--चउ से परे भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय हि, हि, हिं), भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय (हि, हिन्तो, सुन्तो) और सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय 'सु') होने पर ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर दीर्घ हो जाता है । जैसे - (चउ+भिस्)= (चउ+ हिं, हि, हिं) = चहं, चऊहि, चऊहिं (तृतीया बहुवचन) (चउ+भ्यस्)=(चउ + हि, हिन्तो, सुन्तो) = चऊहि, चऊहिन्तो, चऊसुन्तो (पंचमी बहुवचन) (चउ + सुप् ) = (चउ + सु ) = चऊसु (सप्तमी बहुवचन) 17. लुप्ते शसि 3/18 लुते ( लुप्त ) भूकृ 7 / 1 शसि (शस्) 7/1 ( प्राकृत में ) लोप किए गए शस् के होने पर (दीर्घ हो जाता है) । इकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग स्त्रीलिंग शब्दों से परे शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) का लोप होने पर वे शब्द दीर्घ हो जाते हैं । हरि (पु.) - ( हरि + शस् ) = ( हरि + ० ) = हरी ( द्वितीया बहुवचन) मइ (स्त्री) – (मइ + शस् ) = (मइ + ० ) = मई ( द्वितीया बहुवचन) साहु (पु.) - ( साहु + शस् ) = ( साहु + ० ) साहू ( द्वितीया बहुवचन) धेणु (स्त्री.) - (धेणु + शस् ) = ( धेणु + ० ) = वेणू (द्वितीया बहुवचन) इसी प्रकार गामरणी (पु.), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री) और बहू (स्त्री) के रूप बनेंगे | 18. प्रक्लीबे सौ 3/19 क्ली ( क्लब) 7/1 सौ (सि) 7/1 ( प्राकृत में ) क्लब में अर्थात् पुल्लिंग स्त्रीलिंग ( शब्दों में) सि परे होने पर (दीर्घ हो जाता है) । इकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय ) परे होने पर उनका दीर्घ हो जाता है । ( और नियमानुसार सि का लोप हो जाता है) । 18 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरि (पु.)-(हरि+सि)=(हरी + सि)=(हरी+०)=हरी (प्रथमा एकवचन) मइ (स्त्री.)-(मइ+सि)= (मई+सि)= (मई+०) =मई (प्रथमा एकवचन) साहु (पु.)-(साहु + सि)=(साहू +सि)=(साहू +०)=साहू (प्रथमा एकवचन) घेणु (स्त्री.)- (घेणु+ सि) =(घेणू+सि) = (घेणू +०)=घेणू (प्रथमा एकवचन) इसी प्रकार गामणी (पु), सयंभू (पु), लच्छी (स्त्री.) और बहू (स्त्री.) के रूप बनेंगे। 19. पुंसि जसोडउ डमो वा 3/20 पुंसि जसोडउ उप्रो वा [(जम:)+(डउ)] डो वा पुंसि (पुंस्) 7/1 जसः (जस्) 6/1 डउ (डउ) 1/l इयो (डप्रो)1/1 वा=विकल्प से (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त) पुल्लिग शब्दों में जस् के स्थान पर डउ→ अउ तथा डो→प्रमो विकल्प से (होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर प्रउ तथा प्रमो विकल्प से होता है । हरि (पु)-(हरि+जस्)=(हरि+घउ, प्रमो)=हरउ, हरो (प्रथमा बहुवचन) गामणी (पु.)-(गामणी+जस्)=(गामणी+पउ, अनो)=गामणउ, गामणमो __(प्रथमा बहुवचन) साहु (पु)-(साहु +जस्) =(साहु +पउ, अनो)=साहउ, साहसो (प्रथमा बहुवचन) सयंभू (पु)-(सयंभू + जस्)= (सयंभू+उ, प्रो)=सयंभउ, सयंभो (प्रथमा बहुवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 19 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20. वोतोडवो 3/21 वोतोडवो [(वा)-+ (उतः) + (डवो)] वा=विकल्प से उत: (उत्) 5/1 डवो (डवो) 1/1 (प्राकृत में) उकारान्त से परे (जस् के स्थान पर) डवो→प्रको विकल्प से (होता उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर अवो विकल्प से होता है। साहु (पु.)-(साहु+जस्)=(साहु-+अवो =साहवो (प्रथमा बहुवचन) सयंभू (पु.)--(सयंभू+जस्)= (सयंभू+अवो) =सयंभवो (प्रथमा बहुवचन) 21. जस्-शसोर्णो वा 3/22 जस् शसोयो वा [(शसोः)+ (णो)] वा विकल्प से [(जस्)-(शस्) 6/2] गो (णो) 1/1 वा=विकल्प से (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे) जस् और शस के स्थान पर णो विकल्प से (होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर रगो विकल्प से होता है । दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है (3/43) और ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं होता है (3/125)। हरि (पु.) -(हरि-+ जस्)=(हरि ---णो) हरिणो (प्रथमा बहुवचन) (हरि + शस्)=(हरि+णो) हरिणो (द्वितीया बहुवचन) - साहु (पु.)-(साहु +-जस्)=(साहु + णो) साहुणो (प्रथमा बहुवचन) (साहु+शस्)= (साहु +णो) =साहुणो (द्वितीया बहुवचन) ___ गामणी (पु)-(गामणी--- जस्)=(गामणी+णो)=गामणिणो . (प्रथमा बहुवचन) (गामणी+शस्)= (गामणी+णो) =गामणिरणो (द्वितीया बहुवचन) 20 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयंभू (पु)- (सयंभू+जस्)= (सयंभू--णो)=सयंभुगो (प्रथमा एकवचन) (सयंभू+शस्)=(सयंभू+-णो)=सयंभुणो (द्वितीया बहुवचन) यहां 3/4, 3/12 और 3/124 से हरी, साहू, गामणी और सयंभू (प्रथमा बहुवचन) 22 सि-ङसोः पुं-क्लीबे वा 3/23 [(ङसि)-(ङस्) 6/2] [(पुं)-(क्लीब) 7/1] वा=विकल्प से (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त) पुल्लिग-नपुंसकलिंग (शब्दों) में ङसि और हुस् के स्थान पर विकल्प से (गो होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-नपुंसकलिंग शब्दों में सि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से रणो होता है। दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है (3/43) और ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं होता (3/125)। हरि (पु.)-(हरि +ङसि)=(हरि+णो) हरिणो (पंचमी एकवचन) (हरि+ ङस् )= (हरि + णो) हरियो (षष्ठी एकवचन) साहु (पु.)- (साहु + ङसि) =(साहु +णो)=साहुणो (पंचमी एकवचन) (साहु + ङस्)= (साहु +णो)=साहुणो . (षष्ठी एकवचन) वारि (नपु)-(वारि+ङसि)=(वारि+णो)= वारिणो (पंचमी एकवचन) (वारि+ ङस्)=(वारि+णो)=वारिणो (षष्ठी एकवचन) महु (नपु.)- (महु + ङसि) = (महु+णो)=महुणो (पंचमी एकवचन) . (महु +अस्) =(महु +णो)=महुणो (षष्ठी एकवचन) गामणी (पु.)- (गामणी+ङसि) = (गामणी+णो) = गामरिणरणो (पंचमी एकवचन) (गामणी+ङस्)=(गामणी-+-रगो) =गामरिणरणो (षष्ठी एकवचन) सयंभू (पु)-(सयंभू+ ङसि)=(सयंभू+णो)= सयंभुणो (पंचमी एकवचन) (सयंभू+ङस्)=(सयभू +णो)-सयंभुणो (षष्ठी एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 21 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23. टोणा 3/24 टोणा [(ट:)+(णा)] ट: (टा) 6/1 णा (णा) 1/1 (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त)(पुल्लिग-नपुंसकलिंग) (शब्दों में) टा के स्थान पर पा (होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-नपुंसकलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर रखा होता है। दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है (3/43)। हरि (पु)-(हरि+टा)= (हरि+णा)- हरिणा (तृतीया एकवचन) साहु (पु.)- (साहु +टा)=(साहु + णा)=साहुणा (तृतीया एकवचन) वारि (नपुं.)-(वारि+टा)=(वारि+णा)-वारिणा (तृतीया एकवचन) महु (नपुं.)-(महु+टा)= (महु-+ णा)= महुणा (तृतीया एकवचन) गामणी (पु.)-- गामणी+टा)= (गामणी+णा)= गामरिणणा (तृतीया एकवचन) सयंमू (पु.)-(सयंभू+टा)=(सयंभू+णा)= सयंभुणा (तृतीया एकवचन) 24. क्लीबे स्वरान्म से: 3/25 क्लीबे स्वरान्म से: [(स्वरात्)+ (म्)] से: क्लीबे (क्लीब) 7/1 स्वरात् (स्वर) 5/1 म (म्) 1/1 से: (सि) 6/1 (प्राकृत में) नपुंसकलिंग में स्वर से परे सि के स्थान पर 'म्' (होता है) । प्रकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में स्वर से परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर म→ होता है । (मोनुस्वारः 1/23 सूत्र से म् का हुआ है)। कमल (नपुं.)-(कमल+सि) = (कमल+-)= कमलं (प्रथमा एकवचन) वारि (नपुं)-(वारि+सि)= (वारि+-)=वारि (प्रथमा एकवचन) महु (नपुं.)-(महु + सि)= (महु-+-)=महुं (प्रथमा एकवचन) 22 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25. जस्-शस्-ई-इं-रायः सप्राग्दीर्घाः 3/26 जस्-शस्-ई-ई-णयः समाग्दीर्घाः [(स) (प्रा)+(दीर्घा.)] [(जस्)-(शस्)-(ई)-(इं) (णि) 1/3] [(स)-(प्राक्)-(दीर्घ) 1/3] (प्राकृत में) (नपुंसकलिंग में) जस और शस् के स्थान पर ईं, इ, रिण (होते हैं)। (तथा) साथ ही पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो (जाते हैं)। अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर इ, ई, णि हो जाते हैं तथा साथ ही पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं । कमल (नपु.) - (कमल+जस्)=(कमल+ई, इं, रिण)= कमलाई, कमलाई, कमलाणि (प्रथमा बहुवचन) (कमल+शस्)=(कमला+ई, इं, णि)= कमलाई, कमलाई, ___ कमलाणि (द्वितीया बहुवचन) वारि (नपु)-(वारि--जस्)=(वारि+ई, इं, णि)=वारीई, वारीइं, वारीरिण (प्रथमा बहुवचन) (वारि+शस्) = (वारि+ई, इं, णि)=वारीई, वारीइ, वारीणि (द्वितीया बहुवचन) महु (नपु.)-(महु+जस्)=(महू+ई, इं, णि)=महूई, महू, महरिण - (प्रथमा बहुवचन) (महु+शस्)=(महू+ई, इं, णि)=महूई, महूइं, महरिण (द्वितीया बहुवचन) 26. स्त्रियामुवोतौ वा 3/27 स्त्रियामुदोती वा [(स्त्रियाम्)+ (उत्) + (मोती)] वा स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 [(उत्) - (प्रोत्) 1/2] वा=विकल्प से (प्राकृत में) स्त्रीलिंग में उत् → उ और प्रोत्-→ो विकल्प से (होते हैं) प्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में जस (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से उ और मो होते हैं और साथ ही पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं (यदि ह्रस्व हों तो)। प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 23 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा (स्त्री.) - ( कहा + जस् ) = (कहा + उ, प्रो) = कहाउ, कहाश्रो F ( कहा + शस् ) = ( कहा + उ, श्रो ) कहाउ, कहाश्रो मइ (स्त्री.) - (मइ + जस् ) = ( मइ + उ, श्रो) = मईउ, मईश्रो (प्रथमा बहुवचन) 27. ईतः सेरचा वा (द्वितीया बहुवचन) ( म इ + शस् ) = ( मइ + उ, श्रो) = मईउ, मईप्रो = लच्छी (स्त्री.) - ( लच्छी + जस् ) = ( लच्छी +उ, श्रो) लच्छीउ, लच्छोश्रो (प्रथमा बहुवचन) ( लच्छी + शस् ) = ( लच्छी +उ, प्रो) – लच्छोउ, लच्छीनो (द्वितीया बहुवचन) = धेणु (स्त्री.) - ( घेणु + जस् ) = ( घेणु + उ, भो) घेणउ, घेणूझी (प्रथमा बहुवचन) (धेणु + शस्) = (धेणु + उ, श्रो) = धोणूड, धेषूनो बहू (स्त्री.) - ( बहू + जस् ) = ( बहू + उ, प्रो) = बहूउ, बहूनो (द्वितीया बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (द्वितीया बहुवचन) ( बहू +शस् ) = ( बहू + उ, प्रो) बहूउ, बहूश्रो 3/28 ईत: सेश्चा वा [ ( से :) + (च) + (प्रा)] वा ईस : ( ईत् ) 5 / 1 से: (सि) 6 / 1 च = और श्रा (ग्रा) 1 / 1 वा = विकल्प से (प्राकृत में ) (स्त्रीलिंग में) दीर्घ इकारान्त से परे सि के स्थान पर विकल्प से प्रा (होता है) और (जस् और शस् के स्थान पर भी प्रा विकल्प से होता है ) । (द्वितीया बहुवचन) दीर्घ इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर तथा जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और अम् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर श्री विकल्प से होता है । 24 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लच्छी (स्त्री.) - ( लच्छी + सि) = ( लच्छी + · श्रा) = लच्छीमा ( लच्छी + जस् ) = ( लच्छी + प्रा) = लच्छीप्रा ( लच्छी + शस् ) == ( लच्छी + आ ) 28. टा - ङस् - ङेरदादिदेद्वा तु ङसे: 3/29 टा- ङस् - ङोरदादिदेद्वा तु ङसे: [ (ङ :) + (अत्) + (प्रात्) + (इत्) + ( एत्) + (वा) ] तु ङसे: [ (टा ) - ( ङस् ) - (ङि) 6 / 1 ] प्रत् (प्रत्) 1 / 1 प्रात् (प्रात्) 1 / 1 इत् (इत् ) 1 / 1 एत् ( एत् ) 1 / 1 वा = विकल्प से तु =और ङसे: ( ङसि ) 6/1 कहा (स्त्री.) - ( कहा +टा) , ( प्राकृत में ) ( स्त्रीलिंग में ) टा, ङसि ङस् औौर डि के स्थान पर अत् अ श्नात्→ना, इत्→इ, एत् ए विकल्प से ( होते हैं) और (साथ में पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं, यदि ह्रस्व हों तो ) प्रत्यय ), ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), रङ (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) से हो जाते हैं और साथ ही पूर्व में स्थित हों तो ) । श्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का ङस् ( षष्ठी एकवचन का प्रत्यय ) स्थान पर अ, श्रा, इ और ए विकल्प स्वर दीर्घ हो जाते हैं (यदि ह्रस्व ( कहा + ङसि ) (कहा + ङस् ) ( कहा + ङि) = (प्रथमा एकवचन ) - प्रोढ प्राकृत रचना सौरम ] (प्रथमा बहुवचन) लच्छीवा (द्वितीया बहुवचन) ( कहा + अ, इ, ए) ( कहा + अ, इ, ए) = कहाश्र, कहाइ, कहाए (तृतीया एकवचन ) 1 ( कहा + अ, इ, ए ) == कहान, कहाइ, कहाए (पंचमी एकवचन ) 1 ( कहा +, इ, ए) == कहान, कहाइ, कहाए ( षष्ठी एकवचन ) ( नातप्रात् 3 / 30 सूत्र से आकारान्त में 'आ' नहीं होता है) कहा, कहाइ, कहाए (सप्तमी एकवचन) [ 25 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मइ (स्त्री.) • (मइ+टा)=(मई-अ, आ, इ, ए)=मई, मईपा, मईइ, मईए (तृतीया एकवचन) (मइ+ ङसि)=(मई+अ, आ, इ, ए)=मईप्र, मईपा, मईइ, __ मईए (पंचमी एकवचन) (मइ+ ङस्)=(मई+म, आ, इ, ए)=मई, मईपा, मईइ, मईए (षष्ठी एकवचन) (मइ+ ङि)=(मई+अ, आ, इ, ए)=मई, मईपा, मईइ, मईए (सप्तमी एकवचन) इसी प्रकार लच्छी (स्त्री.)- लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (तृतीया एकवचन) लच्छीन, लच्छीमा, लच्छी इ, लच्छीए (पंचमी एकवचन) लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (षष्ठी एकवचन) लच्छीम, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (सप्तमी एकवचन) घेणु (स्त्री.) - घेणूत्र, घेणूमा, घेणूइ, धेणूए (तृतीया एकवचन) घेणूम, घेणूया, घेणूइ, घेणूए (पंचमी एकवचन) घेणूअ, धेणूमा, घेणूइ, धेणूए (षष्ठी एकवचन) घेणू, घेणूना, घेणूइ, घेणूए (सप्तमी एकवचन) बहू (स्त्री.)-बहूअ, बहूआ, बहूइ, बहूए (तृतीया एकवचन) बहूम, बहूमा, बहूइ, बहूए (पंचमी एकवचन) बहू, बहूपा, बहूइ, बहूए (षष्ठी एकवचन) बहूप, बहूया, बहूइ, बहूए (सप्तमी एकवचन) 29. नातमात् 3/30 नातप्रात् [ (न)+(प्रातः)+ (प्रात्)] न=नहीं प्रातः (प्रात्) 5/1 प्रात् (प्रात्) 1/1 (प्राकृत में) प्राकारान्त (स्त्रीलिंग शब्दों) से परे (टा, सि, ङस् और डि के स्थान पर) आत्→ा नहीं (होता है)। 26 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों से परे टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय), असि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), उस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर प्रा नहीं होता है (निषेध सूत्र)। 'कहा' में मा नहीं जोड़ा जाता है। 30. प्रत्यये डीन वा 3/31 प्रत्यये डीन वा [ (डी:)+ (न)] प्रत्यये (प्रत्यय) 7/1 डोः (डी) 1/1 न वा=विकल्प से (स्त्रीलिंग बनाने के लिए) प्रत्यय के रूप में की→ई विकल्प से (होता है)। स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्रत्यय के रूप में 'मा' के साथ ही 'ई' भी विकल्प से होता है। कुरुचर+ई, प्रा=कुरुचरी, कुरुचरा 31. प्रजातेः पुंसः 3/32 अनातेः (प्रजाति) 5/1 पुंस: (पुंस्) 5/1 (प्राकृत में) अजातिवाचक पुल्लिग शब्दों से परे ('ई' होता है)। प्रजातिवाचक पुल्लिग शब्दों से परे (जातिवाचक संज्ञावाले, सर्वनामवाले, विशेषणवाले शब्दों में पुल्लिग से स्त्रीलिंग रूप में परिवर्तन करने के लिए नहीं) डी→ई प्रत्यय विकल्प से होता है । (i) नील+ ई, अनीली, नीला काल+ई, प्र-काली, काला (ii) एत→एम-नई, अएई, एमा इम+ई, प्र-इमी, इमा नोट-जातिवाचक 'प्रज' का 'प्रजा' ही होग। (ई का प्रभाव) 32. कि-यत्तदोऽस्यमामि 3/33 कि-यत्तदोऽस्यमामि [(यत्)+ (तदः-+तत:)+(प्र) । (सि)+(अम्)+ (प्रामि)] {(किं)-(यत्)-(तद्-+तत्) 5/1] प्र=नहीं [(सि)-(अम्)-(प्राम्) 7/1] (स्त्रीलिंग सर्वनाम) किं→का, यत्→जा, तत्→ता से परे (विकल्प से 'ई' होता है किन्तु) सि, अम्, प्राम में नहीं। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 27 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग सर्वनाम किका, यत् जा, तत् ता से परे विकल्प से ई प्रत्यय भी होता है किन्तु सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), अम् ( द्वितीया एकवचन के प्रत्यय ) और ग्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) में नहीं । का + अ, ई = का, की श्र जा + ई = जान, जीश्र ता + अ, ई = तान, तीन इसी प्रकार प्रथमा एकवचन, द्वितीया एकवचन श्रौर षष्ठी बहुवचन के अतिरिक्त सभी विभक्तियों में समझ लेना चाहिए । 33. छाया - हरिद्रयोः 3/34 [ (छाया) - (हरिद्रा) 5 / 21 ( प्राकृत में ) छायाछाना और हरिद्रालिद्दा / हलद्दा से परे ( विकल्प से ई होता है) । छाया छात्रा और हरिद्रा हलिद्दा / हलद्दा से परे विकल्प से ई भी होता है । छाया छात्रा + ई = छाई हरिद्रा हलिद्दा / हलद्दा + ई = ह लिद्दी / हलद्दी - 34. स्वत्रादेर्डा - 28 1 (तृतीया एकवचन ) 3/35 स्वत्रादेर्डा [(स्वसृ ) + (श्रादे: ) + (डा ) ] [ ( स्वसृ ) - (दि) 5/1 ] डा (डा) 1/1 ( प्राकृत में ) स्वसृ आदि से परे डा श्रा ( होता है ) । स्त्रसृ→सस्, ननन्दनन्द, दुहितृ दुहित् आदि शब्दों से परे 'प्रा' की प्राप्ति होती है । स्वसृ→सस्+श्रा= ससा ननन्दृ →ननन्द् +अ = ननन्दा दुहितृ दुहित् + आ = दुहिता दुहिना धूम्रा [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 ह्रस्वोमि 3/36 ह्रस्वोमि [ ( ह्रस्व:) + (मि) ] हृस्व: ( ह्रस्व ) 1 / 1 मि (म्) 7/1 ( प्राकृत में ) म्परे होने पर हृस्व ( हो जाता है) । श्राकारान्त, दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त पुल्लिंग, स्त्रीलिंग शब्दों में परे होने पर दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है । द्वितीया के एकवचन में कहा (स्त्री.) - ( कहा + लच्छी (स्त्री.) - ( लच्छी + बहू (स्त्री.) - ( बहू +) गामरणी (पु) - ( गामणी + 36. नामन्त्र्यात्सौ मः सयंभू (पु.) - ( सयंभू + =) ) = ( कह + = ) ) = ( लच्छि + =) ) ( बहु + ) = ( गामणि + वारि ( नपुं. ) - ( हे वारि + सि) कहं ( द्वितीया एकवचन ) लच्छ ( द्वितीया एकवचन ) (द्वितीया एकवचन) = बहु = = = ) = नामर 3/37 नामन्त्र्यात्समः [ (न) + (श्रामन्त्रयात्) + (सौ) ] मः न = प्रभाव श्रामन्त्रयात् ( श्रामन्त्रय) 5 / 1 सौ (सि) 7 / 1 म: (म्) 6 / 1 ( सयंभु + ) = सयंभुं ( प्राकृत में ) ( नपुंसकलिंग शब्दों में ) श्रामन्त्रण ( सम्बोधन ) से परे सि में म् (-) का प्रभाव ( हो जाता है ) । ( द्वितीया एकवचन ) अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों में सम्बोधन से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) म् (-) का अभाव हो जाता है । कमल (नपुं. ) - ( हे कमल +सि) = ( हे कमल + ० ) = हे कमल (सम्बोधन एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन ) (हे वारि + ० ) = ( सम्बोधन एकवचन ) महु ( नपुं. ) - ( हे महु + सि) = ( हे महु + ० ) = हे महु ( सम्बोधन एकवचन ) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ 1 हे वारि [ 29 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37. डो दीर्घोवा 3/38 डो वीर्घोवा [(दीर्घः)+(वा)] डो (डो) 1/1 दीर्घः (दीर्घ) 1/1 वा =विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे सि होने पर) डो-प्रो और वीर्घ विकल्प से (होता है)। (i) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर (उसके स्थान पर) अकारान्त पुल्लिग शब्दों में प्रो और दीर्घ विकल्प से होता है । देव (पु.)-(हे देव + सि)=(हे देव+ो)=हे देवो (सम्बोधन एकवचन) विकल्प होने के कारण मूल भी होगा (हे देव+सि)=(हे देव+0)= हे देव (सम्बोधन एकवचन) (हे देव+सि)=(हे देव+दीर्घ)=हे देवा (सम्बोधन एकवचन) (ii) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर (उसके स्थान पर) ह्रस्व इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में (3/19) दीर्घ विकल्प से होता है। हरि (पु.)-(हे हरि+सि) = (हे हरि+दीर्घ) = हे हरी __ (सम्बोधन एकवचन) विकल्प होने के कारण मूल भी होगा। (हे हरि+मि) = (हे हरि+०) =हे हरि (सम्बोधन एकवचन) साहु (पु.)-(हे साहु +सि) = (हे साहु + दीर्घ) = हे साहू (सम्बोधन एकवचन) (हे साहु+सि) = (हे साहु +०) = हे साहु (सम्बोधन एकवचन) मइ (स्त्री.)-(हे मइ+सि) = (हे मइ+दीर्घ) = हे मई (सम्बोधन एकवचन) (हे मइ+सि) = (हे मइ+०) = हे मइ (सम्बोधन एकवचन) घेणु (स्त्री.)- इसी प्रकार हे घेणू , हे घेणु 30 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38. ऋतोऽद्वा 3/39 ऋतोऽद्वा [(ऋतः)+ (अत्) +(वा)] ऋतः (ऋत्) 6/1 प्रत् (प्रत्) 1/1 वा=विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे) (सि होने पर) ऋत्→ऋ के स्थान पर प्रत्→प्र विकल्प से (हो जाता है)। मामन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर ऋत्-ऋ (कारान्त) के स्थान पर (विकल्प से) प्र (अकारान्त) हो जाता है । पितृ (पु.)-(हे पितृ+सि)=हे पिन (सम्बोधन एकवचन) दातृ (वि.) --- (हे दातृ+सि) हे दान (सम्बोधन एकवचन) 39 नाम्न्यरं वा 3/40 नाम्न्यरं वा [(नाम्नि) + (अरं)] नाम्नि (नामन्) 7/1 अरं (अरं) 1/1 वा=विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे) (सि होने पर) (ऋकारान्त) संज्ञा में परं विकल्प से (हो जाता है)। आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर ऋकारान्त संज्ञा शब्दों में ऋ के स्थान पर प्ररं हो जाता है। पितृ (पु.)-(हे पितृ+सि) हे पिपरं (सम्बोधन एकवचन) 40. बापए 3/41 वापए [(वा)+(प्रापः)+(ए)] वा=विकल्प से प्रापः (प्राप्) 5/1 ए (ए) 1/1 (प्राकृत में)(ग्रामन्त्रण में) प्राकारान्त से परे (सि होने पर) (उसके स्थान पर) ए विकल्प से (होता है)। आमन्त्रण में आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर उसके स्थान पर ए विकल्प से होता है । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 31 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 41. कहा (स्त्री.)-(हे कहा+सि)=(हे कहा+ए)=हे कहे (सम्बोधन एकवचन) (विकल्प होने से मूल भी होगा) (हे कहा+सि)=(हे कहा+०)=हे कहा (सम्बोधन एकवचन) ईदूतोह स्वः 3/42 ईदूतोढ स्वः [ (ईत्)+ (ऊतोः)+(हृस्व:)] [(ईत्) - (ऊत्) 5/2 ] हुस्वः (हृस्व) 1/1 (प्राकृत में) (आमन्त्रण में) दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त से परे (सि होने पर उसके स्थान पर) हृस्व हो जाता है । आमन्त्रण में दीर्घ इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर उसके स्थान पर हस्व हो जाता है। गामणी (पु.)-(हे गामणी+सि)=हे गामणि _(सम्बोधन एकवचन) सयंभू (पु.)-(हे सयंभू+सि) = हे सयंभु (सम्बोधन एकवचन) लच्छी (स्त्री.)-(हे लच्छी+सि)=हे लच्छि (सम्बोधन एकवचन) बहू (स्त्री.)-(हे बहू+सि)=हे बहु (सम्बोधन एकवचन) 42. क्विप: 13/43 क्विपः (क्विप्) 5/1 (प्राकृत में) दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे णा, णो (3/24, 3/22) प्रत्यय जुड़ने पर अन्त्य दीर्घ स्वर हस्व (हो जाता है)। दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे प्रत्यय (णा, णो) जुड़ने पर अन्त्य दीर्घ स्वर हस्व (हो जाता है)। गामणी (पु.) - (गामणी+गा)= (गामणि+णा) =गामणिणा (3/24) (तृतीया एकवचन) सयंभू (पु.) - (सयंभू---णा)=(सयंमु+णा)= सयंभुरणा (3/24) ____ (तृतीया एकवचन) इसी प्रकार गामणिणो, सयंभुणो होगा (3/22) । णी और पू प्रत्यय जिन शब्दों में जुड़ते हैं वे क्विप् प्रत्ययवाले शब्द कहलाते हैं। जैसे-गामणी और खलपू । इनमें फिर विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाते हैं । इस प्रकार यह सूत्र सभी दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त शब्दों पर लागू किया जा सकता है। 32 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 43. ऋतामुदस्यमौसु वा 3/44 ऋतामुदस्यमौसु वा [(ऋताम्)+(उद्→उत्)+(प्र)+(सि)+ (अम्) + (प्रोस)] ऋताम् (ऋत्) 6/3 उत् (उत्) 1/1 प्र=नहीं [ (सि) - (अम्) - (प्रो) 7/3 ] वा=विकल्प से (ऋकारान्त शब्दों में) ऋत्-ऋ के स्थान पर उत्→उ विकल्प से (हो जाता है)। (किन्तु) सि, प्रम् और प्रो परे होने पर नहीं (होता है)। ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) और प्रौ (प्रथमा-द्वितीया द्विवचन के प्रत्ययों) को छोड़कर शेष समी प्रत्ययों के योग में ऋ के स्थान पर विकल्प से उ हो जाता है। कर्तृ (पु.)-(कर्तृ + जस्, शस्, टा प्रादि)= कत्तु पितृ (पु.)-(पितृ+जस्, शस्, टा आदि)=पितु--पिउ उकारान्त पुल्लिग शब्दों की तरह कत्तु और पिउ के रूप (प्रथमा और द्वितीया एकवचन, द्विवचन को छोड़कर) चलेंगे। 44. प्रारः स्यादौ 3/45 प्रारः स्यादौ [ (सि) + (प्रादौ)] मारः (मार) 1/1 [ (सि) - (प्रादि) 7/1 ] (विशेषणात्मक ऋकारान्त शब्दों में) सि प्रादि परे होने पर (ऋ के स्थान पर) पार (होता है)। विशेषणात्मक ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) आदि परे होने पर ऋ के स्थान पर पार होता है। कर्तृ (वि.)-(कर्तृ +सि, अम्, जस् आदि) कर्तार→कत्तार दातृ (वि.)- (दातृ+सि, अम्, जस् आदि) =दातारदापार इनके रूप प्रकारान्त पुल्लिग की तरह चलेंगे। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 33 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45. प्रा रा मातुः 3/46 प्रा (प्रा) 1/1 प्ररा (अरा) 1/1 मातुः (मातृ) 6/1 मातृ के (ऋ के स्थान पर) (सभी प्रत्ययों के योग में) प्रा और अरा (हाते हैं) मातृ के ऋ के स्थान पर सभी प्रत्ययों के योग में प्रा और परा होते हैं। मातृ (स्त्री.)-- (मातृ+सि, जस्. अम् आदि)=मामा, मारा इनके रूप प्राकारान्त की तरह चलेंगे । 46. नाम्न्यरः 3/47 नाम्न्यरः [ (नाम्नि)+(अरः)] नाम्नि (नामन्) 7/1 अरः (अर) 1/1 (ऋकारान्त) संज्ञा (शब्दों) में प्रर (होता) है । ऋकारान्त संज्ञा शब्दों में सि आदि परे होने पर ऋ के स्थान पर पर होता है । पितृ (पु.)-(पितृ+सि प्रादि)=पितर→पिमर इनके रूप प्रकारान्त पुल्लिग की तरह चलेंगे। 47. प्रा सौ न वा. 3/48 मा (आ) 1/1 सौ (सि) 7/1 न वा=विकल्प से (ऋकारान्त शब्दों में) सि परे होने पर (ऋ के स्थान पर) आ विकल्प से (होता है)। ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ऋ के स्थान पर प्रा विकल्प से होता है । पितृ (पु) - (पितृ+सि)=-पितृ-पिता-+पिना (प्रथमा एकवचन) कर्तृ (वि.)- (कर्तृ+सि)=कत्ता (प्रथमा एकवचन) सूत्र संख्या 3/45, 3/47 व 3/5 के आधार से पितृ (पु)-(पितृ +अम्) = पिनरं (द्वितीया एकवचन) कर्तृ (वि.)-(कर्तृ+अम्)=कत्तारं (द्वितीया एकवचन) 48. राज्ञः 3/49 राज्ञः (राजन्) 5/1 राजन्1→राम→राय से परे सि होने पर (प्र/य के स्थान पर) प्रा/या (विकल्प से) (होता है)। 34 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राय से परे विकल्प से होता है । राय / राम (पु.) - ( राय + सि) = राया (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर अ के स्थान पर श्रा 1. राजन् राज 1 / 11 अन्त्यव्यञ्जनस्य ( लुक् ) 1 / 11, 1 / 10 राजरान 1/177 क -ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् 1 / 177 रान→राय 1/180 प्रवर्णो य श्रुति 1 / 180 49. जस् - शस् - ङसि - ङसांणो 3/50 जस् - शस् - ङसिङसांगो ( (ङसाम्) + (णो ) ] [ ( जस्) - (शस् ) - ( ङसि ) - ( ङस् ) 6/3] णो (गो) 1/1 ( प्राकृत में ) ( राज राय से परे ) जस्, शस्, ङसि और ङस् के स्थान पर णो ( विकल्प से) (होता है ) | राज राय से परे जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय), शस् ( द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय ) के स्थान पर गो विकल्प से होता है । राज राय - ( राज + जस् ) (प्रथमा एकवचन ) ( राज + णो ) सूत्र 3 / 52 (इर्जस्य गो-गा - ङौ) से ज के स्थान पर विकल्प से हो जाता है । .. ( राज + णो ) = ( राइ + णो ) == राइणो (प्रथमा बहुवचन) ( राज + शस् ) == ( राइ + णो ) = राइणो (द्वितीया बहुवचन) ( राज + ङसि ) = ( राइ + णो ) राइणो (पंचमी एकवचन ) ( राज + ङस् ) = ( राइ + णो) = राइणो (षष्ठी एकवचन) सूत्र 3/55 ( श्राजस्य टा - ङसि - ङस्सु सणारगोष्वण् ) से राज में निहित प्राज के स्थान पर भ्रण हो जाता है । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ = .. ( राज + ङसि ) = ( राज + णो ) = ( र ण् + णो ) = रण्लो 1 (राज + ङस् ) = (राज + जो ) = (रण् + णो) = रण्णो (पंचमी एकवचन ) ( षष्ठी एकवचन ) [ 35 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज-राय-(राय+जस्)-(राय-+-णो) सूत्र 3/12 का प्रयोग करने पर (राया+णो)=रायारणो (3/12) (प्रथमा बहुवचन) (राय+शस्)= (राय+णो)=(राया+णो)=रायाणो (3/12) (द्वितीया बहुवचन) (राय+जस्)=(राय+०)= (राया+०)=राया(3/12, 3/4) __ (प्रथमा बहुवचन) (राय+शस्)=(राय + )=(राया+.)=राया (3/12, 3/4) (द्वितीया बहुवचन) 50. टोणा 3/51 टोणा [(ट:)+(णा)] ट: (टा) 6/1 रणा (णा) 1/1 (प्राकृत में) राज→राम→राय से परे टा के स्थान पर रणा (विकल्प से) (होता है)। राज→रामराय से परे टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर रखा विकल्प से होता है। राज→राम→राय - (राज-+-टा)=(राइ+णा)=राइणा (तृतीया एकवचन) (यहां 'ज' का 'इ' हुमा है 3/52) (राज+टा)= (रण्+णा)=रण्णा (तृतीया एकवचन) (यहाँ राज के प्राज का प्रण हुपा है 3/55) 51. इर्जस्य रणो-रणा-डौ 3/52 इर्जस्य गो-णा-डो [(इ.)+(जस्य)] इ: (इ) 1/1 जस्य (ज) 6/1 [ (णो) -(णा)- (ङि) 7/1] (प्राकृत में) (राज से परे) गो, रणा और हि होने पर ज के स्थान पर इ (विकल्प से) (हो जाता है)। 36 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सोरम Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज से परे गो, णा और हि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) होने पर बिकल्प से से इ हो जाता है । इस सूत्र का उपयोग 3/50 और 3/51 में आंशिक हो गया है । शेष निम्नलिखित है - राज-(राज+ङि) =(राइ+ङि) सूत्र डे म्मि : 3/11 और सूत्र डे : के आधार से यहां ङि=म्मि होगा। .:. (राइ+ङि) = (राइ+म्मि) = राइम्मि (सप्तमी एकवचन) 52. इणममामा 3/53 इणममामा [ (इणं)+ (प्रमा)+(मामा)] इणं (इणं) 1/1 प्रमा (अम्) 3/1 मामा (आम) 3/1 (प्राकृत में) (राज से परे) अम् और पाम् सहित (ज के स्थान पर) इणं (विकल्प से) (होता है)। राज से परे अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) और माम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) सहित ज के स्थान पर इरणं विकल्प से होता है । राज-(राज + अम्)=राइणं - (द्वितीया एकवचन) (राज+पाम्)=राइणं (षष्ठी बहुवचन) 53. ईस्भ्यिसाम्सुपि 3/54 ईद्भिस्भ्यसाम्सुपि [(ईद्→ईत्)+ (मिस्)+(भ्यस्)+ (प्राम्) + (सुपि)] ईत् (ईत्) 1/1 [(मिस्) - (भ्यस्) - (प्राम्) -(सुप्) 7/1] (प्राकृत में) (राज से परे)भिस्, भ्यस्, माम् और सुप् होने पर (ज के स्थान पर) ईत्-→ई (विकल्प से) (हो जाता है)। राज से परे भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय),भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय), माम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) होने पर ज के स्थान पर ई विकल्प से हो जाता है । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 37 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज-(राज+मिस्), भिस् =हि, हि, हिं (3/7) (3/16) (3/124) (राई+हि, हि, हिं) =राईहि, राईहि, राईहिं (तृतीया बहुवचन) --(राज+भ्यस्), भ्यस्=तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो (3/16) (3/9) (3/124) (राई+तो, प्रो, उ, हिन्तो, सुन्तो)=राईत्तो-राइत्तो, राईप्रो, राईउ, राईहिन्तो, राईसुन्तो (पंचमी बहुवचन) -(राज+पाम्), पाम् =ण (3/124) (3/6) . (राई+ण)=राईण (षष्ठी बहुवचन) -(राज+सुप्) सुप्→सु (3/16), (3/15), (3/124) राई +-सु-राईसु (सप्तमी बहुवचन) 54. प्राजस्य टा-ङसि-ङस्सु सरणारगोष्वण 3/55 प्राजस्य टा-सि- ङस्सु सणाणोष्वण् [ (स) - (णा)+(णोषु)+ (अण्)] प्राजस्य (आज) 6/1 [(टा)-(ङसि)-(डस्) 7/3] स युक्त (णा) - (गो) 7/3] अण् (अण्) 1/1 (प्राकृत में) (राज से परे) टा का रणा से युक्त होने पर, इसि और ङस् का णो से युक्त होने पर (राज में निहित) आज के स्थान पर प्रण (विकल्प से) हो जाता है । राज से परे टा (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) के णा से युक्त होने पर, इसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के णो से युक्त होने पर राज में निहित प्राज के स्थान पर प्रण विकल्प से हो जाता है। दूसरे प्रत्ययों का टा, सि, ङस से युक्त होने पर प्रण नहीं होता । राज-(राज+टा) = (राज+णा) = (रण्+णा) = रण्णा (तृतीया एकवचन) (राज+ ङसि) = (राज+णो) = (रण्+णो) = रणो ___ (पंचमी एकवचन) (राज+ङस्) = (राज+णो) = (रण्+णो) = रण्णो (षष्ठी एकवचन) 38 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55. पुंस्यन प्रारणो राजवच्च 3/56 . पुंस्यन प्राणो राजवच्च [(पुंसि)+(अनः) (प्राणः)+(राजवत्)+(च)] पुंसि (पुंस्) 7/1 अनः (अन्) 6/1 प्राणः (प्राण) 1/1 राजवत् =राज के समान च=और (अन् अन्तवाले) पुल्लिग शब्दों में अन् के स्थान पर प्रारण (विकल्प से हो जाता है) और राज के समान (भी प्रयोग होता है)। अन् अन्तवाले पुल्लिग शब्दों में अन् के स्थान पर प्रारण विकल्प से हो जाता है । ऐसे सभी शब्द अकारान्त की तरह होते हैं । और अन् अन्तवाले पुल्लिग शब्द राज के समान भी प्रयोग में पाते हैं । आत्मन् =प्रात्माण=अप्पोण या अत्ताण (अकारान्त की तरह) आत्मन् =आत्म =अप्प या प्रत्त (राज की तरह) राजन् =रामाण =रायाण (अकारान्त की तरह) 56. प्रात्मनष्टो रिणमा गइमा 3/57 प्रात्मनष्टो णिमा णमा | (प्रात्मनः)+ (ट: + (णि पा)] प्रात्मनः (आत्मन्) 5/1 ट: (टा) 6/1 णिमा (णिग्रा) 1/1 रणइपा (णइया) 1/1 आत्मन्-→अप्प से परे टा के स्थान पर णिया और गइया (विकल्प से) (हो जाते हैं)। अप्प से परे टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर णिमा और गइमा विकल्प से हो जाते हैं। अप्प -(अप्प+टा)=(अप्प+ णिमा, णइना)=अप्पणिया, अप्पणइमा (तृतीया एकवचन) 57. प्रतः सर्वादेर्जसः 358 अत: सर्वादेसः [ (सर्व)+ (प्रादेः) + (डे.) + (जसः)] प्रतः (प्रत्) 5/1 [(सर्व)-(प्रादि) 5/1] डे: (डे) 1/1 जस (जस्) 6/1 प्रकारान्त पुल्लिग सर्व→सव्व आदि से परे जस् के स्थान पर डे-ए (होता है) । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] 39 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त पुल्लिंग सर्वनामों सर्व सव्व आदि से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर डेए होता है । सव्व (पु.) - ( सब्व + जस् ) = (सव्व + ए ) = सब्वे इसी प्रकार त (वह) (पु.)- ते ज (जो) (पु.) – जे क (कौन) (पु.) के एत (यह ) (पु.)- एते / एए इम (यह) (पु.) – इमे अन्न (अन्य ) ( पु . ) श्रन्ने 58. ङ: स्सि- म्मि-त्थाः 5/59 ङ: स्सिम्मि-स्था: ङ: (ङि ) 6 / 1 [ (स्सि) - (स्मि ) - (त्थ) 1 / 31 (सर्वनामों में) ङि के स्थान पर स्सि, म्मि और स्थ (होते हैं) । (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) (प्रथमा बहुवचन) अकारान्त पुल्लिंग सर्वनामों सर्व सव्व आदि से परे ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर स्सि, म्मि और त्थ होते हैं । (प्रथमा बहुवचन) सव्व (पु.) - (सब्व + ङि) = (सव्व + स्सि, म्मि, त्थ) = सव्वस्ति, सव्वम्मि, सव्वत्थ (सप्तमी एकवचन ) इसी प्रकार त (वह) (पु.) - तस्सि, तम्मि, तत्थ ज (जो) (पु.) - जस्सि, जम्मि, जत्थ क ( कौन) (पु.) - कस्सि, कम्मि, कत्थ एत (यह ) (पु.)- एतस्सि, एम्मि, एतत्थ इम (यह ) ( पु . ) - इमस्सि, इमम्मि इमत्थ अन्न (अन्य ) (पु.) - अन्नस्सि, अन्नम्मि, अन्नत्थ 40 ] (सप्तमी एकवचन) (सप्तमी एकवचन ) (सप्तमी एकवचन ) (सप्तमी एकवचन) (सप्तमी एकवचन ) ( सप्तमी एकवचन ) [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 59. न वानिदमेतदो हिं 3/60 न वानि दमेतदो हि [ (वा)+(अन्) (इदम्) (एतदः→एततः)+(हिं)] न वा=विकल्प से अन् =नहीं ! (इदम्) - (एतत्) 5/1] हिं (हिं) 1/1 (सर्वनामों में ङि के स्थान पर) विकल्प से हिं (होता है) (किन्तु) इदम्→इम और एतत् एत→एप से परे नहीं। प्रकारान्त पुल्लिग सर्वनामों सर्व→सव्व आदि से परे डि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय)के स्थान पर विकल्प से हिं होता है किन्तु इदम्→इम और एतत्→एत→ एम से परे हिं नहीं होता है । सव्व (पु.)- (सव्व+ङि)=(सव्व+हिं) सव्वहिं (सप्तमी एकवचन) इसी प्रकार त (वह) (पु.)-तहिं (सप्तमी एकवचन) ज (जो) (पु.)- जहिं (सप्तमी एकवचन) क (कौन) (पु.)- कहिं (सप्तमी एकवचन) अन्न (अन्य) (पु.)- अन्नहि (सप्तमी एकवचन) नोट-हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार किं→का (स्त्री.), यत्→जा (स्त्री.), तत्-ता (स्त्री) सर्वनाम में भी सप्तमी एकवचन में हिं की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है। 60. प्रामो डेसि 361 प्रामो डॉस [(ग्राम:)+ (डेसि)] प्रामः (आम्) 6/1 डेसि (डेसि) 1/1 (सर्व→सव्व प्रादि सर्वनाम शब्दों से परे) प्राम् के स्थान पर (विकल्प से) डेसि→ऐसि (होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनामों सर्व-सव्व प्रादि से परे प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डेसि-ऐसि होता है। सव्व (पु.)-(सव्व+आम्)== (सव्व+ एसि) = सव्वेसि (षष्ठी बहुवचन) इसी प्रकार त (वह) (पु.) - तेसि (षष्ठी बहुवचन) ज (जो) (पु.)- जेसि (षष्ठी बहुवचन) क (कौन) (पु.)-केसि (षष्ठी बहुवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ j [ 41 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एत (यह) (पु.)-एतेसि इम (यह) (पु.)-इमेसि अन्म (अन्य) (पु.)- अग्नेसि (षष्ठी बहुवचन) (षष्ठी बहुवचन) (षष्ठी बहुवचन) कि तभ्यां डासः 3/62 किं तद्भ्यां डासः । (किं) - (तत्) 5/2} डासः (डास) 1/1 किं→क, तत्-→ से परे (ग्राम के स्थान पर विकल्प से) डास-+प्रास (होता है)। प्रकारान्त पुतिलग सर्वनामों किक और तस्→त से परे प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डास→पास होता है । किं (पु.)-(क+आम्)=(क+प्रास)=कास (षष्ठी बहुवचन) त (पु)-(त+प्राम्)=(त+प्रास)=तास (षष्ठी बहुवचन) 62. किं यत्तद्भ्योडसः 3/63 किं यत्तद्भ्योङस: [ (यत्)+ (तद्भ्य.)+ (डसः)] [ (किं) - (यत्)-(तत्) 5/3] ङसः (अस्) 6/1 कि →क, यत्→ज, तत्-→त से परे ङस् के स्थान पर (विकल्प से डास→पास होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनामों कि+क, यत्→म, तत्-→त से परे इस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डास+प्रास होता है। क (पु.)-(क+ङस्) = (क+प्रास)=कास (षष्ठी एकवचन) त (पु.)-(त+ ङस्)-(त+मास)-तास (षष्ठी एकवचन) न (पु.)-(ज+इम्)-(+मास) जास (षष्ठी एकवचन) नोट -हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार किं -का (स्त्री), तत् →ता (स्त्री.) सर्वनाम में भी षष्ठी के एकवचन में डास-पास की प्रारित वैकल्पिक रूप से होती है। 42 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 63. ईदभ्यः स्सा से 3/64 ईद्भ्यः (ईत) 5/3 स्सा (स्सा) 1/1 से (से) 1/1 ईत्-ईकारान्त शब्दों से परे (ङस् के स्थान पर) स्सा, से (होते हैं)। ईत्-~ईकारान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्दों से परे ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से स्सा और से होते हैं। की (स्त्री)- (की+ ङस्) = (की+स्सा, से) = किस्सा, कोसे (षष्ठी एकवचन) ती (स्त्री.)-(ती--डस्) = (ती-+-स्सा, से) = तिस्सा, तीसे (षष्ठी एकवचन) जी (स्त्री)-(जी+ङस्) = (जी+स्सा, से) = जिस्सा', जीसे (षष्ठी एकवचन) 1. संयुक्ताक्षर से पूर्व दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है । 64. डे[हे डाला इमा काले 3/65 हि डाला इसा काले [ (:) + (डाहे)] डे: (डि) 6/1 डाहे (डाहे) 1/1 डाला (डाला) 1/1 इमा (इमा) 1/1 काले (काल) 7/1 कालवाचक शब्दों के होने पर (क, त, ज सर्बनामों से परे) डि के स्थान पर डाहे- आहे, डाला→ाला, इभा (विकल्प से होते हैं)। जब सर्वनाम क, त, ज कालवाचक शब्द के विशेषण रूप हों तब डि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डाहे+आहे, डासा+भाला मोर इग्रा होते हैं। क (पु.)- (क+ङि) =(क+आहे, पाला, इा)=काहे, काला, कहा (सप्तमी एकवचन) त (पु)-(त+ङि)=(त+अाहे, पाला, इमा)=ताहे, ताला, तइया (सप्तमी एकवचन) व (पु)- (ज+ङि)=(ज+माहे, पाला, इमा)=आहे, जाला, जइमा (सप्तमी एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम] [ 43 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 65 उसेम्हा 3/66 ङसेहो (ङसेः) + (म्हा)] ङसे: (ङसि) 6/1 म्हा (म्हा) 1/1 (सर्वनाम क, त, ज से परे) सि के स्थान पर (विकल्प से) म्हा (होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनामों क, त, ज से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से म्हा होता है । क (पु.)- (क+ङसि)=(क+म्हा)=कम्हा (पंचमी एकवचन) त (पु.)- (त-+ङसि) = (त+म्हा) =तम्हा (पंचमी एकवचन) ज (पु)-(ज+ङसि) = (ज+म्हा) =जम्हा (पंचमी एकवचन) 66. तदो डोः 3/67 तदो डोः [(तदः→ततः)+ (डोः)] ततः (तत्) 5/1 डो: (डो) 1/1 . तत्त से परे (ङसि के स्थान पर) (विकल्प से) डो-प्रो (होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनाम 'त' से परे ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डो→ो होता है । त (पु.)-(त+सि)=(त-+ो )=तो (पंचमी एकवचन) 67. किमोडियो-डीसौ 3/68 किमोडिणो-डीसो [(किमः)+ (डियो)] किमः (किम्) 5/1 [(डियो)-(डीस) 1/2] किम्→क से परे (ङसि के स्थान पर) (विकल्प से) डिणो→इणो, डीस→ईस (होते हैं)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनाम किम् --क से परे उप्ति (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डिणो+इणो और डीस-+ईस होते हैं। क (पु.)-(क---डसि)=(क+ इणो, ईस)=विणो, कीस (पंचमी एकवचन) 44 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68. इदमेतत्कि-यत्तद्भ्यष्टो डिरणा 3/59. . . इदमेतत्कि-यत्तस्यष्टो डिणा {(इदम्)+(एतत्)+(किं)-(यत्)+(तद्भ्यः)+ (टः) + (डिणा) ] [(इदम्) - (एतत्) - (किं) - (यत्) - (तत्) 5/3 ] ट: (टा) 6/1 डिणा (डिणा) 1/1 इदम्+इम, एतत्→एत, एम, किम् →क, यत्+ज, तत्→त से परे टा के स्थान पर डिणा→इणा (होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनाम इदम् -- इम. एतत्→एत, एअ, किम् --क, यत्-+ज, तत्+त से परे टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से डिणा-+इणा होता है। इम (पु)- (इदम् +इम+टा) = (इम+इणा) = इमिणा (तृतीया एकवचन) एत (पु.)-(एतत् -+एत्, एम+टा)=(एत, एम+ इणा)=एतिणा. एइणा । (तृतीया एकवचन) क (पु) - (किम्-+क+टा) = (क+इणा) = किरणा ___ (तृतीया एकवचन) न (पु.) - (यत्-+ज+टा) = (ज+इणा) = जिणा - (तृतीया एकवचन) त (पु.) - (तत्-+त+टा) = (त + इणा) = तिरणा (तृतीया एकवचन) 69. तदो रणः स्यादौ क्वचित् 3770 तदो णः स्यादौ क्वचित् [ (तदः-ततः)+(ण:)] [(सि)+ (प्रादौ) ] तत: (तत्) 6/1 ग (ण) 1/I [ (सि) - (आदि) 7/1] क्वचित् = कभीकभी (तत् से परे) सि आदि होने पर तत्-+त के स्थान पर कभी-कभी रण (होता अकारान्त पुल्लिग सर्वनाम तत्-+त से परे सि प्रादि (प्रथमा एकवचन, बहुवचन, द्वितीया एकवचन, बहुवचन प्रादि सभी विभक्तियां) होने पर कभी-कभी प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 45 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्→त के स्थान पर रण होता है। रण में भी त की ही भांति विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाते हैं। त (पु.)-(त+सि)-(ण+सि)=सो (3/86) (प्रथमा एकवचन) (त+जस्) = (ण+जस्)=ते, णे (3/58) (प्रथमा बहुवचन) इसी प्रकार अन्य विभक्सिबोधक प्रत्यय लग जाएंगे। 70. किमः कस्त्र-तसोश्च 3/71 किमः कस्त्र-तसोश्च [(क:)+()] [ (तमो:)+ (च)] किम: (किम्) 6/1 कः (क) 1/1 [(त्र) - (तस्) 7/2] च और (किम् से परे सि मादि होने पर) त्र-हि, ह, त्थ मोर तस्+त्तो, दो होने पर किम् के स्थान पर क हो जाता है । किम् से परे सि प्रादि, त्र-हि, ह, त्थ और तस्+त्तो, दो होने पर किम् के स्थान पर क हो जाता है (क में विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाते हैं)। किम (पु.)-(किम् + सि) +(क+सि, आदि)= (क+सि)=को (सूत्र 3/2) (क+जस्)=के (सूत्र 3/58) आदि (किम् -त्र)- (क+हि, ह, त्थ)=कहि, कह, कत्थ (मव्यय) (किम् + तस्) + (क+तो दो)=कत्तो, कदो (अव्यय) 71. इदम इप: 3/72 इदम इमः [(इदमः)+(इम:)] इदमः (इदम्) 6/1 इम: (इम) 1/1 (पुल्लिग में) इदम् के स्थान पर इम (और स्त्रीलिंग में इमा होता है)। पुल्लिग इदम् से परे सि भादि होने पर इदम् के स्थान पर इम होता है । (स्त्रीलिंग में इमा होता है)। इम (पु)-(इदम् +-सि)=(इम+सि)=इमो (सूत्र 3/2 से 'प्रो) (प्रथमा एकवचन) इमा (स्त्री.)-(इदम् + सि)=(इमा+सि)=इमा (प्रथमा एकवचन) इसी प्रकार अन्य विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जायेंगे । 46 ] प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72. पुं-स्त्रियोर्न वायमिमिमा सौ 3/73 धू-स्त्रियोर्न वायमिमिश्रा सो [(पुं-स्त्रियोः)+(न वा)+(अयम्) + (इमिश्रा)] [(पुं)-(स्त्री) 7/2] न वा-विकल्प से अयम् (अयम्) 1/1 इमिश्रा (इमिग्रा) 1/1 सौ (सि) 7/1 पुल्लिग व स्त्रीलिंग में सि परे होने पर विकल्प से अयम्, इमिमा (होता है)। इम सर्वनाम शब्द के पुल्लिग व स्त्रीलिंग में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से दोनों के स्थान पर अयं (पुल्लिग) व इमिश्रा (स्त्रीलिंग) होता है। इम (पु.). (इम+सि)=प्रयं (प्रथमा एकवचन) इमा (स्त्री.)-(इमा+सि)=इमिश्रा (प्रथमा एकवचन) 73. स्सि-स्सयोरत् 3/74 स्सि-स्सयोरत् [(स्सि)-(स्सयोः)+(प्रत्)] [(स्सि)-(स्स) 7/2] अत् (अत्) 1/1 स्सि और स्स परे होने पर (इम सर्वनाम का) अत्-प्र (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग सर्वनाम इम के सप्तमी एकवचन में स्सि प्रत्यय होने पर और षष्ठी एकवचन में स्स प्रत्यय होने पर इम का विकल्प से प्र हो जाता है । इम (पु.)-(इम→+स्सि)=अस्सि (सप्तमी एकवचन) (इम-प्र+स्स)=प्रस्स (षष्ठी एकवचन) 74. लेर्मेनहः 3/75 मनहः [(ङ)+(मेन)] के: (ङि) 6/1 मेन (म) 3/1 हः (ह) 1/1 ङि के स्थान पर (इम का) म सहित (विकल्प से) ह (होता है) । इम पुल्लिग सर्वनाम शब्द के ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर (इम का) म सहित विकल्प से ह होता है । इम (पु)-(इम+ङि)=इह (सप्तमी एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 47 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 75. न स्थः 3/76 न-नहीं स्थ: (त्थ) 1/1 स्थ नहीं (होता है)। इम पुल्लिग सर्वनाम के सप्तमी एकवचन में स्थ प्रत्यय नहीं होता है । 76. पोऽम् शस्टा-भिसि 3/77 णोऽम्-शस्टा-भिसि [(णः)+ (अम्] [(शस्)+(टा)] रण. (ण) 1/1 [(अम्)-(शस्)-(टा)-(भिस्) 7/1] अम्, शस्, टा, भिस परे होने पर (विकल्प से) ण (होता है)। अकारान्त पुल्लिग सर्वनाम इम के प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय), भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से ण होता है । " में विभक्तिबोधक प्रत्यय लग जाते हैं। इम (पु.)- (इम→ण+अम्)=(ण + )=णं (अम् = '' सूत्र 3/5 से) (द्वितीया एकवचन) (इम-ण+शस्)=(ण+o)=णा (शस्='0' सूत्र 3/4, 3/12 से दीर्घ) (द्वितीया बहुवचन) (इम+ण+शस्)=(ण+०)=णे (शस्='0' 3/4 से, सूत्र 3/14 से 'ए') (द्वितीया बहुवचन) (इम+ण+टा)=(ण+इणा)=रिगणा (टा='इणा' सूत्र ___3/69) (तृतीया एकवचन) (इम+ण+मिस्) (ण+हि, हिं, हिं)=णेहि, हिँ, हिं (मिस् =हि, हिं, हिं सूत्र 3/7, 3/15) (तृतीया बहुवचन) 77. अमेणम् 3/78 अमेणम् (अमा)+(इणम्)] अमा (अम्) 3/1 इणम् (इणम्) 1/1 48 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम् सहित (इदम् →इम का) इणम् (होता है)। इम पुल्लिग-नपुंसकलिंग सर्वनाम में अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) सहित इम का इणं होता है। इम (पु., नपु.)-(इम+अम्) इणं (द्वितीया एकवचन) 78. क्लीबे स्यमेदमिणमो च 3/79 क्लीबे स्यमेदमिणमो च [ (सि) + (प्रमा)+(इदम्)-+ (इणमो)] क्लीबे (क्लीब) 7/1 [(सि)-(अम्) 3/1] इदम् (इदम्) 1/1 णमो (इणमो) 1/! चोर नपुंसकलिंग में सि और प्रम् सहित (इदम् -→इम का) इदं, इणमो और इणं (होता है)। नपुंसकलिंग सर्वनाम इम में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) और प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) सहित इदं, इणमो और इणं होता है । इम (नपु.)-(इम+सि)=इदं, इणमो, इणं (प्रथमा एकवचन) ___(इम+अम्)= इदं, इणमो, इणं (द्वितीया एकवचन) 79. किमः किं 3/80 किम: (किम्) 6/1 कि (किं) 1/1 किम् के स्थान पर कि (होता है)। नपुंसकलिंग सर्वनाम शब्द किम् के स्थान पर सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) और अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) सहित किं होता है । किम् (नपु.)-(किम् +सि)=कि (प्रथमा एकवचन) (किम् +अम्)=कि (द्वितीया एकवचन) 80. वेदं-तदेतदो ङसाम्भ्यां से -सिमौ 3/81 वेदं तदेतदो ऊसाम्भ्यां से-सिमौ (वा)+ (इदम्)) (तद्→तत्)+(एतदः→एततः) +(इस्)-(प्राम्भ्याम्)] वा=विकल्प से (इदम्)-(तत्)-(एतत्) 6/1] [(ङस्) - (ग्राम्) 3/2] [(से)-(सिम्) 1/2] प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 49 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ङस् और ग्राम सहित इदम्→इम, इमा, तत्-+त, ता, एतत्-+एत, एता, एम, एा के स्थान पर विकल्प से से और सिं (होता है)। पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम इदम्-इम, इमा, तत्त , ता, एतत्+एत, एता, एम, एपा के स्थान पर ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) और पाम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) सहित विकल्प से से और सि होता है। इम (पु., नपु.) इमा (स्त्री.)-(इम, इमा+ङस)=से (षष्ठी एकवचन) (इम, इमा+आम्)=सिं (षष्ठी बहुवचन) त (पु., नपु.) ता (स्त्री.)-(त, ता+ ङस)=से (षष्ठी एकवचन) (त, ता+प्राम्)=सि (षष्ठी बहुवचन) एत (पु , नपु.) एता (स्त्री.)-(एत, एता+ङस)=से (षष्ठी एकवचन) (एअ, एप्रा + ङस)=से (षष्ठी एकवचन) (एत, एता+प्राम्)=सि (षष्ठी बहुवचन) (एप्र, एमा+प्राम्)=fस (षष्ठी बहुवचन) 81. वैतदो ङसेस्तो ताहे 3/82 वैतदो सेस्तो ताहे [(बा) + (एतदः- एततः)+ (ङसे:)+(तो)] वा=विकल्प से एततः (एतत्) 5/1 इसेः (ङसि) 6/1 तो (त्तो) 1/1 त्ताहे (त्ताहे) 1/1... एतत्→एत से परे ङसि के स्थान पर विकल्प से तो (और) ताहे (होता है)। पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्द एतत्-+एत, एता से परे सि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से तो और ताहे होता है । एत (पु , नपु.)-(एत+ङसि)=(एत + तो, त्ताहे) एत्तो, एत्ताहे . _ (पंचमी एकवचन) नोट - यहां सूत्र 3/83 से एत में 'त' का लोप हो गया। एता (स्त्री ) - (एता+एमा+ङसि) = (एप्रा+तो, ताहे) = एप्रत्तो, ..एअत्ताहे 50 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 त्थे च तस्य लुक् 3/83 त्थे (त्थ) 7/1 च =और तस्य (त) 6/1 लुक (लुक्) 1/1 स्य और (तो, ताहे प्रत्यय परे होने पर) त का लोप (हो जाता है)। एत पुल्लिग, नपुंसकलिंग सर्वनाम शब्द के स्थ (सप्तमी एकवचन में प्रयुक्त प्रत्यय) और तो, ताहे (पंचमी एकवचन में प्रयुक्त प्रत्यय) परे होने पर एत के त का लोप हो जाता है। एत (पु., नपु.)-(एत+तो, ताहे)=ए तो, एताहे (पंचमी एकवचन) (एत +त्थ)= एत्थ (सप्तमी एकवचन) 83. एरदीतौ म्मौ वा 3/84 एरदीतो म्मौ वा [(ए:)+(प्रत्)+ (ईतौ)] ए: (ए) 6/1 [(अत्)-(ईत्) 1/2] म्मौ (म्मि) 7/1 वा=विकल्प से (एतत् से परे) म्मि होने पर 'ए' के स्थान पर विकल्प से अत्-अ, ईत्-ई (होता है)। पुल्लिग, नपुंसकलिंग एतत्-→एत→एम से परे म्मि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) होने पर 'ए' के स्थान पर विकल्प से अत्→अ, ईत्-ई होता है । एत (पु , नपु.)-(एत→एस-+म्मि)=अम्मि→अम्मि (सप्तमी एकवचन) (एत→ईन+म्मि) = ईअम्मि→ईयम्मि (सप्तमी एकवचन) 84. वैसेरणमिणमो सिना 3/85. वैसेणमिणमो सिना [(वा)+ (एस)+(इणम्) + (इणमो)] वा=विकल्प से एस (एस) 1/1 इणम् (इणम्) 1/1 इणमो (इणमो) 1/1 सिना (सि) 3/1 सि सहित (एतत्→एत-→एम का) विकल्प से एस, इणं और इणमो (होता है) । पुल्लिग, नपंसकलिंग एतत्→एत→एम से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर सि सहित एम का विकल्प से एस, इणं और इणमो होता है । एत (पु., नपु.)- (एतत् →एत→एम+सि)=एस, इणं, इणमो . .(प्रथमा एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 51 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 85. तदश्च तस्य सोऽक्लीबे 3/86 तदश्च तस्य सोऽक्लोबे [(तदाततः)+(च)] [(सः)+(प्रक्लीबे)] ततः (तत्) 5/1 चमोर तस्य (त) 6/1 सः (स) 1/1 प्रक्लीबे (अक्लीब) 7/1 पुल्लिग, स्त्रीलिंग तत्→त, ता और (एतत् →एत, एता) से परे (सि सहित) त के स्थान पर स (होता है)। पुल्लिग, स्त्रीलिंग तत्→त, ता एतत् →एत, एता से परे सि होने पर उन दोनों के स्थान पर स होता है । एत (पु.)-(एत-→एस+सि) एसो (प्रथमा एकवचन) त (पु.)-(त-→स+सि)=सो (प्रथमा एकवचन) एता (स्त्री.)-(एता→एसा+सि) एसा (प्रथमा एकवचन) ता (स्त्री.)-(ता→सा+सि)=सा (प्रथमा एकवचन) नोट-सूत्र 3/2 से एत, त पुल्लिग में डो→प्रो हुअा है । 86. वादसो दस्य होऽनोदाम 3/87 बादसो वस्य होऽनोदाम् [(वा)+(अदसः)+ (दस्य)] (हः)+(अन्)+ (प्रोत्) +(प्रा)+ (म्)] वा=विकल्प से प्रदसः (पदस्) 6/1 दस्य (द) 6/1 हः (ह) 1/1 अन्न हीं प्रोत् (मोत्) 1/1 मा (प्रा) 1/1 म् (म्) 1/1 (सि परे होने पर) (सि सहित) प्रदस्-+प्रद के द का विकल्प से ह (हो जाता है) (मौर मह रूप बन जाता है) । (ग्रह में) मो, मा और म्+ - प्रत्यय नहीं (लगते हैं)। सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) परे होने पर (सि सहित) प्रद के द का विकल्प से ह हो जाता है । और पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग के प्रथमा एकवचन में अह बनता है । अकारान्त पुल्लिग प्रथमा एकवचन का प्रत्यय प्रो, स्त्रीलिंग का प्रा तथा नपुंसकलिंग का म् प्रत्यय नहीं लगते हैं । प्रवत् (पु., नपु., स्त्री.)- (अदस्+पद+सि)=मह (प्रथमा एकवचन) 52 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सोरम Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 87. मुः स्यादौ 3/88 मुः स्यादौ [(सि)+ (प्रादौ)] मुः (मु) 1/1 [(सि)- (आदि) 7/1] सि आदि परे होने पर (अदस्→अद के द के स्थान पर) मु (होता है)। अदस्+प्रद पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्दों के सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) आदि सभी विभक्तियों के एकवचन एवं बहुवचन में 'पद' के द का मु होता है फिर इसमें विमक्तिबोधक प्रत्यय लगते हैं । प्रद (पु.)-(अद-प्रमु+सि)=प्रमू (प्रथमा एकवचन) प्रद (नपु)-(प्रद+अमु+सि)=प्रम (प्रथमा एकवचन) (सूत्र 3/25 से '-' हुआ है) प्रद (स्त्री.)-(प्रद+प्रमु+सि)=प्रम (प्रथमा एकवचन) (सूत्र 3/19 से दीर्घ हुमा है) इसी प्रकार सभी विभक्तियों में रूप बनेंगे। 88. म्मावयेत्रो वा 3/89 म्मावयेणौ वा [(मौ)+ (अय) + (इनो)] म्मो (म्मि) 7/1 [(अय)-(इन) 1/2] वा=विकल्प से म्मि परे होने पर (प्रद का) विकल्प से 'अय' और 'इन' (होता है)। प्रद पुल्लिग, नपुंसकलिंग सर्वनाम शब्द के म्मि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) परे होने पर प्रद का 'अय' और 'इन' विकल्प से होता है । प्रद (पु, नपु)- (प्रद+मय, इम+म्मि) = प्रयम्मि, इम्मि (सप्तमी एकवचन) 89. युष्मदस्तं तुं तुवं तह तमं सिना 3/90 युष्मदस्तं तु तुवं तुह तुम सिना [(युष्मदः)+ (तं)] युष्मदः (युष्मद्) 6/1 तं (तं) 1/1 तु (तुं) 1/1 तुबं (तु) 1/1 तुह (तुह) 1/1 तुम (तुम) 1/1 सिना (सि) 3/1 : प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 53 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युष्मद् तुम्ह के स्थान पर ( सि सहित ) तं, तुं, तुवं, तुह, तुमं (होते हैं) । पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्द युष्मद् + तुम्ह के सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) सहित तं, तुं, तुवं, तुह, तुमं होता है । युष्मद् + तुम्ह (पु., नपु, स्त्री ) - ( तुम्ह + सि) तं, तुं, तुवं, तुह, तुमं 90. भे तब्भे तुज्झ तुम्ह तुम्हे उय्हे जपा 3/91 भे (भे) 1 / 1 तुब्भे (तुब्भे) 1/1 तुज्झ (तुज्झ ) 1 / 1 तुम्ह (तुम्ह) 1 / 1 तुम्हे (तुम्हे ) 1 / 1 उहे (उहे ) 1 / 1 जसा ( जस्) 3/1 जस् सहित | युष्मद् + तुम्ह के) भे, तुब्भे, तुज्झ, तुम्ह, तुम्हे, उय्हे (होते हैं) । 54 युष्मद् तुम्ह के जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) सहित भे, तुम्भे, तुज्झ, तुम्ह, तुम्हे, हे होता है । 91 तं तुं तुमं तुवं तुह तुमे तुए श्रमा युष्मद् + तुम्ह (पु, नपु, स्त्री ) - ( तुम्ह + जस् ) = भे, तुम्भे, तुज्भ, तुम्ह, तुम्हे, उहे (प्रथमा बहुवचन) 3/92 तं (तं) 1 / 1 तु (तुं) 1 / 1 तुमं (तुमं) 1 / 1 तुमे (तुमे) 1 / 1 तुए (तुए) 1/1 प्रमा (म्) 3 / 1 भम् सहित तं, तुं, तुमं, तुवं, तुह, तुमें, तुए (होते हैं) । (प्रथमा एकवचन ) 1 तुम्ह सर्वनाम शब्द के श्रम (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) सहित तं, तुं, तुवं, तुह, तुमे, तुए होते हैं । तुवं (तुवं ) 1 / 1 तुह (तुह ) 1 / 1 तुम्ह (पु., नपु., स्त्री.) - ( तुम्ह + श्रम् ) = तं तु तुषं, तुह तुमे तुए 92. वो तुज्झ तुब्भे तुम्हे उन्हे भे शसा 3/93 वो (वो) 1/1 तुझ (तुज्झ ) 1 / 1 तुमे (तुम्भे) 1 / 1 तुम्हे (तुम्हे ) 1 / 1 उम्हे (उरहे) 1 / 1 मे (भे) 1 / 1 शसा (शस् ) 3 / 1 ( द्वितीया एकवचन ) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शास् सहित वो, तुज्झ, तुब्भे, तुम्हे, उय्हे, भे (होते हैं)। तुम्ह सर्वनाम शब्द के शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित वो, तुज्झ, तुन्भे, तुम्हे, उय्हे, भे (होते हैं)। तुम्ह (पु., नपु., स्त्री)-(तुम्ह+शस्)=वो, तुज्झ, तुन्भे, तुम्हे, उय्हे, भे ___ (द्वितीया बहुवचन) 93. भे दि दे ते तइ तए तमं तमइ तमए तुमे तुमाइ टा 3/94 मे (भे) 1/1 दि (दि) 1/1 दे (दे) 1/1 ते (ते) 1/1 तइ (तइ) 1/1 तए (तए) 1/1 तुम (तुमं) 1/1 तुमइ (तुम इ) 1/1 तुमए (तुमए) 1/1 तुमे (तुमे) 1/1 तुमाइ (तुमा इ) 1/1 टा (टा) 3/1 टा सहित (तुम्ह के) भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुमं, तुमइ, तुमए तुमे, तुमाइ (होते हैं)। तुम्ह सर्वनाम शब्द के टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) सहित भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुमं, तुमइ, तुमए, तुमे, तुमाइ (होते हैं)। तुम्ह (पु., नपु., स्त्री.)-(तुम्ह+टा)=भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुम, तुमइ, तुमए, तुमे, तुमाइ (तृतीया एकवचन) 94. भे तुब्भेहिं उज्झेहि उम्हेहिं तुम्हेहि उव्हेहि भिसा 3/95 मे (भे) 1/1 तुन्भेहिं (तुब्भेहिं) 1/1 उज्झेहिं (उज्झेहि) 1/1 उम्हेहिं (उम्हेहिं) 1/1 तुम्हेहि (तुम्हेहिं) 1/1 उव्हेहिं (उय्हेहिं) 1/1 भिसा (भिस्) 3/1 भिस् सहित (तुम्ह के) भे, तुन्भेहि, उज्झेहि, उम्हेहि, तुम्हेहिं, उव्हेहिं (होते हैं)। तुम्ह सर्वनाम के भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित भे, तुम्भेहि, उज्झेहिं, उम्हेहि, तुय्हेहिं, उव्हेहिं रूप (होते हैं)।। तुम्ह (पु , नपु., स्त्री )-(तुम्ह+मिस्)=भे, तुब्भेहि, उज्झहिं, उन्हे हिं, तुम्हेहि उय्हेहिं (तृतीया बहुवचन) 95. तइ-तुव-तुम-तुह-तुम्भा ङसौ 3/96 तइ-तुव-तुम -तुह [(तुभाः )+ (ङसौ)] (तइ)-(तुव)-(तुम)-(तुह)-(तुन्म) 3/1] इसौ (सि) 7/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 55 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ङसि परे होने पर (तुम्ह के) तइ, तुव, तुम, तुह, तुब्भ (होते हैं)। तुम्ह सर्वनाम शब्द के ङसि (पंचमी एक वचन के प्रत्यय) परे होने पर तुम्ह के स्थान पर तइ तुव, तुम, तुह, तुभ होते हैं । (फिर इनमें पंचमीबोधक प्रत्यय लगते हैं) (सूत्र 3/8, 3/12) । तुम्ह (पु., नपु , स्त्री.)-(तुम्ह+ङसि)=त इत्तो, तईओ, तईउ, तईहिन्तो, तुवत्तो, तुवामो, तुवाउ, तुवाहि, तुवाहिन्तो, तुवा, तुमत्तो, तुमानो, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहितो, तुमा, तुहत्तो, तुहानो, तुहाउ, तहाहि, तहाहिन्तो, तुहा, तुब्मत्तो, तुब्मामो, तुब्माउ, तुम्माहि, तुम्माहितो, तुम्मा (पंचमी एकवचन) 96. तुम्ह तुब्भ तहितो ङसिना 3/97 तुय्ह (तुम्ह) 1/1 तुम्भ (तुम्भ) 1/1 तहितो (तहितो) 1/1 डसिना (ङसि) 3/1 ङसि सहित (तुम्ह के) तुम्ह, तुब्म, तहितो (होते हैं)। इसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) सहित तुम्ह के तुम्ह, तुम, तहितो होते हैं । तुम्ह (पु., नपु., स्त्री.)-(तुम्ह+ ङसि) == तुम्ह, तुब्भ, तहितो (पंचमी एकवचन) 97. तुम्भ-तुय्होय्होम्हा भ्यसि 3/98 तुभ-तुम्होरहोम्हा भ्यसि [(तुम्ह)+ (उय्ह)+ (उम्हाः)+(म्यसि)] [(तुम)-(तुम्ह)-(उय्ह)-(उम्ह) 1/3] भ्यसि (म्यस्) 7/1 भ्यस् परे होने पर (तुम्ह के स्थान पर) तुब्भ, तुम्ह, उय्ह, उम्ह (होते हैं)। भ्यस् (पचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर तुम्ह के स्थान पर तुम , तुम्ह, उय्ह, उम्ह होते हैं (फिर इनमें पंचमीबोधक प्रत्यय लगते हैं) (सूत्र 3/9, 3/12, 3/13)। 56 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्ह (पु, नपु., स्त्री ) ( तुम्ह + भ्यस् ) = तुम्भत्तो, तुब्भाप्रो, तुब्भाउ, तुम्भाहि, तुब्भाहितो, तुब्मा सुंतो, तुम्हत्तो, तुम्हामो, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हाहतो, तुम्हातो, उहत्तो, उहाश्रो, उय्हाउ, उय्हाहि, उय्हा हितो, उम्हातो, उम्हत्तो, उम्हाम्रो, उम्हाउ, उम्हा हि, उम्हाहितो, उम्हासुंतो (पंचमी बहुवचन) 98. तइ तु ते तुम्हं तुह तुहं तुव- तुम तुमे तुमो-तुमाइ दि-दे-इ-ए - तुम्भोकभोय्हाङसा 3/99 तुम्भोकभोय्हाङसा [ ( तुब्भ) + (उब्भ) + (उय्हा :) + (ङसा ) ] ((तइ) - (तु) - (ते) - (तुम्हं) - (तुह्) - (तुहं ) - (तुव ) - (तुम) - (तुमे ) - (तुमो) - (तुमाइ ) - (दि) - (दे) - (इ) - (ए) - (तुब्भ) - ( उब्भ ) - ( उय्ह ) 1 / 3 ] ङसा ( ङस् ) 3/1 ङस् सहित ( तुम्ह के) तइ, तु, ते, तुम्हं, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, ए, तुब्भ, उब्भ, उय्ह (होते हैं) । ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) सहित तुम्ह का तइ, तु, ते, तुम्हं, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ दि, दे, इ, ए, तुब्भ, उब्भ, उय्ह होते हैं । तुम्ह (पु., नपु., स्त्री. ) - ( तुम्ह + ङस् ) = तइ, तु, ते, तुम्हं तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ दि, दे, इ, ए, तुब्भ, उम्भ, उय्ह (षष्ठी एकवचन ) 99. तु वो भे तुम्भ तुब्भं तुम्भारण तुवाण तुमार तुहाण उम्हाण श्रामा 3 / 100 तु (तु) 1/1 वो (वो) 1 / 1 मे ( भे) 1 / 1 तुब्भ (तुब्भ) 1 / 1 तुब्भं (तुब्भं) 1/1 तुम्भा ( तुम्भाण) 1 / 1 तुवारण (तुवारण) 1 / 1 तुमारण (तुमाण) 1 / 1 तुहा ( तुहाण) 1 / 1 उम्हाण ( उम्हाण) 1 / 1 ग्रामा (आम् ) 3 / 1 श्राम सहित (तुम्ह के) तु, वो, भे, तुब्भ, तुब्भं, तुब्भाण, तुवाण, तुमाण, तुहाण, उम्हाण (होते हैं) । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 57 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) सहित तु, वो, मे, तुम्भ, तुम्भ, तुमारण, तुवाण, तुमाण तुहाण, उम्हाण (होते हैं)। तुम्ह (पु., नपु., स्त्री.)-तुम्ह+पाम् । = तु. वो, भे, तुब्भ, तुब्भ तुब्माण, तुवाण, तुमाण, तुहाण, उम्हाण (षष्ठी बहुवचन) 100. तुमे तुमए तुमाइ तइ तए ङिना 3/101 तुमे (तुमे) 1/1 तुमए (तुमए) 1/1 तुमाइ (तुमाइ) 1/1 तइ (तइ) 1/1 तए (तए) 1/1 डिना (ङि) 3/1 ङि सहित (तुम्ह के) तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, तए (होते हैं)। ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) सहित तुम्ह के तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, तए होते हैं। तुम्ह (पु., नपु, स्त्री.)- (तुम्ह + ङि)-तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, तए (सप्तमी एकवचन) 101. तु-तुव-तुम-तुह-तुब्भा डौ 3/102 तुम्भा डौ [(तुम्माः )+(ौ) [(तु)-(तुव)-(तुम)-(तुह)- (तुब्भ) 1/3] डो (ङि) 7/1 ङि परे होने पर (तुम्ह के) तु, तुव, तुम, तुह, तुम होते हैं । ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह के) तु, तुव, तुम, तुह, तुब्भ होते हैं (फिर इनमें सप्तमी एकवचन बोधक प्रत्यय लगते हैं) (सूत्र 3/59)। तुम्ह (पु , नपु. स्त्री.)-(तुम्ह+ङि)=तु, तुव, तुम, तुह, तुम्भ (तु +म्मि, रिस, त्थ)=तुम्मि, तुस्सि, तुत्थ (तुब+म्मि, स्सि, त्थ)=तुवम्मि, तुस्सि, तुवत्थ (तुम+म्मि, स्सि, स्थ)=तुमम्मि, तुमस्सि, तुमत्थ (तुह+म्मि, स्सि, त्थ)=तुहम्मि, तुहस्सि, तुहत्थ (तुब्भ+म्मि, रिस, त्थ)=तुमम्मि, तुम्भस्सि, तुब्मस्थ (सप्तमी एकवचन) 58 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102. सुपि 3/103 सुपि (सुप्) 7/1 सुप्→सु परे होने पर (तुम्ह के) तु, तुव, तुम, तुह, तुब्म (होते हैं) । सुप्-→सु (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर (तुम्ह के स्थान पर) तु, तुव, तुम, तुह, तुब्भ होते हैं । तुम्ह (पु., नपु., स्त्री)-(तु+सु)=तुसु (तुव+सु)=तुवेसु (तुम+सु)-तुमेसु (तुह+सु)=तुहेसु (तुब्भ +सु)=तभेसु __(सप्तमी बहुवचन) 103. भो म्ह-ज्झौ वा 3/104 भो म्ह-झो वा [(म्भः)+ (म्ह)] भः (ब्म ) 6/1 [(म्ह)-(झ) 1/2] वा=विकल्प से (तुम्ह सर्वनाम शब्द के) (तुब्भ प्रत्यय के) ब्म के स्थान पर विकल्प से म्ह और ज्झ (होते हैं)। (तुम्ह सर्वनाम शब्द के) तुम प्रत्यय के स्थान पर (चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी एकवचन एवं बहुवचन) विकल्प से म्ह और ज्झ होते हैं । तुम्ह (पु., नपु., स्त्री.)- तुब्भ ->तुम्ह, तुज्झ तुम्ह, तुज्झ दोनों ही प्रत्ययों में चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी के एकवचन एवं बहुवचन के प्रत्यय लगा लेने चाहिए (इसके लिए तुम्ह की रूपावली देखें)। 104. प्रस्मदोम्मि अम्मि अम्हि हं प्रहं प्रहयं सिना 3/105 अस्मदोम्मि अम्मि अम्हि हं अहं प्रहयं सिना | (अस्मदः)+ (म्मि)] अस्मदः (अस्मद्) 6/1 म्मि (म्मि) 1/1 मम्मि (अम्मि) 1/1 अम्हि (अम्हि) 1/1 हं (ह) 1/1 अहं (अहं) 1/1 प्रहयं (महय) 1/1 सिना (सि) 3/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 59 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्मद्-→प्रम्ह के सि सहित म्मि, अम्मि, अम्हि, हं, अहं, अहयं (होते हैं)। अस्मद् →प्रम्ह के सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) सहित म्मि, अम्मि, अम्हि, हं, अहं, अहयं होते हैं। अम्ह (पु., नपु., स्त्री.)-(अम्ह-+-सि)=म्मि, अम्मि, अम्हि, हं, अहं, अहयं (प्रथमा एकवचन) 105. प्रम्ह अम्हे अम्हो मो वयं मे जसा 3/106 प्रम्ह (प्रम्ह) 1/1 अम्हे (अम्हे) 1/1 अम्हो (अम्हो) 1/1 मो (मो) 1/1 वयं (वयं) 1/1 मे (भे) 1/1 जसा (जस्) 3/1 (अस्मद् →अम्ह के) जस् सहित प्रम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, भे (होते हैं । प्रम्ह के जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) सहित अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, भे होते हैं। अम्ह (पु., नपु., स्त्री.)- (अम्ह+जस्)=प्रम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, भे (प्रथमा बहुवचन) 106. रणे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं प्रमा 3/107 णे (णे) 1/1 (ण) 1/1 मि (मि) 1/1 अम्मि (अम्मि) 1/1 अम्ह (अम्ह) 1/1 मम्ह (मम्ह) 1/1 में मं) 1/1 ममं (मम) 1/1 मिमं (मिमं) 1/1 अहं (अहं) 1/1 प्रमा (अम्) 3/1 (अम्ह के) अम् सहित णे, ण, मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, मं, मम, मिमं, अहं (होते हैं।। प्रम्ह के अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) सहित णे, णं, मि, अम्मि, अम्ह. मम्ह, म, मम, मिमं, अहं होते हैं । प्रम्ह (पु., नपु. स्त्री.)- (अम्ह+अम्) =णे, णं, मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, में, मम, मिमं, अहं (द्वितीया एकवचन) 107. अम्हे अम्हो अम्ह रणे शसा 3/108 अम्हे (अम्हे) 1/1 प्रम्हो (अम्हो) 1/1 (अम्ह) 1/1 णे (णे) 1/j शसा (शस्) 3/1 60 ) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (प्रम्ह के) शस् सहित अम्हे, अम्हो, अम्ह, णे (होते हैं)। प्रम्ह के शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित अम्हे, प्रम्हो. अम्ह, णे होते हैं । प्रम्ह (पु., नपु. स्त्री.)-(अम्ह-+-शस्) = अम्हे. अहो, अम्ह, णे (द्वितीया बहुवचन) 168. मि मे ममं ममए ममाइ मइ मए मयाइ णे टा 3/109 मि (मि) ।/1 मे (मे) 1/1 मम (मम) 1/1 ममए (ममए) 1/1 ममाइ (ममाइ) 1/1 (मइ) 1/1 मए (मए) 1/1 मयाइ (मयाइ) 1/1 रणे (णे) 1/1 टा (टा) 3/1 (अम्ह के) टा सहित मि, मे, मम, ममए, ममाइ, मइ, मए, मयाइ णे (होते अम्ह के टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) सहित मि, मे, मम, ममए, ममाइ, मइ, मए, मया इ, ण होते हैं । अम्ह (पु., न., स्त्री.)-(अम्ह+टा)=मि, मे, ममं, ममए, ममाइ, मइ, मए, ___ मया इ, णे (तृतीया एकवचन) 109. अम्हेहि प्रम्हाहि अम्ह प्रम्हे णे भिसा 3/110 - अम्हेहि (अम्हेहि) 1/1 अम्हाहि (अम्हाहि) 1/1 अम्ह (अम्ह) 1/1 अम्हे (अम्हे) 1/। रणे (ण) 1/1 भिसा (भिस्) 3/1 (अम्ह के) भिस् सहित अम्हेहि अम्हाहि, अम्ह, अम्हे, णे (होते हैं)। अम्ह के मिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित अम्हेहि, अम्हाहि, अम्ह, अम्हे, णे (होते हैं)। प्रम्ह (पु., नपु , स्त्री.) - (अम्ह+भिस्) = अम्हे हि, अम्हाहि, अम्ह, अम्हे, णे (तृतीया बहुवचन) 110. मइ-मम-मह-मझाङसौ 3/111 मइ-मम-मह-मज्झाङसौ (मज्झा )+ (ङसो)] [(मइ)- (मम)- (मह) - (मज्झ) 1/3] सौ (ङसि) 7/1 प्रौह प्राकृत रचना सौरम ] [ 61 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ङसि परे होने पर (अम्ह के स्थान पर) मइ, मम, मह, मज्झ (होते हैं)। ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर (प्रम्ह के स्थान पर) मइ, मम, . मह, मज्झ होते हैं (फिर इनमें पंचमीबोधक प्रत्यय लगेंगे) (सूत्र 3/8, 3/12)। अम्ह (पु., नपु., स्त्री.) - (अम्हन-ङसि)=मइ, मम, मह, मज्झ (म इ-+त्तो, ओ, उ, हिन्तो)=मइत्तो, मईयो, ('०', हि का लोप इकारान्त में) मईउ, म ईहिन्तो (मम+त्तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, .)=ममत्तो, ममानो, ममाउ, ममाहि, ममाहिन्तो, ममा (मह+तो, प्रो, उ, हि, हिन्तो, ०)=महत्तो, महायो, महाउ, महाहि, महाहितो, महा (मज्झ+तो, मो, उ, हि, हिन्तो,०)=मज्झत्तो,मज्झानो, मज्झाउ, मज्झाहि, मज्झाहितो, मज्झा (पंचमी एकवचन) 111. ममाम्ही भ्यसि 3/112 ममाम्ही भ्यसि [(मम)+(अम्ही)] [(मम)-(प्रम्ह) 1/2] भ्यसि (भ्यस्) 7/1 भ्यस् परे होने पर (प्रम्ह के स्थान पर) मम और अम्ह (होते हैं)। भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अम्ह के स्थान पर मम और प्रम्ह होते हैं (फिर इनमें पंचमी बहुवचन के प्रत्यय लगेंगे) (सूत्र 3/9, 3/12 3/13) । प्रम्ह (पु., नपु., स्त्री)- (अम्ह+भ्यस्)=मम, अम्ह (मम+त्तो, प्रो, उ, हि, -ममत्तो, ममायो, हिन्तो, सुन्तो) ममाउ ममाहि ममाहितो. ममासुन्तो (प्रम्ह+तो, मो, उ, हि, =अम्हतो, प्रम्हानो, हिन्तो, सुन्तो) प्रम्हाउ, अम्हाहि, अम्हाहितो, अम्हासुन्तो 62 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112. मे मइ मम मह महं मज्झ मज्भं ग्रम्ह म्हं ङसा 3 / 1 ! 3 मे (मे) 1/1 मइ (मइ) 1 / 1 मम (मम) 1 / 1 मह (मह) 1 / 1 महं (महं) 1 / 1 मज्झ (मज्झ) 1/1 मज्भं ( मज्झ ) 1 / 1 ग्रम्ह ( अम्ह ) 1 / 1 ग्रहं (अहं) 1 / 1 ङसा (ङस् ) 3 / 1 ( ग्रह के ) ङस् सहित मे, मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्भं ग्रम्ह, अहं (होते हैं) । अह के ङस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) सहित मे, मइ, मम, मह, महं, मज्भ, मज्भ, अम्ह, अहं होते हैं । अम्ह (पु., नपु., स्त्री. ) ( श्रम्ह + ङस् ) = मे, मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्भं, अम्ह, अम्हं (षष्ठी एकवचन) 113. णे णो मज्झ श्रम्ह म्हं श्रम्हे अम्हो श्रम्हाण ममारण महाण मज्भारण श्रामा 3/114 (ण) 1/1 णो णो ) 1 / 1 मज्झ (मज्झ ) 1 / 1 श्रम्ह ( श्रम्ह ) 1 / 1 अम्हं (अहं) 1/1 हे ( अम्हे ) 1 / 1 अम्हो ( अम्हो ) 1 / 1 ग्रम्हाण (ब्रम्हाण) 1 / 1 ममाण (ममाण) 1 / 1 महाण ( महाण ) 1 / 1 मज्झाण (मज्झाण) 1 / 1 श्रामा (ग्राम् ) 3 / 1 (ह के ) ग्राम सहित णे णो, मज्झ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हो, अम्हारा, ममाण, महाण, मज्भाण (होते हैं) । अम्ह के आम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) सहित णे णो, मज्झ, अम्ह, अहं, अम्हे, अहो, म्हाण, ममाण, महारण, मज्झाण होते हैं । 1 ब्रम्ह (पु, नपु, स्त्री ) - (ग्रम्ह + आम् ) = णे णो मज्झ, ब्रम्ह, श्रम्हं, अम्हे, अम्हो, अम्हाण, ममाण, महाण, मज्भाण ( षष्ठी बहुवचन) 114. मि मइ ममाइ मए में ङिना 3/115 मि (मि) 1 / 1 मह (मइ) 1 / 1 ममाइ ( ममाइ) 1 / 1 मए (मए) 1 / 1 मे (मे) 1/1 fear (f) 3/1 प्रोढ प्राकृत रचना सौरम ] [63 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( श्रम्ह के ) ङि सहित मि, मइ, ममाइ, मए, मे (होते हैं) । अह के ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय ) सहित मि, मइ, ममाइ, मए, मे होते हैं । म्ह (पु, नपु, स्त्री ) - ( म्ह + ङि ) = मि, मइ, ममाइ, मए. मे 115 ग्रम्ह मम - मह - मज्भाङौ 3/116 श्रम्ह - मम-मह-मज्झाङ [ (मज्झाः ) + (ङ)] [(ग्रह) - (मम) - (मह) - (मज्झ ) 1 / 3] ङौ (ङि) 7/1 ङि परे होने पर (ग्रम्ह के स्थान पर) श्रम्ह, मम, मह, मज्झ (होते हैं) । ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ग्रम्ह के स्थान पर ब्रम्ह, मम, मह, मज्झहोते हैं (फिर इनमें सप्तमी एकवचन के प्रत्यय लगते हैं ) ( सूत्र 3 / 59 ) 1 ग्रह (पु., नपु., स्त्री . ) - (ग्रम्ह + ङि ) = नम्ह, मम, मह, मज्झ ( म्ह+म्मि, रिस, त्थ) = श्रम्हम्मि, ग्रम्हरिस, अम्हत्थ (मम+मि, सि, त्थ) = ममम्मि, ममस्सि, ममत्थ (मह +म्मि, सि, त्थ) = महम्मि, महस्सि, महत्थ (मज्झ +म्मि, रिस त्थ) = मज्भम्मि, मज्झस्सि, मज्झत्थ 116. gfa सुपि ( सुप्) 7/1 सुप्सु परे होने पर (अम्ह के स्थान पर) श्रम्ह, मम, मह, मज्झ होते हैं । सुप्सु (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ग्रम्ह के स्थान पर अम्ह, मम, मह, मज्झ होते हैं । अम्ह (पु., नपु, स्त्री ) - ( अम्ह + सु = श्रम्हेसु ( मम + सु 64 ] 3/117 = ममे सु ( मह + सु ) ( मज्झ + सु ( सप्तमी एकवचन ) महेसु = मज्झेसु = (सप्तमी एकवचन ) (सप्तमी बहुवचन) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 119. ओस्ती तृतीयादौ 3/118 श्रेस्ती तृतीयादौ । (:)+ (ती)] [(तृतीया)+ (प्रादी)] त्रः (त्रि) 5/1 ती (ती) 1/1 [(तृतीया)-(प्रादि) 7/1] त्रि से परे तृतीया प्रादि होने पर ती (होता है)। त्रि से परे तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी होने पर ती होता है। तो में उक्त विभक्तिबोधक प्रत्यय लगते हैं। त्रि (पु.)-(ती+मिस्)=तीहि, तीहि, तीहिं (सूत्र 3/124, 3/7) (तृतीया बहुवचन) (तो+भ्यस्) तित्तो, तीनो, तीउ, तीहिन्तो, तीसुन्तो (सूत्र 3/124, 3/9) (पंचमी बहुवचन) (ती+भ्यस्, आम्)=तिण्ह (सूत्र 3/123) (चतुर्थी, षष्ठी बहुवचन) (ती+सुप्)=तीसु (सूत्र 4/448) (सप्तमी बहुवचन) 120. द्वेर्दो वे 3/119 द्वी वे [(द्वेः)+ (दो)] Tः (द्वि) 6/1 दो (दो) 1/1 वे (वे) 1/1 द्वि के स्थान पर दो, वे (होते हैं)। द्वि (दो) के स्थान पर तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी विभक्ति में दो, वे होते हैं फिर इनमें उक्त विभक्तियों के बहुवचन बोधक प्रत्यय लगते हैं । द्वि- (दो,वे+भिस्)= दोहि, दोहिं, दोहिं, वेहि, वेहि, वेहिं (सूत्र 3/124,3/7) . (तृतीया बहुवचन) (दो, वे+भ्यस्)=दुत्तो, दोश्रो, दोउ, दोहितो, दोसुंतो, वित्तो, वेप्रो, वेउ, वेहितो, वेसुंतो (सूत्र 3/124, 3/9) (पंचमी बहुवचन) (दो, वे + आम्)=दोण्ह, वेण्ह, (सूत्र 3/123) दोण्ह, वेण्हं (सूत्र 1/27) (षष्ठी बहुवचन) (दो, वे+सु)=दोसु, वेसु (सूत्र 4/448) (सप्तमी बहुवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ । [ 65 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121. दुवे दोणि वेणि च जस्-शसा 3/120 दुवे (दुवे) 1/1 दोषिण (दोण्णि) 1/1 वेण्णि (वेण्णि) 1/1 च=और [(जस्) - (शस्) 3/1] जस्-शस् सहित दुवे, दोणि, वेण्णि और (दो, वे होते हैं)। द्वि से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित दुवे, दोण्णि, वेण्णि और दो, वे होते हैं ।। द्वि-(द्वि+जस्) =दुवे, दोण्णि, वेण्णि, दो, वे, दुण्णि, विपिण (प्रथमा बहुवचन) (द्वि+शस्) =दुवे, दोषिण, वेण्णि, दो, वे, दुरिण, विण्णि (द्वितीया बहुवचन) ६. नोट-दुपिण, विणि हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार हुए हैं । 122. स्तिण्णिः 3/121 स्तिण्णिः [(a)+ (तिण्णिः )] ः (त्रि) 5/1 तिण्णि: (तिण्णि ) 1/1 त्रि से परे (जस्, शस् सहित) तिणि (होता है)। त्रि से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) सहित तिण्णि होता है । त्रि-(त्रि+जस्) =तिण्णि (प्रथमा बहुवचन) (त्रि+शस्) =तिण्णि (द्वितीया बहुवचन) 123. चतुरश्चत्तारो चउरो चत्तारि 3/122 चतुरश्चत्तारो चउरो चत्तारि [(चतुरः)+ (चत्तारो)] चतुरः (चतुर्) 5/1 चत्तारो (चत्तारो) 1/1 चउरो (चउरो) 1/4 चत्तारि (चत्तारि) 1/1 . चतुर् से परे (जस्, शस् सहित) चत्तारो, चउरो, चत्तारि (होते हैं)। 66 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर् से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रयय) सहित चत्तारो, चउरो और चत्तारि होते हैं । चतुर्-(चतुर् + जस्) =चत्तारो, चउरो, चत्तारि (प्रथमा बहुवचन) (चतुर+शस्)=चत्तारो, चउरो, चत्तारि (द्वितीया बहुवचन) 124. संख्यायाग्रामोण्ह ण्हं 3/123 संख्यायाग्रामोण्ह ण्हं [(संख्यायाः)+(आमः)+(ग्रह)] संख्यायाः (संख्या) 5/1 प्रामः (आम्) 6/1 ह (ग्रह) 1/1 हं (हं) 1/1 संख्यावाची शब्दों से परे प्राम के स्थान पर ह, हं (होते हैं)। प्रट्ठारह तक के संख्यावाची शब्दों से परे पाम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर ह और हं होते हैं । (दो, वे-+पाम्)=दोण्ह, दोण्हं, दुण्ह, दुण्हं, वेण्ह, वेण्हं (षष्ठी बहुवचन) (ती- प्राम्)=तिण्ह, तिण्हं (षष्ठी बहुवचन) (चतुर्→चउ+प्राम्)=चउण्ह, चउण्हं (षष्ठी बहुवचन) इसी प्रकार पंचण्ह, पंचण्हं, छण्ह, छण्हं, सत्तण्ह, सत्तण्हं, अट्ठण्ह, अट्ठण्हं, णवण्ह, रणवण्हं, दहण्ह, दहण्हं, दसण्ह, दसण्हं, एयारहण्ह, एयारहण्हं, वारहण्ह, वारहण्हं, तेरहण्ह, तेरहण्हं, च उद्दहण्ह, चउद्दहण्हं, पण र हण्ह, परणरहण्हं, सोलहण्ह, सोलहण्हं, सत्तरहह, सत्तरहण्हं, अट्ठारहण्ह, अट्ठारहण्हं होते हैं । 125. शेषेऽदन्तवत् 3/124 शेषेऽदन्तवत् [(शेषे)+(प्रदन्तवत्)] शेष (शेष) 7/1 अदन्तवत्-प्रदन्त की तरह शेष (शब्दों) में (रूप) अकारान्त की तरह (चलेंगे)। अकारान्त शब्दों के अतिरिक्त आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि शब्दों के जिस विभक्ति, वचन के प्रत्यय पूर्व सूत्रों में नहीं बताए गए हैं वहां उस विभक्ति व वचन में अकारान्त शब्दों के प्रत्यय लगते हैं । शब्द रूप निम्न प्रकार होंगे प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 67 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जस् (प्रथमा बहुवचन)-हरी, गामणी, साहू, सयंभू, कहा, मई, लच्छी, घेणू, बहू प्रम् (द्वितीया एकवचन)-हरिं, गामणि, साहुं, सयंभु, वारि, महुं, कहं, मई लच्छि, घेणुं, बहुं शस् (द्वितीया बहुवचन)-कहा भिस् (तृतीया बहुवचन)-हरीहि, हरीहि, हरीहि, गामणीहि, गामणीहिं, गामणीहि, साहूहि, साहूहि, साहूहि, सयंभूहि, सयंभूहि, सयंभूहि वारीहि, वारीहिं, वारीहि, महूहि, महूहि, महूहि, कहाहि, कहाहिं, कहाहि, मईहि, मईहिं, मईहि, लच्छीहि, लच्छीहि, लच्छीहि, घेणूहि, घेणूहि, धेणूहि, बहूहि, बहुहिं, बहूहि, हसि (पंचमी एकवचन)-हरीत्तो-हरित्तो, हरीप्रो, हरीउ, हरीहितो, गामणित्तो, गामणीग्रो, गामणीउ, गामणीहितो, साहुत्तो, साहूयो, साहूउ, साहितो, सयंभुत्तो, सयंभूप्रो, सयंभूउ, सयंभूहितो, वारित्तो, वारीयो, वारीउ, वारीहितो, महतो, महूओ, महूउ, महूहितो, कहत्तो, कहाओ, कहाउ, कहाहितो, 68 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म इत्तो, मईप्रो, मईउ, मईहितो, लच्छित्तो, लच्छीओ, लच्छीउ, लच्छीहितो, घेणुत्तो, घेणूमो, घेणूउ, घेणूहितो - बहुत्तो, बहूप्रो, बहूउ, बहूहितो । भ्यस् (पंचमी बहुवचन)-हरित्तो, हरीप्रो, हरीउ, हरीहितो, हरीसुतो गामणित्तो, गामणीओ, गामणीउ, गामणीहितो, गामणीसंतो, साहुत्तो, साहूप्रो, साहूउ, साहूहितो, साहू मुंतो सयंभुत्तो, सयंभूत्रो, सयंभूउ, सयभूहितो, सयंभूसुंतो वारित्तो, वारीमो, वारीउ, वारीहितो, वारीसंतो महत्तो, महूप्रो, महूउ, महूहितो, महूसुंतो, कहत्तो, कहानो, कहाउ, कहाहितो, कहासुंतो, मइत्तो, मईग्रो, मईउ, मई हिंतो, मईसुंतो, लच्छित्तो, लच्छीओ, लच्छीउ, लच्छीहितो, लच्छीसुतो, धेणुत्तो, घेणूत्रो, धेणूउ, घेणूहितो, घेणूसुंतो, बहुत्तो, बहूमो, बहूउ, बहूहितो, बहूसंतो इस् (षष्ठी एकवचन)-हरिस्स, गामणिस्स, साहुस्स, सयंभुस्स, वारिस्स, महुस्स माम् (षष्ठी बहुवचन)-हरीण, हरीणं, गामणीण, गामणीणं, साहूण, साहूणं, सयंभूण, सयंभूणं, वारीण, वारीणं, महूण, महूण, कहाण, कहाणं, मईण, मईणं, लच्छीण, लच्छीणं, घेणूण, धेणूण, बहूण, बहूणं ङि (सप्तमी एकवचन)-हरिम्मि, गामणिम्मि, साहुम्मि, सय मुम्मि, वारिम्मि, महुम्मि सुप् (सप्तमी बहुवचन)-हरीसु, गामणीसु, साहूसु, सयंभूसु, वारीसु, महूसु, आदि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 69 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126. न दोघों रो 3/125 न दीर्घो को [ (दीर्घः)+ (णो)] न=नहीं दीर्घः (दीर्घ) 1/} णो (गो) 1/1 णो होने पर) दीर्घ नहीं (होता है)। इकारान्त, उकारान्त शब्दों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) होने पर अन्त्य इ, उ दीर्घ नहीं होता है। इसी प्रकार ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) होने पर भी अन्त्य ह्रस्व स्वर की दीर्घता प्राप्त नहीं होती। (हरि+जस्, शस्) हरिणो (प्रथमा, द्वितीया बहुवचन) (हरि+ङसि) हरिणो (पंचमी एकवचन) (साहु+जस्, शस्)=साहुणो (प्रथमा, द्वितीया बहुवचन) (साहु+ङसि)= साहुणो (पंचमी एकवचन) नोट-उपरोक्त सूत्र के कारण अन्त्य ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं हुमा । 127. ङसेर्लुक 3/126 हुसेर्लुक् [(ङसे.)-+(लुक्)] ङसेः (ङसि) 5/1 लुक् (लुक्) 1/1 ङसि से परे लोप (नहीं होता)। आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) से परे लोप प्रत्यय नहीं होता है। (कहा+ङसि)=कहा रूप नहीं बनेगा (हरि, गामणी+ङसि)=हरि, गामणी रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू+ङसि) =साहु, सयंभू रूप नहीं बनेगे (मइ, लच्छी+उसि)=मइ, लच्छी रूप नहीं बनेंगे (घेणु, बहू +ङसि)=घेणु, बहू रूप नहीं बनेंगे (पंचमी एकवचन) भी बनेगे 70 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128. भ्यसश्च हिः 3/127 भ्यसश्च हिः [(म्यसः)+(च)] भ्यसः (भ्यस्) 5/1 च=और हिः (हि) 1/1 (ङसि) और भ्यस् से परे हि (नहीं होता)। प्राकारान्त, इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) से परे हि नहीं होता । (कहा+ङसि, भ्यस्) =कहाहि रूप नहीं बनेगा (मइ, लच्छी+ङसि, म्यस्)=मइहि, लच्छीहि रूप नहीं बनेंगे (धेणु, बहू + ङसि, भ्यस्)=धेणुहि, बहूहि रूप नहीं बनेंगे (हरि, गामणी+ङसि, भ्यस्) हरिहि, गामणीहि रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू+सि, भ्यस्)= साहुहि, सयंभूहि रूप नहीं बनेंगे (पंचमी एकवचन, बहुवचन) 129. : 3/128 .: [(ङ :) + (डे:)] : (ङि) 5/1 डे: (डे) 1/1 ङि से परे डे- ए (नहीं होता)। प्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) से परे डे→ए प्रत्यय नहीं होता। (कहा+ङि)=कहे रूप नहीं बनेगा (मइ, लच्छी+ङि) =मइए, लच्छीए रूप नहीं बनेंगे (धेणु, बहू +ङि)=घेणुए, बहूए रूप नहीं बनेंगे (हरि, गामणी+डि) हरिए, गामणीए रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू-+ डि)=साहुए, सयंभूए रूप नहीं बनेंगे (सप्तमी एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 71 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130. एत् 3/129 एत् (एत्) 1/1 एत्→ए (नहीं होता)। आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय), भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय), सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) से परे सम्बन्धित विभक्ति-प्रत्यय होने पर अन्त्य स्वर आ, इ, उ के स्थान पर एत् →ए की प्राप्ति नहीं होती। (कहा-+-शस्, टा, मिस्, भ्यस्, सुप्)=अन्त्य स्वर 'प्रा' के स्थान पर ए नहीं होगा (मइ, लच्छी+शस्, टा, भिस्, भ्यस्, सुप्)-अन्त्य स्वर इ, ई के स्थान पर ए नहीं होगा (हरि, गामणी + शस्, टा, भिस्, ग्यस्, सुप्)= अन्त्य स्वर इ, ई के स्थान पर ए नहीं होगा (साहु, सयंभू + शस्, टा, भिस्, भ्यस्, सुप्) =अन्त्य स्वर उ, ऊ के स्थान पर ए नहीं होगा 131. द्विवचनस्य बहुवचनम् 3/130 द्विवचनस्य (द्विवचन) 6/1 बहुवचनम् (बहुवचनम्) 1/1 द्विवचन के स्थान पर बहुवचन (होता है)। प्राकृत में द्विवचन नहीं होता । एकवचन व बहुवचन ही होते हैं । 132. चतुर्थ्याः षष्ठी 3/131 चतुर्थ्याः (चतुर्थी) 6/1 षष्ठी (षष्ठी) 1/1 चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी (होती है)। प्राकृत में चतुर्थी व षष्ठी के लिए एक ही तरह के प्रत्यय प्रयुक्त किए जाते हैं । नमो देवस्स=देवता के लिए नमस्कार हो । मुणीण देइ-मुनियों के लिए देता है । 72 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम्म Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 133. तादर्थ्य - ङे व 3/132 [ ( तादयं ) - (ङ :) + (वा) ] तादर्थ्य -ङ - [ ( तादयं ) - (ङ) 6/1] वा = विकल्प से तादर्थ्य के अर्थ में ङ े के स्थान पर विकल्प से (प्राय होता है) । तादर्थ्य के लिए, के अर्थ में ङ विकल्प से आय होता है । ( 'आय' उसकी व्याख्या से हुई है ) । देव (पु.) - ( देव + ङ) = देवाय 134. वधाड्डाइश्च वा 3/133 धाडाश्च वा [ (वधात्) + (डाइ :) + (च ] वा वधात् (वध) 5 / 1 डाइ : (डाइ) 1 / 1 च = और वा=विकल्प से वध शब्द से परे (ङ के स्थान पर ) विकल्प से डाइ श्राइ और (प्राय होते हैं) । वध वह शब्द से परे ङ (चतुर्थी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से इ और आय होते हैं । डाइ (वध वह + ङ) वहाइ, वहाय - 135. क्वचिद् द्वितीयादेः (चतुर्थी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर प्रत्यय की प्राप्ति सूत्र संख्या 4/448 व ( चतुर्थी एकवचन ) (चतुर्थी एकवचन ) 3/134 चिद् द्वितीयादे: [ (क्वचित्) + (द्वितीया ) + (श्रादे:)] क्वचित् = कमी-कभी ( ( द्वितीया ) - ( श्रादि ) 6 / 1 ] द्वितीया आदि के स्थान पर कभी-कभी (षष्ठी विभक्ति होती है) । द्वितीया, तृतीया, पंचमी और सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी षष्ठी विभक्ति होती है (हेमचन्द्र की इसी सूत्र की व्याख्या के अनुसार) | अहं सीमांवरस्स वन्दामि = मैं सीमांधर को वन्दना करता हूँ । (द्वितीया के स्थान पर षष्ठी) धणस्स सो लद्धोधन से वह प्राप्त किया गया । (तृतीया के स्थान पर षष्ठी) सो चोरस्स बोहइ = वह चोर से डरता है । ( पंचमी के स्थान पर षष्ठी) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 73 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तास पिट्ठीए केस भारो= उसकी पीठ पर केशमार है। (सप्तमी के स्थान पर षष्ठी) 136. द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी 3/135 द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी [(द्वितीया)- (तृतीया) 6/2] सप्तमी (सप्तमी) 1/1 द्वितीया, तृतीया के स्थान पर (कभी-कभी) सप्तमी (होती है) । द्वितीया, तृतीया विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। अहं नयरे न जामि= मैं नगर को नहीं जाता हूँ। (द्वितीया के स्थान पर सप्तमी) तेसु तीसु पुहइ अलंकिग्राउन तीनों द्वारा पृथ्वी अलंकृत हुई है । (तृतीया के स्थान पर सप्तमी) 137. पंचम्यास्तृतीया च 3/136 पंचम्यास्तृतीया च [(पंचम्याः)+(तृतीया)] पंचम्या: (पंचमी) 6/1 तृतीया (तृतीया) 1/1 च=और पंचमी के स्थान पर (कभी-कभी) तृतीया और (सप्तमी होती हैं)। पंचमी बिभक्ति के स्थान पर कभी-कभी तृतीया और सप्तमी का प्रयोग होता है। सो चोरेण बीहइवह चोर से डरता है । (पंचमी के स्थान पर तृतीया) अन्तेउरे रमिउं राया पागोअन्तःपुर से रमण करके राजा पा गया।। (पंचमी के स्थान पर सप्तमी) 138. सप्तम्या द्वितीया 3/137 सप्तम्या द्वितीया [(सप्तम्याः)+ (द्वितीया)] सप्तम्या: (सप्तमी) 6/1 द्वितीया (द्वितीया) 1/1 सप्तमी के स्थान पर (कभी-कमी) द्वितीया (होती है)। सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया का प्रयोग होता है । 74 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो रति विज्जुपयासं सुमरइ = वह रात्रि में विद्युत प्रकाश को याद करता है । (सप्तमी के स्थान पर द्वितीया ) तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल में (और) उस समय में आर्ष प्राकृत में कभी-कभी प्रथमा के स्थान पर चवीस पि जिवरा = चौबीस तीर्थंकर भी 139. वीस्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा 3/1 वीस्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा [ (सि) + (आदेः) + (वीप्स्ये ) ] स्वरे [ (मः ) + (ar)] वीस्यात् (वीप्स्य) 5 / 1 (स्वर) 7 / 1 म: (म्) 1/3 वा aar (पद) में (प्रारम्भ में) स्वर होने पर वीप्साग्रर्थक (पद) से परे सि आदि के स्थान पर विकल्प से म् (होता है ) | (सप्तमी के स्थान पर तृतीया) द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है(प्रथमा के स्थान पर द्वितीया ) [ (सि) - ( प्रादि ) 6 / 1] वीप्स्ये ( वीप्स्य) 7 / 1 स्वरे = विकल्प से वीसा (पुनरुक्ति) अर्थक पद में प्रारम्भ में स्वर होने पर वीप्सार्थक प्रथम पद से परे विभक्तिवाचक सि आदि के स्थान पर विकल्प से 'म्' होता है । 140 क्त्वा स्यादेर्ण स्वोर्वा एक्को एक्को एक्क मेक्को, एक्केक्को ( प्रथमा एकवचन - का उदाहरण ) एक्केण एक्केण= एक्कमेक्केण, एक्केक्केण (तृतीया एकवचन का उदाहरण ) - 1/27 क्त्वा स्यादेर्ण-स्वोर्वा [ (सि) + (श्रादेः) + (ण) ] [ (स्व.) + (वा) ] - [(ar) – (fa) - (¤ifa) 6/1] [(T) – (g) 7/2] ar=1 - ( प्राकृत में) क्त्वा ऊण, उमाण के अन्त के 'ण' तथा 'सि' आदि के स्थान पर 'ण' तथा 'सु' होने पर विकल्प से उन पर ( अनुस्वार भी हो जाता है) । प्राकृत में क्त्वा ऊण, उप्राण के अन्त के 'ण' तथा 'सि' आदि के स्थान पर 'ण' और 'सु' होने पर विकल्प से उन पर अनुस्वार भी हो जाता है । देवेण = देवेरगं देवारण = देवाणं देवेसु = देवे सुं प्रोढ प्राकृत रचना सौरम ] (तृतीया एकवचन) (षष्ठी बहुवचन) (सप्तमी बहुवचन) - विकल्प से [ 75 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 141. ह्रस्वः संयोगे 1/84 ह्रस्व: (ह्रस्व) 1/1 संयोगे (संयोग) 7/1 (दीर्घ स्वर के आगे संयुक्ताक्षर का) संयोग होने पर ह्रस्व (हो जाता है) । दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाया करता है। देवात्तो-देवत्तो (पंचमी एकवचन) 142. शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् 4/448 शेष संस्कृतवत् सिद्धम् [(शेषम्)+ (संस्कृतवत्)] शेषम् (शेष) 2/1 संस्कृतवत् = संस्कृत के समान सिद्धम् (सिद्ध) 1/1 शेष (रूपों) को संस्कृत के समान सिद्ध (समझना चाहिए)। प्राकृत में बचे हुए शेष शब्दरूपों को संस्कृत के समान समझ लेना चाहिए । (कहा+सि) कहा (प्रथमा एकवचन) (कहा+सुप्)= कहासु (सप्तमी बहुवचन) आदि 143. तो दोनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य 4/260 तो दोनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य [(त:) + (दः)+(अनादौ)] [(शौरसेन्याम्) + (अयुक्तस्य)] तः (त्) 6/1 दः (द्) 1/3 अनादौ (अनादि) 7/1 शौरसेन्याम् (शौरसेनी) 7/1 प्रयुक्तस्य (अयुक्त) 6/1 शौरसेनी में अनादि में (माने वाले) 'त्' के स्थान पर 'द्' होता हैं (और) प्रयुक्त 'त्' के स्थान पर (भी 'द्' होता है)। शौरसेनी में 'त' अक्षर के स्थान पर 'द' की प्राप्ति होती है जबकि 'त्' पद के प्रादि (प्रारम्भ) में न हो तथा 'त्' किसी अन्य हलन्त व्यञ्जनाक्षर के साथ संयुक्त न हो। तया करिहिमो जया (पद के प्रादि में 'त्' होने से 'द्' नहीं होगा)। मत्तो, अय्य उत्तो ('त्' हलन्त व्यञ्जनाक्षर के साथ संयुक्त होने से 'द्' नहीं होगा)। 76 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एताहिएदाहि एताप्रो=एदानो 144. अधः क्वचित् 4/261 प्रधः (अध) 1/1 क्वचित=कभी-कभी (किसी हलन्त व्यञ्जन के) पश्चात् कभी-कमी 'त्' का 'द' हो जाता है । महन्तो=महन्दो निच्चिन्तो-निच्चिन्दो 145. वादेस्तावति 4/262 वादेस्तावति [(वा)+ (प्रादेः) + (तावति)] वा=विकल्प से प्रादे. (आदि) 6/1 तावति (तावत्) 7/1 तावत् (शब्द) होने पर (इसके) आदि ('त्') के स्थान पर विकल्प से ('द्' होता तावत शब्द के अादि 'त्' के स्थान पर विकल्प से 'द' की प्राप्ति होती है । तावत्-+ताव= दाव 146. मो वा 4/264 मो वा [(म:)-+(वा)] मः (म्) 6/1 वा=विकल्प से (शौरसेनी में) (अन्त्य हलन्त न् वाले शब्दों में) (आमन्त्रणवाचक 'सि' परे होने पर) विकल्प से 'म्' का (प्रयोग किया जाता है)। शौरसेनी में ग्रामन्त्रणवाचक 'सि' प्रत्यय परे होने पर अन्त्य हलन्त न वाले शब्दों में हलन्त 'न्' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति होती है । राजन् =हे राज→हे रायं 147. शेषं प्राकृतवत् 4/286 शेष (शेष) 2/1 प्राकृतवत्=प्राकृत की तरह शेष (नियमों) को प्राकृत की तरह (मानना चाहिए)। शौरसेनी भाषा में शेष शब्द-रूपों के नियमों को प्राकृत की तरह मानना चाहिए। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 77 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत अध्याय में संज्ञा शब्दों की रूपावली दी जा रही है । इसमें निम्नलिखित शब्दों की रूपावली दी गई है - पाठ-2 संज्ञा - शब्दरूप पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू, नपुंसकलिंग शब्द - कमल, चारि, महु, स्त्रीलिंग शब्द – कहा, माया, मइ, लच्छी, घेणु, बहू इन शब्दों के अतिरिक्त कुछ और शब्दों की रूपावली भी दी जा रही है जो विशेष प्रकार से चलती है 78 1 (i) संज्ञावाचक पुल्लिंग शब्द - पिउ (पिता) [ भाउ (भाई), जामाउ (जमाता) के रूप पिउ के समान चलेंगे ] । (ii) विशेषरणात्मक पुल्लिंग शब्द - -कत्तु (करनेवाला) [ भत्त ( भरण-पोषण करनेवाला), दाउ ( दाता) के रूप कत्तु के समान चलेंगे ] । (iii) पुल्लिंग शब्द - अप्प, अत ( आत्मा ) [ आत्मा के लिए प्राय या प्रात (अर्द्धमागधी में), आद या चेद (शौरसेनी में ) शब्दों का प्रयोग पाया जाता है, इनके कुछ विभक्तियों के रूप रूपावली में दिए गए हैं] । (iv) पुल्लिंग शब्द - राय (राजा) शौरसेनी व अर्द्धमागधी में अधिकतर प्रयुक्त होनेवाले शब्दरूपों को गहरे काले अक्षरों में दिखाया गया है । [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकारान्त पुल्लिग-देव प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी एकवचन बहुवचन देवो (3/2), देवे देवा (3/4, 3/12) देवं (3/5) देवा (3/4, 3/12), देवे (3/4, 3/14) देवेण (3/6, 3/1 4), देवेहि, देवे हिं, देवेहिँ (3/7, 3/15) देवेणं (1/27) देवाय (3/132) देवाण (3/131, 3/6, 3/12), देवस्स (3/131, 3/10) देवाण2 (1/27) देवत्तो, देवा मो, देवाउ, देवाहि, देवत्तो, देवाओ, देवाउ (3/9, देवाहितो, देवा (3/8, 3/12, 3/12, 1/84), देवाहि, देवाहितो, 1/84), देवा मतो (3/9, 3/13), देवेहि, देवादो, देवादु (318) देहितो, देवे सुतो (3/9, 3/15), देवादो, देवादु (3/9) देवस्स (3/10) देवाण (3/6, 3/12), देवाणं (1/27) देवे, देवम्मि (3/11), देवेसु (3/15), देवेसुं2 (1/27) देवम्हि, देवसि हे देव, हे देवा, हे देवो हे देवा (4/448) (3/38), हे देवे षष्ठी सप्तमी सम्बोधन नोट-1. अर्द्धमागधी साहित्य में यह प्रयोग मिलता है । प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ 615 । 2. सूत्र संख्या 1/27 के अनुसार तृतीया विभक्ति के एकवचन में व षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में 'ण' और 'णं' दोनों प्रत्ययों का प्रयोग होता है। इसी प्रकार सप्तमी बहुवचन में 'सु' और 'सु' प्रत्ययों का प्रयोग होता है। 3. सूत्र संख्या 1/84 के अनुसार दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्ताक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाता है- देवातो→देवत्तो। 4. शौरसेनी साहित्य में 'म्हि' प्रत्यय का प्रयोग मिलता है। प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 79 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इकारान्त पुल्लिग - हरि एकवचन बहुवचन प्रथमा प्रथमा हरी (3/19) हरउ, हरयो (3/20), हरिणो (3/22), हरी (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया हरि (3/124, 3/5) हरिणो (3/22), हरी (3/18) तृतीया हरिणा (3/24) हरीहि, हरीहि, हरीहिं (3/124, 3/7,3/16) चतुर्थी व षष्ठी हरिस्स (3/124, 3/10), हरिणो (3/23) हरीण (3/124,3/63/12), हरीणं (1/27) पंचमी हरिणो (3/23), हरित्तो, हरीयो, हरीउ, हरीहितो, हरित्तो, हरीयो, हरीउ, हरी हितो हरीसंतो (3/124, 3/9, 3/16, (3/124, 3/8, 3/12, 3/127), 3/126, 3/127), हरीदो, हरीदु (3/124, 3/9) हरीदो, हरीदु (3/124, 3/8) सप्तमी हरिम्मि (3/124,3/11, 3/129), हरिम्हि, हरिसि हरीसु (3/16), हरीसुं (1/27) सम्बोधन हे हरि, हे हरी (3/38) हे हर उ, है हरप्रो, हे हरिणो, हे हरी (4/44.) 80.1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन ईकारान्त पुल्लिंग - गामणी बहुवचन गामउ, गामणश्रो (3/20), FOTOTT (3/22, 3/43), TAUT (3/124, 3/4, 3/12) एकवचन गामणी (3/19) गामणि (3 / 124, 3/5, 3 / 36 ) गामणिणो (3 / 22, 3/43); गामणी (3/18) गाणा (3/24, 3/43) गामणिस्स (3 / 124, 3 / 10) for (3/23, 3/43) गामणिरणो (3/23, 3/43), गामणित्तो, गामणीनो, गामणीउ, गामणीहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), गामरणीदो, गामरणी (3/124, 3/8) गामरिणम्मि, ( 3 / 124, 3/11, 3/129) गामणिहि, गाणिस हे गामणि (3/42) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] गामणीहि, गामणीहि, गामणीहिं (2/124, 3/7, 3/16) गामीण (3 / 124, 3/6) गाणी (1/27) गामणित्तो, गामणीओ, गामणीउ, गामणीहितो, गामणीसुंतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), गामणीदो, गामणोदु ( 3 / 124, 3 / 9) गामणी (3/16), गामणीसुं (1/27) हे गामण, हे गामणओ, हे गामणिणो, हे गामणी (4/ 448) [ 81 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त पुल्लिग-साहु एकवचन बहुवचन प्रथमा साहू (3/19) साहउ, साहसो (3/20), साहुणो (3/22), साहवो (3/21), साहू (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया साहुं (3/124, 3/5) साहुणो (3/22), साहू (3/18) तृतीया साहुणा (3/24) साहूहि, साहूहिं, साहूहिँ (3/124,3/7, 3/16) चतुर्थी व साहुस्स (3/124, 3/10), साहुणो (3/23) षष्ठी साहूण (3/124, 3/6, 3/12), साहूणं (1/27) पंचमी साहुत्तो, साहूमो, साहूउ, साहूहिंतो; साहूसंतो (3/124, 379, 3/16, 3/127), साहूदो, साहूदु (3/124,3/9) साहुणो (3/23), साहुत्तो, साहूयो, साहूउ साहूहिंतो (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127), साहूदो, साहदु (3/124, 3/8) साहुम्मि (3/124, 3/11, 3/129), साहुम्हि, साहुंसि सप्तमी साहूसु (3/16), साहसं (1/27) सम्बोधन हे साहु, हे साहू (3/38) हे साहउ, हे साहस्रो, हे साहुणो, हे साहवो, हे साहू (4/448) 82 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊकारान्त पुल्लिग-सयंभू एकवचन बहुवचन प्रथमा सयंभू (3/19) सयंभउ, सयंमत्रो (3/20), सयंमुणो (3/22, 3/43), सयंभवो (3/21), सयंभू (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया सयं मुं (3/124,3/5,3/36) सयंमुणो (3/22, 3/43), सयंभू (3/18) तृतीया सयंमुणा (3/24, 3/43) सयं भूहि, सयंभूहि, सयंभूहिं (3/124, 3/7, 3/16) सयंभूण (3/124, 3/6) सयंभूणं (1/27) चतुर्थी व सयं मुस्स (3/124,3/10), सयंमुणो ( 3/23, 3/43) षष्ठी पंचमी सयंभुणो (3/23, 3/43), सयंमुत्तो, सयंभूत्रो, सयंभूउ, सयंभूस्तिो (31/124, 3/8, 3/126, 3/127), सयंभूदो, सयंभूदु(3/124, 3/8) सयंमुत्तो, सयंभूत्रो, सयंभूउ, सयंभूहितो, सयंभूसंतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), सयंभूदो, सयंभूदु (3/124,3/9) सप्तमी सयंभूसु (3/16), सयंभूसुं (1/27) सयंमुम्मि (3/124, 3/11, 3/129), सयंभुम्हि, सयं सि सम्बोधन हे सयंभु (3/42) हे सयंभउ, हे सयंमत्रो, हे सयंभुणो, हे सयंमवो, हे सयंभू (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 83 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त नपुंसकलिंग-कमल एकवचन बहुवचन प्रथमा कमलं (325) कमलाई, कमलाई, कमलाणि (3/26) द्वितीया कमलं (3/5) कमलाई, कमलाई, कमलारिण (3/26) कमलेहि, कमले हिं, कमलेहिं (3/7,3/15) तृतीया कमलेण (316,3/14), कमलेणं (1/27) चतुर्थी कमलाय (3/132), कमलस्स (3/131, 2/10) कमलाण (3/131, 3/6, 3/12), कमलाणं (1/27). पंचमी कमलत्तो, कमलामो, कमलाउ, कमलत्तो, कमलामो, कमलाउ, कमलाहि, कमलाहितो, कमला (3/9, 3/12,1/84) कमलाहि, कम(378,3/12, 1/84) लाहिंतो, कमलासुंतो (3/9, 3/13), कमलादो, कमलादु कमलेहि, कमले हितो, कमलेसंतो (3/8) (3/9, 3/15) कमलादो, कमलादु (319) कमलस्स (3/10) कमलाण (3/6, 3/12), कमलाणं (1/27) पष्ठी सप्तमी कमले, कमलम्मि (3/11), कमलेसु (3/15), कमलेसुं (1/27) कमलम्हि, कमलसि सम्बोधन हे कमल (3/37) हे कमला, हे कमलाइँ, हे कमलाणि (4/448) - नोट- कातन्त्ररूपमाला के सूत्र संख्या 240 के अनुसार तृतीया से सप्तमी तक के नपुंसकलिंग शब्दों की रूपावली पुल्लिग शब्दों के समान ही चलती है। 84 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इकारान्त नपुंसकलिंग-धारि एकवचन ब वचन वारीई, वारीई, वारीणि (3/26) प्रथमा द्वितीया वारि (3/25) वारि (3/124, 3/5) वारीई, वारीई, वारीणि (3/26) तृतीया वारिणा (२/24) वारीहि, वारीहि, वारीहिं (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी वारिस्स (3/124, 3/10), वारिणो (3/23) वारीण (3/124, 3/6, 3/12), वारीणं (1/27) पंचमी वारिणो (3/23), वारित्तो वारीयो, वारीउ, वारित्तो, वारीयो, वारीउ, वारीहितो, वारीसंतो 13/124, वारी हितो (37124, 3/8, 3/9, 3/16, 3/127) 3/12, 3/126, 3/127) वारोदो, वारीदु (3/124, 3/9) वारीदो, वारीदु (3/124, 3/8) सप्तमी वारिम्मि (3/124, 3/11, 3/129), वारिम्हि, वारिसि वारीसु (3/16), वारीसुं (1/27) सम्बोधन हे वारि (3/37) हे वारी इं, हे वारीई. हे वारीणि (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 85 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त नपुंसकलिंग-महु एकवचन बहुवचन प्रथमा महुं (3/25) महूई, महूई, महूणि (3/26) द्वितीया महुं (3/124, 3/5) महूई, महूई, महूणि (3/26) तृतीया महुणा (3/24) महूहि, महिं, महूर्हि (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी महुस्स (3/124, 3/10), महुणो (3/23) महूण (3/124, 3/6, 3/12), महूणं (1/27) पंचमी महुणो (3/23), महुत्तो, महूप्रो, महूउ, महितो, महुत्तो, महूप्रो, महू उ, महूहितो महसुंतो (3/124, 3/9, 3/16, (3/124, 3/8, 3/12, 3/127) 3/126,3/127) महूदो, महूदु (3/124, 3/9) महूदो, महूदु (3/124, 3/8) सप्तमी महुम्मि (3/124, 3/11, 3/129) महुम्हि महंसि महूसु (3/16), महूसुं (1/27) सम्बोधन हे महु (3/37) हे महूई, हे महूई. हे महूणि (4/448) 86 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन एकवचन कहा ( 4/448 ) प्राकारान्त स्त्रीलिंग - कहा कहं ( 3 / 124, 3/5, 3 / 36 ) कहा, कहाइ, कहाए (3/29, 3/30) कहा, कहाइ, कहाए (2/29, 3/30) कहा, कहाइ, कहाए ( 3 / 29, 3/30) कहत्तो, कहा, कहाउ, हाति (3 / 124, 3/8, 3/126, 3/127) कहादो, कहादु (3/124, 3/8) कहान, कहाइ, कहाए (3/29, 3/30) हे कहा, हे कहे ( 3 / 41 ) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] बहुवचन कहा (3/124, 3/4). कहा, कहा (3/27) कहा (3 / 124, 3/4), कहाउ, कहाओ ( 3/27) कहाहि, कहाहि, कहाहिं (3/124, 3/7) कहारण (3/124, 3/6), कहाणं (1/27) कहत्तो, कहानी, कहाउ, कहाहितो, कहा तो (3/124, 3 / 9, 3/127) कहादो, कहादु ( 3 / 124, 3 / 9) कहासु (4/448), कहासुं (1/27) हे कहा, है कहा, हे कहाओ (4/448) [ 87 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्रा (माता) एकवचन बहुवचन प्रथमा माया (4/448) माया (31124, 3/4), माअाउ, माअायो (3/27) द्वितीया मानं (3/124, 3/5, 3/36) मामा (31124, 3/4), माग्राउ, माअानो (3/27) तृतीया माया, मामाइ, माअाए (3/29) मानाहि, माअाहि, मायाहिं (3/124,317) चतुर्थी व षष्ठी माअाप, माअाइ, माअाए (3/29) माप्राण (3/124,3/6) माप्राणं (1/27) पंचमो मापाप, मामाइ, मापाए(3/29) माअत्तो, माआओ, माअाउ, माअत्तो, माअायो, माअाहितो, मापासुंतो माप्राउ, माअाहितो (3/124,3/9) (3/12+, 3/8) __ मानादो, माप्रादु (3/124, 3/9) मायादो, माअादु(3/124, 18) सप्तमी माप्राम, माअाइ, माअाए. (3/29) हे मामा, हे माए (3/41) मामासु (4/448), मामासु (1/27) हे मात्रा, हे माआउ, हे मानायो (4/448) सम्बोधन 88 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा (माता) एकवचन बहुवचन प्रथमा मारा (4/448) माअराउ, माअरायो (3/27), मायरा (3/124, 3/4) द्वितीया माअरं (3/124,3/5, 3/36) माअराउ, माअराग्रो (3/27), मामरा (3/124, 3/4) तृतीया माअराअ, माअराइ, मानराए मारा हि, माअराहिं, माअराहिँ (3129, 3/30) (3/124, 3/7) चतुर्थी व षष्ठी माग्रराय, माअराइ, मानराए माअराण (3/124, 3/6), (3/29, 3/30) माअराणं (1/27) पंचमी माअराअ, मानराइ, माअराए माअरत्तो, माअराम्रो, माअराउ, (3/29, 3/30), माअराहितो, माअरासंतो मापरत्तो, मारापो, (3/124, 379, 3/127) माअराउ, मानराहितो माअरादो, मानरादु (3/124; 3/9) (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), मायरादो, मानरादु (3/124, 3/8) सप्तमी माराम, माअराइ, माअराए माअरासु (4/448), (3/29, 3/30) माअरासु (1/27) सम्बोधन हे माना, हे माए (3/41) हे मारा, हे मामराउ, हे माअराग्रो (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 89 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इकारान्त स्त्रीलिंग-मई एकवचन बहुवचन সথা मई (3/19) मईउ, मईयो (3/27), मई (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया मई (3/124, 3/5) मईउ, मईप्रो (3/27), मई (3/18) तृतीया मईन, मईया, मईइ, मईए (3/29) मईहि, मईहिं, मई हिं (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व मई, मईया, मईइ, मईए (3/29) मईण (3/124,3/6, 3/123, मईणं (1/27) षष्ठी पंचमी मई, मईपा, मईइ, मईए (3/29), मइत्तो, मईयो, मईउ, मईहिंतो (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127), मईदो, मईदु (3/124, 3/8) मइत्तो, मईप्रो, मईउ, मईहितो, मईसंतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), मईदो, मईदु (3/124, 3/9) सप्तमी मई, मईया, मईइ, मईए (3/29) मईसु (3/16), मईसुं (1/27) सम्बोधन हे मइ, हे मई (3/38) हे मई, हे मई उ, हे मईयो (4/448) 90 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईकारान्त स्त्रीलिंग-लच्छी एकवचन बहुवचन प्रथमा लच्छी (3/19), लच्छीया (3/28) लच्छीउ, लच्छीरो (3/27), लच्छीमा (3/28), लच्छी (3/124, 3/4) द्वितीया तृतीया लच्छि (3/124, 3/5, 3/36) लच्छीउ, लच्छी प्रो (3/27), लच्छी ग्रा (3/28), लच्छी (3/18) लच्छीग्र, लच्छीया, लच्छीइ, लच्छी हि, लच्छीहि, लच्छी हि लच्छीए (3/29) (3/124, 3/7, 3/16) लच्छीअ, लच्छीपा, लच्छीइ, लच्छीण (3/124, 3/6), लच्छीए (3/29) लच्छीणं (1/27) चतुर्थी व षष्ठी पंचमी लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छित्तो, लच्छीग्रो, लच्छीउ, लच्छीए (3/29) लच्छीहितो, लच्छीसुतो लच्छित्तो, लच्छीरो, लच्छीउ, (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), लच्छीहितो (3/124, 3/8, लच्छीदो, लच्छीदु (3/124, 3/9) 3/126, 3/127) लच्छोदो, लच्छोदु (3/124,3/8) सप्तमी लच्छीअ, लच्छीपा, लच्छीइ, लच्छीए (3/29) लच्छीसु (3/16), लच्छीसुं (1/27) सम्बोधन हे लच्छि (0/42) हे लच्छी, हे लच्छीउ, हे लच्छीरो, हे लच्छीमा (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 91 . Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त स्त्रीलिंग-धेणु एकवचन बहुवचन प्रथमा घेणू (3/19) धेणू उ, धेणूत्रो (3/27), घेणू (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया धेणुं (3/124, 3/5) धेराउ, धेणूत्रो (3/27), धेणू (3/18) तृतीया घेणू, धेणूपा, घेणू इ, घेणूए (3/29) धेणूहि, घेणूहि, घेणू हिं (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी घेणूम, घेणूमा, घेणूइ, घेणूए (3/29) धेणूण (3/124, 3/6, 3/12) घेणूणं (1/27) पंचमी घेणू अ, घेणूमा, घेणूइ, घेणूए (3/29) घेणुत्तो, घेणूप्रो, घेणूउ, धेहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), घेणूदो, धेणूतु (3/124, 3/8) घेणुत्तो, घेणूमो, घेणूउ, घेणू हितो, घेणू तो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), धेणूदो, धेणूदु (3/1 24, 3/9) सप्तमी घेणूअ, घेणूया, घेणूइ, धेणूए (3/29) धेणू सु (3/16), घेणूसुं (1/27) सम्बोधन हे घेणु, हे धेणू (3/38) हे घेणू, हे धेणूउ, हे घेणूप्रो (4/448) 92 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊकारान्त स्त्रीलिंग-बहू एकवचन बहुवचन प्रथमा बहू (3/19) बहूउ, बहूप्रो (3/27), बहू (3/124, 3/4) द्वितीया बहुं (3/124, 315, 3/36) बहूउ, बहूप्रो (3/27), बहू (3/18) तृतीया बहू, बहूपा, बहूइ, बहूए (3/29) बहूहि, बहूहि, बहूहिँ (3/124, 3/7) चतुर्थी व षष्ठी बहू प्र, बहूया, बहूइ, बहूए (3129) बहूण (3/124, 3/6), बहूणं (1/27) पंचमी बहूअ, बहूपा, बहूइ, बहूए (3/29) बहुत्तो, बहूओ, बहू उ, बहूहितो (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127) बहूदो, बहूदु (3/124,3/8) बहुत्तो, बहूप्रो, बहूउ, बहूहितो, बहूसुंतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127) बहूदो, बहूदु (3/124, 3/9) सप्तमी बहूप, बहूमा, बहूइ, बहूए (3/29) बहूसु (3/16), बहूV (1/27) सम्बोधन हे बहु (3/42) हे बहू, हे बहूउ, हे बहूरो (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम 1 [ 93 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी चमो सप्तमी सम्बोधन 94 1 पिउ (पिता) ( उकारान्त से भिन्न रूप ) बहुवचन एकवचन faЯr (3/48) fa (3/47, 3/5) पिउ (पिता) ( उकारान्त की तरह रूप ) बहुवचन पिउ, पिश्रो (3/20), famat (3/21), पिउरणो (3/22), पिऊ (3/124, 3/4, 3/12) एकवचन पिउणा (3/24) पिउस्स (3 / 124, 3 / 10), पिउणो (3/23) fazat (3/23), पिउलो, पिऊओ, पिऊउ, पिऊहितो (3/124, 3/8, 3/12 3/126, 3/127) fazat, fasg (3/124, 3/8) पिउणो (3/22), पिऊ (3/18) पिहि, पिऊहि, पिऊहिँ (3/124, 3/7, 3/16) पिऊण ( 3 / 124, 3/6, 3 / 12 ) fq301 (1/27) पिउत्तो, पिऊश्रो, पिऊउ, पिहितो, पिऊसुंतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127) fazat, fang (3/124, 3/9) पिउम ( 3 / 124, 3 / 11, 3 / 129 ) पिऊसु ( 3 / 16 ), पिउहि पिउंसि पिऊसुं ( 1/27 ) हे पिउ, हे पिऊ (3/38) हे पिउ, हे पिश्रो, हे पिश्रवो, हे पिउरणो, हे पिऊ (4/448) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिनर (पिता) (3/47) एकवचन बहुवचन प्रथमा पिपरो (3/2) पिपरा (3/4, 3/12) द्वितीया पिअरं (3/47, 3/5) पिपरा (3/4, 3/12), पिपरे (3/4, 3/14) तृतीया पिअरेण (3/6, 3114) पिअरेणं (1/27) पिअरेहि, पिअरेहि, पिअरेहि (3/7, 3/15) पिअराण (3/131, 3/6, 3/12), पिपराणं (1/27) चतुर्थी पिअराय (3/132), पिअरस्स (3/131, 3/10) पंचमी पिअरत्तो, पिनरामो, पिपराउ, पिनरत्तो, पिनरायो, पिपराउ पिअराहि, पिअराहितो, पिपरा (3/9, 3/12, 1/84), (3/8, 3/12, 1/84), पिअराहि, पिपराहितो, पिपरापिनरादो, पिपरादु (3/8) संतो (319, 3/13) पिपरेहि, पिपरेहितो, पिपरेसंतो (3/9, 3/15), पिपरादो, पिनरावु (3/9) पिपरस्स (3/10) पिअराण (3/6, 3/12), पिअराणं (1/27) षष्ठी सप्तमी पिअरे, पिअरम्मि (3/11) | पिअरम्हि, पिअरंसि पिअरेसु (3/15) पिअरेसुं (1/27) सम्बोधन हे पिन (3/39), हे पिनरं (3/40) हे पिपरा (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 95 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वतीया प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन 96 1 कत्तु (उकारान्त से भिन्न रूप ) बहुवचन एकवचन कत्ता (3/48) कतारं (3/45, 3/5 ) कत्तु (उकारान्त की तरह रूप) बहुवचन कतउ, कत्तो (3/20), कस्तवो (3 / 21), कत्तुरो (3/22), कत्तू ( 3 / 124, 3/4, 3/12) एकवचन कत्तुणा (3/24) कत्तुरो (3/23), कत्तुस्स (3 / 124, 3 / 10 ) कत्तुणो (3 / 23 ), कत्तुत्तो, कस्तू, कत्तूर, कस्तूहितो (3/124, 3/8, 3/12) कत्तूदो, कस्तूg ( 3 / 124, 3/8) कत्तू (3/18), कत्तुणो (3/22) तु, हे कत्तु (3/38) कत्तूहि, कत्तूहि, कत्तूहिं (3/124, 3/7, 3/16) कत्तूण ( 3 / 124, 3/6, 3/12), कत्तूर्णं (1 / 27) कत्तुसो, कन्तु, कत्तूर, कस्तूहितो, कस्तूतो (3/124, 3/9, 3/16), कत्तूदो, कस्तूदु ( 3 / 124, 3/9) कत्तुम्मि(3/124, 3/11, 3 / 129) कत्तूसु ( 3/16), तुम्हि कत्तुसि कत्तूसुं (1/27) हेत, हे करतो, हे कत्तवो, तु, हे तू (4/448) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन एकवचन कत्तारो (3 / 2 ) कत्तारं ( 3 / 5 ) कत्तार ( करनेवाला ) 1 कत्तारेण (3/6, 3/14), कत्तारेणं (1/27) कत्तारस्स (3 / 10 ) कत्तारतो, कत्तारामो, कत्ताराउ, कत्ताराहि, कत्ताराहितो, कत्तारा (3/8, 3/12, 1/84) कताराबो, कतारा (3 / 8) कत्तारे, कत्तारम्मि ( 3 / 11 ) कत्तारहि, कत्त: रसि कतार, हे करतारा, हे कत्तारो (3 / 38 ) 1. देखें सूत्र 3/45 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] बहुवचन कत्तारा ( 3/4, 3 / 12) करतारा ( 3/4, 3 / 12), कतारे (3/4, 3/14) कत्तारेहि, करतारेहि, कत्तारेहिं (3/7, 3/15) कत्ताराण (3/6, 3/12), कत्ताराणं (1/27) कत्तारत्तो, कत्ताराची, कत्ताराउ, (3/9, 3/12) कत्ताराहि, कत्ताराहितो, कत्ता रातो (3/9, 3/13), कत्तारेहि, कत्तारहितो, कत्तारेसुंतो (3/9, 3/15) कत्तारादो, कत्तारा (3 / 9) कत्तारेसु (3/15), कत्तारेसुं (1/27) हे कत्तारा (4 / 448) [ 97 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्प, प्रत्त (प्रात्मा)1 (अकारान्त पुल्लिग से भिन्न रूप) बहुवचन प्रथमा एकवचन अप्पा, अत्ता (3/56, 3/49) प्रादा, प्राया३, आता, चेदा अप्पाणो, अताणो (3/50, 3/12) द्वितीया अप्पाणो, अत्ताणो (3/50, 3/12) तृतीया अप्पणा, अत्तणा (3/56, 3/51) अप्पणइमा, अत्तरगइया, अप्पणिमा, अत्तणिमा (3/57) चतुर्थी व षष्ठी अप्पणो, प्रत्तणो (3/50) पंचमी अप्पाणो (3/50, 3/12) सप्तमी सम्बोधन हे अत्ताणो (4/448) 1. देखें सूत्र संख्या 3/561 2. समयसार, गाथा, 1-26-26 । 3. प्राकृत भाषा का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ 584 । 4. पाचरांग सूत्र-171 । 5. समयसार, गाथा, 3-50-118 । 6. हेम प्राकृत व्याकरण, द्वितीय भाग, सूत्र 3/56 की वृत्ति । 98 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सतमी सम्बोधन एकवचन अप्पो, तो (3/2) पं, अत्तं (3/5) प्रादं1 प्प / प्रत ( श्रात्मा ) (अकारान्त पुल्लिंग की तरह रूप ) अप्पेण, अत्तेण (3/5, 3 / 14), अप्पे, अत्तेणं (1/27) अप्पस्स, अत्तस्स (3/10) अप्पत्तो, अप्पा, अप्पाउ, पाहि पाहतो, अप्पा, अत्तत्तो, अत्ताप्र, अत्ताउ, प्रत्ताहि, अत्ताहितो, प्रत्ता (3/8, 3/12, 1/84) पादो, पादु प्रत्तादो, प्रत्तादु ( 3 / 8) अम्मित्तम्मि, अप्पे, ते ( 3 / 11) प्रादहि हे अप्प, हे अप्पा, हे अप्पो, तता, हे प्रत्तो (3/38) 1. समयसार, गाथा - 31 | 2. समयसार, गाथा - 203 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] बहुवचन अप्पा, अत्ता (3/4, 3/12) अप्पा, अत्ता (3/4, 3/12), अप्पे, प्रत्ते (3/4, 3 / 14 ) पे, अप्पे, पेहिं, अत्तेहि, अत्तेहि, अत्ते हिं (3/7, 3/15) अप्पाण, प्रत्ताण (3/6, 3/12), पाणं, प्रत्ताणं (1 /27 ) अप्पत्ती, अप्पा, अप्पाउ, पाहतो, अप्पासुंतो प्रपेहि, अप्पे हितो अप्पे सुंतो प्रत्तत्तो, अत्तानो, अत्ताउ, अत्ताहितो, प्रत्तासुंत्ती, प्रत्तेहि, हितो, प्रत्तेसुंतो (3/8 3/12, 3/13, 3/15, 1/84) श्रपादो, श्रप्पा, प्रत्तादो, (3/9) प्पे, प्रत्सु ( 3 / 15 ), अप्पे, अत्तेसुं (1/27) पत्ता (4/448) अतादु [ 99 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पारण (प्रात्मा)1 (अकारान्त पुल्लिग की तरह रूप) एकवचन प्रथमा अप्पाणो (3/2) द्वितीया अप्पाणं (315), आयाणं बहुवचन अप्पाणा (3/4, 3/12) अप्पाणा (3/4, 3/12), अप्पारणे (3/4,114) अप्पाणेहि, अप्पाणेहि, अप्पाणेहि (3/7, 3/15) तृतीया अप्पाणेण (3/5, 3/14), अप्पारणेणं (1/27) चतुर्थी व षष्ठी पंचमी अप्पाणस्स (3/10) अप्पाणाण (3/6, 3/12), अप्पाणाणं (1/27) अप्पारणत्तो, अप्पाणाप्रो, अप्पाणत्तो, अप्पाणाम्रो, अप्पाणाउ, अप्पाणाहि, अप्पाणाउ, अप्पाणाहि, अप्पाणाहितो, अप्पारणा अप्पाणाहितो, अप्पाणासुंतो, (3/8, 3/12, 1/84) अप्पाणेहि, अप्पाणेहितो, अप्पाणादो, अप्पाणादु अप्पाणेसुंतो (3/9, 3/12, 2/13, (878) 3/15) अप्पारणादो, अप्पाणादु (39) अप्पाणम्मि, अप्पाणे (3/11), अप्पाणेसु (/15), आयाणे अप्पाणेसुं (1/27) अप्पाणम्हि, अप्पाणंसि सप्तनी सम्बोधन हे अप्पाण, हे अप्पाणा, हे अप्पाणो (/38) हे अप्पाणा (4/448) 1. देखें सूत्र संख्या 3/561 2. प्राकृत भाषा का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-584 । . 3. प्राकृत भाषा का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-586 । 1001 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्तारण (प्रात्मा)1 (अकारान्त पुल्लिग की तरह रूप) एकवचन बहुवचन प्रयमा अस्ताणो (3/2) अत्ताणा (3/4, 3712) द्वितीया अत्ताणं (15) अत्तारणा (3/4, 3/12), अत्ताणे (3/4,3/14) तृतीया अत्ताणेण (3/6, 314), अत्ताणणं (1/27) अत्ताणेहि, अत्तारोहिं, अत्ताणेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी अत्तागस्स (3/10) अत्ताणाण (3/6, 3/12), प्रस्ताणाणं (1/27) पंचमी अत्ताणत्तो, अत्तारणाओ, अत्तागाउ, अत्ताणाहि, प्रस्ताणाहितो, अत्ताणा (3/8,3/12, 1/84) प्रत्ताणादो, अत्ताणादु (3/8) प्रत्ताणत्तो, अत्ताणामो, अत्ताणाउ, प्रत्ताणाहि, प्रत्ताणाहितो, अत्ताणासुंतो, अत्ताणेहि, अत्तारोहितो, अत्ताणेसुंतो (319, 3/12, 3/13,3/15, 1/84) प्रत्ताणादो, अत्तापादु (3/9) सप्तमी अत्ताणम्मि, अत्ताणे (3/11) भत्तारणम्हि, अत्तासि प्रत्ताणेसु (3/15), अत्ताणेसुं (1/27) सम्बोधन है अत्ताण, है अत्ताणा, हे अत्ताणो (3/38) हे अत्तारणा (4/448) 1. देखें सूत्र संख्या 3/561 प्रौढ प्राकृत रचना सौरम । । 101 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन 102 ] राय / रा ( राजा ) (अकारान्त पुल्लिंग की तरह रूप ) एकवचन राम्रो' राय, राम्र (3/5) रायेण राण (3/6, 3 / 14 ), येणं, राणं (127) रायस्स, रायस्स (3/10) रायत्तो राया, रायाउ, रायाहि, रायाहितो, राया, रातो, राम्रानो, रानाउ, रामहि, राहितो, राम्रा (3/8, 3/12) रायादो, रायादु, रामादो, राम्रा (3/8) राधे, राए, रायम्मि, रामम्मि ( 311 ) रायम्ह, रामहि, रायसि, रासि 1. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, पृष्ठ-123 हे राय, हे राया, हे रायो, हे राम, हे राम, हे राम्रो (3/38) बहुवचन राया, राम्रा (3/4, 3 / 12 ) राया, राम्रा (3/4, 3 / 12 ) राये, राए ( 3/4, 3 / 14 ) रायेहि, राधेहि, रायेहिँ, राएहि, राएहि, राएहिं (3/7, 3/16) रायाण, राण (3/6, 3/12), रायाणं, रात्राणं (1/27 ) रायत्तो, राया, रायाउ, रायाहि, रायाहितो, रायासंतो, रायेहि, रायेहितो, रायेसुंतो, रातो, राम्रानो, राम्राउ, शाहि, रामहितो, राम्रा सुंतो, एहि, राएहितो, राएसुंतो (3/9, 3/12, 3/13, 3/15) यादो, रायावु, TIME (3/9) रानादो, रायेसु, रासु (3/15), राएसुं (1/27) सुं हे राया, हे राम्रा (4/448) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राय/राम (राजा) (अकारान्त पुल्लिग से भिन्न रूप) एकवचन बहुवचन प्रथमा राया (3/49) राइणो (3/50) द्वितीया राइणं (3/53) राइणो (3/50) तृतीया राइणा (3/51, 3/52), रण्णा (3155), रायणा (3/51) राईहि, राईहिं, राईहि (3/54, 3/7, 3/10) चतुर्थी व षष्ठी रणो (3/55), राइणो (3/50, 3/52), रायणो (3/50) राइणं (3/53), राईण (3/54) पंचमी रण्णो (3/55), राइणो (3/50, 3/52) रा इत्तो, राईप्रो, राईउ, राईहितो, राईसुतो (3/54, 3/9, 3/16, 3/127) सप्तमी राइम्मि (3/52) राईसु (3/54, 3/16), राईसुं (1/27) सम्बोधन हे राइणो (4/448) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] । 103 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायारण (राजा)1 (अकारान्त पुल्लिग की तरह रूप) एकवचन रायाणो (3/2) बहुवचन रायाणा (3/4, 3/12) प्रथमा द्वितीया रायाणं (3/5) रायाणा (3/4, 3/12), रायाणे (3/4, 3/14) तृतीया रायाणेण (3/6, 3/14), रायाणेणं (1/27) रायाणेहि, रायाणेहि, रायाणेहि (3/7, 3/16) रायाणस्स चतुर्थी व षष्ठी रायाणाण (376, 3/12), रायाणाणं (1/27) (9/10) पंचमी रायाणत्तो, रायाणाओ, रायाणाउ, रायाणाहि, रायाणा हितो, रायाणा (3/8, 3/12, 1/84) रायाणादो, रायाणादु (38) रायाणत्तो, रायाणाप्रो, रायाणाउ, रायारणाहि, रायाणाहिंतो, रापारणासुंतो, रायाणेहि, रायाणेहितो, रायाणेसुंतो (19,3/12, 3/13,3/15, 1/84) रायारणादो, रायाणादु (379) सप्तमी रायाणे, रायाणम्मि (3/11) रायारणम्हि, रायाणंसि रायाणेसु (3/15), रायाणेसुं (1/27) सम्बोधन हे रायाण, हे रायाणा, हे राया णो (3/38) हे रायाणा (4/448) 1. देखें सूत्र संख्या 3/56 । 104 1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-3 सर्वनाम-शब्दरूप प्रस्तुत अध्याय में सर्वनाम शब्दों की रूपावली दी जा रही है । इसमें निम्नलिखित शब्दों की रूपावली दी गई है पुल्लिग शब्द-सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु, अन्न । नपुंसकलिंग शब्द-सव्व, त, ज, क, एत, इम, अमु, अन्न । स्त्रीलिंग शब्द-सव्वा, ता, ती, जा, जी, का, की, एता, इमा, अमु, अन्ना । पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग - तुम्ह, अम्ह । शौरसेनी व अर्द्धमागधी में अधिकतर प्रयुक्त होनेवाले शब्दरूपों को गहरे काले अक्षरों में दिखाया गया है। प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 105 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग - सव्व (सब) एकवचन बहुवचन प्रथमा (3/2), सव्वो सव्वे सव्वे (3158) द्वितीया सव्वं (3/5) सव्वा (3/4, 3/12), सव्वे (3/4, 3/14) तृतीया सम्वेण (3/6, 3/14), सव्वेणं (1/27) सम्वेहि, सव्वेहि, सव्वेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी सव्वाय (3/132), सव्वस्स (3/131, 3/10) सव्वाण (3/131, 3/6, 3/12), सव्वाणं (1/27), सम्वेसि (3/131, 3/61) पंचमी सम्बत्तो, सव्वाअो, सव्वाउ, सव्वाहि, सव्वाहितो, सव्वा । (3/8, 3/12, 1/84), सव्वादो, सव्वादु (3/8) सव्वत्तो, सव्वाओ, सव्वाउ (3/9, 3/12), सव्वाहि, सवाहितो, सव्वासुंतो, सव्वेहि, सव्वेहितो, सवेसुंतो (3/9, 3/13, 3/15), सम्बादो, सव्वादु (379) षष्ठी सबस्स (3/10) सव्वाण (3/6, 3/12), सव्वाणं (1/27), सव्वेसि (3/61) सप्तमी सम्वस्सि, सव्वम्मि, सव्वत्थ (3/59), सवहिं (3/60), सम्वम्हि सम्वंसि सव्वेसु (3/15), सव्वेसुं (1/27) 1661 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-त (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा ते (3/58) सो (3/86, 3/2), से स (3/3) द्वितीया तं (315) ते (3/4, 3/14), ता (3/4, 3/12) तृतीया तेण (3/6, 3/14), तेणं (1/27), तिणा (3/69) तेहि, तेहि, तेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी तस्स (3/10), से (3/81), तास (3/63) ताण (3/6,3/12), ताणं (1/27), तेसि (3/61), सिं (3/81), तास (3/62) पंचमी तत्तो, ताओ, ताउ, ताहिंतो, ताहि, ता (3/8, 3/12, 1/84), तम्हा (3/66), तो (3/67), तादो, तादु (38) तत्तो, तारो, ताउ (3/9, 3/12, 1/84), ताहि, ताहितो, तासुतो (319,3/13), तेहि, तेहितो, तेसुंतो (3/9, 3/15), तादो, तादु (3/9) सप्तमी तस्सि, तम्मि, तत्थ (3/59), तेसु (3/15), तहिं ( 3/60), तेसु (1/27) ताहे, ताला, तइया (3/65), तम्हि, तंसि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 107 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-त-णा (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा सो (3/86, 312) से, स (313) णे (3/58) द्वितीया णं (3/5) णे (3/4, 3/14), णा (3/4, 3/12) तृतीया ण (3/6, 3/14), णेणं (1/27), णिणा (3/69) णेहि, णेहि, णेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी णस्स (3/10) णाण (3/6, 3/12), णाणं (1/27) पंचमी णत्तो, णामो, णाउ, णाहितो, णा (3/8, 3/12), गावो, पादु (3/8) णत्तो, णामो, गाउ, (3/9, 3/12), णाहि, णाहितो, णासुंतो (379, 3/13), णेहि, णेहितो, संतो (3/9, 3/15), गादो, गादु (319) सप्तमी स्सि, णम्मि, तत्थ (3/59), णेसु (3/15), हिं (3/60), णेसं (1/27) णाहे, णाला, इमा (3/65), गम्हि, शंसि - - 1. देखें सूत्र संख्या 3/70 1 108 1 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन जो (3/2), जे जं (3/5) पुल्लिंग -ज (जो ) जेण (3/6, 3/14), जेणं (1/27), FOTOTT (3/69) जस्स (3 / 10 ), जास (3/63) जत्तो, जानो, जाउ, जाहितो, T (3/8, 3/12, 1/84), STEET (3/66), जादो, जादु (3/8) af (3/60), जाहे, जाला, जइ ( 3 / 65 ), जहि, जंसि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ 1 बहुवचन जे (3/58) जे (3/4, 3/14), GT (3/4, 3/12) जेहि, जेहि, जेहिं (3/7, 3/15) जाण (3/6, 3/12 ), जाणं (1 / 27), afa (3/61), जत्तो, जानो, जाउ (3/9, 3/12, 1/84), जाहि, जाहितो, जासुंतो (3/9, 3/13), जेहि, जेहितो, जेसुंतो जस्स, जम्मि, जत्थ ( 3/59), जेसु ( 3 / 15), are (1/27) (3/9, 3/15), जादो, जादु (3/9) [ 109 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-क (कौन) एकवचन बहुवचन प्रथमा को (3/2), के के (3/58) द्वितीया कं (3/5) के (3/4, 3/14), का (3/4, 3/12) तृतीया केण (3/6, 3/14), केणं (1/27), किरणा (3/69) केहि, केहि, केहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी कस्स (3/10), कास (3/63) काण (3/6, 3/12), काणं (1/27), कास (3162), केसि (3/61) पंचमो कत्तो, कामो, काउ, काहितो, का (3/8, 3/12, 1/84), कम्हा (3/66), किरणो, कीस (3/68), कादो, कादु (318) कत्तो, कामओ, काउ (3/9, 3/12, 1/84), काहि, काहितो, कासुतो (3/9, 3/13), केहि, केहितो, केसुंतो (3/9, 3/15), कादो, कादु (379) सप्तमी कस्सि, कम्मि, कत्थ (3/59), कहिं (3/60), काहे, काला, कइया (3/65), कम्हि, कंसि के सु (3|15), केसु (1/27) 1101 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-एत (यह) बहुवचन एकवचन प्रथमा एसो (3/86, 3/2). एस, इणं, इणमो (3/85) द्वितीया एतं (3/5), एदं (4160) एते (3/58), एदे (4/260) एते (3/4, 3/14), एता (314, 3/12), एदे, एदा (4/260) तृतीया एतेण (3/6, 3/14), एतेणं (1/27), एतिणा (3/69), एदेण, एदेणं, एदिणा (4/260) एतेहि, एतेहिं, एतेहि (3/7, 3/15), एदेहि, एदेहि, एदेहि (4/260) चतुर्थी व षष्ठी एतस्स (3/10), से (3/81), एदस्स (4/260) एताण (316, 3/12), एताणं (1/27), एतेसि (3/61), सि (3/81), एदाण, एदाणं, एदेसि (4/260) पंचमी एतापो, एताउ, एताहि, एताहितो, एता (3/8, 3/12, 1/84), एत्तो, एत्ताहे (3/82, 3/83), एदादो, एदादु (3/8) एतत्तो, एतामो, एताउ (319, 3/12, 1/84), एताहि, एताहितो, एतासुंतो (3/9, 3/13), एतेहि, एतेहितो, एतेसंतो (3/9, 3/15), एदादो, एदादु (3/9) एतेसु (3/15), एतेसुं (1/27) सप्तमी एतस्सि, एतम्मि (3/59), अयम्मि, ईयम्मि (3/59, 3/84), एत्थ (3159, 3/83) एतम्हि, एतसि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 111 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-एत→एम (यह) एकवचन बहुवचन प्रथमा एसो (3/86) एस, इणं, इणमो (3/85) एए (3/58) द्वितीया एग्रं (3/5) एए (3/4, 3/14), एग्रा (3/4, 3/12), तृतीया एएण (3/6, 3/14), एएणं ( 1/27), एइणा (3/69) एएहि, एएहिं. एएहिं (5/7, 3/15), चतुर्थी व एअस्स (3/10), से (3/81) षष्ठी एप्राण (3/6, 3/12), एमाणं (1/27), एएसि (3/61), सिं (3/81) पंचमी एप्रायो, एग्राउ, एग्राहि, एग्रत्तो, एमाओ, एग्राउ एनाहिंतो, एग्रा (3/8, 3/12), (3/9, 3/12), एत्तो, एत्ताहे (3182, 3/83), एपाहि, एग्राहितो, एमासुंतो एमादो, एमादु (318) (3/9, 3/13), एएहि, एएहितो, एएसुंतो (3/9, 3/15), एपादो, एप्रादु (319) एअस्सि, एप्रम्मि (3/59), एएसु (3/15), अयम्मि, ईयम्मि एएसुं (1/27) (3/59, 3/84), एत्थ (3/59, 3/83), एअम्हि, एअसि सप्तमी 112 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-इम (यह) प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी एकवचन बहुवचन इमो (3/2), इमे (3/58) अयं (5/73) इमे इमं (3/5), इमे (3/4, 3/14), इणं (3/78), इमा (3/4, 3/12), णं (3/77, 3/5) णे (3/77, 3/14), णा (3/77, 3/4, 3/12) इमेण (3/6, 3/14), इमे हि, इमेहिं, इमेहि इमेणं (1/27), (3/7, 3/15), इमिणा (3169), णेहि, हिं, णेहि णेण, णेणं, णिणा (3/77, 3/7, 3/15) (3/77, 3/6, 3/14, 3/69) इमस्स (3/10), इमाण (3/6, 3/12), अस्स (3/74), इमाणं (1/27), से (3/81) इमेसि (3/61), सि (3/81) इमत्तो, इमानो, इमाउ, इमत्तो, इमानो, इमाउ इमाहि, इमाहितो, इमा (3/9, 3/12, 1/84), (3/8, 3/12, 1/84), इमाहि, इमाहितो, इमासुतो इमादो, इमादु (3/8) (3/9, 3/13), इमेहि, इमेहितो, इमेसुंतो (3/9, 3/15), इमादो, इमादु (319) इमस्सि, इमम्मि (3/59, 3/76), इमेसु (3/15), प्रस्सि (3/74), इमेसु (1/27) इह (3/75), इमम्हि, इमंसि पंचमी सप्तमी प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 113 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 114 ] एकवचन ग्रह (3/87), (3/88) अमुं (3/124, 3/5) पुल्लिंग -- श्रमु ( वह) मुणा (3/24) яg (3/124, 3/10), अमुणो (3 / 23 ) मुणो (3/23), प्रमुत्तो, श्रो, मूउ, अमूहितो (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127), श्रमूदो, मृदु ( 3 / 124, 3/8) अम्मि इमम्मि (3/89), fTM (3/124, 3/11), प्रमुह, श्रमसि बहुवचन मउ, अम (3/20), मुणो (3/22), श्रमवो (3 / 21 ) अमू ( 3 / 124, 3/4, 3/12), मुणो (3/22), अम्मू (3/18) अमूहि, प्रमूहि अमूहिं ( 3 / 124, 3/7, 3/16) ? अमूग ( 3 / 124, 3/6, 3/12), मूणं (1 / 27 ) प्रमुत्तो, श्रम, अमूउ, अमूहितो, असुंतो (3 / 124, 3 / 9, 3/16, 3/127) gat, gg (3/124, 3/9) अमूसु (3/16), श्रमूसुं (1/27) 12 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल्लिग-अन्न (अन्य) एकवचन बहुवचन प्रथमा (3/2). अन्ने (3/58), अन्नो अन्ने द्वितीया अन्नं (375) अन्ने (3/4, 3/14), अन्ना (3/4,3/12) तृतीया अन्ने रण (3/5, 3/14), अन्नेणं (1/27) अन्नेहि, अन्नेहि, अन्नेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी अन्नाय (3/132); अन्नस्स (3/131,3/10) अन्नाण (3/131, 3/6, 3/12), अन्नाणं (1/27), अन्नेसि (3/131,3/61) पंचमी अन्नत्तो, अचानो, अन्नाउ, अन्नाहि, अन्नाहिंतो, अन्ना, (18, 3/12, 1/84), अन्नादो, अन्नादु (3/8) अन्नत्तो, अन्नामो, अन्नाउ (3/9,3/12, 1/84), अन्नाहि, अन्नाहिंतो, अन्नासुंतो (3/9, 3/13), अन्नेहि, अन्नेहितो, अन्नेसुंतो (3/9, 3/15), अन्नादो, अन्नादु (319) अन्नाग (3/6, 3/12), अन्नाणं (1/27), अन्नेसिं (3/61) षष्ठी अन्नस्स (3/10) सप्तमी अन्नेसु (3/15), अन्नेसुं (1/27) अन्ना स, अन्नम्मि, अन्नत्थ (3/59), अन्नहिं (3/60), अन्नम्हि, अन्नंसि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 115 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-सव्व एकवचन बहुवचन प्रथमा सव्वं (3125) सव्वाइं, सव्वाइँ, सव्वाणि (3/26) द्वितीया सव्वं (315) सव्वाइं, सव्वाइँ, सव्वाणि (3/26) तृतीया सव्वेण (3/6, 3/14), सव्वेणं (1/27) सम्वेहि, सव्वेहि, सव्वेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी सव्वाय (3/132), सव्वस्स (3/131, 3/10) सव्वाण (3/131, 3/6, 3/12), सव्वाणं (1/27), सव्वेसि (3/131, 3/61) पंचमी सव्वत्तो, सबानो, सव्वाउ, सव्वाहि, सवाहितो, सव्वा (3/8, 3/12, 1/84), सव्वादो, सम्वादु (318) सव्वत्तो, सव्वाो , सव्वाउ, (3/9, 3/12, 1/84), सवाहि, सव्वा हितो सव्वासुतो सन्वेहि, सव्वेहितो, सव्वेसुंतो (3/9, 3/13, 3/15), सव्वादो, सव्वादु (3/9) षष्ठी सबस्स (3/10) सव्वाण (3/6, 3/12), सवारणं (1/27), सव्वेसि (3/61) सप्तमी सव्वेसु (3/15), सव्वेसुं (1/27) सव्वस्सि, सव्वम्मि, सव्वत्थ (3/59), सव्वहिं (3/60) सम्वम्हि, सव्वंसि 116 ] । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-त (वह) एकवचन बहुवचन ताई, ताई, ताणि (3/26) प्रथमा तं (3/25) द्वितीया तं (315) ताई, ताई, ताणि (3/26) तृतीया तेण (3/6, 3/14), तेणं (1/27) तिणा (3/69) तेहि, तेहिं, तेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी तस्स (3/10), तास (3/63) से (3/81), ताण (3/6, 3/12), ताणं (1/27), तेसि (3/61), सिं (3/81), तास (3/62) पंचमी तत्तो, तारो, ताउ, ताहि, तत्तो, तापो, ताउ ताहिंतो, ता (3/8, 3/12, 1/84) (3/9, 3/12, 1/84), तम्हा (3/66), ताहि, ताहितो, तासुंतो तो (3/67), (3/9, 3/13), तादो, तादु (38) तेहि, तेहितो, तेसुतो (3/9, 3/15), तादो, तादु (3/9) सप्तमी तेसु (3/15), तेसुं (1/27) तस्सि, तम्मि, तत्थ (3/59), तहिं (3/60), ताहे, ताला, तइया (3/65), तम्हि. तंति प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ) Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 118 1 एकवचन of (3/25) णं (3/5) नपुंसकलिंग तरण ( वह ) बहुवचन नाई, गाइँ, णाणि (3/26) गाई, णाई, णाणि (3/26) हि, हि, हिं 3/15) (3/7, (3/6, 3/14), Tot (1/27), FOTOTT (3/69) TE (3/10) णत्तो, णाम्रो, णाउ, नाहि, हितो, गा (3/8, 3/12, 1/84), गादो, गाडु (3/8) uf (3/60); हे, पाला, इ ( 3/65 ), हि, मंसि OTTOT (3/6, 3/12), OTTOT (1/27) णत्तो, णाम्रो, गाउ, (2/9, 3/12, 1/84), पाहि नाहितो, णासुंतो (3/9, 3/13), हि, हितो, सुंतो (3/9, 3/15), गादो, गादु ( 3 / 9) सि, मि, णत्थ ( 3/59), णेसु ( 3 / 15), णेसुं (1/27) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-ज (जो) एकवचन बहुवचन प्रथमा जं (3/25) जाई, जाई, जाणि (3/26) द्वितीया जं (3/5) जाई, जाई, जाणि (3/26) तृतीया जेण (3/6, 3/14), जेणं (1/27), जिणा (3/69) जेहि, जेहिं, जेहिं । (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी जस्स (3/10), जास (3/63) जाण (3/6,3/12), जाणं (1/27), जेसि (3/61), पंचमी जत्तो, जागो, जाउ, जाहि जत्तो, जाओ, जाउ जाहितो, जा(3/8, 3/12, 1/84), (3/9, 3/12; 1/84), जम्हा (3/66), जाहि, जाहिंतो, जासुंतो जादो, जादु (3/8) (3/9, 3/13), जेहि, जेहितो, जेसुंतो (3/9, 3/15), . जादो, जादु (3/9) सप्तमी जेसु (3/15), . जेसुं (1/27) जस्सि, जम्मि, जत्थ (3/59), जहिं (3/60), जाहे, जाला, जइया (3/65), जम्हि, जंसि प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 119 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-क (कौन) एकवचन बहुवचन प्रथमा किं (3/89) काई, काइँ, काणि (3/26) द्वितीया कि (3/80) काई, काई, काणि (3/26) तृतीया केण (376, 3/14), केणं (1/27), किणा (3169) केहि, केहि, केहि (3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी कस्स (3/10), कास (3/63) काण (3/6, 3/12), काणं (1/27), कास (3/62), केसि (3/61) पंचमो कत्तो, कामो, काउ, काहि, काहितो, का (3/8, 3/12, 1184), कम्हा (3/66), किणो, कीस (3/68), कादो, कादु (/8) कत्तो, कामो, काउ (319, 3/12, 1/84), काहि, काहितो, कासुतो (3/9, 3/13), केहि, केहितो, केसुंतो (3/9, 3/15), कादो, कादु (379) सप्तमी कस्सि, कम्मि, कत्थ (359), कहिं (3/60), काहे, काला, कइया (3/65), कम्हि, कंसि केसु (3/15), केसुं (1/27) 1201 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-एत (यह) एकवचन बहुवचन द्वितीया प्रथमा एस, इणं, इणमो (3/85), एताइं, एताइँ, एताणि (3/26), एतं (3/25) एदाई, एदाइँ, एदारिण (4/260) एतं (3/5), एताई, एताई, एताणि (3/26), एदं (4/260) एदाई, एदाई, एदाणि (4/260) तृतीया एतेण (3/6, 3/14), एतेहि, एतेहिं, एतेहि एतेणं (1/27), (3/7, 3/15), एतिणा (3/69), एदेहि, एदेहि, एदेहि (4/260) एदेण, एदेणं, एदिणा (4/260) चतुर्थी व एतस्स (3/10), एताण (3/6, 3/12), षष्ठी से (3/81), एताणं (1/27), एतेसिं (3/61), एक्स्स (41260) सि (3/81), एदाण, एदाणं, एदेसि (4/260) पंचमी एताप्रो, एताउ, एताहि, एतत्तो, एताओ, एताउ एताहितो, एता (3/9, 3/12, 1/84), (3/8, 3/12), एताहि, एताहितो, एतासुंतो एत्तो, एत्ताहे (3/82, 3/83), एतेहि, एतेहितो, एतेसंतो एदादो, एदादु (38) (319, 3/13, 3/15), एदादो, एदादु (3/9) सप्तमी एतस्सि, एतम्मि (3/59), एतेसु (3/15), अयम्मि, ईयम्मि एतेसं (1/27), (3/59, 3/84), एदेसु, एदेसुं (4/260) एत्थ (359, 3/83) एतम्हि, एतसि नोट- इस रूपावली में शौरसेनी के रूप बनाने के लिए 'त' के स्थान पर 'द' कर लिया जावे। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 121 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-एत→एम (यह) एकवचन बहुवचन प्रथमा एस, इणं, इणमो (3/85), एग्रं (3/25) एप्राइं, एमआई, एप्राणि (3/26) द्वितीया एग्रं (3/5) एमाई, एमाई, एग्राणि (3/26) तृतीया एएण (3/6, 3/14), एएणं (1/27), एइणा (3/69) एऐहि, एऐहिं, एऐहिं (3/7, 3/15), चतुर्थी व षष्ठी एअस्स (3/10), से (3/81) एमाण (3/6, 3/12), एमाणं (1/27), एएसि (3161), सिं (3/81) पंचमी एप्रायो, एप्राउ, एप्राहि, एप्रत्तो, एप्रानो, एग्राउ एमाहितो, एग्रा (3/8,3/12), (3/9, 3/12), एत्तो, एत्ताहे (3/82, 3/83), एग्राहि, एग्राहितो, एआसुतो एमादो, एप्रादु (318) (3/9, 3/13), एएहि, एएहितो, एएसुतो (3/9, 3/15), एप्रादो, एप्रादु (319) सप्तमी एएसु (3/15), एएसुं (1/27) एअस्सि, एमम्मि (3/59), अयम्मि, ईयम्मि (3/59, 3/84), एत्थ (3/59, 3/83), एअम्हि, एप्रसि 122 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-इम (यह) एकवचन बहुवचन प्रथमा इदं, इणमो, इणं (3/79) इमाइं, इमाई, इमाणि (3/26) इमाई, इमाई, इमाणि (3/26) द्वितीया इदं, इणमो, इणं (3/78, 3/79) तृतीया इमेण (3/6, 3/14), इमेण (1/27), इमिणा (6/69), णेण, णेणं, णिणा (3/77, 3/6, 3/14, 3/69) इमेहि, इमेहि, इमेहि (3/7, 3/15), णेहि, रोहिं, णेहि (3/77,3/7, 3/15) चतुर्थी व षष्ठी इमस्स (3/10), अस्स (3/74), से (3/81) इमाण (3/6,3/12); इमाणं (1/27), इमेसि (3/61), सिं (3/81) . पंचमी इमत्तो, इमानो, इमाउ, इमत्तो, इमानो, इमाउ, इमाहि, इमाहि, इमाहितो इमाहितो, इमासुंतो, इमेहि, (3/8, 3/12, 1/84), इमेहितो, इमेसुंतो इमादो, इमादु (378) (3/9, 3/12, 3/13,3/15), इमादो, इमाद (379) इमस्सि, इमम्मि (3/59, 3/76), इमेसु (3/15), प्रस्सि (3/74), इमेसु (1/27) इह (3/75), इमम्हि, इमंसि सप्तमी 1. प्राकृत भाषामों का ध्याकरण, पिशल, पृष्ठ-641 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 123 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग... अमु (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा अह (3/87), अमुं (3/88, 3/25), अमूई, अमूई, अमूरिण (3/26) द्वितीया अमुं (3/124, 3/5) अमूइं, अमूई, अमणि (3/26) तृतीया अमुणा (3/24) अमूहि, अमूहि, अमूहि (3/124,3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी अमुस्स (3/124, 3/10) अमुणो (3/23) अमूण (3/1 24, 3/6, 3/12), अमूणं (1/27) पंचमी अमुणो (3/23), अमुत्तों, प्रमूग्रो, अमूउ, अमूहितो (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127) अमूदो, अमूदु (3/124, 3/8) अमुत्तो, अमूमो, अमूउ, अमूहितो, अमूसुतो, (3/124, 3/9, 3/16, 3/127) अमूदो, अमूदु (3/124, 3/9) सप्तमी अयम्मि, इमम्मि (3/89), अमुम्मि (3/124, 3/11), प्रमुम्हि, अमुंसि अमूसु (3/16), अमूसं (1/27) 124 1 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग-अन्न (अन्य) एकवचन बहुवचन प्रथमा अन्नं (3/25) अन्नाई, अन्नाई, अन्नाणि (3/26) द्वितीया अन्नं (375) अन्नाई, अन्नाइँ, अन्नाणि (3/26) तृतीया अन्नेण (376, 3/12), अन्नेणं (1/27) अन्ने हि, अन्नेहिं, अन्नेहि (3/7, 3/15) चतुर्थी अन्नाय (3/132), अन्नस्स (3/131, 3/10) अन्नाण (376, 3/12), अन्नाणं (1/27), अन्नेसि (3/131, 3161) पंचमी अन्नत्तो, अन्नामो, अन्नाउ, अन्नाहि, अन्नाहिंतो, अन्ना (3/8, 3/12, 1/84), अन्नादो, अन्नादु (378) अन्नत्तो, अन्नामो, अन्नाउ, (319, 3/12, 1/84), अन्नाहि, अन्नाहिंतो, अन्नासुंतो (3/9, 3/13), - अन्नेहि, अन्नेहितो, अन्नेसंतो (3/9,3/15) अन्नादो, अन्नादु (319) षष्ठी अन्नस्स (3/10) अन्नाण (3/6, 1/12), अन्नाणं (3/127), अन्नेसि (3/61) सप्तमी अन्नेसु (3/15), अन्नेसु (1/27) अन्नस्सि, अन्न म्मि, अन्नत्थ (3/59), अन्नहिं (3/60) अन्नम्हि, अन्न सि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ 1 । 125 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 1261 एकवचन श्राकारान्त स्त्रीलिंग - सव्वा सव्वा (4/448 ), सव्वं ( 3 / 124, 3/5, 3 / 36 ) सव्वा, सव्वाइ, सव्वाए (3/29) सव्वा, सव्वाइ, सव्वाए (3/29) सव्वान, सव्वाइ, सव्वाए (3/29) बहुवचन सव्वा (3/124, 3/4), सव्वाउ, सव्वा सव्वा (3 / 124, 3/4), सव्वाउ, सव्वा (3/27) सव्वा, सव्वाइ, सव्वाए (3/29), सव्वत्तो, सव्वानो, सव्वाउ, aarfat (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), abarat, baig (3/124, 3/8) सव्वाहि सव्वाहि सव्वाहिँ (3/124, 3/7) (3/27) सव्वाण ( 3 / 124, 3 / 6), सव्वाणं ( 1/27), सव्वेस (3/61) सव्वत्तो, सव्वाश्रो, सव्वाउ, सव्वाहितो, सव्वा सुंतो, (3/124, 3/9, 3/127) सव्वादो, सम्वादु ( 3 / 124, 3 / 9) सव्वासु, सव्वासुं (4/448 ) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-ता (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा सा (3/86, 4/448) ता (3/124, 3/4) ताउ, तापो (3/27) द्वितीया तं (3/124, 3/5, 3/36) ता (3/124, 3/4), ताउ, तारो (3/27) तृतीया ताप, ताइ, ताए (3/29) ___ ताहि, ताहिं, ताहिँ (3/124, 3/7) चतुर्थी व षष्ठी ताप, ताइ, ताए (3/29), तास (3/63), से (3/81) ताण (3/124, 3/6), ताणं (1/27); सिं (3/81). तेसि (3161) पंचमी ततो, तारो, ताउ, ताहितो, ___ तत्तो, ताओ, ताउ, ताहितो, (3/124, 3/8, तासुंतो (3/124, 3/9, 3/126, 3/127) 3/127) तान, ताइ, ताए (3/29), तादो, तादु (3/124, 3/9) तादो, तादु (3/124, 3/8) सप्तमी तासु, तासु (4/448), ताप, ताइ, ताए (3/29), ताहिं (3/60) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ । [ 127 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 128 1 एकवचन स्त्रीलिंग - तारा (यह ) UTT (4/448) (3/124, 3/5, 3/36) णा, गाइ, णाए (3/29) णा, ना, जाए (3/29), OTH (3/63), से (3/81) गा, गाइ, गाए ( 3 / 29 ), णत्तो, णाम्रो, णाउ, नाहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127) wiat, mig (3/124, 3/8) रात्र, नाइ, णाए ( 3 / 29 ), If (3/60) बहुवचन OTT (3/124, 3/4), णाउ, णा (3/27 ) UTT (3/124, 3/4), गाउ, गाओ (3/27 ) नाहि, नाहि, जाहिं (3/124, 3/7) OTTOT (3/124, 3/6), OTTOT (1/27) fa (3/81), offer (3/61) णत्तो, णाश्रो, गाउ, गाहितो, सुंतो (3/124,3/93/127), mat, mg (3/124, 3/9) गासु, णासुं (4/448 ) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-ती (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा ती (3/19), तीया (3/28) तीउ, तीनो (३/27), तीग्रा (3/28). ती (3/124, 3/4) द्वितीया ति (3/124, 3/5, 3/36) तीउ, तीनो (3/27), तीमा (3/28), ती (3/18) तृतीया तीन, तीमा, तीइ, तीए (3/29) तीहि, तीहिं, तीहिँ (3/124, 317, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी तीन, तीमा, तीइ, तीए (3/29) तिस्सा, तीसे (3/64) तीण (3/124, 3,6), तीण (1/27) पंचमी तीन, तीमा, तीइ, तीए (3/29), तित्तो, तीओ, तीउ, तीहितो (3/124, 3/8, 3 126, 3/127), तीदो, तीदु (3/124, 3/8) तित्तो, तीनो, तीउ, तीहितो, तीसुतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), तीदो, तीदु (3/124, 3/9) सप्तमी तीन, तीग्रा, तीइ, तीए (3/29) तीसु (316), तीसुं (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम्म ] [ 129 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-जा (जो) एकवचन बहुवचन प्रथमा जा (4/448) जाउ, जाप्रो (3/27), जा (3/124, 3/4) द्वितीया जं (3/124, 3/5, 3/36) जाउ, जाग्रो (3/27), जा (3/124, 3/4) तृतीया जान, जाइ, जाए (3/29) जाहि, जाहिं, जाहिं (3/124, 317) चतुर्थी व षष्ठी जाय, जाइ, जाए (3/29), जाण (3/124, 3/6), जाणं (1/27), जेसिं (3/61) पंचमी जान, जाइ, जाए (3/29), जत्तो, जामो, जाउ, जाहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), जादो, जादु (3/124, 3/8) जत्तो, जाओ, जाउ, जाहिंतो, जासुंतो (3/124, 3/9, 3/127), जादो, जादु (3/124, 3/9) सप्तमी जाम, जाइ, जाए (3/29), जाहिं (3/60) जासु (4/448), जासुं (1/27) 1301 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-जी (जो) एकवचन बहुवचन प्रथमा जी (3/19), जीमा (3/28) जीउ, जीग्रो (3/27), जीमा (3/28), जी (3/124, 3/4) द्वितीया जि (3/124, 3/5, 3/36) जीउ, जीयो (3/27), जीमा (3/28), जी (3/18) तृतीया जीन, जीपा, जीइ, जीए (3/29) जीहि, जीहि, जीहिं (3/124, 3/7,3/16) चतुर्थी व षष्ठी जीप्र, जीग्रा, जीइ, जीए (3/29), जिस्सा, जीसे (3/64) जीण (3/124, 3/6), जीणं (1/27) पंचमी जीम, जीपा, जीइ, जीए जित्तो, जीयो, जीउ, जीहितो, (3/29), जीसुतो (3/124, 379, 3/16, जितो, जीयो, जीउ, जीहितो, 3/127) (3/124, 3/8, 3/126, जोदो, जोदु (3/124,319) 3/127), जोदो, जीदु (3/124, 3/8) सप्तमी जीप, जीना, जीइ, जीए (3/29) जीसु (3/16), जीसु (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ । [ 131 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-का (कौन) एकवचन बहुवचन प्रथमा का (4/448) काउ, काप्रो (3127), का (3/124,3/4) द्वितीया कं (3/124, 3/5, 3/36) काउ, काग्रो (3/27), का (3/124, 3/4) तृतीया काअ, काइ, काए (3/29) काहि, काहिं, काहिं (3/124, 3/7) चतुर्थी व षष्ठी काम, काइ, काए (3/29), कास (3/63) काण (3/124, 3/6), काण (1/27), केसि (3/61) पंचमो काप, काइ, काए (3/29), कत्तो, कामो, काउ, काहितो। (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), कादो, कावु (3/124, 3/8) कत्तो, कामो, काउ, काहिंतो, कासंतो (3/124, 3/9, 3/127), कादो, कादु (3/124, 3/9) सप्तमी काम, काइ, काए (3/29), काहिं (3/60) कासु (4/448), कासु (1/27) 1321 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-की (कौन) एकवचन बहुवचन प्रथमा की (3/19) कीमा (3/28) कीउ, कीमो (3/27), कीमा (3/28), की (3/124, 3/4) द्वितीया कि (3/124, 3/5, 3/36) कीउ, कीमो (3/27), कीमा (3128), की (3/18) तृतीया कीम, कीपा, कीइ, कीए (3/29) कोहि, कीहिं, कीहिं (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी कीम, कीपा, कीइ, कीर (3/29) किस्सा, कीसे (3/64) कोण (3/124,3/6), कीणं (1/27) पंचमी कोअ. कीमा, कोइ, कीए कित्तो, कीरो, कीउ, कीहितो, (3/29), कीसंतो (3/124, 319, 3/16, कित्तो, कीमो, कीउ, कीहितो, 3/127), (3/124, 3/8, 3/126, कोदो, कोदु (3/124, 3/9) 3/123), कोदो, कोदु (3/124, 3/8) सप्तमी कीम, कीपा, कीइ, कीए (3/29) कीसु (3/16), कीसुं (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 133 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-एमा (यह) एकवचन बहुवचन प्रथमा एसा (4/448) एप्राउ, एमाग्रो (3/27), एग्रा (3/. 24, 3/4) द्वितीया एनं (3/124, 3/5, 3/36) एग्राउ, एमाप्रो (3/27), एप्रा (3/124, 3/4) तृतीया एग्राम, एप्राइ, एमाए (3/29) एमाहि, एनाहि, एपाहिं (3/124, 3/7) चतुर्थी व षष्ठी एमाग्र, एमाइ, एमाए (3/29), से (3/81) एमाण (3/124, 3/6), एमाणं (3/27), सिं (3/81) पंचमी एप्रत्तो, एप्रत्ताहे (3/82), एप्रत्तो, एप्रायो, एमाउ एग्राम, एग्राइ, एपाए (3/29), एमाहितो, एमासंतो एमाप्रो. एग्राउ, एवाहितो (3/124, 379, 3/127), (3/124, 3/8, 3/126, एपादो, एमादु (3/124, 3/9) 3/127) एमादो, एमावु (3/124, 3/8) सप्तमी एमाग्र, एप्राइ, एमाए (3/29) एमासु (4/448), एमासु (1/27) 134 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन एई (3/19), gur (3/28) स्त्रीलिंग - एई (यह ) ए ( 3 / 124, 3/5, 3 / 36 ) एई, एई, एईई, एईए (3/29) एई, एईप्रा, एईई, एईए (3/29) एई, एईप्रा, एईई, एईए (3/29), एतो. एईओ, एई, एईहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127) gfat, gfg (3/124, 3/8) एई, एईप्रा. एईई, एईए (3/29) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] बहुवचन एई, एईप्रो (3/27 ), एई (3/28), एई ( 3 / 124, 3/4 ) एई, एईओ (3/27), (3/28), एई एई (3/8) एहि, एहि, एहिं (3/124, 3/7, 3/16) एईण (3/124, 3/6), एई (1 / 27 ) एइत्तो, एईओ, एई उ, एईहितो, ga (3/124, 3,9, 3/16, 3/127), gfat, gfg (3/124, 3/9) gfg (3/16), एई (1 / 27 ) [ 135 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 136 ] एकवचन स्त्रीलिंग - इमा (यह ) इमा (4/448), इमिश्रा (373) इमं (3 / 124, 3/5, 3/36) इमा, इमाइ, इमाए ( 3 / 29 ) इमात्र, इमाइ, इमाए (3/29), से (3/81) बहुवचन gfgat (3/124, 3/8, 3/126, 3/127) garat, garg (3/124, 3/8) इमा, इमाइ, इमाए (3/29) इमा, इमा ( 3 / 27), ET (3/124, 3/4) इमाउ, इमा (3/124, 3/4) 17(3/27), माहि, इमाहि, इमाहिं (3/124, 3/7) SATO (3/124, 3/6), इमाणं (1 / 27), fer (3/81), gafer (3/61) इमा, इमाइ, इमाए ( 3 / 29 ), इमत्तो, इमाओ, इमाउ, इमाहितो, इमत्त, इमाओ, इमाउ, gargat (3/124, -/19, 3/127), हमादो, इमावु ( 3 / 124, 3 / 9) इमासु (4/448), इमासुं (1 / 27 ) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-इमी (यह) एकवचन बहुवचन प्रथमा इमी (3/19), इमीग्रा (/28) इमीउ, इमीग्रो (3127), इमीग्रा (3/28), इमी (3/124, 3/4) द्वितीया इमि (3/124, 3/5, 3/35) इमीउ, इमीग्रो (3/27), इमीग्रा (3/28), इमी (3/18) तृतीया इमीग्र, इमीग्रा, इमीइ, इमीए (3/29) इमीहि, इमीहि, इमीहि (3/124,3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी . इमी, इमीमा, इमी इ, इमीए (3/29) इमीण (3/124, 3/6), इमीणं (1/27) पंचमी इमीग्र, इमीमा, इमोइ, इमीए (3/29), इमित्तो, इमीग्रो, इमोउ, इमीहितो (3/124, 3/8, 31126,3/127) इमोदो, इमोद (3/124, 3/8) इमित्तो, इमीग्रो, इमीउ, इमीहितो, इमीसुतो (3/124, 3/9, 3/16, 3/127), इमोवो, इमीद (3/124, 3/9) सप्तमी इमीग्र, इमीग्रा, इमीइ, इमीए (3/29) इमीसु (3/16), इमीसुं (1/27) प्रौढ प्राकृते रचना सौरम 1 । 137 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-प्रम् (वह) एकवचन बहुवचन प्रथमा मह (3/87), अमू (3/88, 3/19) प्रमूउ, प्रमूओ (3/27), ममू (3/124, 3/4, 3/12) द्वितीया अम (3/124, 3/5) अमूउ, अमूमो (3/27), प्रमू (3/18) तृतीया अमूम, अमूमा, अमूइ, प्रमूए । (3129) प्रमूहि, प्रमूहि, अमूहि (3; 1 24, 3/7, 3/16) चतुर्थी व षष्ठी मू, अमूमा, अमूइ, अमूए (3/29) प्रमूण (3/124, 3/6; 3/12), प्रमूणं (1/27) पंचमी अमन, अमूमा, अमूइ, अमूए । प्रमुत्तो, अमूमो, अमूउ, प्रमूहितो, (3/29), अमूसुंतो (3/124, 3/9, 3/16, प्रमुत्तो, प्रमो, प्रमूउ, अमहितो 3/127) (3/124, 3/8, 3/12, अमूदो, प्रमूदु (3/124, 319) 3/126,3/127), अमूदो, प्रमूदु (3/124, 3/8) सप्तमी अमूम, अमूमा, अमूइ, अमूए (3/29) प्रमूसु (3/16), प्रमूसं (1/27) 138 । प्रौढ प्राकृत रचना सौर Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग-अन्ना (अन्य) एकवचन बहुवचन प्रथमा मन्ना (4/448). अन्नाउ, मन्नानो (3/27), अन्ना (3/124, 3/4) दितीया अन्नं (3/124, 3/5, 3/36) अन्नाउ, अन्नाप्रो (3/27), अन्ना (3/124, 3/4) तृतीया अन्नाअ, अन्नाइ, अन्नाए (3/29) अन्नाहि, अन्नाहि, अन्नाहि (3/124, 317) चतुर्थी व षष्ठी अन्नान, अन्नाइ, अन्नाए (3/29) अन्नाण (37124, 3/6), अन्नाणं (1/27) पंचमी अन्नान, प्रनाइ, अन्नाए (3/29) अन्नत्तो, अन्नामो, अन्नाउ, अन्नाहितो, अन्नत्तो, मन्नानो, मन्नाउ, अन्नासुतो (3/124, 3/9, 3/127), अन्नाहितो (3/1 24, 3/8, अन्नावो, अन्नादु (3/124,319) 3/126,3/127) अन्नादो, अन्नादु (3/8) सप्तमी अन्नाम, अन्नाइ, अन्नाए (3/29) अन्नासु (4/448), मन्नासुं (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 139 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी तीनों लिंगों में-तुम्ह (तुम) एकवचन तं, तुं, तुमं, तुवं, तुह (3/90) तं, तुं, तुम, तुवं, तुह, तुमे, तुए (3/92) तुम, तइ, तए, तुमइ, तुमाइ, तुमे, तुमए, भे, दि, दे, ते (3/94) तइ, तुव, तुम, तुह, तुह, तुम्ह, तुमे, तुमो, तुमाइ, तुम, उन्म, उय्ह, दि, दे, इ, ए, तु, ते (3/99) तुम्ह, तुज्झ, उम्ह, उज्झ (3/104, 3/991) तइत्तो, तईमो, तई उ, तईहितो, . तुवत्तो, तुवानो, तुवाउ, तुवाहि, तुवाहितो, तुवा तुमत्तो, तुमाओ, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहितो, तुमा, तुहत्तो, तुहाभो, तुहाउ, तुहाहि, तुहाहितो, तुहा, तुब्भत्तो, तुब्भाप्रो, तुब्भाउ, तुबमाहि, तुभाहितो, तुम्मा (3/96, 3/8, 3/12), तुम्ह, तुम, तहितो (3197), तुम्हत्तो, तुम्हानो, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हाहितो, तुम्हा, तुज्झत्तो, तुज्झानो, तुज्झाउ, तुज्झाहि, तुज्झाहितो, तुज्झा (3/104), तईदो, तईदु, तुवादो, तुवादु, तुमादो, तुमादु, तुहादो, तुहादु, तुब्भादो, तुब्मादु, तुम्हादो, तुम्हादु, तुज्झादो, तुज्झादु (3196, 3/8, 3/12) तइ, तए, तुमाइ, तुमए, तुमे (3/101), तुम्मि (3/102, 3159)2 तुवम्मि, तुमम्मि, तुहम्मि, तुब्भम्मि, तुस्सि, तुमस्सि, तुहस्सि, तुब्भस्सि, तुवत्थ, तुमत्थ, तुहत्थ, तुब्मत्थ (3/102, 3/59), तुवहिं, तुमहिं, तुहहिं, तुमहिं (3/102, 3/60), तुवे, तुमे, तुहे, तुब्भे (3/102, 3/11), तुम्हे, तुझे, तुम्हम्मि, तुज्झम्मि, तुम्हरिंस, तुज्झस्सि, तुम्हत्थ, तुज्झत्थ तुम्हहि, तुज्झहिं (3/104, 3/11, 3/59, 3/60) सप्तमी 1. देखें हेम प्राकृत व्याकरण, सूत्र 3/99 की व्याख्या । 2. देखें हेम प्राकृत व्याकरण, सूत्र 3/59 की व्याख्या। 140 ] । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व तुब्भ, तुब्भं, तुब्भणा, तुवाण, तुमाण, तुहाण, उम्हाण, तु, वो, भे (3 / 100), षष्ठी तुम्हाण, तुझा (3/104, 3/6, 3/12), तुम्भाणं तुवाणं, तुमारणं, तुहाणं, उम्हाणं, तुम्हाणं, तुज्झाणं ( 1/27) तुमत्तो, तुब्भाप्रो, तुभाउ, तुब्माहि, तुब्भाहितो, तुम्भासुंतो, तुम्भेहि, तुभेहितो, तुम्भेतो, तुम्हत्तो, तुम्हाम्रो, तुम्हाउ, तुम्हा हि, तुम्हा हितो, तुम्हासुंतो, तुम्हे हि, तुम्हे हितो, तुम्हे सुंतो उय्हत्तो, उम्हाम्रो, उय्हाउ, उम्हाहि, उम्हाहितो, उम्हासुंतो, उम्हेहि, उम्हेहितो, उहेसुंतो, उम्हत्तो, उम्हा प्रो, उम्हाउ, उम्हाहि, उम्हाहितो, उम्हासुंतो, उम्हेहि, उम्हे हितो, उम्हेसुंतो (3 / 98, 3 / 9, 3 / 12, 3/13, 3 / 15), तुम्हत्तो, तुम्हाम्रो, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हाहितो, तुम्हासुंतो, तुम्हेहि, तुम्हे हितो, तुम्हेसुंतो तुज्झत्तो, तुज्झानो, तुज्झाउ, तुज्झाहि, तुज्झाहितो, तुज्झासंतो, तुझेहि, तुज्झहितो, तुझेसुंतो (3/104,3/9, 3/12, 3/13, 3/15), सप्तमी तीनों लिंगों में तुम्ह (तुम) - बहुवचन तुझ, तुम्ह, तुभे, तुम्हे, उन्हे, भे (3/91) तुज्झ, तुब्भे, तुम्हे, उरहे, भे, वो (3/93) तुझेहि, उज्झेहि, तुम्हेहि, उम्हेहि, उभ्हेहि, भे (3/95) तुम्भादो, तुम्मादु तुम्हादो, तुम्हादु, उय्हादो, उहादु, उम्हादो, उम्हा, तुम्हादो, तुम्हादु, तुज्झादो, तुज्झादु (3/98,3/9) सु ( 3 / 103, 4/448 ) तुवेसु तुमेसु तुहेस, तुब्भेसु ( 3 / 103, 3 / 15), तुम्हे, तुझे ( 3 / 104, 3/15 ), तुवसु, तुमसु, तुहसु, तुब्भसु, तुम्हसु, तुझसु, तुम्भासु, तुम्हासु, तुज्भासु (3/103)1 तुवसुं, तुमसुं, तुहसुं, तुम्मसुं, तुम्हसुं, तुज्झसुं, तुवेसुं, तुमेसुं तुहेसुं, तुन्भेसु, तुम्हेसुं तुझेसुं (1/27) 1. देखें - हेम प्राकृत व्याकरण, सूत्र 3 / 103 की वृत्ति । प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 141 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी 1. 142 J तीनों लिंगों में - श्रम्ह ( मैं ) - एकवचन अहं, हं, ग्रहयं, म्मि, अम्मि, अम्हि ( 3 / 105 ) श्रहं मं, ममं, मि, म्मि, अम्मि, श्रम्ह, मम्ह णं, णे (3/107) • मइ, मए, ममाइ, मयाइ, मे, ममए, मि, मिमं णे (3/109) मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्भं, ग्रम्ह, म्हं, मे ( 3 / 113) महत्तो, मईो, मईउ, मईहितो, ममत्तो, ममाश्रो, ममाउ, ममाहि, ममाहितो, ममा, महत्तो, महाप्रो, महाउ, महाहि, महाहितो, महा, मज्झत्तो, मज्झानो, मज्झाउ, मञ्झाहि, मज्झाहितो, मज्मा (3/111, 3/8, 3/12) मईदो मईदु, ममादो, ममादु, महादो, महादु, मज्भादो, मज्भादु (3/111, 3/8) मइ, मए, ममाइ, मि, मे (3/115), श्रम्हम्मि, ममम्मि, महम्मि, मज्झम्मि, अम्हे, ममे, महे, मज्झे ( 3 / 116, 3 / 111 म्हसि ममरिस, महस्सि, मज्झसि, देखें - पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ- 610 1 अम्हत्थ, ममत्थ, महत्थ, मज्झत्थ ( 3 / 116, 3/59)1, म्हहि ममह, महहिं, मज्झहि ( 3 / 116, 3/60 ) 1 1 [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीनों लिंगों में-प्रम्ह (मैं) बहुवचन प्रथमा अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, भे (3/106) द्वितीया अम्ह, अम्हे, अम्हो, णे (3/108) तृतीया प्रम्ह, अम्हे, अम्हेहि, अम्हाहि, णे (6/110) चतुर्थों व षष्ठी अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हो, णे, गो. मज्झ, मज्झाण अम्हाण, ममरण, महाण (6/114), अम्हाणं, ममाणं, महाणं, मज्झाणं (1/27) पंचमो मातो, मो , मपाउ, माहि, ममाहितो, ममासुतो, ममेहि, ममेहितो, ममे सुंतो, अम्हत्तो, अम्हाप्रो, अम्हाउ, अम्हाहि, अम्हाहितो, अम्हासुंतो, अम्हेहि, अम्हेहितो, अम्हेसुंतो (3/112, 379, 3/12, 3/13, 3/15), ममादो, ममादु, अम्हादो, अम्हादु (3/112, 3/9) - सप्तमी अम्हेसु, ममेसु, महेसु, मज्झेसु (3/117, 3/15), अम्हसु, ममसु, महसु, मज्झसु, अम्हासु (3/117)1, अम्हे मुं, ममेसुं, महेसुं, मज्झेखें, अम्हसु, ममसुं, महसुं, मज्झसुं, अम्तासुं (1/27) 1. देखें, हम प्राकृत व्याकरण, सूत्र 117 को वृत्ति। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 143 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-4 संख्यावाचक-शब्दरूप प्रस्तुत अध्याय में संख्यावाचक शब्दों की रूपावली दी जा रही है । जिन शब्दों द्वारा संख्या का बोध होता है वे शब्द संख्यावाचक विशेषण कहे जाते हैं। सर्वप्रथम इस अध्याय में संख्यावाचक शब्द दिये जा रहे हैं। इसके बाद क्रमवाचक संख्याशब्द दिए गए हैं । अर्धमागधी कोश की प्रस्तावना के अनुसार सामान्यतया संख्यावाचक शब्दों मे 'म' प्रत्यय जोड़कर क्रमवाचक संख्यावाचक बनाये जा सकते हैं। हमने इस नियम का प्रयोग सभी क्रमवाचक संख्याओं के लिए मान्य किया है। कुछ अनियमित क्रमवाचक संख्या शब्द भी कोश में मिलते हैं जिन पर 1 नम्बर डालकर सूचित किया जा 144 1 । प्रौढ प्राकृत रचना सौर में Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक तीन चार पाँच सात पाठ नौ दस संख्यावाचक शब्द 1. एक्क, इक्क, एग, एम 2 दो, दुवे, बे 3. ति 4. चउ 5. पंच 6. छ? 7. सत्त 8. अट्ठ 9 णव 10. दह, दस 11. एक्कारह, इक्कारह, एगारह, एपारह, एक्कारस, इक्कारस, एगारस, एपारस 12. बारह, बारस, दुवालस 13. तेरह, तेरस 14. च उद्दह, च उद्दस, चोद्दस 15. पण्ण रह, पण्णरस 16. सोलह, सोलस, छद्दस 17. सत्तरह, सत्तरस, सत्तद्दस 18. अट्ठारह, अट्ठारस, अट्ठदस, अट्ठदह 19. एगूणवीस, अउणवीस, एगूणवीसइ, प्रउणवीसइ 20. वीस, वीसइ 21. एगवीस, एगवीसइ 22. बावीस, बावीस इ, बाइस 23. तेवीस, तेवीसइ 24. चउवीस, चउवीसइ ग्यारह बारह तेरह चौदह पन्द्रह सोलह सत्तरह अठारह उन्नीस बीस इक्कीस बाईस तेईस चौबीस प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 145 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अठाईस उन्तीस तीस इकतीस बतीस तेंतीस चौंतीस पैतीस छत्तीस 25. पण्णवीस, पण्णवीसइ, पणुवीस 26. छब्बीस 27. संत्तवीस, सत्तावीस, सत्तवीस इ, सत्तावीसइ । 28. अट्ठवीस, अट्ठावीस, अट्ठावीस इ 29. एगूणतीस, एगूणतीसइ, अउणतीस, अउणतीसइ 30. तीस, तीसइ 31. एक्कतीस 32. बत्तीस 33. तेत्तीस, तित्तीस, तेत्तीसइ 34. च उतीस, चउतीसइ 35. पण्णतीस, पंचतीस, पण्ण तीसइ, पंचतीस इ 36. छत्तीस, छत्तीसइ 37. सत्ततीस, सत्ततीसइ 38. अट्टतीस, अट्ठतीसइ 39. एगूणचत्तालीस, अउणचत्तालीस 40. चत्तालीस, चालीस 41. एक्कचत्तालीस, इगयाल 42. बायालीस, वायाल 43. तेपालीस 44. चउपालीस, चोयालीस 45. पणयालीस, पणयाल, पंचतालीस 46. छायालीस 47. सत्तचत्तालीस, सीयालीस, सत्तचालीस 48. अढचत्तालीस, अट्ठतालीस, अट्ठयाल, अढयाल, अढयालीस संतीस अड़तीस उन्तालीस चालीस इकतालीस बयालीस तियालीस चौंवालीस पैतालीस छियालीस सैंतालीस अड़तालीस 146 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49. एगूणपणास उणापण्ण 50. 51. पण्णास एगपणास, एक्कपण्णास, एगावण्ण, एक्कावण्ण 52. बावण्ण 53. तेवन्न 54. चउवण्ण, चउपण्ण, चउपण्णास 55. पणपण्ण, परणवण्ण 56. छप्पन्न 57. सत्तावन्न 58. अट्ठावण्ण 59. एगूणसट्ठि, अउसट्टि, उट्टि 60. सठि 61. एगसट्ठि 62. बासट्टि, बावट्टि, बिसट्ठि 63 तेसट्टि, तेवट्ठि तिसट्ठि 64. चट्ठि 65. पंचसट्ठि, पणसट्ठि 66. छमट्ठि 67. सत्तसट्टि, सत्तट्ठि 68. असट्टि, अट्ठामट्टि, अडसट्ठि 69. एगूणसत्तरि, उणत्तरि 70 सत्तरि, सयरि 71. एक्कसत्तरि, एगसत्तरि, इक्कसत्तरि, एहत्तर 72. बावत्तरि, बाहत्तरि, बिसत्तरि, बिसयरि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] = - = = = = = = = = = = उन्चास पचास इक्यावन बावन तिरेपन चौवन पचपन छप्पन सत्तावन अट्ठावन उन्सठ साठ इकसठ बासठ तरेसठ चौंसठ पैंसठ छियासठ सत्तसठ अड़सठ उन्हत्तर सत्तर इकहत्तर बहत्तर [ 147 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 73. तेवत्तरि, तेवुत्तरि 74. चउहत्तरि 75. पञ्चहत्तर 76. छहत्तर, छस्सयरि, छाहत्तरि 77. सत्तहत्तर, सत्तहुत्तरि 78. महत्तरि, अत्तरि 79. एगूणासीइ 80. असीइ 81. एगासीइ, एक्कासीइ 82. बासी, बासीइ 83. तेसीइ, तेश्रासी 84. चउरासी, चउरासीइ, चउरासीय 85. पणसीइ, पंचासीइ 86. छासीइ, छलसीइ 87. 88. 89. एगूणण उड् 90. गवई, णउइ 91. एक्का उइ 92. बाणउइ, बाणुवइ 93. तेणवइ, तेणउइ, तिणवइ 94. सत्तासीइ अट्ठासी अट्ठासी चउणवइ, चउणउइ 95. पंचाणउइ, पण्णाउइ 96. 97. सत्तण उइ, सत्ताणउइ 148 ] छण्णव इ, छण्णउइ, छणुवइ * - = = = * = = = 1= = → 1 = = - ॥" !! तिहत्तर चोहत्तर पचहत्तर छिहत्तर सत्तहत्तर अट्ठहत्तर उनासी अस्सी इक्कासी बयासी तिरासी चौरासी पचासी छियासी सत्तासी अट्ठासी नवासी नब्वे इक्यानवे बानवे तिरानवे चौरानवे पंचानवे छियानवे सत्तानवे [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98. अट्ठाणवइ, अट्ठाणउइ 99. णवणवइ, णवण उइ अट्ठानवे निन्नानवे 100. सय दुसय तिसय, तिणि सय चत्तारि सय पणसय, पञ्चसय छसय, छस्सय दो सौ तीन सौ चार सौ पांच सौ छः सौ सात सौ पाठ सौ नौ सौ हजार सत्तसय अट्ठसय नवसय सहस्स दससहस्स दस हजार लक्ख लाख दहलक्ख कोडि दहकोडि दस लाख करोड़ दस करोड़ ___ उपर्युक्त सभी शब्द निश्चित संख्यावाची गणना-बोधक विशेषण हैं। इनके लिंग, वचन और विभक्ति को निम्न प्रकार समझा जाना चाहिए संख्यावाची शब्द 'एक्क' के रूप पुल्लिग में पुल्लिग सव्व के समान, नपुंसकलिंग में नपुंसकलिंग सव्व के समान व स्त्रीलिंग में स्त्रीलिंग सम्वा के समान होते प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 149 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी 150 1 पुल्लिंग -एक्क, इक्क, एग, ए (एक) एकवचन एक्को, इक्को, एगो, एग्रो (312) एक्कं इक्कं, एगं, एनं ( 3/5 ) एक्केण, इक्केण, एगेण, एएण (3/6, 3/14), gaĦoi, gaĦo, gŵi, ggo (1/27) एक्काय, इक्काय, एगाय, एआय (3/132), एक्कस्स, इक्कस्स, एगस्स, एअस्स (3 / 131, 3/10) एकत्तो, इकत्तो, एगत्तो, एप्रत्तो, एक्का, इक्काओ, एगालो, एमाओ, एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्काहि, इक्काहि, एगाहि, एग्राहि, एक्काहतो, इक्काहतो, एगाहितो, एआहितो, एक्का, इक्का, एगा, एआ (3/8 3/12, 1/84), एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एश्रादो, एक्का, इक्कादु, एगादु, एदु (3/8) एक्कस्स, इक्कस्स, एगस्स, एअस्स (3/10) एक्स, इक्कस, एस्सि, एस्सि एक्कम्मि, इक्कम्मि, एगम्मि, एम्मि, एक्कत्थ, इक्कत्थ, एगत्थ, एत्थ ( 3/59), एक्aहिं, इक्कहि. एगहिं, एहिं (3/60), एक्कहि, इक्कहि, एगम्हि, एहि, एक्कसि, इक्कंसि, एसि, एसि [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुवचन एक्के, इक्के, एगे, एए (3/58) प्रथमा द्वितीया तृतीया एक्के, इक्के, एगे, एऐ (3/4, 3/14), एक्का, इक्का, एगा, एग्रा (3/4, 3/12) एक्के हि, इक्केहि, एगेहि, एएहि, एक्के हिं, इक्केहिं, एगेहि, एएहिं, एक्के हि, इक्केहि, एगेहि, एएहिँ (3/7, 3/15) एक्काण, इक्काण, एगाण, एमाण (3/131, 3/6, 3/12), एक्काणं, इक्काणं, एगाणं, एमाणं (1/27), एक्के सि, इक्केसि, एगेसि, एएसि (3/131, 3/61) चतुर्थी पंचमी एककत्तो, इक्कतो, एगत्तो एप्रत्तो, एक्कामो, इक्काप्रो, एगारो, एप्रायो, एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एप्राउ, एक्काहि, इक्का हि, एगाहि, एपाहि, एक्काहितो, इक्काहितो, एगाहिंतो, एमआहितो, एक्कासुन्तो, इक्कासुन्तो, एगासुन्तो, एमासुन्तो, " एक्के हि, इक्केहि, एगेहि, एएहि, एक्के हितो, इक्के हितो, एरोहितो, एएहितो, एक्केसुंतो, इक्के सुंतो, एगेसुंतो, एएसंतो (3/9, 3/12, 3/13, 3/15) एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एप्रादो, एक्कादु, इक्कातु, एगादु, एप्रादु (379) एक्काण, इक्काण, एगाण, एपारण (3/6, 3/12), एक्काणं, इक्काणं, एगाणं, एप्राणं (1/27), एककेसि, इक्के सि, एगेसि, एएसि (3/61) एक्केसु, इक्केसु, एगेसु, एएसु (3/15), एक्के सुं, इक्के सुं, एगेसुं, एएसुं (1/27) षष्ठी सप्तमी प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 151 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग- एक्क, इक्क, एग, एम (एक) एकवचन प्रथमा एक्कं, इक्कं, एगं एनं (3/25) द्वितीया एक्क, इक्क, एगं, एग्रं (3/5) तृतीया एक्के ण, इक्केण, एगेण, एएण (3/6, 3/14), एक्केणं, इक्केणं, एगेणं, एएणं (1/27) चतुर्थी एक्काय, इक्का य, एगाय, एग्राय (3/132), एक्कस्स, इक्कस्स, एगस्स, एअस्स (3/131; 3/10) पंचमी एकत्तो, इकत्तो, एगत्तो, एप्रत्तो, एक्कामो, इक्कामो, एगाओ, एप्रायो, एक्क्राउ, इक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्काहि, इक्काहि, एगाहि, एमाहि, एक्काहितो, इक्काहितो, एगाहितो, एमाहितो, एक्का , इक्का , एगा, एग्रा (3/8,3/12, 1/84), एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एपादो, एक्कादु, इक्कादु, एगादु, एप्रादु (3/8) षष्ठी एक्कस्स, इक्कस्स, एगस्स, एअस्स (3/10) सप्तमी एक्कस्सि, इक्कस्सि, एगस्सि, एअस्सि, एक्कम्मि, इककम्मि, एगम्मि, एअम्मि, एक्कत्थ, इक्कत्थ, एगत्थ, एप्रस्थ (3/59), एक्कहिं, इक्कहिं, एगहि, एअहिं (3/60), एक्कम्हि, इक्कम्हि, एगम्हि, एअम्हि, एक्कसि, इक्कंसि, एगंसि, एग्रंसि 152 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा चतुर्थी बहुवचन एक्काइं, इक्काई, एगाई, एमाई, एक्काई, इक्काई, एगाई, एमाई, एक्काणि, इक्काणि, एगाणि, एप्राणि (3/26) द्वितीया एक्काई, एक्काई, एगाई, एमाई, एक्काई, इक्काई, एगाई, एमाई, एक्काणि, इक्काणि, एगाणि, एमआणि (3/26) तृतीया एक्के हि; इक्के हि, एगेहि, एएहि, एक्केहिं, इक्के हिं, एगेहि, एएहि, एक्केहि, इक्के हिं, एगेहि, एएहिं (3/7, 3/15) एक्काण, इक्काण, एगाण, एमाण (3/131, 3/6, 3/12), एक्का गं, इक्काणं, एगाणं, एमाणं (1/27), एक्केसि, इक्केसि, एगेसिं, एएसि (3/131, 3/61) पंचमी एक्कतो, इक्कतो, एगत्तो एप्रत्तो, एक्कामो, इक्कापो, एगारो, एप्रायो, एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एप्राउ, एक्काहि, इक्काहि, एगाहि, एप्राहि, एक्काहिंतो, इक्काहितो, एगाहितो, एमाहितो, एक्कासुन्तो, इक्कासुन्तो, एगासुन्तो, एप्रासुन्तो, एक्केहि, इक्के हि, एगेहि, एएहि, एक्के हितो, इक्के हितो, एगेहितो, एएहितो, एक्केसुंतो, इक्के सुतो, एगेसुंतो, एएसंतो (379, 3/12, 3/13, 3/15) एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एपादो, एक्कादु, इक्कादु, एगादु, एप्रादु (3/9) एक्काण, इक्काण, एगारण, एमाण (376, 3/12), एक्काणं, इक्काणं, एगाणं, एप्राणं (1/27), एक्केसि, इक्के सिं, एगेसिं, एएसि ( 3/61) सप्तमी एक्केसु, इक्के सु, एगेसु, एएसु (3/15), एक्के सुं, इक्के सुं, एगेंसु, एएसुं (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 153 षष्ठी Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग - एक्का, इक्का, एगा, एश्रा (एक) एकवचन प्रथमा एक्का, इक्का, एगा, एश्रा (4/448) द्वितीया एककं, इक्कं, एगं, एग्रं (3/124, 3/5, 3/36) तृतीया एक्का, इक्कान, एगा, एग्राम, एक्काइ, इक्काइ, एगाइ, एप्राइ, एक्काए, इक्काए, एगाए, एपाए (3/29) चतुर्थी व षष्ठी एक्काअ, इक्कान, एगा, एग्राम, एक्काइ, इक्काइ, एगाइ, एप्राइ, एक्काए, इक्काए, एगाए, एमाए (3/29) पंचमी एक्का, इक्काम, एगान, एग्राम, एक्काइ, इक्काइ, एगाइ, एप्राइ, एक्काए, इक्काए, एगाए, एमाए (3/29), एक्कत्तो, इक्कत्तो, एगत्तो, एप्रत्तो, एक्कामो, इक्कामो, एगाओ, एग्रानो, एक्काउ, इक्का उ, एगाउ, एग्राउ, एक्काहितो, इक्काहिंतो, एगाहितो, एमाहितो (3/124, 3/8, 3/126, 3/127), एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एमादो, एक्काद, इक्कादु, एगादु, एमाद (3/124, 318) सप्तमी एक्का, इक्का, एगा, एमा, एक्काइ, इक्काइ, एगाइ, एप्राइ, एक्काए, इक्काए, एगाए, एमाए (3/29) 154 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुवचन प्रथमा एक्का, इक्का, एगा, एग्रा (3/124, 314), एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्कानो, इक्कामो, एगानो, एमाग्रो (3/27) द्वितीया एक्का, इक्का, एगा, एग्रा (3/124,3/4), एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एप्राउ, एक्कामो, इक्कायो, एगानो, एमाओ (2/27) तृतीया चतुर्थी व षष्ठी एक्काहि, इक्काहि, एनाहि, एमाहि, एक्काहिं, इक्काहिं, एगाहिं, एग्राहिं, एककाहिं, इक्काहिँ, एगाहिं, एग्राहिं (3/124, 3/7) एक्काण, इक्काण, एगाण, एमाण (3/124, 3/6), एक्काणं, इक्काणं, एगाणं, एमाणं (1/27), एक्के सिं, इक्के सि, एगेसि, एएसि (3/61) एक्कतो, इक्कत्तो, एगत्तो, एअत्तो, एक्कामो, इक्कामो, एगाप्रो, एग्रामो, . एक्काउ, इक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्काहितो, इक्काहिंतो, एगाहिंतो, एमाहितो, एक्कासुन्तो, इक्कासुन्तो, एगासुन्तो, एपासुन्तो (3/124, 3/9), एक्कादो, इक्कादो, एगादो, एश्रादो, एक्का, इक्कादु, एगादु, एमादु (3/124, 3/9) पंचमी सप्तमी एक्कासु, इक्कासु, एगासु, एमासु (4/448), . एक्कासुं, इक्कासु, एगासुं, एमासु (1/27) . प्रौढ प्राकृत रचनां सौरभ ] । 155 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ii) दु/दो/वे शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन के रूप निम्न प्रकार से होंगे - प्रथमा द्वितीया बहुवचन दुवे, दोण्णि, वेण्णि, दो, वे, दुण्णि, विण्णि (3/120) दुवे, दोण्णि, वेण्णि, दो, वे, दुण्णि, विण्णि (3/120) दोहि, दोहिं, दोहिं, वेहि, वेहिं, वेहि (3/119, 3/124, 3/7) दोण्ह, वेण्ह, दोण्हं, वेण्हं, दुण्ह, दुण्हं (3/119, 3/123) तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी दुत्तो, दोश्रो, दोउ, दोहितो, दोसुतो, वित्तो, वेप्रो, वेउ, वेहितो, वेसुंतो (3/119, 3/124, 3/9, 3/127) दोसु, वेसु (3/119, 4/448), दोसुं, वेसुं (1/27) सप्तमी (iii) ति शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन में रूप निम्न प्रकार से होंगे प्रथमा द्वितीया बहुवचन तिणि (3/121) तिण्णि (3/121) तीहि, तीहि, तीहिं (3/118, 3/124, 3/7) तिण्ह, तिण्हं (3/118, 3/123) तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी तित्तो, तीनो, तीउ, तीहितो, तीसुतो (3/118, 3/124, 3/9, 3/127) तीसु (4/448), तीसं (1/27) सप्तमी 1561 । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (iv) चउ शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन के रूप निम्न प्रकार से होंगे - बहुवचन चत्तारो, चउरो, चत्तारि (3 / 122 ) चत्तारो, चउरो, चत्तारि (3 / 122) प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी उहि चहिं, चउहिं, चऊहि, चऊहिं, चऊहिं (3/17, 3/124, 3/7,) चउण्ह, चउण्हं (3/123) सप्तमी (v) पंच शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन में रूप निम्न प्रकार से होंगे - बहुवचन पंच (4/448) पंच (4/448) पंच, पंच, पंचहिं (3 /7) पंच, पंच ( 3 / 123 ) चउम्रो, चउउ, चउहितो, चउसुंतो (3/124, 3 / 9, 3 / 127 ), चउत्तो, चऊलो, चऊउ, चऊहितो, चऊसुंतो (3/17, 3/124, 3/9, 3/127) चउसु, चऊसु (3/17, 3 / 16), चउसुं, चऊसुं (1 / 27 ) पंचतो, पंचाओ, पंचाउ, पंचाहि, पंचाहितो, पंचासुंतो, पंचेहि, qafgat, qagat (3/124, 3/9, 3/13, 3/15) पंचसु (4/448), पंचसुं (1 / 27), पंचे 1 सप्तमी छः से लेकर अट्ठारह तक के संख्यावाची शब्दों के रूप 'पंच' की भांति होते हैं । 1. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 654 1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 157 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (vi) उन्नीस (एगण वीस) से अट्ठावन (अट्ठावण्ण) तक के शब्द ह्रस्व अकारान्त होते हुए भी स्त्रीलिंग के समान प्रयुक्त होते हैं। इन के रूप वीसा के अनुसार होंगे । वीस इ आदि इकारान्त शब्दों के रूप सठ्ठि के समान समझने चाहिए ---- वीसा (तीनों लिंगों में) एकवचन बहुवचन प्रथमा वीसा (4/448) वीसा (3/124, 3/4) वीसाउ, वीसाम्रो (3/27) द्वितीया वीसं (3/124, 3/5, 3/36) वीसा (3/124, 3/4), वीसाउ, वीसाप्रो (3/27) तृतीया वीसान, वीसाइ, वीसाए। - (3/29, 3/30) वीसाहि, वीसाहि, वीसाहिं (3/124, 3/7) चतुर्थी व वीसा, वीसाइ, वीसाए (3/29, 3/30) वीसाण (3/124, 3/6), वीसाणं (1/27), षष्ठी एंचमी वीसा, वीसाइ, वीसाए वीस तो, वीसामो, वीसाउ, (3/29, 3/30), वीसाहितो, वीसासुंतो, वीसत्तो. वीसायो, वीसाउ, (3/124, 3/9, 3/127) वीसाहितो (3/124, 3/8, बोसादो, वीसादु (3/124,319) 3/126, 3/127), वीसादो, वीसादु (3/124, 3/8). सप्तमी चीसान, वीसा इ; वीसाए (3/29, 3/30) वीसासु (4/448), वीसासु (1/27) ... 1587 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (vii) उनसठ (एगूणसट्ठि) से निन्नानवे तक के शब्दों के रूप 'सट्ठि' के अनुसार चलेंगे। इनके रूप एकवचन और बहुवचन दोनों में स्त्रीलिंग 'मइ' के समान प्रयुक्त होते हैं सट्ठि (तीनों लिंगों में) एकवचन बहुवचन प्रथमा सट्ठी (3/19) सट्ठी (3/124, 3/4, 3/12), सट्ठीउ, सट्ठीग्रो (3/27) द्वितीया सट्ठि (3/124, 3/5) सट्ठी (3/124, 3/4, 3/12), सट्ठीउ, सट्ठीग्रो (3/27) तृतीया सट्ठी, सट्ठीया, सट्ठीइ, सट्ठीहि, सट्ठीहिं, सट्ठीहि सट्ठीए (3/29) (3/124, 3/7, 3/16) चतुर्थी व सट्ठी, सट्ठीया, सट्ठीइ, सट्ठीण (3/124, 3/6, 3/12), षष्ठी सट्ठीए (3/29) सट्ठीणं ( 1/27) पंचमी सट्ठी, सट्ठीग्रा, सट्ठीइ, सत्तिो , सट्ठीग्रो, सट्ठीउ, सट्ठीए (3/29), सट्ठीहितो, सट्ठीसुन्तो (3/124, सद्वित्तो, सट्ठीग्रो, 3/9, 3/16, 3/127) सट्ठीउ, सट्ठीहितो सट्ठीदो, सट्ठीदु (3/124, 3/9) (3/124, 3/8, 3/12, 3/126, 3/127) सट्ठीदो, सट्ठीदु (3/124, 3/8) सप्तमी सट्ठी, सट्ठीया, सट्ठीइ, सट्ठीसु (4/448), सट्ठीए (3/29) सट्ठीसुं (1/27) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 159 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (viii) सय (सौ) के रूप नपुंसकलिंग 'कमल' की भांति होते हैं प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन सयं (3/25 ) 160 ] सयं (3/5) सण (3/6, 3/14), सयेणं (1/27), FATE (3/10) सयत्तो, सयानो, स्याउ, साहि, साहितो, सया (3/8, 3/12, 1/84) सयादो, सयादु (3/8) स सम्म ( 3 / 11 ) " सयहि, सयंसि बहुवचन सयाई, साईं, सयाणि (3 / 26 ) सयाई, सयाई, सयाणि ( 3 / 26 ) सहि, सहि, सयेहिँ (3/7, 3/15) - सयाण (3/6, 3/12), सयाणं (1/27) दो सौ (दुसरा) से लेकर लक्ख (लाख) के रूप भी 'सय' के समान होते हैं । कोडि, दहकोड, सयकोडि के रूप स्त्रीलिंग के समान प्रयुक्त होते हैं । सयत्तो, सयानो, सयाउ सयाहि, साहितो, सयासुंतो, सहि, सयेहितो, सयेसुंतो (3/9, 3/12, 3/13, 3/15, 1/84), यादो, सयादु ( 3 / 9) (ix) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग (1) दो से अठारह तक के शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं । ( 2 ) जब 'बीस मनुष्य' कहना होता है, तो दो प्रकार से कहा जाता है(क) वीसा नरा = बीस मनुष्य । (ख) नराण वीसा = मनुष्यों की बीस (संख्या) । सयेसु (3/15), सयेसुं (1/27) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी प्रकार (क) पच्चीस विमान उड़ते हैं । -पण्णवीसा विमाणाई उड्डन्ति । (ख) विमानों की पच्चीस (संख्या) उड़ती है । -- विमाणाण पण्णवीसा उडुइ । उपर्युक्त दोनों उदाहरणों में 'क' में क्रिया बहुवचन की होगी और 'ख' में क्रिया एकवचन की होगी। तथा संख्यावाचक शब्द प्रथमा एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं । (3) उन्नीस से लेकर सौ तक और इसके भी आगे जितने संख्यावाची शब्द हैं, उन के प्रयोग सामान्यतया एकवचन में होते हैं । जब ये संख्यावाची शब्द बीस, पचास, आदि ऐसी एक अपनी संख्या सूचित करते हों तो वे एकवचन में प्रयुक्त होते हैं, चाहे उनका विशेष्य बहुवचनान्त हो। तीस फल खामो-तीसं फलाई खाहि । यहां 'तीस' का प्रयोग 'एकवचन' में है। इसकी विभक्ति तो विशेष्य के अनुसार है, पर वचन और लिंग नहीं। जब हम कहें -- तीन तीस फल खामो-ति ण्णि तीसाउ फलाई खाहि, तो तीस में बहुवचन का प्रयोग होगा । जब तीस आदि शब्द अपनी अनेकता बताते हैं तो वे बहुवचनान्त होते हैं । इसी प्रकार सय, सहस, कोडि आदि शब्द एकवचनान्त और बहुवचनान्त होंगे। (4) सौ और दो सौ, दो सौ और तीन सौ प्रादि संख्यावाचक शब्दों के बीच की संख्या बनाने के लिए 'अहिन' या 'उत्तर/उत्तरीय' शब्द लघु संख्या के साथ लगा दिया जाता है, जैसे-अट्ठोत्तरसय = एक सौ पाठ, अट्ठोत्तरसहास=एक हजार पाठ, पंचाहिन-सय= एक सौ पांच, कोडि-सहासदहुत्तरीय=दस हजार करोड़, बारहा हि दो सहस =दो हजार बारह या बारहोत्तर दो सहस-दो हजार बारह, एक्काहि लक्ख=एक लाख एक या एक्कोत्तर लक्ख =एक लाख एक । (5) दो सो प्रादि संख्या के लिए दो आदि संख्यावाचक शब्द पहले रख कर सय, सहस, लक्ख प्रादि बाद में रखकर संख्या बनाई जाती है. जैसे-दोसय=दो सौ, तिसय = तीन सौ, दो सहास = दो हजार, तिलक्ख-तीन लाख आदि । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 161 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) दो प्रकार, तीन प्रकार आदि शब्दों को प्रकट करने के लिए संख्यावाची शब्दों में 'विह' लगाकर शब्द बनाए जाते हैं। दुविह=दो प्रकार का, तिविह, चउविह, छविह, सत्तविह, अट्ठविह, दसविह, तेरसविह, चउदसविह, पण्णरसविह, सोलहविह, सत्तरसविह, अट्ठारहविह मादि प्रयोग में लिए जाते हैं। (x) कइ (कितना) शब्द का प्रयोग तीनों लिंगों के बहुवचन में होता है कइ (तीनों लिंगों में) बहुवचन प्रथमा कइ (4/448) द्वितीया कइ (4/448) कई हि, कईहिं, कईहिं (3/124, 3/7) तृतीया चतुर्थी व षष्ठी कइण्ह, क इव्हं (3/123) पंचमी क इत्तो, कईयो, कईउ, कईहितो, कईसुंता (3/124, 3/9, 3/13) सप्तमी कईसु (4/448), कईसं (1/27) 162 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमवाचक संख्या शब्द संख्या क्रमवाचक संख्या (पु., नपु.) पढम, पढमिल्ल क्रमवाचक संख्या (स्त्री.) पढमा 1. एक्क, एग, इक्क, एम 2. दो, दुवे, वे बीअ, बिइम तइन, तिइय, तिइज्ज 3. ति चउत्थ 3. पंच पंचम 6. छट्ठ छट्ठ 7. सत्त सत्तम 8. अट्ठ अट्ठम 9. णम णवम 10. दह, दस दहम, दसम 11. एगारह, एगारस, एगारहम, एगारसम, एक्कारस, एप्रारह एक्कारसम, एप्रारहम बीमा , बिइमा तइमा चउत्थी पंचमी छट्ठी सत्तमी, सत्तमिया अट्ठमी णवमी दहमी, दसमी एगारसी1, एगारहमी, एगारसमी,एक्कारसमी एमारहमी बारसी, बारहमी, बारसमी, दुवालसमी तेरसी, तेरहमी, तेरसमी चउद्दसी1, चउद्दहमी, चउद्दसमी, चोहसमी पण्ण रसी, पण्णरहमी, पण्णरसमी 12. बारह, बारस, दुवालस 13. तेरह, तेरस गरहम, बारस, बारसम, दुवालसम तेरहम, तेरसम चउद्दहम, चउद्दसम, चोद्दसम 14. चउद्दह, च उद्दस, चोद्दस 15. पण्णरह, पण्णरस पणरहम, पण्णरसम प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ 1 । 163 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16. सोलह, सोलस, छद्दस 17. 18. सत्तरह, सत्तरस, सत्तइस अट्ठारस, अट्ठारह, अट्ठदस, प्रट्ठदह 19. एगूणवीस, उणवीस, गुणवीस, उणवीसइ 20. वीस, वीसइ 21. एगवीस, एगवीसइ 22. बावीस, बावीसइ बाइस 23 तेवीस, तेवीस इ 24. चउवीस, चवीसइ 25. पणवीस, पणवीस, पणुवीस 26. छव्वीस 27. सत्तवीस, सत्तावीस, सत्तावीसइ, सत्तावीसइ 164 28. अट्ठवीस, अट्ठावीस, अट्ठावीसइ } सोलहम, सोलसम, छद्दसम सत्तरहम, सत्तरस', सत्तरसम, सत्तद्दसम अट्ठारसम, अट्ठारहम, अट्ठदसम, अट्ठदहम एगूणवीसम, उणवीसम, एगुणवीस म उणवीसइम वीसम, वीसइम एगवीसम, एगवीसइम बावीस, बावीसम, बावीसइम, बाइसम तेवीस ', तेवीसम, तेवीस इम चवीसा, चउवीसम, चउवीसइम पणवीसम, पणवीसइम, पणुवीसम छब्वीसम, छब्वीसइम 1 सत्तवीसम, सत्तावीसम, सत्तावीसइम, सत्तावीस इम अट्ठवीसम, अट्ठावीसम, अट्ठावीसइम सोलहमी, सोलसमी, छद्दसमी सत्तरहमी, सत्तरसमी, सत्तद्दसमी अट्ठारसमी, अट्ठारहमी, श्रट्ठदसमी, अट्ठदहमी गूणवीसमी, अणवीसमी, एगुणवीस मी, उणवीस मी वीसमी, वीस मी एगवीसमी, एगवीसइमी बावीसमी, बावीसइमी, बाइसमी तेवीसमी तेवीस मी चवीसमी, चवीस मी पणवीसमी, पणवीस इमी, पणुवीसमी छव्वीसमी सत्तावीसमी, सत्तावीसमी, सत्तावीस मी, सत्तावीस मी अट्ठवीसमी, अट्ठावीस मी, अट्ठावीस मी [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33. 29 एगूणतीस, एगणतीसम, एगणतीसमी, एगूणतीसइ एगूणतीस इम, एगूणतीसइमी, अउणतीस, अउणतीसम, अउणतीसमी, अउणतीसइ अउणतीसइम अउणतीस इमी 30. तीस, तीसइ तीसम, तीस इम तीसमी, तीस इमी 31. एक्कतीस एक्कतीसम एक्कतीसमी 32. बसीस, बत्तीसइ बत्तीसम, बत्तीस इम बत्तीसमी, बत्तीस इमी तेत्तीस, तित्तीस, तेत्तीसम, तित्तीसम, तेत्तीसमी, तित्तीसमी, तेत्तीसइ तेत्तीसइम तेत्तीस इमी 34. चउतीस, चउतीसम, चउतीसमी, चउतीसइ चउतीसइम चउतीस इमी 35. पण्णतीस, पण्णतीसम, पण्णतीसमी, पण्णतीस इमी पणतीस इ, पंचतीस, पणतीस इम, पंचतीसम, पंचतीसमी, पंचतीसइ पंचतीसइम पंचतीसइमी 36. छत्तीस, छत्तीसइ छत्तीसम, छत्तीस इम छत्तीसमी, छत्तीसइमी 37, सततीस, सत्ततीसइ सत्ततीसम, सत्ततीसइम सत्तती समी, सत्ततीस इमी 38, अद्वतीस, अटुतीसइ अद्रुतीसम, अट्ठतीसइम अट्ठतीसमी, अट्ठतीस इमी 39. एगूणचत्तालोस, एगूणचत्तालीसम, एगूण चत्तालीसमी अउणचत्तालीस अउणचत्ताल', एगूणचत्तालीसइम 40. चत्तालीस, चालीस चत्ताल', चत्तालीसम, चत्तालीसमी, चालीसम चालीसमी 41. एक्कचत्तालीस, एगचत्ताल, एक्कचत्तालीसमी, इगयाल एक्कचत्तालीसम, इगयालमी इगयालम 42. बायालीस, बायाल बायालीसम, बायालीसा, बायालीसमी बायालीसइम 43. तेनालीस तेपालीसम, तेपालीसइम तेपालीसमी प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 165 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48. 44. चउपालीस, चउपालीसम, चउत्तालीस1, चउपालीसमी, चोयालीस चोयालीसम चोयालीस मी 45. पणयालीस, पणयालीसम, पंचतालीसम, पणयालीसमी, पंचतालीस, पण याल' पंचतालीसमी पणयाल 46. छायालीस छायालीसम, छायालीसमी, छायालीस 47. सत्तचत्तालीस, सत्तचत्ताल', सत्तचत्तालीसमी, सीयालीस, सत्तचत्तालीसम, सीयालीसमी, सत्तचालीस सीयालीसम, सत्तचालीसमी सत्तचालीसम अट्ठचत्तालीस, अट्ठचत्ताल, अट्ठचत्तालीसमी, अट्ठतालीस, अट्ठचत्तालीसम, अट्ठतालीसमी, अट्ठयाल, प्रढयाल, अट्ठतालीसम, अट्ठयालम, अट्ठयालमी, अढयालमी, अढयालीस अढयालम, अढयालीसम अढयालीसमी 49. एगूणपण्णास, एगूणपण्णास, एगूणपण्णासमी, प्रउणापण्ण एगूणपण्णास इम1, प्रउणापण्णमी एगूणपण्णासम, अउणापण्णम 50. पण्णास पण्णास इम, पण्णासमी पण्णासम एगपण्णास, एगपण्णास इम, एगपण्णासमी, एक्कपण्णास, एक्कपण्णासइम, एक्कपण्णासमी एगावण्ण, एगपण्णासम, एगावण्णमी, एक्कावण्ण एक्कपण्णासम, एक्कावण्णमी एगावण्णम, एक्कावण्णम 52 बावण्ण बावण, बावण्णम मावण्णमी 53. तेवन्न तेपंचास इम, तेवन्नम, तेवन्नमी तिपंचास इमा 166 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54. चउवण्ण, चपण्ण, चटपण्णास चउपण्णइमा, च उपण्णासइम, चउवण्णम, चउपण्णम, चउपण्णासम चउवण्णमी, च उपण्ण पी, चउपण्णासमी 55. पणपण्ण, पणवण्ण 56. छप्पन्न सत्तावन्न 58. अट्ठावण्ण 59. एगूणसट्ठि, अउरणसट्ठि, अउराट्ठि 60. सट्ठि 61. एगस ट्ठि 62. बासढि बावहि, बिसट्ठि तेसट्ठि, तेवट्ठि, तिसट्ठि 64. चउसट्ठि 65. पचसट्ठि, पणसट्ठि पणपण्णइम', पणपण्णम, पणपण्णमी, पणवन्तम पणवन्नमी छप्पन्न, छप्पन्नम छप्पन्नमी सत्तावन्न', सत्तावन्नम सत्तावन्नमी अट्ठावण्ण', अट्ठावण्णम अट्ठावण्णमी एगूणसट्ठ, एगूणसट्टिम, एगूण सट्ठिमी, अउणसट्ठा, अउणसट्ठिम, अउणसट्ठिमी, अउणट्ठिम अउण ट्ठिमी सट्ठिम सट्ठिमी एगसट्ठा, एगसट्ठिम एगसट्ठिमी बासट्ठी, बासट्टिम, बासट्ठिमी, बावट्ठिम, बिसटिठम बावट्ठिमी, बिसट्ठिमी तेसट्ठी, तेस ट्ठिम, तेस ट्ठिमी, तेवट्ठिम, तिस?', तिसट्ठिम तेवट्ठिमी, तिसट्ठिमी चउसट्ठिम चउसट्ठिमी पंचसट्ठी, पंचसट्ठिम, पंचसट्ठिम, पणसट्ठिम पणसट्ठिमी छास?', छसट्टिम छसट्ठिमी सत्तसह, सत्तसट्ठिम, सत्तसट्ठिमी, सत्तट्ठिम सत्त ठिमी अट्ठसट्टिम, अट्ठसट्ठिमी, अट्ठासट्टिम, अट्ठासठिमी, अडसट्ठिम अडसट्ठिमी 66. छमट्ठि 67. सत्तसट्ठि, सत्तट्ठि 68. अट्ठसट्ठि, अट्ठासहि, अडसट्ठि प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 167 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 69. एगूणसत्तरि, एगूणसत्तर, एगूणसत्तरिमी, अउणत्तरि एगणसत्तरिम, अउणत्तरिमी, अउरणत्तरिम 70 सत्तरि, सयरि सत्तर', सत्तरिम, सत्तरिमी, सयरिम सयरिमी 71. एक्कसत्तरि, एगसत्तर, एक्कसत्तरिम, एक्कसत्तरिमी, एगसत्तरि, एक्कसत्तर', एगसत्तरिम, एगसत्तरिमी, इक्कसत्तरि, इक्कसत्तर', इक्कसत्तरिम, इक्कसत्तरिमी, एहत्तरि एहत्तरिम एहत्तरिमी 72. बावत्तरि, बावत्तर1, बावत्तरिम; बावत्तरिमी, बाहत्तरि, बाहत्तर', बाहत्तरिम, बाहत्तरिमी बिसत्तरि, बिसत्तरिम, बिसयरिम बिसस्तरिमी, बिसयरि बिसयरिमी 73. तेवत्तरि, तेवुत्तरि तेहत्तर, तिहत्तर, तेवत्तरिमी, तेवुत्तरिमी तेवत्तरिम, तेवुत्तरिम 74. चउहत्तरि चउहत्तर, चउहत्तरिम चउहत्तरिमी 75. पञ्चहत्तरि पञ्चहत्तर, पञ्चहत्तरिम पञ्चहत्तरिमी 76. छहत्तरि, छहत्तर1, छहत्तरिम, छहत्तरिमी, छस्सयरि, छस्सयरिम, छस्सयरिमी, छाहन्तरि छाहत्तरिम छाहत्तरिमी 77. सत्तहत्तरि, सत्तहत्तर, सत्तहत्तरिम, सत्तहत्तरिमी, सत्तहुत्तरि सत्तहुत्तरिम सत्तहुत्तरिमी 78. अट्ठहत्तरि, अद्वत्तरि अट्ठहत्तर, अट्ठहत्तरिम, प्रट्ठहत्तरिमी, अट्ठत्तरिम अठ्ठत्तरिमी 79. एगूणासीइ, एगणासीय, एगूणासीइमी, एगणासी एगूणासीइम, एगूणासीम एगणासीमी 80. असीइ असीइम असीइमी 1681 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 81. एगासीइ, एगासीय, एमासीइम, एगासीइमी, एक्कासीइ एक्कासीय, एक्कासीइम एक्कासी इमी 82. बासी, बासीइ बासीम, बासीइम बासीमी, बासीइमी 83. तेसीइ, तेपासी तेसीइम, तेपासीइमा, तेसीइमी, तेपासीमी तेपासीम 84. चउरासी, चउरासीम, चउरासीमी, चउरासीइ, चउरासीइम, चउरासीइमी, चउरासीय चउरासीयम चउरासीयमी 85. पणसीइ, पंचासीइ पणसीइम, पंचासीइम पणसीइमी, पंचासी इमी 86. छासीइ, छलसीइ छासीइम, छलसीइम छासीइमी, छलसीइमी 87. सत्तासीइ सत्तासीइम सत्तासीइमी 88. अट्ठासीइ, अट्ठासी अट्ठासीय, अट्ठासीइम, अट्ठासी इमी अट्ठासीम अट्ठासीमी 89. एगूणणउइ एगूणणउइ', एगूणण उइम, एगूणण उइमी एगूणण उया 90. रणवइ, णउइ एउइय', णवइयम, ण वइमी, रणउइमी णवइम, ण उइम 91. एक्कारण उइ एक्कारण उय', एक्काण उइमी एक्काणउइम 92. बाणउइ, बाणुवइ बाण उया, बाण उइम, बाण उइमी, बाणुवइम बाणुव इमी तेणवइ, तेणउइ, तेणउय, तेणवइम, तेणवइमी, तेण उइमी, तिणवइ तेर उइम, तिणवइम तिणवइमी 94. च उणवइ, चउणउइ चउरण उय, चउणवइम, चउणव इमी, चउरण उइम चउणउइमी 95. पंचाण उइ, पण्णण उइ पंचाण उय!, पण्णणउय', पंचाणउइमी, पंचाणउइम, पण्णणउइम पण्णण उइमी 96. छण्णवइ, छण्ण उइ, छन्न उय, छण्णवइम, छण्णव इमी, छणुवइ छण्ण उइम, छणुवइम छण्ण उइमी, छणुवइमी प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 169 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 97. सत्तण उइ, सत्ताणउइ 98. अट्ठाणवइ, अट्ठाणउइ 99. णवणवइ, णवणउइ सत्ताण उया, सत्तण उइम, सत्तणउइमी, सत्ताणउइम सत्ताणउइमी अट्ठाण उया, अठा रणव इम, अट्ठाराव इमी, अठाणउइम अट्ठाणउइमी णवणउय, णवणव इम, रणवणवइमी, रणवणउइम णवणउइमी 100. सय सयम सयमी 170 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभ्यास (संख्यावाचक शब्द) 1. एक मन्त्री प्राता हैं। 2. वे चार कर्मों को नष्ट करते हैं । 3. वह तीन लोक में प्रिय है । 4. दो कन्याएं जाती हैं। 5. पांच बालक हंसते हैं। 6. सात विमान उड़ते हैं । 7. पाठ मित्र प्रसन्न होते हैं । 8. दस बालक खेलते हैं। 9. वह छः फल लेकर घर गया । 10. बारह ऊँट बैठते हैं। 11. वहाँ चौदह नदियां हैं। 12. वह सोलह व्रत पालेगा। 13. अट्ठारह सिंह गरजेंगे । 14. बीस कौए उड़े। 15. दो बीस कौए उड़े। 16. बाईस राक्षस मरने के लिए कूदेंगे। 17. पच्चीस मित्र प्रसन्न होने के लिए खेले । 18 तीस कन्याएं रुकती हैं। 19. तीन तीस कन्याएं रुकती हैं । 20. चौंतीस बेटियाँ प्रसन्न होवें । 21. अड़तीस गुफायें नष्ट होंगी। 22. बयालीस कन्यायें देर करती हैं। 23 छियालीस स्त्रियां तप करें। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 171 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24. चार छियालीस स्त्रियां तप करें। 25. पचास बालक रूसते हैं । 26. चौवन राक्षस डरते हैं । 27. अट्ठावन मनुष्य बैठे। 28. बासठ रत्न शोमते हैं । 29. पांच बासठ रत्न शोभते हैं । 30. पैसठ फूल खिलते हैं। 31. सत्तर धागे गलेंगे। 32. तिहत्तर नागरिक ठहरें। 33. दो तिहत्तर नागरिक ठहरें। 34. छिहत्तर झोंपड़ियां शोमती हैं। 35. अठहतर महिलायें प्रसन्न होवेंगी। 36. बयासी कागज जलते हैं । 37. छियासी बालक खेलेंगे। 38. नब्बे रत्न पड़कर टूटते हैं । 39. तीन नब्बे रत्न पड़कर टूटते हैं । 40. तिरानवे सांप डरकर भागते हैं। 41. छियानवे पोते नाचने के लिए उठेंगे । 42. सौ लकड़ियां जलती हैं। 43. दो सौ बालक खेलेंगे। 44. तीन दोसौ बालक खेलेंगे। 45. पांच सौ मनुष्य प्रसन्न होते हैं । 46. चार पांच सौ मनुष्य प्रसन्न होते हैं । 47. सात सौ मनुष्य प्रसन्न होने के लिए जीवेंगे । 48. हजार मनुष्य बसते हैं। 49. तीन एक हजार मनुष्य बसते हैं। 172 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50. वहाँ दस लाख महिलाएं रहती हैं । 51. वहाँ छ : दस लाख महिलाएं रहती हैं । 52. करोड़ रत्न शोभेगें। 53. दो करोड़ रत्न शोभेंगे। 54. वह चार प्रकार के कर्मों का नाश करता है । 55. तुम नाना प्रकार की इच्छाएं करते हो । 56. उसकी चौथी परीक्षा होगी। 57. सातवीं युवती प्रसन्न होकर जीती है । 58 पाठवां पुत्र खेले । 59. मैं दसवीं पुस्तक पढती हूं। 60. अठारहवीं झोंपड़ी बनाई गई। 61. इक्कीसवीं गुफा में मुनि ध्यान करते हैं । 62. तीसवां कवि माता है । नोट- इस अभ्यास का अनुवाद परिशिष्ट 3 में देखें। प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ 1 1 173 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर सन्धि 1. यदि इ उ के बाद भिन्न स्वर श्र, श्रा, ए आदि भावे तो इ के स्थान पर य् और उ के स्थान पर व् हो जाता है 2. 3. 4. i 1 नाम्नि + अरं सि+आदौ शसि + एव दु + श्रमि सणाणोषु + अण् परिशिष्ट-1 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम यदि श्र श्री के बाद = न + प्रत वा + अदसो इणममा + श्रामा यदि श्र, श्रा के बाद इ अथवा ए आवे तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ऐ हो जाता है --- म्मावय + इ अमा+इरणम् बा+एस वा + एतदो = शस्येत् (सूत्र - 3 / 14 ) द्वामि (सूत्र - 3 / 12 ) सरगाणोष्वण् (सूत्र - 3 / 55 ) = = नामन्यरं ( सूत्र - 3 / 40 ) यादी (सूत्र- 3/45) = - = यदि श्र, श्रा के बाद उ प्रावे तो दोनों के स्थान पर प्रो हो जाता है W तुम्ह + उह वा + उत: = वैस ( सूत्र - 3/85 ) = म्मावये (सूत्र - 3/89) श्रमेणम् (सूत्र- 3/78) = = तदो (सूत्र - 3 / 82) होह (सूत्र - 3 / 98) वोत: (सूत्र - 3 / 21 ) या श्रा आवे तो उसके स्थान पर ना हो जाता है = नात (सूत्र - 3 / 30) = वादसो (सूत्र - 3 / 87 ) इमामा ( सूत्र - 3 /53) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. 7. 8. यदि श्र आदि के बाद श्र आदि स्वर आवे तो उसके स्थान है - = म्मावय ( सूत्र - 3/89) व्यंजन सन्धि 6. यदि त् के आगे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ, द्, भ्, व् ग्रावे तो त् स्थान पर द् और यदि क् के आगे द् भावे तो क के स्थान पर ग् हो जाता है 9. मो+अय ऋतामुत्+अ=ऋतामुद ( सूत्र - 3 / 44 ) डेरत् + त् + इत् + एत् + वा= एत् + ईती इत् + उत: ईत् + ऊतो: 11 1 = 11= = एरदीतो ( सूत्र - 3 / 84 ) उत् + तौ = catat (ga-3/27) क्वचित् + द्वितीयादेः = क्वचिद्वितीयादे: (सूत्र - 3 / 134 ) ईत् + मिस् ईद्भिस् ( सूत्र - 3 /54 ) प्राक् + दीर्घा प्राग्दीर्घा (सूत्र - 3 /26) = डेरदादिदेद्वा (सूत्र - 3 / 29 ) इदुत: (सूत्र-3/16) तो : (सूत्र - 3 / 42 ) यदि त् के आगे च हो तो पूर्ववाला त् भी च् हो जाता है= राजवच्च (सूत्र - 3 /56) राजवत्+च् = पर श्राव हो जाता पदान्त म् के आगे कोई व्यञ्जन हो तो म् का अनुस्वार ( - ) हो जाता हैङसांणो (सूत्र - 3/50) ङसाम् + णो आम्भ्याम् + से = आम्भ्यां से (सूत्र - 3 / 81 ) - यदि त् के श्रागे अनुनासिक (म्) हो तो त् का न् हो जाता है= स्वरान्म् (सूत्र - 3 / 25) स्वरात् + म् 10. यदि त् के आगे ड् हो तो त् का ड् हो जाता है वधात् + डाइ वधाड्डाइ (सूत्र - 3/133) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] ii Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसर्ग सन्धि 11. यदि विसर्ग से पहले प्र या प्रा के अतिरिक्त इ, ए, प्रो प्रादि स्वर हों और विसर्ग के बाद अादि स्वर अथवा म, ण, न्, ज, ड्, द्, ल, व् आदि व्यंजन हों तो विसर्ग का र् हो जाता है स्सयो+अत् = स्सयोरत् (सूत्र-3/74) ङ:+मेन ____ = ॐ र्मेन (सूत्र-3/75) प्रामोः+ण = आमोण (सूत्र-3/6) डी:+न = डीन (सूत्र-3/31) इ:+जस्य = इर्जस्य (सूत्र-3/52) ङ:+डाहे = [हे (सूत्र-3/65) द्व+दो = =(सूत्र-3/119) ङसे+लुक्. = ङसेलुक् (सूत्र-3/126) ङ:+वा = ङा (सूत्र-3/132) 12. यदि विसर्ग से पहले प्रया प्रा और बाद में कोई स्वर अथवा ऊ, म् आदि हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है नातः+प्रात् = नात पात् (सूत्र-3/30) इदमः+इमः = इदम इमः (सूत्र-3/72) वापः+ए = वाप ए (सूत्र-3/41) तुम्माः + ङसो = तुब्मा ङसो (सूत्र-3/96) तुम्होरहोम्हा:+म्यसि-तुम्होरहोम्हा भ्यसि (सूत्र-3198) 13. यदि विसर्ग से पहले प्र हो और विसर्ग के बाद म, 5, ण, ड्, द, र, व, ह आदि हों तो प्र और विसर्ग मिलकर प्रो हो जाता है ह्रस्वः+मि = ह्रस्वो मि (सूत्र-3/36) यत्तद्य.+ङसः = यतद्भ्योङसः (सूत्र-3/63) ट:+णा = टोणा (सूत्र-3/24) iii ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जस +डउ = जसोडउ (सूत्र-3/20) इदुतः+दीर्घः = इदुतोदीर्घः (सूत्र-3/16) प्राणः+राजवच्च = पारणोराजवच्च (सूत्र-3/56) चतुरः+वा = चतुरो वा (सूत्र-3/17) भिसः+हि = भिसोहि (सूत्र-3/7) 14. यदि विसर्ग के बाद त् हो तो विसर्ग के स्थान पर स् और च हो तोश हो जाता भ्यसः+त्तो तसोच = भ्यसस्त्तो (सूत्र-3/9) ___= तसोश्च (सूत्र-3/71) 15. यदि विसर्ग से पहले प्र और बाद में भी प्र हो तो दोनों मिलकर 'मोऽ' रूप हो जाता है - प्रमः+अस्य = अमोऽस्य (सूत्र-3/5) णः+अम् = णोऽम् (सूत्र-3/77) 16. यदि विसर्ग के बाद ट् आवे तो विसर्ग के स्थान पर हो जाता है प्रात्मनः+ट: = आत्मनष्टः (सूत्र-3/57) . यतद्भ्यः +टः = यतद्भ्यष्टः (सूत्र-3169) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ iv Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-2 क्र सं. सूत्र संख्या (1) (2) सूत्र ___(3) सन्धि-नियम (4) __ 1. 3/2 11 अतः सेडों: [(से:)+(डोः) 2. 3/3 वैतत्तदः [(वा)+ (एतत्)-F(तदः)] 3. 3/4 जस्-शसोलुक् [(शसोः )+ (लुक्)] 4. 3/5 प्रमोऽस्य [(अमः) + (अस्य) 5. 3/6 टा-आमोर्णः [(प्रामोः )+(ण:)] 6. 3/7 भिसो हि हि हिं [(भिसः)+(हि)] 7. 3/8 ङसेस् तो-दो-दु-हि-हिन्तो-लुकः [(ङसेः)+(तो)] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र - शब्द (5) अत: से: डो: वा एतत् तदः ततः जस् शसोः लुक् भ्रमः अस्य टा 12 आमोः गः मिसः हि हिं हि ङसे: तो मूल शब्द, विभक्ति (6) (अत्) 5 / 1 (ft) 6/1 (डो) 1/1 (वा) ( एतत् ) (तत्) 5 / 1 (जस्) (शस्) 6/2 (लुक्) 1/1 ( श्रम् ) 6 / 1 (अ) 6/1 (टा) (आम्) 6/2 (ग) 1 / 1 (भिस्) 6/1 (fa) 1/1 (f) 1/1 (f) 1/1 ( ङसि ) 6/1 (तो) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] शब्दानुसरण (7) भूभृत् हरि परम्परानुसरण भूभृव भूभृत् भूभृव भूभृत राम भूभृत राम भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि [ vi Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___(1) (2) (3) (4) 8. 3/9 3/9 भ्यसस् तो दो दु हि हिन्तो सुन्तो [(भ्यस:)+ (तो)] 9. 3/10 ङस: स्स: 10. 3/1 डे म्मि : 11. 3/12 जस्-शस्-उसि-स्तो-दो-द्वामि दीर्घः [(दु)+आमि)] vii ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) (7) (दो) हिन्तो लुक: (हिन्तो) (लुक्) 1/3 भूभृत् भ्यसः (म्यस्) 6/1 (तो) 1/1 (दो) 1/1 (दु) 1/1 (हि) 1/1 (हिन्तो) 1/1 (सुन्तो ) 1/1 भूमृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण हिन्तो सुन्तो ङसः (ङस्) 6/1 (स्स) 1/1 भूभृत् राम म्मि (डे) 1/1 (म्मि) 1/1 (डि) 6/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि ड: जस शस् ङसि (जस्) (शस्) (ङसि) (त्तो) (दो) तो मामि दीर्घः (ग्राम्) 7/1 (दीर्घ) 1/1 भूभृत् राम प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ viii Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) (4) 3/13 भ्यसि वा 13. 3/14 टाण-शस्येत् [(शसि)+(एव)] 14. 3/15 भिस्भ्यस्सूपि [(भिस्)+(भ्यस्)+(सुपि)] 15. 3/16 6. 13 इदुतो दीर्घः [ (इत्) + (उतः) + (दीर्घः)] 16. 3/17 13 चतुरो वा [(चतुरः)+(वा)] 17. 3/18 लुप्ते शसि 18. 3/19 प्रक्लीने सो 19. 3/20 13 पुंसि जसो डउ डो वा [(जसः)+(डउ)] ix ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) भ्यसि (भ्यस्) 7/1 भूभृत् वा टारण शसि (टारण) (शस्) 7/1 (एत्) 1/1 भूभृत् परम्परानुसरण भिस् भ्यस् (सुप्) 7/1 भूभृत् (इत्) (उत्) 6/1 (दीर्घ) 1/1 भूभृत् राम चतुरः (चतुर्) 3/1 (वा) भूमृत् AT लुप्ते शसि (लुप्त) 7/1 (शस्) 7/1 राम भूभृत् अक्लीबे (अक्लीब) 7/1 (सि) 7/1 राम हरि पुसि भूभृत् भूमृत् जसः डउ डो (पुंस्) 7/1 (जस्) 6/1 (डउ) 1/1 (डो) 1/1 (वा) परम्परानुसरण परम्परानुसरण वा प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (3) (4) (1) 20. (2) 3/21 3, 13 वोतोडवो [(वा)+(उतः)+ (डवो)] 21. 3/22 जस्-शसोर्गो वा [(शसोः )+(णो)] 22. 3/23 सि-ङसोः पुं-क्लीबे वा 23. 3/24 टो णा | ((ट:)+(णा)] 24. 3/25 क्लीबे स्वरान्म् सेः [(स्व रात्)+ (म्)] 25. 3/26 जस्-शस्-इ-इं-णयः सप्राग्दीर्धा: [(स)-(प्राक्)+(दीर्घाः) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) वा (वा) उतः (उत्) 5/1 (डवो) 1/1 भूभृत् परम्परानुसरण डवो जस् शसोः गो (जस्) (शस्) 6/2 (णो) 1/1. (वा) भूभृत् परम्परानुसरण 10 ङसि ङसोः भूभृत् (ङसि) (ङस्) 6/2 () (क्लीब) 7/1 (वा) क्लीबे राम ट: गा गोपा परम्परानुसरण क्लीबे (टा) 6/1 (णा) 1/1 (क्लीब) 7/1 (स्वर) 5/1 (म्) 1/1 (सि) 6/1 राम स्वरात् राम भूभृत् (जस्) (शस्) . (णि) 1/3 (स) (प्राक्) (दीर्घ) 1/3 प्राक् दीर्घाः । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ xii Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) (4) 26. 3/27 स्त्रियामुदोतो वा [ (स्त्रियाम्)+(उत्)+ (मोती) [ 27. 3/28 14, 4 ईतः सेशचा वा [(से:)+(च)+(मा)। 28. 3/29 11, 6, 6, 6, 6 टा-ङस्-रदादिदेवा तु ङसेः [(ङ :)+ (अत्) + (प्रात)+ (इत्)+(एत्)+ (वा)] 29. 3/30 नातपात् [(न)+(प्रात:)+(मात्)] 30. 3/31 प्रत्यये डीनं वा [(डी:)+(न)] xiii ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) स्त्रियाम् उत् श्रोत 의회의 의 वा ईत: से: च श्रा वा ཡ སྠ ླ ཀླ བྷྲ ཤྲཱ ལླ ཝ ङस् ङ े : प्रत् प्रात् इत् एत् ङसे : न प्रातः प्रात् प्रत्यये ཟྭ 4 ཨཱ न वा (6) (स्त्री) 7/1 ( उत्) (प्रत्) 1/2 (वा) ( ईत्) 5/1 (fer) 6/1 (च) (प्रा) 1/- 1 (वा) (टा) (ङस् ) (fs) 6/1 (प्रत्) 1/1 (भात्) 1 / 1 ( इत् ) 1 / 1 ( एत् ) 1 / 1 (वा) (तु) ( ङसि ) 6 / 1 (न) (आत्) 5/1 (प्रात् ) 1 / 1 (प्रत्यय) 7/1 (ङी) 1/1 (न) (वा) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] (7) स्त्री भूभृत् भूभृत् हरि लता हरि भूभृत् भूभृत् भूभृत् भूभृत् हरि भूभृत् भूभृत् राम लक्ष्मी [ xiv Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) (1) 31. (2) 3/32 (3) अजातः पुंसः 32. 3/33 6, 15, 1 कि-यत्तदोऽस्यमामि [(यत्)+ (तद: →ततः)-F(अ)+ (सि) + (अम्)+ (आभि)] 33. 3/34 छाया-हरिद्रयोः 34. 3/35 स्वस्रादेह [(स्वतृ)-(प्रादेः)+(डा)] 3/36 ह्रस्वोमि [(ह्रस्वः )+(मि)] 36. 3/37 3/37 नामन्च्यात्सो मः [(न)- (अामन्त्र्यात्।] 37. 3/38 डो दीर्घोवा [ (दीर्घः)+ (वा)] xv ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) अजाते: हरि (प्रजाति) 5/1 (पुस्) 5/1 भूभत् (कि) (यत्) (तत्) 5/1 भूभृत् अम् (सि) (अम्) (प्राम्) 7/1 प्रामि भूभृत् छाया हरिद्रयोः (छाया) (हरिद्रा) 5/2 लता स्वसू आदे: (स्वस) (आदि) 5/1 (डा) 1/1 लता ह्रस्वः राम (हस्व) 1/1 (म्) 7/1 मि भूभृत् प्रामन्यात् राम सौ (मामन्त्र्य) 5/1 (सि) 7/1 (म्) 6/1 हरि भूभृत् (डो) 1/1 (दीर्घ) 1/1 (वा) परम्परानुसरण राम दीर्घः वा प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ xvi Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) (4) 38. 3/39 15,6 ऋतोऽद्वा [(ऋत:)+ (प्रत्) + (वा)] 39. 3/40 नाम्न्यरं बा [(नाम्नि)+ (मरं)] 40. 3/41 4, 12 वापए [(वा)+(प्राप:)+(ए)] 41. 6, 11 3/42 - ईदूतोह्रस्वः [(ईत्)+(ऊतो:)+(ह्रस्व:)] 42. 3/43 क्विपः 3/44 6, 1 ऋतामुदस्मोसु वा [(ऋताम्)+(उत्)+ (अ)+ (सि) + (अम्)+ (प्रोसु)] 44. 3/45 मारः स्यादी [(सि)+ (प्रादौ) xvii ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) ऋतः (ऋत्) 6/1 (प्रत्) 1/1 भूभृत् भूभृत प्रत् वा नाम्नि (नामन्) 7/1 (अर) 1/1 (वा) नामन् परम्परानुसरण वा वा प्रापः (वा) (प्राप्) 5/1 (ए) 1/1 भूभृत परम्परानुसरण ऊतोः (ई) (कत्) 7/2 (ह्रस्व) 1/1 भूभृत् राम ह्रस्वः क्विपः (क्विप्) 5/1 भूभृत् . ऋताम् उत (ऋत्) 6/3 (उत्) 1/1 (अ) (सि) (अम्) (प्रो) 7/3 (वा) मारः सि (प्रार) 1/1 (सि) (प्रादि) 7/1 मादी प्रौढ प्राकत रचना सौरभ ] [ xviii Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) 45. 46 47. 48. 50. 51. (2) 3/46 xix] 3/47 49. 3/50 3/48 3/49 3/51 3/52 (3) आ अरा मातुः नाम्न्यरः [ ( नाम्नि ) + (अर: ) ] श्रासोन वा राज्ञः जस् - शस् - ङसि - ङसांगो [(ङसाम्) + (णो)] टोणा [ ( ट :) + ( णा ) ] इर्जस्य गो-णा - ङौ [(इः)+(जस्य)] (4) 1 8 13 11 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) __ (7) प्रा परा (प्रा) 1/1 (अरा) 1/1 (मातृ) 6/1 रमा रमा मातृ मातुः नाम्नि भूभृत् (नामन्) 7/1 (अर) 1/1 अरः राम लता (आ) 1/1 (सि) 1/1 (न) (वा) हरि राज्ञः (राजन्) 5/1 राजन् जस् शस् ङसि साम् गो (जस्) (शस्) (ङसि) (ङस्) 6/3 (णो) 1/1 भूभृत् परम्परानुसरण (टा) 6/1 (णा) 1/1 गोपा लता (इ) 1/1 (ज) 6/1 जस्य, णो (णो) णा (णा) (ङि) 7/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ xx Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) 52. 53. 54. 55. 56. xxi ] (2) 3/53 3/54 3/55 3/56 3/57 (3) इणममामा [ (इ) + (मा) + (आमा)] ईभिरभ्यसाम्सुपि [ ( ईत्) + (भिस्) + (भ्यस्) + ( श्राम्) + (सुपि ) ] श्राजस्य टा - ङसिङस्सु सणाणोष्वण् [ ( स ) - (जा) + ( गोषु ) + ( श्रण्) ] पुंस्यन प्राणो राजवच्च [ (पुंसि ) + (नः) + (आण:) + (राजवत्) + (च)] श्रात्मनष्टो णिश्रा णइना [ ( प्रात्मनः) + (ट:) + ( णिश्रा)] (4) 6 1, 12, 13, 1 7 16, 13 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) इणं प्रमा (इणं) 1/1 (प्रम्) 3/1 (प्राम्) 3/1 परम्परानुसरण भूभृत् भूभृत् प्रामा भूभृत् भ्यस् (ईत्) 1/1 (भिस्) (भ्यस्) (प्राम्) (सुप्) 7/1 प्राम् सुपि प्राजस्य राम . टा सि (माज) 6/1 (टा) . (ङसि) (उस्) 7/3 ङस्सु भूभृत्: णा (णा) (णो) 7/3 (मण्) 1/1 गो . अण भूभृत् पुंस सि अनः भूभृत् प्राणः (पुस्) 7/1 (अन्) 6/1 (प्राण) 1/1 (राजवत्) (च) राम राजवत् प्रात्मनः (आत्मन्) 5/1 (टा) 6/1 (णिग्रा) 1/1 (णइमा) 1/1 प्रात्मन् गोपा लता लता णिग्रा रगइमा प्रौड़ प्राकृत रचना सौरभ : ] xxii Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) (4) 57. 3/58 4, 11 प्रतः सर्वादेर्जसः (सर्व)+(प्रादे:)+(डे:)+ (जसः) 58. 3/59 ङ: स्सि-म्मि-त्थाः 59. 360 न वानिदमेतदो हिं [(वा)+(अन्)+ (इदम्)+(एतदः-एततः)+ (हिं)] 60. 3/61 प्रामो डेसि [(प्रामः)+ (डेसि)] 61. 3/62 कि तभ्यां डासः 62. 3/63 किं यत्तद्भ्योडसः [(यत्) + (तद्भ्यः )+ (ङसः)] xxiif} [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) अतः भूभृत् सर्व प्रादेः (अत्) 5/1 (सर्व) (आदि) 5/1 (डे) 1/1 (जस्) 6/1 हरि परम्परानुसरण भूभृत् जम: ड हरि स्सि (ङि) 6/1 (स्सि ) (म्मि) (त्थ) 1/3 म्मि स्थाः राम न वा अन् इदम् एततः (न वा) (अन्) (इदम्) (एतत्) 5/1 (हिं) 1/। भूमृत् परम्परानुसरण हि प्रामः (प्राम्) 6/1 (डेसि) 1/1 भूमृत् परम्परानुसरण तत (कि) (तत्) 5/2 (डास) 1/1 भूभृत् राम डासः (किं) (यत्) (तत्) 5/3 (ङस्) 6/1 तद्भ्यः ङसः AA प्रौढ प्राकृत रचना सौरम 1 [ xxiv. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) (1) 63. (2) 3/64 (3) ईद्भ्यः स्सा से 64. 3/65 डोहे डाला इमा काले [(ङ:)+ (डाहे)] 65. 366 11 ङसेम्ही [(डसे:)+(म्हा)] 66. 3/0 तदो डोः 13 (तदः→ततः)+ (डो:)] 67. 3/68 13 किमोडियो-डीसी [(किम:)+(डिणो)) 68. 3/69 16, 13 इदमेतत्किं-यत्तयष्टो डिणा. (इदम्)+ (एतत्)+(किं)+ (यत्) + (तद्भ्यः )+ (ट:)+ (डिणा)] XXV ] । प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरम. Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) ईद्भ्यः स्सा (ईत्) 5/3 (स्सा) 1/1 (से) 1/1 भूभृत् लता परम्परानुसरण डाला इमा काले (ङि) 6/1 (डाहे) 1/1 (डाला) 1/1 (इमा) 1/1 (काल) 7/1 हरि परम्परानुसरण लता लता राम (ङसि) 6/1 (म्हा) 1/1 लता ततः (तत्) 5/1 (डो) 1/1 भूभत् परम्परानुसरण डो. किमः डिणो डीसो (किम्) 5/1 (डियो) (डीस) 1/2 राम (इदम्) इदम् एतत् (एतत्) यत् तद्भ्यः (कि) ..... (यत्) (तत्) 5/3 (टा) 6/1 (डिणा) 1/1 भूभृत् ‘गोपा ट: डिणा . लता प्रौढ प्राकृत रचना सौरम । [ xxvi Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ (3) . (4) (1) 69. (2) 3/70 13. 1 तदो गः स्यादी क्वचित् [(तदः→ततः)+ (ण:)] [(सि)+ (प्रादौ)] 70. 3/71 किमः कस्त्र-तसोश्च [(कः)+ (त्र)] [(तसोः)+(च)] 71. 3/12 इदम इम: (इदम:) (इम:)] 72. 3/73 पुं-स्त्रियोनं वायमिमिमा सो |()-(स्त्रियोः)+ (न वा)+ (प्रयम्) + (इमिग्रा)] 73. 3/74 स्सि स्स्योरत् [(स्सि)-(स्सयोः)+ (अत्)] 74. 3/75 मनहः (ङ)+(मेन)] xxvii [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) तदः ततः णः सि आदौ क्वचित् किम: histos कः तसोः च इदमः ६मः पुं. स्त्रियोः न वा श्रयम् इमिश्रा सौ सि स्सयो: प्रत् ङ : मेन हः (6) ( तत् ) 6 / 1 (ण) 1 / 1 (सि) (urfa) 7/1 ( क्वचित् ) (किम् ) 6/1 (क) 1/1 (त्र) (तस् ) 7/2 (च) (इदम्) 6 / 1 ( इम) 1 / 1 (पुं.) (Fat) 7/2 ( न वा ) (अयम् ) 1/1 ( इ मिश्रा ) 1 / 1 (for) 7/1 (स्सि ) (F#) 7/2 ( अत् ) 1 / 1 (fs) 6/1 (म) 3/1 (ह) 1/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] (7) भूभृत् राम हरि भूभृत् राम भूभृत् भूभृत् राम स्त्री भूभृत् लता हरि राम भूभृत् हरि राम राम [ xxviii Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) 75. 76. 11. 78. 79. 80. xxix (2) 3/76 3/77 3/78 3/79 3/80 3/81 (3) न त्थः णोऽम-शस्टा-भिसि [(:) + (प्रम् ) ] [ ( शस्) + (टा)] श्रमेणम् [(मा) + (इणम् )] क्लोबे स्यमेदमिणमो च ((सि) + (अमा) + (इदम्) + (इणमो )] किम: कि वेदं तदेतदो ङसाम्भ्यां से- सिमी [ (वा) + (इदम् ] [ (तत्) + ( एतदः एततः) + (ङस्) + (आम्भ्याम्) + (से) ] (4) 15 2 1, 2 2, 6, 13, 8 [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (न) (त्थ) 1/1 त्थः ण: अम् शस् (ण) 1/1 (अम्) (शस्) (टा) (मिस्) 7/1 टा मिसि भूभृत् प्रमा (अम्) 3/1 (इणम्) 1/1 भूभृत् भूभृत् इणम् (क्लीब) 7/1 राम क्लीबे सि प्रमा इदम् इणमो च (अम्) 3/1 (इदम्) 1/1 (इणमो) 1/1 (च) भूभृत् भूमृत् परम्परानुसरण किमः (किम्) 6/! (किं) 1/1 भूभृत् कि किम् वा (वा) इदम् तत् भूभृत् एततः ङस् प्राम्भ्याम् (इदम्) (तत्। (एतत्) 6/1 (ङस्) (प्राम) 3/2 (से) (सिम्) 1/2 भूभृत् सिमो भूभृत् प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] XXX Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (4) 81. 3/82 (3) वंतदो ङसेस्तो ताहे [(वा)+ (एतदः→एततः)+ (ङसे:)+(त्तो)] 2, 13, 14 82. 3/83 त्थे च तस्य लुक 83. 3/84 11,6 एरदीतो म्मो वा [(ए:)+ (प्रत्)+(ईतौ)] 84. 3/85 वसेणमिणमो सिना [(वा)+ (एस) + (इणम्)+ (इणमो)] 85. 3/86 14, 15 तदश्च तस्य सोऽक्लीबे [(तद:→ततः)+(च)] [(स:)+(अक्लीबे)] 86. 3/87 वादसो दस्य होऽनोदाम् 4, 13, 15, 6 [(वा)+ (अदस )+(दस्य)] [(हः)+(अन्)+ (प्रोत्)+(प्रा)+ (म्)] xxxi ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (1) वा एततः ङसेः (6) (वा) (एतत्) 5/1 (ङसि) 6/1 (त्तो) 1/1 (ताहे) 1/1 भूभृत् हरि परम्परानुसरण परम्परानुसरण राम भूभृत गो (त्थ) 7/1 (च) (त) 6/1 (लुक्) 1/1 (ए) 6/1 (अत्) (ईत्) 1/2 (म्मि ) 7/1 (वा) (वा) (एस) 1/1 (इणम्) 1/1 (इणमो) 1/1 (सि) 3/1 भूभृत् हरि वा एस इणम् इणमो परम्परानुसरण भूभृत् परम्परानुसरण हरि सिना ततः भूमृत् (तत्) 6/1 (च) (त) 6/1 (स) 1/1 (अक्लीब) 7/1 तस्य सः प्रक्लीबे राम राम (वा) प्रदसः (अदस्) 6/1 दस्य (द) 6/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] भूभृत राम xxxii Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 1 ) (2) 87. 88. 89. 90. 3/88 3/89 3/90 xxxiii] 3/91 (3) मुः स्यादी [(सि) + (आदी)] मात्र वा [ ( म्मी ) + (य) + (इस्रो)] युष्मदस्तं तं तुवं तुह तुमं सिना (( युष्मदः) + (त)] भे तुभे तुज्भ तुम्ह तुम्हे उन्हे जसा (4) 1 5, 2 14 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) (7) राम (ह) 1/1 (अन्) (प्रोत्) 1/1 (आ) 1/1 (म्) 1/1 (मु) 1/1 (सि) (आदि) 7/1 भूभृत् लता भूभृत् प्रादौ म्मो (म्मि ) 7/1 प्रय (प्रय) इयो (इ) 1/2 (वा) वा यूष्मदः 64. A. (युष्मद्) 6/1 इत) 1/1 (तुं) 1/1 (तुवं) 1/1 (तुह) 1/1 (तुम) 1/1 (सि) 3/1 भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि तह सिना तुज्झ तुम्ह (भे) 1/1 (तुम्भे) 1/1 (तुज्झ) 1/1 (तुम्ह) 1/1 (तरहे) 1/1 (उय्हे) 1/1 (जस्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभत् उय्हे जसा प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] 1 xxxiv Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (1) (2) (3) (4) 91 3/92 तं तुं तुमं तुवं तुह तुमे तुए अमा 92. 3/93 वो तुज्झ तुब्भे तुम्हे उय्हे में शसा 93. 3/94 भेदि दे ते तइ तए तुमं तुमइ तुमए तुमे तुमाइ टा xxxv ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) त तुं तुमं तुवं तुह तु तुए अमा वो तुज्झ तुन्भे तुम्हे हे भे शसा ৈ दि दे तइ तए तुमं तुम इ तुमए तु तुमाइ टा 예 (6) (त) 1/1 (तुं) 1/1 (तुमं) 1 / 1 ( तुवं ) 1/1 ( तुह ) 1 / 1 (तुमे ) 1/1 ( तुए) 1 / 1 ( श्रम् ) 3/1 (ar) 1/1 (तुज्झ) 1/1 (तुब्भे) 1/1 (तुम्हे ) 1/1 (उम्हे ) 1/1 (भे) 1/1 (शस्) 3 / 1 (भे) 1/1 (fa) 1/1 (दे) 1/1 (तइ) 1/1 (तए) 1/1 (तुमं) 1/1 (तुम इ) 1/1 (तुम) 1 / 1 ( तुमे) 1 / 1 (तुमाइ ) 1 / 1 (टा) 3/1 प्रोढ प्राकृत रचना सौरभ 1 (7) परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण गोपा [ xxxvi Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) 94. 3/95 भे तुब्भेहिं उज्झेहिं उम्हेहिं तुम्हे हिं उय्हहिं भिसा 95. 3/96 12 तइ-तुव-तुम-तुह-तुमा ङसौ [(तुब्भाः )+ (ङसौ)] 96. 3/97 तुम्ह तुम्भ तहिंतो ङसिना 97. 3/98 तुब्म-तुय्होय्होम्हा भ्यसि [(तुम्ह)+ (उरह) + (उम्हाः )+ (म्यसि)] ___3, 12 98. 3/99 तइ-तु-ते-तुम्ह-तुह-तुहं-तुव-तुम-तुमेतुमो-तुमाइ-दि-दे-इ-ए तुब्मोन्मोरहा डसा [(तुब्म)+(उम्म)+(उल्हाः ) + (ऊसा)) 3, 12 xxxvii ] | प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) तुम्भेहि उज्झेहि उम्हेहिं तुम्हेहि उव्हेहिं भिसा (भे) 1/1 (तुम्भेहिं) 1/1 (उज्झेहिं) 1/1 (उम्हेहिं) 1/1 (तुम्हे हिं) 1/1 (उय्हेहिं) 1/1 (भिस्) 3/1 (तइ) (तुव) (तुम) (तुह) (तुब्भ) 1/3 (ङसि) 7/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् तइ तुव म तुम्माः ङसो हरि तुम्ह तुब्म तहितो ङसिना (तुम्ह) 1/1 (तुब्म) 1/1 (तहिंतो) 1/1 (ङनि) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि (तुब्म) (तुम्ह) तुम तुरह उयह उम्हाः भ्यसि (उय्ह) राम (उम्ह) 1/3 (भ्यस्) 7/1 भूभृत् (तइ) (ते) (तुम्ह) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ xxxviii Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) 99. 3/100 तु वो भे तुम तुभं तुब्भाण तुवाण तुमाण तुहारण उम्हाण प्रामा xxxix ) [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) (7) (तुह) (तुहं) BBBBBE (तुव) (तुम) (तुमे) (तुमो) (तुमाइ) (दि) तुमाइ to to w (ए) तुम उन्भ उय्हाः ङसा (तुब्म) (उब्भ) (उय्ह) 1/3 (ङस्) 3/1 राम भूभत् तुभ तुम्भ तुब्भाण (तु) (वो) (भे) (तुब्म) (तुब्भ) (तुब्माण) (तुवाण) (तुमाण) (तुहाण) (उम्हाग) (प्राम्) 3/1 तुवाण तुमाण तुहाण उम्हाण प्रामा भूभृत प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] XXXX Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) ___(1) 100. - (2) 3/101 (3) तुमे तुमए तुमाइ तइ तए डिना 101. 3/102 तु-तुव-तुम-तुह-तुब्मा को [(तुब्भाः )+(ङा)] 102. 3/103 सुपि 103. 3/104 13 मो म्ह-ज्झो वा [(न्म:)+ (म्ह)] 104. 3/105 13 अस्मदोम्मि अम्मि अम्हि हं अहं अयं सिना [(अस्मदः) + (म्मि)] xxxxi । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) तुमे तुमए तुमाइ तइ (तुमे) 1/1 (तुमए) 1/1 (तुमाइ) 1/1 (तइ) 1/1 (तए) 1/1 (ङि) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण तए डिना तू व तुम (तु) (तुव) (तुम) (तुह) (तुब्म) 1/3 (ङि) 7/1 तुह तुब्मा: राम हरि (सुप्) 7/1 भूभृत् रूमः राम - म्ह (भ) 1/1 (म्ह) (झ) 1/2 (वा) जको राम वा अस्मद: म्मि अम्मि अम्हि (अस्मद्) 6/1 (म्मि ) 1/1 (अम्मि ) 1/1 (अम्हि ) 1/। (ह) 1/1 (ग्रह) 1/1 (अहयं) 1/1 (सि) 3/1 भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण --परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि 'her अहं अहयं सिना प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ । xxxxii Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (3) 105. 3/106 अम्ह अम्हे अम्हो मो वयं भे जसा 106. 3/107 णे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं प्रमा 107. 3/108 अम्हे अम्हो अम्ह णे शसा 108. 3/109 मि मे ममं ममए ममाइ मइ मए मयाइ णे टा xxxxiii ] । प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (5) (6) (7) अम्ह अम्हे अम्हो (अम्ह) 1/1 (अम्हे) 1/1 (अम्हो ) 1/1 (मो) 1/1 (वयं) 1/1 (भे) 1/1 (जस्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण वयं जसा भूभृत् अम्मि अम्ह मम्ह (णे) 1/1 (ण) 1/1 (मि) 1/1 (अम्मि ) 1/1 (अम्ह) 1/1 (मम्ह) 1/1 (म) 1/1 (मम) 1/1 (मिम) 1/1 (ग्रह) 1/1 (अम्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् मम मिर्म प्रह प्रमा अम्हे अम्हो अम्ह (अम्हे) 1/1 (अम्हो ) 1/1 (अम्ह) 1/1 (णे) 1/1 (शस्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभत् शसा (मि) 1/1 (मे) 1/1 (ममं) 1/1 (ममए) 1/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण मम ममए प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ xxxxiv Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) 109. 3/110 110. 111. 112. XXXXV (2) 1 3/111 3/112 3/113 (3) म्हेहि हाहि म्ह अम्हे णे मिसा -मह-मज्झाङसो मइ-मम-मह[ ( मज्झा:) + (ङसी)] ममाम्हो स [(मम) + (म्हौ)] मे मइ मम मह महं मज्झ मज्भ अम्ह अम्हं ङसा (4) 12 4 [ प्रोढ प्राकृत रचना सौरम Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) ममाइ मइ मए (ममाइ) 1/1 (मइ)1/1 (मए) 1/1 (म याइ) 1/1 (णे) 1/1 (टा) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण गोपा मयाइ टा अम्हेहि अम्हाहि अम्ह अम्हे (अम्हे हि) 1/1 (अम्हाहि) 1/1 (अम्ह) 1/1 (अम्हे) 1/1 (णे) 1/1 (मिस्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण ण मिसा भूमत् मइ मम मह (मइ) (मम) (मह) (मज्झ) 1/3 (ङसि) 7/1 राम मज्झा : ङसौ मम अम्ही भ्यसि (मम) (अम्ह) 1/2 (भ्यस्) 7/1 राप भूभत मइ मम (मे) 1/1 (म इ) 1/1 (मम) 1/1 (मह) 1/1 (मह) 1/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण मह मज्झ (मज्झ) 1/1 प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ xxxxvi Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___(1) (2) (3) 113. 3/114 णे णो मज्झ अम्ह अम्हं अम्हे अम्हो प्रम्हाण ममाण महाण मज्झाण प्रामा 114. 3/115 मि मइ ममाइ मए मे ङिना 115. 3/116 अम्ह-मम-मह-मज्झा डो [(मज्झाः )+(डौ)] 12 Xxxxvii [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) (7) मज प्रम्ह (मज्झ) 1/1 (अम्ह) 1/1 (अम्ह) 1/1 (ङस) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् प्रम्ह ङ.सा मझ अम्ह अम्ह अम्हे अम्हो प्रम्हाण ममारण महाग मझारण (णे) 1/1 (णो) 1/1 (मज्झ) 1/1 (अम्ह) 1/1 (प्रम्ह) 1/1 (अम्हे) 1/1 (अम्हो ) 1/1 (अम्हारण) 1/1 (ममाण) 1/1 (महाण) 1/1 (मज्झारण) 1/1 (ग्राम्) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण प्रामा भूभृत् - मि मइ ममाइ (मि) 1/1 (मइ) 1/1 (म माइ) 1/1 (मए) 1/1 (मे) 1/1 (ङि) 3/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण मए डिना हरि अम्ह मम मह (ग्रम्ह) (मम) (मह) (मज्झ) 1/3 (ङि) 7/1 मज्झा : राम ङो हरि प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] Xxxxviii Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) (1) (2) (3) 116. 3/117 सुपि 119. 13/118 त्रेस्ती तृतीयादी [(:)+ (ती) [(तृतीया)--(प्रादौ)] 14, 4 120. 3/119 द्वेदों वे [(द्व:)+(दो)] 121. 3/120 दुवे दोण्णि वेण्णि च जस्-शसा 122. 3/121 स्तिण्णिः [(ः)+(तिण्णिः )] चतुरश्चत्तारो चउरो चतारि [(चतुरः)+ (चत्तारो)] 123. 123. 3/122 3/122 124. 3/123 12, 13 संख्यायाग्रामोह हं [(संख्यायाः)+ (प्रामः)+ (ह)] 1. पुस्तक के पृष्ठ सं. 64-65 पर प्रकाशित सूत्र-क्रम संख्या में त्रुटिवश 116 के बाद 119 मुद्रित है। इसलिए यहाँ सूत्र-विश्लेषण में भी क्रमसंख्या 116 के बाद 119 से दिया जा रहा है । xxxxix ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (7) भूभृत् हरि परम्परानुसरण तृतीया आदी हरि हरि is is to परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण दोण्णि वेणि (6) (सुप्) 7/1 (त्रि) 5/1 (ती) 1/1 (तृतीया) (आदि) 7/1 (द्वि) 6/1 (दो) 1/1 (वे) 1/1 (दुवे) 1/1 (दोण्णि ) 1/1 (वेग्णि ) 1/1 (च) (जस्) (शस्) 3/1 (त्रि) 5/1 (तिण्णि ) 1/1 (चतुर्) 5/1 (चत्तारो) 1/1 (चउरो) 1/1 (चत्तारि) 1/1 (संख्या ) 5/1 (प्राम्) 6/1 (ण्ह) 1/1 (ह) 1/1 जस् शसा भूभृत् तिण्णिः हरि - भूभृत् चतुरः चत्तारो चउरो चत्तारि परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण संख्यायाः लता प्रामः AU भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ L Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - (1) (2) (3) 125. 3/124 शेषेऽदन्तवत् [(शेषे)+ (अदन्तवत्)] 126. 3/125 नदी? णो (दीर्घ:) + (णो)] 127. 3/126 tal ङसेलुक [(ङसे:)+(लुक)] 128. 3/127 भ्यसश्च हि: (भ्यसः)+(च)] 129. 3/128 : [(ङ:)+ (डे:)] 130. 3/129 एत् 131. 3/130 द्विवचनस्य बहुवचनम् 132. 3/131 चतुर्थ्याः षष्ठी 133. 3/132 तादर्थ्य-ङ[(ङ:)--(वा) Li ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) (6) राम शेषे अदन्तवत् (शेष)7/1 (अदन्तवत्) दीर्घः (न) (दीर्घ) (णो) 1/1 राम परम्परानुसरण (ङसि) 5/1 (लुक्) 1/1 हरि भूमृत् भ्यसः মুমূর্ব (भ्यस्) 5/1 (च) (हि) 1/1 (डि) 5/1 (डे) 1/1 परम्परानुसरण (एत्) 1/1 भूभृत् द्विवचनस्य बहुवचनम् (द्विवचन) 6/1 (बहुवचन) 1/1 नदी चतुर्थ्याः षष्ठी (चतुर्थी) 6/1 (षष्ठी ) 1/1 नदी तादर्थ्य ऊँ: (तादर्थ्य) (ङ) 6/1 परम्परान सरण (वा) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ Lii Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) (4) (3) (2) (3) 134. 3/133 10, 14 वघाड्डाइश्च वा [(वधात्) + (डाइ:)+ (च)] 135. 3/134 क्वचिद् द्वितीयादेः [(क्वचित्) + (द्वितीया)+ (प्रादे:)] 136. 3/135 द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी 137. 3/136 14 पंचम्यास्तृतीया च [(पंचम्याः)+(तृतीया)] 138. 3/137 सर 12 सप्तम्या द्वितीया [(सप्तम्याः )+(द्वितीया)] 139. 3/1 1, 11, 13 वीप्स्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा [(सि)+ (प्रादे:)+(वीप्स्ये)] [(म:)+(वा) Liii ] प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) ___(6) (7) राम वधात् डाइ: (वध) 5/1 (डाइ) 1/1 (च) (वा) च वा क्वचित् द्वितीया प्रादेः (क्वचित्) (द्वितीया) (आदि) 6/1 द्वितीया तृतीययो सप्तमी (द्वितीया) (तृतीया) 6/2 (सप्तमी) 1/1 लता नदी पंचम्याः तृतीया (पंचमी) 6/1 (तृतीया) I/1 (च) लता नदी सप्तम्या: द्वितीया (सप्तमी) 6/1 (द्वितीया) 1/1 लता वीप्स्यात् सि भादे: वीप्स्ये स्वरे (वीप्स्य) 5/1 (सि) (आदि) 6/1 (वीप्स्य) 7/1 (स्वर) 7/1 (म्) 1/3 (वा) हरि राम राम भूभृत् मः ar प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ Liv Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) (1) __140. (2) 1/27 (3) क्त्वा- स्यादेणे-स्वोर्वा [(सि)+(प्रादेः)+ (ण)] [(स्वोः )+(वा)] 1,11 141. 1/84 ह्रस्वः संयोगे 142. 4/448 शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् [(शेषम्)+(संस्कृतवत्)] 143. 4/260 13, 15 तो दोनादी शौरसेन्यामयुक्तस्य (त:)+(दः)+ (अनादौ)] (शौरसेन्याम्)+ (मयुक्तस्य)] 144. 4/261 अवः क्वचित् 145. 4/262 वादेस्तावति [(वा)+ (मादेः)+(तावति)] मो वा [(म:)+(वा)] 146. 13 147. 4/268 शेषं प्राकृतवत् LY 1 [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) क्त्वा सि श्रादेः ण स्वोः वा ह्रस्वः संयोगे शेषम् संस्कृतवत् सिद्धम् a: दः अनादी शौरसेन्याम् प्रयुक्तस्य अधः क्वचित् वा श्रादेः तावति मः बा शेषं प्राकृतवत् (6) ( क्त्वा) (सि) (fa) 6/1 (ण) (सु) 7/2 (वा) (ह्रस्व) 1/1 ( संयोग) 7/1 (शेष ) 1 / 1 (संस्कुतवत्) (faz) 1/1 (a) 6/1 (द) 1/3 (alfa) 7/1 - (शौरसेनी ) 7/1 (प्रयुक्त) 6/1 (प्रध) 1/1 (क्वचित्) (वा) (प्रादि) 6/1 (araa) 7/1 (म्) 6/1 (वा) (शेष ) 2 / 1 (प्राकृतव त्) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] (7) हरि गुरु राम राम फल फल भूभृत् भूभृत् हरि स्त्री राम राम हरि भूभृत् भूभृत् राम [ Lvi Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-3 पाठ 4 के अभ्यास में छपे वाक्यों का अनुवाद 1. एक्को/एगो/एप्रो/इक्को मन्ती प्रावइ । 2. ते चत्तारो/चउरो/चत्तारि कम्माइं णस्सन्ति । 3. सो तीसु लोए पियो अस्थि । 4. दुवे/दोण्णि /वेण्णि/दो/वे कन्नाउ जा इरे । 5. पंच बालपा हसन्ति । 6. सत्त विमाणाई उड्डन्ते । 7. अट्ठ मित्ता हरिसन्ति । 8 दह/दस बाला खेलन्ति । 9. सो छ फलाई लइऊण घरं गउ । 10. बारह/बारस/दुवालस करहा वइसन्ति । 11, तहिं च उद्दह/च उद्दस/चोद्दस सरिमा अस्थि । 12. सो सोलह/सोलस/छद्दम वया/वये पालेहिइ । 13. अट्ठारह/ अट्ठारस सीहा गज्जिहिन्ति । 14. वीसा/वीसई वायसा उड्डिा । 15. दुवे/दो वीसाउ/वीसईउ वायसा उड्डिा । 16. बावीसा/बाइसा रक्खसा मरेउं कुद्दिहिन्ति । 17. पण्णवीसा/पण्णवीसई मित्ता हरिसे, खेलिमा।.. 18. तीसा कन्नाउ थंभन्ति । 19. तिणि तीसानो कन्नाप्रो थमन्ति । 20. चउतीसा/चउतीसई धूअाम्रो हरिसन्तु । 21. अट्ठतीसा/अट्ठतीसई गुहाउ णस्सिहिन्ति । 22. बयालीसा/बायाला कन्नाउ चिरावन्ति । 23. छायालीसा महिलामो तवन्तु । Lvii ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24. च तारो/चउरो छायाली साउ महिलामो तवन्तु । 25. पन्नासा बाला रूसन्ति । 26. चउवण्णा रक्खसा डरन्ति । 27. अट्ठावण्णा णरा वइसन्तु । 28. बासट्ठी रयणा सोहिरे । 29. पच बासट्ठी उ रयणा सोहिरे । 50. पण सट्ठी पुप्फा विग्रसन्ते । 31. सत्तरी/सयरी सुत्ता गलिस्सन्ति । 32. तेवत्तरी/तेवुतरी णय रजणा चिट्ठन्तु । 33. दो तेवत्तरीमो, तेवुत्तरीमो णय रजणा चिट्ठन्तु । 34. छस्सयरी/छहत्तरी झुपडा सोहन्ते । 35. अट्ठत्तरी अट्ठहत्तरी महिलाउ हरिसिहिन्ति । 36. बासीई पत्ताइं जलन्ति । 37. छ/सीई/छलसीई बालमा खेलिहिन्ते । 38. णउई/णवई रयणा पडिऊणं तुट्टन्ते । 39. तिणि ण उई उ/णवईउ रयणा पडिऊणं तुट्टन्ते । 40. तेणवई/तेणउई सप्पा डरिदूण पलन्ति । 41. छण्णवई/छण्णउई पोत्ता णच्चिउं उहिस्सन्ते । 42. सयं लक्कुडाई जलन्ति । 43. दुसयं बालग्रा खेलिस्सन्ति । 44. तिणि दुसयाइं बालपा खेलिस्सन्ति । 45. पणसयं णरा हरिसन्ते । 46. चत्तारि पणसयाइं णरा हरिसन्ति । 47. सत्तसयं णरा हरिसे उं जीविस्सन्ति । 48. सहस्सं णरा वसन्ति । 49. तिण्णि सहस्साई णरा वसन्ति । प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ Lviii Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50. तहिं दहलक्खं महिलाउ वसन्ति । 51. तहिं छ? दहलक्खाणि महिलाउ वसन्ति । 52. कोडी रयणा सोहिहिन्ति । 53. दो कोडीउ रयणा सोहिहिन्ति । 54. सो चउविहाई कम्माई णस्सइ । 55. तुमं नानाविहाउ इच्छा उ करहि । 56. तासु च उत्थी परिक्खा होहिइ । 57. सत्तमी/सत्तमिया जुवई हरिसित्ता जीवइ । 58. अट्ठमो पुतो खेलम् । 59. अहं दहमं/दसमं गंथं पढमि । 60. अट्ठारस मी/अट्ठदसमी/अट्ठदहमी झुपडा णिम्मिश्रा । 61. एगवीसमीइ/एगवीस इमीइ/एगवीसमीन/एगवीस इमीग्र/ एगवीसमीए/एगवीसइमीए/एगवीसमीग्रा) एगवीस इमीग्रा गुहाइ/गुहाए/गुहाउ मुणउ झापन्ति । 62. तीसमो/तीसइमो कई प्रावइ । Lix ] । प्रौढ प्राकृत रचना सौरम Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र अशुद्ध शुद्ध क्रम पृष्ठ पंक्ति सं. सं. सं. (1) (2) (3) (4) (5) 1. 13 2. 15 3 15 * 4. 15 25 5. 24 6. 24 7. 27 9. 24 2 (ङसे) 17 (टाण) 23 (तृतीया बहुवचन) (द्वितीया एकवचन) 13 धेर 27 शम् । 18 नील+ई, प्र काल+ई, अ एम+ई, अ इम+-ई, अ 10 [(छाया)-(हरिद्रा) 5/2] 11 छाया और हरिद्रा से परे 10 27 (ङसेः) (टा)-(ण) (तृतीया एकवचन) (द्वितीया बहुवचन) धेणूउ शस् नील+ई, प्रा काल+ई, ग्रा एम+ई, प्रा इम+ई, आ [(छाया)-(हरिद्रा) 7/2] छाया और हरिद्रा (के प्राकृत रूपान्तर) में [(ईत्)-(ऊत्) 7/2] दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त (शब्दों) में 3/59 इमत्थ रूप नहीं बनेगा (ण.) 11. 28 12. 13. 32 14. 327 15. 40 11 [(ई)-(ऊत्) 5/2] दीर्घ इकारान्त और दीर्घ उकारान्त से परे 5/59 इमस्सि, इमम्मि, इमत्थ (ण) ण (ङस्)-(प्राम्भ्याम्)], 16. 17. 48 18. 48 19. 49 6 7 24 णः (ङस्) - (ग्राम्भ्याम्)+ (से)] प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] I Lx Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) (2) 20. 54 21. 22. 23 24 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. 35. 36. 37. 55 58 59 72 76 76 77 79 79 112 124 141 141 162 परि. - 1 (पृ.सं. iii) iii iv Lxi ] (3) 18 तुं, तुवं अन्तिम [(इ) - (तुव) (तुम) - ( तुह ) - ( तुब्म ) 3 / 1 ] तुम्मि, तुम्सि, तुत्थ 21 14 18 9 10 9 9 18 अन्तिम 5 3 और 4 6 13 5 24 1 (4) म: (भ) 6/1 (बहुवचनम् ) (शेष ) 2 / 1 शेष (रूपों) को श्रादे देवाण ( 1/27) देवसि 1 एसि मणि (3/26) - तुब्भं, तुब्भणा कई सुंता यो+अत् यत्तद्भ्य + ङसः जस डउ (5) तुं, तुमं, तुवं [(तइ) - (तुव) - (तुम) - (तुह ) - (तुब्भ) 1 / 3] सूत्र 3/59 की व्याख्या के अनुसार केवल तुम्मि रूप ही बनेगा, तुम्सि, तुत्थ नहीं ब्भ: (भ) 1 / 1 ( बहुवचन) (शेष ) 1 / 1 शेष (रूप) श्रादेः देवाणं (1/27) देवं स 1 एसि for (3/26) 1/2 और 2/2 में तुम्हे, तुझे जोड़े तुब्भं, तुम्भाण सुंतो स्सयोः+अत् यत्तद्भ्यः + ङसः जसः + डउ | प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ (1) (2) (3) (4) (5) 38. 3 39. xvi 0. xvii पुस् हरिद्रा (7/2) ऋतामुदस्यमौसु [(वा)+(अदसः)+] . xxxi 42. L सूत्र 3/20 भूभृत् सूत्र 3/34 (हरिद्रा) 5/2 सूत्र 3/44 ऋतामुदस्मौसु सूत्र 3/87 [(वा)+(अदस)+] सूत्र 3/118 त्रे सूत्र 3/125 (दीर्घ) सूत्र 3/135 तृतीययो सूत्र 4/448 ? 9 43. Lii (दीर्घ) 1/1 तृतीययोः 44. Liv 45. Lv 46. Lix खेलमु खेलउ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ Lxii Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक पुस्तकें एवं कोश 1. हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2 : व्याख्याता-श्री प्यारचन्द जी महाराज (श्री जैन दिवाकर-दिव्य ज्योति कार्यालय, मेवाड़ी बाजार, ब्यावर)। 2. प्राकृत भाषामों का व्याकरण : डॉ. प्रार. पिशल (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना) । 3. अभिनव प्राकृत व्याकरण : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (तारा पब्लिकेशन, वाराणसी) 4. प्राकृत मार्गोपदेशिका : पं. बेचरदास जीवराज दोशी (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली)। 5. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी : डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी) 6. पाइअ-सद्द-महण्णवो : पं. हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ (प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी) 7. अपभ्रंश-हिन्दी कोश, भाग 1-2 : डॉ. नरेशकुमार (इण्डो-विजन प्रा. लि., II A, 220, नेहरु नगर, गाजियाबाद) 8. हेमचन्द्र-प्राकृत व्याकरण सूत्र-विवेचन : डॉ कमलचन्द सोगाणी (जनविद्या-9, योगीन्दु विशेषांक) (जनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, राजस्थान) Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. Apabhramsa of Hemacandra : Dr. Kantilal Baldevram Vyas (Prakrit Text Society, Ahmedabad) 10. Introduction to Ardha-Magadhi : A. M Ghatage (School and College Book Stall, Kolhapur) 11. कातन्त्र व्याकरण : गणिनी आर्यिका ज्ञानमती (दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, मेरठ)। 12. प्राकृत-प्रबोध : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (चौखम्मा विद्याभवन, वाराणसी-1)। 13. बृहद् अनुवाद-चन्द्रिका . : चक्रधर नौटियाल 'हंस' (मोतीलाल बनारसीदास नारायणा, फेज 1, दिल्ली)। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________