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________________ (देव+तो, दो, दु)=[ (देव+प्रांशिक भ्यस्) ] अांशिक भ्यस्=त्तो, दो-प्रो, दु→3 3/12 (देव + अांशिक भ्यस्)=(देव+तो) =देवात्तो-देवत्तो (1/84) (पंचमी बहुवचन) इसी प्रकार देवानो, देवाउ (पंचमी बहुवचन) (देव+आम्), प्राम्=ण 3/6 (देव+पाम्)=(देव+ ण) (देवा+ण)=देवाण (षष्ठी बहुवचन) 12. भ्यसि वा 3/13 भ्यसि (भ्यस्) 7/1 बा=विकल्प से (प्राकृत में) भ्यस् परे होने पर विकल्प से (दीर्घ होता) है । अकारान्त पुल्लिग शब्दों में (बचा हुआ) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से दीर्घ हो जाता है । देव (पु.)-- [देव+ (बचा हुआ) भ्यस्] = (देव+हि, हिन्तो, सुन्तो)= देवाहि, देवाहिन्तो, देवासुन्तो (पंचमी बहुवचन) 13. टाण-शस्येत् 3/14 टाण-शस्येत् [(शसि)+(एत्)] [ (टाण)- (शस्) 7/1 ] एत् (एत्) 1/1 (प्राकृत में) टा के स्थान पर ण होने पर तथा शस् परे होने पर अन्त्य स्वर एत्→ए (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर रण होने पर तथा शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य स्वर ए होता है। देव (पु)- (देव + टा)=(देव+ण)=(देवे+ण) = देवेरण (तृतीया बहुवचन) (देव+शस्), शस्-० 3/4 (देव+शस्)= (देव+०) = (देबे+०) =देवे (द्वितीया एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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