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14. भिस्भ्यस्तुपि 3/15
भिस्भ्यस्सुपि [ (भिस्) + (भ्यस्) + (सुपि)] [(भिस्) - (भ्यस्) - (सुप्) 7/1] (प्राकृत में) भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर (ए हो जाता हैं)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) तथा सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर ए हो जाता है। वेव (पु)- (देव+भिस्), भिस्-हि, हि, हिं 3/7
(देव+भिस्)=(देव-+हि, हिँ, हिं)= (देवे + हि, हि, हिं)
=देवेहि, देवेहि, देवेहिं (तृतीया बहुवचन) (देव+भ्यस्), भ्यस्=हि, हिन्तो, सुन्तो 3/13 (देव+म्यस्)= (देव+हि, हिन्तो, सुन्तो)=(देवे+हि, हिन्तो, सुन्तो)
देवेहि, देवेहिन्तो. देवेसुन्तो (पंचमी बहुवचन) (देव+सुप्), सुप्→सु (देव+सुप्)=(देव+सु) = (देवे+सु) = देवेसु (सप्तमी बहुवचन)
15. इदुतो दीर्घः 3/16
इदुतो दीर्घः [(इत्)+(उतः)+(दीर्घः)] [ (इत्) - (उत्) 6/1] दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) (पु., स्त्री., नपु.) (शब्दों में) (भिस्, भ्यस् और सुप् परे होने पर) ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर दीर्घ (हो जाता है)। ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय), भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर ह्रस्व का दीर्घ हो जाता है । (और दीर्घ दीर्घ ही रहता है)।
हरि (पु.)-(हरि+मिस्), मिस्=हि, हि, हिं (3/7), (3/124) (हरि + मिस्)= (हरि+हि, हिं, हिं)
=हरीहि, हरीहि, हरीहिं (तृतीया बहुवचन)
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम
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