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________________ 126. न दोघों रो 3/125 न दीर्घो को [ (दीर्घः)+ (णो)] न=नहीं दीर्घः (दीर्घ) 1/} णो (गो) 1/1 णो होने पर) दीर्घ नहीं (होता है)। इकारान्त, उकारान्त शब्दों से परे जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) होने पर अन्त्य इ, उ दीर्घ नहीं होता है। इसी प्रकार ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) होने पर भी अन्त्य ह्रस्व स्वर की दीर्घता प्राप्त नहीं होती। (हरि+जस्, शस्) हरिणो (प्रथमा, द्वितीया बहुवचन) (हरि+ङसि) हरिणो (पंचमी एकवचन) (साहु+जस्, शस्)=साहुणो (प्रथमा, द्वितीया बहुवचन) (साहु+ङसि)= साहुणो (पंचमी एकवचन) नोट-उपरोक्त सूत्र के कारण अन्त्य ह्रस्व स्वर दीर्घ नहीं हुमा । 127. ङसेर्लुक 3/126 हुसेर्लुक् [(ङसे.)-+(लुक्)] ङसेः (ङसि) 5/1 लुक् (लुक्) 1/1 ङसि से परे लोप (नहीं होता)। आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) से परे लोप प्रत्यय नहीं होता है। (कहा+ङसि)=कहा रूप नहीं बनेगा (हरि, गामणी+ङसि)=हरि, गामणी रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू+ङसि) =साहु, सयंभू रूप नहीं बनेगे (मइ, लच्छी+उसि)=मइ, लच्छी रूप नहीं बनेंगे (घेणु, बहू +ङसि)=घेणु, बहू रूप नहीं बनेंगे (पंचमी एकवचन) भी बनेगे 70 ] [ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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