SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 128. भ्यसश्च हिः 3/127 भ्यसश्च हिः [(म्यसः)+(च)] भ्यसः (भ्यस्) 5/1 च=और हिः (हि) 1/1 (ङसि) और भ्यस् से परे हि (नहीं होता)। प्राकारान्त, इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) और भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) से परे हि नहीं होता । (कहा+ङसि, भ्यस्) =कहाहि रूप नहीं बनेगा (मइ, लच्छी+ङसि, म्यस्)=मइहि, लच्छीहि रूप नहीं बनेंगे (धेणु, बहू + ङसि, भ्यस्)=धेणुहि, बहूहि रूप नहीं बनेंगे (हरि, गामणी+ङसि, भ्यस्) हरिहि, गामणीहि रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू+सि, भ्यस्)= साहुहि, सयंभूहि रूप नहीं बनेंगे (पंचमी एकवचन, बहुवचन) 129. : 3/128 .: [(ङ :) + (डे:)] : (ङि) 5/1 डे: (डे) 1/1 ङि से परे डे- ए (नहीं होता)। प्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) से परे डे→ए प्रत्यय नहीं होता। (कहा+ङि)=कहे रूप नहीं बनेगा (मइ, लच्छी+ङि) =मइए, लच्छीए रूप नहीं बनेंगे (धेणु, बहू +ङि)=घेणुए, बहूए रूप नहीं बनेंगे (हरि, गामणी+डि) हरिए, गामणीए रूप नहीं बनेंगे (साहु, सयंभू-+ डि)=साहुए, सयंभूए रूप नहीं बनेंगे (सप्तमी एकवचन) प्रौढ प्राकृत रचना सौरम ] [ 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy