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________________ सो रति विज्जुपयासं सुमरइ = वह रात्रि में विद्युत प्रकाश को याद करता है । (सप्तमी के स्थान पर द्वितीया ) तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल में (और) उस समय में आर्ष प्राकृत में कभी-कभी प्रथमा के स्थान पर चवीस पि जिवरा = चौबीस तीर्थंकर भी 139. वीस्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा 3/1 वीस्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा [ (सि) + (आदेः) + (वीप्स्ये ) ] स्वरे [ (मः ) + (ar)] वीस्यात् (वीप्स्य) 5 / 1 (स्वर) 7 / 1 म: (म्) 1/3 वा aar (पद) में (प्रारम्भ में) स्वर होने पर वीप्साग्रर्थक (पद) से परे सि आदि के स्थान पर विकल्प से म् (होता है ) | (सप्तमी के स्थान पर तृतीया) द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है(प्रथमा के स्थान पर द्वितीया ) [ (सि) - ( प्रादि ) 6 / 1] वीप्स्ये ( वीप्स्य) 7 / 1 स्वरे = विकल्प से वीसा (पुनरुक्ति) अर्थक पद में प्रारम्भ में स्वर होने पर वीप्सार्थक प्रथम पद से परे विभक्तिवाचक सि आदि के स्थान पर विकल्प से 'म्' होता है । 140 क्त्वा स्यादेर्ण स्वोर्वा एक्को एक्को एक्क मेक्को, एक्केक्को ( प्रथमा एकवचन - का उदाहरण ) एक्केण एक्केण= एक्कमेक्केण, एक्केक्केण (तृतीया एकवचन का उदाहरण ) - 1/27 क्त्वा स्यादेर्ण-स्वोर्वा [ (सि) + (श्रादेः) + (ण) ] [ (स्व.) + (वा) ] - [(ar) – (fa) - (¤ifa) 6/1] [(T) – (g) 7/2] ar=1 - Jain Education International ( प्राकृत में) क्त्वा ऊण, उमाण के अन्त के 'ण' तथा 'सि' आदि के स्थान पर 'ण' तथा 'सु' होने पर विकल्प से उन पर ( अनुस्वार भी हो जाता है) । प्राकृत में क्त्वा ऊण, उप्राण के अन्त के 'ण' तथा 'सि' आदि के स्थान पर 'ण' और 'सु' होने पर विकल्प से उन पर अनुस्वार भी हो जाता है । देवेण = देवेरगं देवारण = देवाणं देवेसु = देवे सुं प्रोढ प्राकृत रचना सौरम ] (तृतीया एकवचन) (षष्ठी बहुवचन) (सप्तमी बहुवचन) - विकल्प से For Private & Personal Use Only [ 75 www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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