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________________ 87. मुः स्यादौ 3/88 मुः स्यादौ [(सि)+ (प्रादौ)] मुः (मु) 1/1 [(सि)- (आदि) 7/1] सि आदि परे होने पर (अदस्→अद के द के स्थान पर) मु (होता है)। अदस्+प्रद पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्दों के सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) आदि सभी विभक्तियों के एकवचन एवं बहुवचन में 'पद' के द का मु होता है फिर इसमें विमक्तिबोधक प्रत्यय लगते हैं । प्रद (पु.)-(अद-प्रमु+सि)=प्रमू (प्रथमा एकवचन) प्रद (नपु)-(प्रद+अमु+सि)=प्रम (प्रथमा एकवचन) (सूत्र 3/25 से '-' हुआ है) प्रद (स्त्री.)-(प्रद+प्रमु+सि)=प्रम (प्रथमा एकवचन) (सूत्र 3/19 से दीर्घ हुमा है) इसी प्रकार सभी विभक्तियों में रूप बनेंगे। 88. म्मावयेत्रो वा 3/89 म्मावयेणौ वा [(मौ)+ (अय) + (इनो)] म्मो (म्मि) 7/1 [(अय)-(इन) 1/2] वा=विकल्प से म्मि परे होने पर (प्रद का) विकल्प से 'अय' और 'इन' (होता है)। प्रद पुल्लिग, नपुंसकलिंग सर्वनाम शब्द के म्मि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) परे होने पर प्रद का 'अय' और 'इन' विकल्प से होता है । प्रद (पु, नपु)- (प्रद+मय, इम+म्मि) = प्रयम्मि, इम्मि (सप्तमी एकवचन) 89. युष्मदस्तं तुं तुवं तह तमं सिना 3/90 युष्मदस्तं तु तुवं तुह तुम सिना [(युष्मदः)+ (तं)] युष्मदः (युष्मद्) 6/1 तं (तं) 1/1 तु (तुं) 1/1 तुबं (तु) 1/1 तुह (तुह) 1/1 तुम (तुम) 1/1 सिना (सि) 3/1 : प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] [ 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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