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(viii) सय (सौ) के रूप नपुंसकलिंग 'कमल' की भांति होते हैं
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी व
षष्ठी
पंचमी
सप्तमी
एकवचन
सयं (3/25 )
160 ]
सयं (3/5)
सण (3/6, 3/14),
सयेणं (1/27),
FATE (3/10)
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सयत्तो, सयानो, स्याउ, साहि, साहितो, सया (3/8, 3/12, 1/84) सयादो, सयादु
(3/8)
स सम्म ( 3 / 11 )
"
सयहि, सयंसि
बहुवचन
सयाई, साईं, सयाणि (3 / 26 )
सयाई, सयाई, सयाणि ( 3 / 26 )
सहि, सहि, सयेहिँ
(3/7, 3/15)
-
सयाण (3/6, 3/12), सयाणं (1/27)
दो सौ (दुसरा) से लेकर लक्ख (लाख) के रूप भी 'सय' के समान होते हैं । कोडि, दहकोड, सयकोडि के रूप स्त्रीलिंग के समान प्रयुक्त होते हैं ।
सयत्तो, सयानो, सयाउ सयाहि, साहितो, सयासुंतो, सहि, सयेहितो, सयेसुंतो (3/9, 3/12, 3/13, 3/15, 1/84), यादो, सयादु ( 3 / 9)
(ix) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग
(1) दो से अठारह तक के शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं । ( 2 ) जब 'बीस मनुष्य' कहना होता है, तो दो प्रकार से कहा जाता है(क) वीसा नरा = बीस मनुष्य ।
(ख) नराण वीसा = मनुष्यों की बीस (संख्या) ।
सयेसु (3/15),
सयेसुं (1/27)
[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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