________________
(1) (2)
20. 54
21.
22.
23
24
25.
26.
27.
28.
29.
30.
31.
32.
33.
34.
35.
36.
37.
55
58
59
72
76
76
77
79
79
112
124
141
141
162
परि. - 1
(पृ.सं. iii)
iii
iv
Lxi ]
Jain Education International
(3)
18
तुं, तुवं
अन्तिम [(इ) - (तुव) (तुम) -
( तुह ) - ( तुब्म ) 3 / 1 ]
तुम्मि, तुम्सि, तुत्थ
21
14
18
9
10
9
9
18
अन्तिम
5
3 और
4
6
13
5
24
1
(4)
म: (भ) 6/1
(बहुवचनम् )
(शेष ) 2 / 1
शेष (रूपों) को
श्रादे
देवाण ( 1/27)
देवसि 1
एसि
मणि (3/26)
-
तुब्भं, तुब्भणा
कई सुंता
यो+अत्
यत्तद्भ्य + ङसः
जस डउ
(5)
तुं, तुमं, तुवं
[(तइ) - (तुव) - (तुम) -
(तुह ) - (तुब्भ) 1 / 3]
सूत्र 3/59 की व्याख्या के अनुसार केवल तुम्मि रूप ही बनेगा, तुम्सि, तुत्थ नहीं
ब्भ: (भ) 1 / 1
For Private & Personal Use Only
( बहुवचन)
(शेष ) 1 / 1
शेष (रूप)
श्रादेः
देवाणं (1/27)
देवं स 1
एसि
for (3/26)
1/2 और 2/2 में तुम्हे,
तुझे जोड़े
तुब्भं, तुम्भाण
सुंतो
स्सयोः+अत्
यत्तद्भ्यः + ङसः
जसः + डउ
| प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
www.jainelibrary.org