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________________ लच्छी (स्त्री.) - ( लच्छी + सि) = ( लच्छी + · श्रा) = लच्छीमा ( लच्छी + जस् ) = ( लच्छी + प्रा) = लच्छीप्रा ( लच्छी + शस् ) == ( लच्छी + आ ) 28. टा - ङस् - ङेरदादिदेद्वा तु ङसे: 3/29 टा- ङस् - ङोरदादिदेद्वा तु ङसे: [ (ङ :) + (अत्) + (प्रात्) + (इत्) + ( एत्) + (वा) ] तु ङसे: [ (टा ) - ( ङस् ) - (ङि) 6 / 1 ] प्रत् (प्रत्) 1 / 1 प्रात् (प्रात्) 1 / 1 इत् (इत् ) 1 / 1 एत् ( एत् ) 1 / 1 वा = विकल्प से तु =और ङसे: ( ङसि ) 6/1 कहा (स्त्री.) - ( कहा +टा) , ( प्राकृत में ) ( स्त्रीलिंग में ) टा, ङसि ङस् औौर डि के स्थान पर अत् अ श्नात्→ना, इत्→इ, एत् ए विकल्प से ( होते हैं) और (साथ में पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं, यदि ह्रस्व हों तो ) प्रत्यय ), ङसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), रङ (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) से हो जाते हैं और साथ ही पूर्व में स्थित हों तो ) । श्राकारान्त, इकारान्त, उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का ङस् ( षष्ठी एकवचन का प्रत्यय ) स्थान पर अ, श्रा, इ और ए विकल्प स्वर दीर्घ हो जाते हैं (यदि ह्रस्व ( कहा + ङसि ) (कहा + ङस् ) ( कहा + ङि) = Jain Education International (प्रथमा एकवचन ) - प्रोढ प्राकृत रचना सौरम ] (प्रथमा बहुवचन) लच्छीवा (द्वितीया बहुवचन) ( कहा + अ, इ, ए) ( कहा + अ, इ, ए) = कहाश्र, कहाइ, कहाए (तृतीया एकवचन ) 1 ( कहा + अ, इ, ए ) == कहान, कहाइ, कहाए (पंचमी एकवचन ) 1 ( कहा +, इ, ए) == कहान, कहाइ, कहाए ( षष्ठी एकवचन ) ( नातप्रात् 3 / 30 सूत्र से आकारान्त में 'आ' नहीं होता है) कहा, कहाइ, कहाए (सप्तमी एकवचन) For Private & Personal Use Only [ 25 www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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