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________________ 133. तादर्थ्य - ङे व 3/132 [ ( तादयं ) - (ङ :) + (वा) ] तादर्थ्य -ङ - [ ( तादयं ) - (ङ) 6/1] वा = विकल्प से तादर्थ्य के अर्थ में ङ े के स्थान पर विकल्प से (प्राय होता है) । तादर्थ्य के लिए, के अर्थ में ङ विकल्प से आय होता है । ( 'आय' उसकी व्याख्या से हुई है ) । देव (पु.) - ( देव + ङ) = देवाय 134. वधाड्डाइश्च वा 3/133 धाडाश्च वा [ (वधात्) + (डाइ :) + (च ] वा वधात् (वध) 5 / 1 डाइ : (डाइ) 1 / 1 च = और वा=विकल्प से वध शब्द से परे (ङ के स्थान पर ) विकल्प से डाइ श्राइ और (प्राय होते हैं) । वध वह शब्द से परे ङ (चतुर्थी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से इ और आय होते हैं । डाइ (वध वह + ङ) वहाइ, वहाय - 135. क्वचिद् द्वितीयादेः (चतुर्थी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर प्रत्यय की प्राप्ति सूत्र संख्या 4/448 व ( चतुर्थी एकवचन ) (चतुर्थी एकवचन ) 3/134 चिद् द्वितीयादे: [ (क्वचित्) + (द्वितीया ) + (श्रादे:)] क्वचित् = कमी-कभी ( ( द्वितीया ) - ( श्रादि ) 6 / 1 ] द्वितीया आदि के स्थान पर कभी-कभी (षष्ठी विभक्ति होती है) । द्वितीया, तृतीया, पंचमी और सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी षष्ठी विभक्ति होती है (हेमचन्द्र की इसी सूत्र की व्याख्या के अनुसार) | Jain Education International अहं सीमांवरस्स वन्दामि = मैं सीमांधर को वन्दना करता हूँ । (द्वितीया के स्थान पर षष्ठी) धणस्स सो लद्धोधन से वह प्राप्त किया गया । (तृतीया के स्थान पर षष्ठी) सो चोरस्स बोहइ = वह चोर से डरता है । ( पंचमी के स्थान पर षष्ठी) प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ] For Private & Personal Use Only [ 73 www.jainelibrary.org
SR No.002688
Book TitlePraudh Prakrit Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages248
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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