Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 15
________________ Jain Education International For Personal & Private Use Only छाजूलालजि श्रादितोसमयपापंचत्वकू प्राप्तपश्चाट मेरुचीलाई जिन | कृपाल टलीचंदकै॥१८॥रन्कीसव सहाय सैंवचनि कावाकीरहीही किज्या सारी संस्कृत ग्रंयकीअस्तयाज्यौपाकृती रही। रग्रंपनिकोवणीव| चनिकालायामर देशकी पन्नालालजुचौधरीविरचिजोकारकटुली चंद जोशी संवत्सरविक्रमतण उगरासिवतीमा सावणासुदिएकाद|| शीतादिनपूर्णाकरीस. २०॥इतिसंबंधसंपूणीमा दोहा।जोपूतदेवी | सोलिगाकरवर चित्रविचार॥नूलचूकहानियोलोजीतही सम्हार|| Auगनप्रधिग्रवारकटदिअधोमुघहोराकरकरकरियौलिा वीजतनराविजौलो॥२॥संवतसरउनरसापुनश्कतालील जाना पोखा सुदिजो असनी पूरनलपिमान लियतनाथूरामडेवोडीयापरवार की श्रीवडेनंदिर निरजापुरकेलानै लियो। www.jainelibrary.org योगसार की हस्तलिखित 'मि०' प्रति के अन्तिम पत्र का प्रथम एवं द्वितीय पृष्ठ

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