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प्रस्तावना
ग्रन्थ-सम्पादन की प्रेरणा हमें प्राच्यविद्याओं के मर्मज्ञ विद्वान् श्रद्धेय ५० फूलचन्द्र सिद्धान्ताचार्य से मिली थी। उन्होंने सम्पादन काल में हमें अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये हैं और अन्त में वनिका सहित मूल ग्रन्थ को सुनकर हमारा मार्गदर्शन किया है । इसी प्रकार श्रीमान् डॉ० राजाराम जैन (प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, संस्कृत-प्राकृत विभाग, एच० डी० जैन कालेज, आरा ) एवं श्रीमान् प्रो० उदयचन्द्र जैन ( पूर्व रीडर एवं अध्यक्ष, दर्शन विभाग, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, का० हि० वि० वि० ) ने कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने हेतु हमें समय-समय पर प्रोत्साहित किया है। आदरण य भाई सा० डॉ० कोमलचन्द्र जैन ( रीडर एवं अध्यक्ष, पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग, का० हि० वि० वि०) ने सम्पादन सम्बन्धी गुत्थियों को सुलझाने में हमारी सहायता की है । अतः उपर्युक्त विद्वानों के हम हृदय से आभारी हैं।
प्रस्तावना लिख जाने के पश्चात् आदरणीय डॉ० गोकुलचन्द्र जैन (रीडर एवं अध्यक्ष, प्राकृत एवं जैनागम विभाग, श्रमणविद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द सं० वि० वि०, वाराणसी ) ने उसे पढ़कर अनेक सुझाव दिये हैं। अतः हम उनके भी आभारी हैं।
प्रस्तावना लिखते समय हमें स्व० डॉ० ए० एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित परमात्मप्रकाश की प्रस्तावना के मूल एवं हिन्दी अनुवाद ( अनुवादक : स्व० पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री) से सहायता मिली है। इसी प्रकार अन्य अनेक ग्रन्थों से सामग्री का उपयोग किया गया है, जिनका यथास्थान निर्देश कर दिया है। अतः हम उक्त ग्रन्थ-लेखकों/सम्पादकों के आभारी हैं।
ग्रन्थ जुटाने में चि० विनोदकुमार जैन ने सहयोग किया है । चि० आनन्द कुमार जैन एवं चि. अनामिका जैन ने अपनी बाल-चेष्टाओं से प्रभावित किया है। अतः ये स्नेह एवं आशीर्वाद के पात्र हैं। ___ ग्रन्थ-सम्पादन एवं प्रस्तावना लिखने में यद्यपि हमने सावधानीपूर्वक तथ्यों को प्रकाश में लाने का प्रयास किया है तथापि प्रमादवश यदि कहीं कोई त्रुटि रह गई हो तो विद्वज्जन उसे क्षमा करेंगे और उससे हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे अगले संस्करण में उसका संशोधन किया जा सके। और अन्त में
'जइ चुक्किज्ज छलं न घेत्तव्वं' १० दिसम्बर, १६८७
डॉ. कमलेशकुमार जैन
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