Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ २६ : योगसार दोहा जो' जिण सो हउँ सो हि जिउ' एहउ भाउ णिभंतु । मोक्ख कारण जोइया अण्णु ण तंतु ण मंतु ॥ ७५ ॥ अर्थ - जो जिन भगवान है सो हो मैं हूं, अर सो ही जीव है, द्रव्यार्थिकन थकी जीव सिवाय अन्य दूजा द्रव्य नांही यह भाव भ्रांति रहित जांननां । मोक्षका कारण भो जोगीहो ! अन्य मंत्र तंत्र नांही है ।। ७५ ।। दोहा बे ते चउ पंच वि णवहं सत्तहँ छह पंचाहँ चउगुण सहियउ सो मुणह एहउ" लक्खण जाहँ ॥ ७६ ॥ अर्थ - दोय, तीन, च्यारि, अर पांच, अर नव, अर सात, अर छह, अर पांच, अर च्यारि अनंत चतुष्टय गुन सहित ए लक्षण जाके होय सो परमात्मा जाणि ॥ ७६॥ आ इनि भेदनिकूं विशेष करि दिखावै है दोहा बे छंडिवि बे-गुण-सहिउ जो अप्पाणि वसेइ' । जिणू ' सामिउ' एमई' भणइ लहु णिव्वाणु" लहेइ ॥ ७७ ॥ अर्थ - राग-द्वेष - इनि दोऊनिकूं तो छोड़े, अर दोय गुण सहित - ज्ञानोपयोग-दर्शनोपयोग सहित औसा जो पुरुष आत्माविषै तिष्टै है, सो जिन स्वामी से कहै है, सो पुरुष शीघ्र ही निर्वाण पावै है || ७७ ॥ दोहा तिहिँ रहियउ" तिहिँ गुण" - सहिउ जो अप्पाणि वसेइ । सो सासय सुह-भायणु" वि जिणवरु" एम भणेइ ॥ ७८ ॥ १. सो : मि० । २. सो जिहउँ : आ० । ३. भाव : मि० । ४. एयइँ : आ० । ५. अप्पाण : मि० । ६. विसेइ : मि० । ७. जिण : मि० । ८. सामी : मि० । Jain Education International ८. ऐवं : मि० । १०. णिव्वाण : मि० । ११. रहिउ : मि० । १२. तिगुण : मि० । १३. अप्पाण : मि० । १४. सुहु भायणु : मि० । १५. जिणवर : मि० । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108