Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 101
________________ पद्यानुक्रमणिका * ६० ६२ अजर अमर गुण-गण णिलउ अप्पइँ अप्पु मुणत अप्प सरूवइ जो रमइ अप्पा अप्पइ जो मुणइ अप्पा अप्पर जइ मुणहि अप्पा-दंसणु एक्कु परु अप्पा दंसणा मुि अरिहंतु विसो सिद्धु फूड असरोरु वि सुसरोरु मुणि अह पुणु अप्पा वि मुणहि आउ गलइ गवि मणु गलइ इंद- फणिद- रिदय वि इक्क उपज्जइ मरइ कु इक्कलउ इंदिय रहियउ इक्कलउ जाइ जाइसिहि इच्छा रहियउ तव करहि इहु परियण णहु महतण उ एव हि लक्खण लक्खियउ कालु अणाइ अणाइ जिउ केवलणाण-सहाउ सो को सुसमाहि करउ को अंचउ गिहि-वावार परिट्टिया घाइ - चउक्क हनेवि किउ चउ कसाय सण्णा- रहिउ चउरासी लक्खहिँ फिरिउ छह दवईं जे जिण कहिया जं वडमज्झहँ बीउ फुडु जइ जर-मरण करालियउ जइ बद्ध मुक्कर मुणहि Jain Education International १६ ८१ १०४ दर्द ३४ जह सलिलेण ण लिप्पियइ १२ जहिँ अप्पा तहिँ सयलगुण ६१ १५ ४६ ६८ ६६ ८६ ७० १३ ६७ १०६ ४ ३६ ४० १८ २ जइ बोहउ चउ गइ-गमणा जइया मणु णिग्गंथु जिय जह लोहम्मिय णिड बुह ७८६ २५ ३५ ५ ७३ ७२ २ ८५ २७ जामण भावहि जीव तुहुँ जिणु सुमिरहु जिणु चितवहु १६ ३८ जीवाजीवहं भेउ जो जे गवि मण्णहिँ जीव फुडु जे परभाव चएवि मुणि जे सिद्धा जे सिज्झहिहिँ जेहउ जज्जरु नरय घरु जेहउ मणु विसयहं रमइ जेहउ सुद्ध अयास जिय जो अप्पा सुद्ध मुणेइ जो जिण सोहउँ सोहि जिउ जो जिणु सो अप्पा मुणहु जो णवि जाणइ अप्पु परु जो णम्मल अप्पा मुणइ जो णिम्मलु अप्पा मुणहि जो तइलोयहँ झेउ जिणु जो परमप्पा सो जिहउँ जो परियाणइ अप्प परु जो परियाणइ अप्पु परु जो पाउ वि सो पाउ भणि जो पिंडत्यु पयत्थु बुह ७४ जो सम-सुक्ख णिलीणु बुहु ४६ जो सम्मत्त - पहाणु बुहु णासग्गिं अभित रहँ ८७ * पद्य के आगे अङ्कित संख्या पद्य क्रमाङ्क की सूचक है । For Personal & Private Use Only ५६ ६३ १०७ ५१ ५० ५८ ६५ ७५ २१ ६६ ३० ३७ २८ २२ ८ ८२ ७१ as as as w www.jainelibrary.org

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