Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 26
________________ प्रस्तावना आचार्य अमितगति ( दशवीं ई० ), मुनि रामसिंह ( दशवीं शती), आचार्य शुभचन्द्र (वि० की बारहवीं शती ), आचार्य हेमचन्द्र (ई० को बारहवीं शती) और आचार्य यशोविजय ( ई० की अठारहवीं शती ) के नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। ग्रन्थ का नामकरण : 'योगसार' नाम में दो शब्द हैं-योग + सार। विभिन्न ग्रन्थों में योग शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । सामान्यतः विद्वानों ने योग शब्द को निम्न अर्थों में स्वीकार किया है-एक प्रकार की ज्योति, संयोग, आगामी लाभ और समाधि ।' यहाँ योग शब्द समाधि के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसीलिये आचार्य कुन्दकुन्द ने राग-द्वेष आदि समस्त विकल्पों एवं विपरीत अभिनिवेशों का परित्याग करके आत्मा में आत्मा के रमण को योग कहा है। दूसरे सार शब्द का अर्थ है-जिसमें तत्सम्बन्धित विषय मात्र को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया हो तथा अन्य बाह्य ( विपरीत ) प्रकरणों का सर्वथा अभाव हो । अर्थात जिस ग्रन्थ में राग-द्वेष विहीन केवल विशुद्ध आत्मतत्त्व पर विचार किया गया हो, वह है योगसार । सूक्ष्मदृष्टि से विचार करने पर योगसार की उक्त परिभाषा प्रस्तुत ग्रन्थ में अक्षरशः घटित होती है। विषय की पुनरुक्ति: योगसार में मुमुक्षु के लिये अत्यन्त उपयोगी चिन्तन-सूत्रों को प्रस्तुत कर जीव की यथार्थ स्थिति का दिग्दर्शन कराया गया है। अध्यात्म प्रधान ग्रन्थ होने से ग्रन्थकार ने एक ही विषय का विभिन्न स्थलों पर पुनः पुनः विवेचन किया है, जो पुनरुक्ति दोष न होकर इसका गुण है । क्योंकि मोक्षमार्ग में स्थित जीव के लक्ष्य की सिद्धि के लिये एक ही विषय का पुनः पुनः कथन कर उसमें उसे दृढ़ करना नितान्त अपेक्षित होता है, जिसका निर्वाह ग्रन्थ में किया गया है। मुमुक्ष को पथभ्रष्ट होने से बचाने का यह एक उत्तम प्रयास है । पुनः पुनः कथन की बात को ग्रन्थकार ने स्वयं स्वीकार किया है। १. योगो ज्योतिविशेषश्च, संयोगो योग उच्यते । ___ योगश्चागमिको लाभः, समाधिर्योग इष्यते । –अनेकार्थ ध्वनिमंजरी, पद्य ५३ २. नियमसार, गाथा १३७.१३६ । ३. वही, गाथा ३ । ४. इत्यु ण लेवउ पंडियहिं गुण-दोसु वि पुणरुत्तु । भट्ट-पभायर-कारणइँ मई पुणु पुणु वि पउत्तु ॥ -परमात्मप्रकाश, २/२११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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