Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 24
________________ प्रस्तावना दोहा क्रमाङ्क ७२ संशोधित मि० प्रति का | दोहा पाठ पाठ क्रमाङ्क इच्छा इछा १०४ मार्ग मार्ग संशोधित मि० प्रति का पाठ पाठ सिद्धिकौं सुधिकौं ए ऐ १०२ ७७ ७८ निश्चयनय निश्चय भए भए | १०७ पुरुष पुरूष सम्यग्दर्शन सम्यकदर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यकज्ञान पूरुष पुरूष कहिए कहिए जाणिहू जाणहु कहिए | १०८ कहिए ८४ ত ८८ बुध So 30 ६१ सम्यत्क ६ आए सम्यग्ज्ञान सम्यकज्ञान द्रव्याथिक द्रव्यार्थि देखिए देखिए दुर्गतिनि दुरगति नि | पद्य ३ । कहिए कहिए कीए कीऐ सम्यक्त्व पुरुष पुरूष ७ पुरुषाकार पुरूषाकार पुरुष पुरूष परभाव भाव छेदोप स्थापना छेदोपस्थापन मोक्षकू मोक्षकू सूत्र सुत्र अन्तिम प्रशस्ति वुस धाए धाऐ आए आऐ आऐ आए - आऐ ल्याए ल्याऐ करुणा करणा द्रुतविलंवित द्रुतविलंवितो लिखाए लिखाऐ सुधाए सुधाऐ एकादशी ऐकादशो ८४ ६६ १०१ १५ अनुवाद-१. यद्यपि इस संस्करण के प्रकाशन का मूल उद्देश्य देशभाषा वचनिका को प्रकाश में लाने का है तथापि हिन्दी प्रेमी पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अन्त में मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद दिया गया है। २. दोहा क्रमाङ्क ८३ में मूल लेखक ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्धारित्र के स्वरूप पर प्रकाश डाला है, किन्तु वचनिकाकार ने ज्ञान एवं ज्ञान के विशेषणों को आत्मा के विशेषण बतलाकर इस दोहा की वचनिका में मात्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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