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योगसार
परमात्मप्रकाश का उल्लेख करते हुये उसमें एक पद्य उद्धृत किया है। इसी प्रकार पञ्चास्तिकाय की टीका में भी योगसार का ५७ वाँ पद्य उद्धृत किया है।' __४. आचार्य हेमचन्द्र ने अपने अपभ्रंश व्याकरण के सूत्रों के उदाहरण में किञ्चित् परिवर्तन के साथ परमात्मप्रकाश से कुछ दोहे उद्धृत किये हैं। हेमचन्द्र का समय १०८६ ई० से ११७३ ई० है। व्याकरण का आधार केवल बोलचाल की भाषा नहीं होती है। अतः हेमचन्द्र से कम से कम दो शताब्दी पूर्व जोइन्दु ( योगीन्दु ) का समय मानना होगा।
५. प्रो० हीरालाल जी के अनुसार हेमचन्द्र ने रामसिंह के दोहापाहुड से कुछ पद्य उद्धृत किये हैं और रामसिंह ने जोइन्दु ( योगीन्दु ) के योगसार
और परमात्मप्रकाश से बहुत से दोहे लेकर अपनी रचना को समृद्ध किया है। अत: जोइन्दु ( योगीन्दु ) हेमचन्द्र के केवल पूर्ववर्ती ही नहीं हैं, अपितु उन दोनों के मध्य रामसिंह हुये हैं।
६. देवसेन के तत्त्वसार के कुछ पद्य परमात्मप्रकाश के दोहों से बहुत कुछ मिलते हैं। अतः देवसेन ने योगीन्दु का अनुसरण किया है । अपनी रचनाओं में देवसेन ने अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थों का प्रायः उपयोग किया है । उन्होंने वि० सं० ६६० (६३३ ई० ) में दर्शनसार समाप्त किया था। ७. प्रो० उपाध्ये ने निम्न दो पद्यों को तुलना के लिये उद्धृत किया है
विरला जाणहिँ तत्तु बुहु विरला निसुणहिँ तत्तु । विरला झायहिँ तत्तु जिय विरला धारहिं तत्तु ॥
-योगसार, ६६ विरला णिसुणहि तच्च विरला जाणंति तच्चदो तच्चं । विरला भावहि तच्चं विरलाणं धारणा होदि ॥
-कत्तिगेयाणुप्पेक्खा; २७६
१. तथा योगींद्रदेवैरप्युक्तं
णवि उपज्जह णवि मरइ बंधण मोक्खू करेइ ।
जिउ पुरमत्थे जोइया, जिणवर एउ भणेइ ।। ६८ ॥ -समयसार, गाथा ३४१ पर जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति में उद्धृत, पृ० २८६ २. रयणदिवदिणयरु दम्हि उडु दाउपासणु ।
सुणरुप्पफलिहउ अगणि णव दिळंता जाणु ॥ १७ ॥ -पञ्चास्तिकाय, गाथा २७ पर जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति में उद्धृत,पृ० ६१
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