________________
योगसार
दोहा क्रमाङ्क
संशोधित मि० प्रति का
पाठ पाठ पुरुष पुरूष आस्रव आश्रव
१८
दर्शन
संशोधित मि० प्रति का | दोहा पाठ
पाठ क्रमाङ्क सम्यक्त्वनिके सम्यत्कनिके गुणस्थाननिमैं गुण
स्थानमैं त्यागनें त्यागते सम्यक्त्व- सम्यत्कदर्शन सुमरिहु सुमरिहू
करिहू ध्यावहु एक
ऐक एह एही ऐही
छोड़हू लोक लोक्य स्वामी स्वामी
करिहु
ध्यावहू
सर्व सर्व एक ऐक भावार्थ भार्वर्थ सारभूत सातभूत भेदक भेदग क्योंकि क्यौंकी करहु करहू जितनैकू जितनैंकु कहिए कहिए जानिहु जानिहू कोए
,
छोड़हु
कीऐ
EEEEEEEEEEEEEEEEEE.xxx.
५१
नरक नर्क परमात्मा पर्मात्मा
पुरुष पुरष कहिए कहिए सम्यक्त्व सम्यत्क कहिए कहिए कहिए कहिऐ सूक्ष्म- सुक्ष्मसांपराय सांपराय समिति सुमति
ऐक एह ऐह
कीजिए कीजिए स्कंध स्कंद्ध स्फटिक ईसफाटिक
एक
५८ ६४
सूनां पुरुष
सुनां पुरूष
ऐक
कहिए
कहिए
एक कहिए एक ..
कहिए ऐक
३३
स्वभाव स्वाभाव तिनिनै तिनितें
७०
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org