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नमःसिद्धेल्याः॥अथजोगसारजोगेंद्रदेवमुनिराजकृतम्राकृतदोहाकी वनिका सिबिरहै। आग मंगलके निमित्त विनामेटनें कैनिमित्त सिद्ध निळूचंदनाक है।।दोहारिणम्मलमाण पहियाकम्मकलंकउहेविअप्या लद्धजेणखतेपरमप्यण देवि॥१॥याजोनिप्रेलध्यान विधेतिधिकारी ज्ञानावर्गदर्शनाबरणवेदनीयमोहनीय आयुनानगोत्र-मंतरायसेन
आठकरुपकलंककूलस्मकरिअरजानैंश्रान्माकू पायबरपरआत्मा || आलए सिद्धलए तिन सिद्धरूपपरमात्माकू नमस्कार करिअरागैंतान
नमस्कारकरैहै।दोहाघारचउकीहनेविकिउगतयउक्क यदिहा
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योगसार की हस्तलिखित 'मि०' प्रति के प्रथम पत्र का प्रथम पृष्ठ
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