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प्रस्तावना योगसार:
'योगसार' अपभ्रंश भाषा में रचित एक आध्यात्मिक लघुकृति है। इसके रचयिता योगीन्दुदेव हैं। योगसार के उल्लेखानुसार इनका नाम जोगिचन्द (सं० योगिचन्द ) है । इन्होंने यह कृति आत्म-सम्बोधन के निमित्त लिखी है। इस ग्रन्थ में १०८ पद्य हैं, जिनमें एक चौपाई, तीन सोरठा और शेष १०४ दोहे हैं। विविध संस्करण :
१. योगीन्दुदेव विरचित इस योगसार का सम्पादन सर्वप्रथम पं० पन्नालाल सोनी ने सन् १६२२ ( विक्रमाब्द १६७६ ) में संस्कृत छाया के साथ किया था। इसका प्रकाशन माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला ( बम्बई ) द्वारा प्रकाशित 'सिद्धान्तसारादिसंग्रह' के अन्तर्गत (पृष्ठ ५५ से ७४ तक ) हुआ है। इस संस्करण के मूलपाठ में मात्र १०७ दोहे हैं तथा दोहा अनुक्रमाङ्क ३८ के पश्चात-"केवलणाणु सहाउ..." इत्यादि दोहा टिप्पण में दिया है। इसे मिलाने पर कुल १०८ दोहे होते हैं।
२. सन् १६३७ में डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने भी इस योगसार का सम्पादन किया था तथा हिन्दी अनुवादक थे डॉ० जगदीशचन्द्र जैन । इसका प्रकाशन परमात्मप्रकाश के साथ राजचन्द्र जैन शास्त्रमाला के अन्तर्गत अगास ( गुजरात ) से हुआ है। ___३. स्व० ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने योगसार पर एक विस्तृत हिन्दी व्याख्या लिखी थी, जो गुना ( म० प्र० ) से 'योगसार टीका' के नाम से प्रकाशित है। इस व्याख्या में अनेक प्राचीन ग्रन्थों से उद्धरण प्रस्तुत कर विषय को स्पष्ट किया गया है। इसी संस्करण में योगसार का श्री नाथूरामकृत हिन्दी पद्यानुवाद भी 'अध्यात्मसंग्रह' (पृष्ठ २७३ से २६६ तक ) के नाम से दिया गया है।
१. संसारहँ भयभीयएण जोगिचंद मुणिएण । ____ अप्पा संबोहण कया दोहा एक्क-मणेण ॥ -योगसार, दोहा १०८ २. वही, दोहा ३,१०८। ३. वही, पद्य संख्या ४० । ४. वही, पद्य संख्या ३८, ३६ ४७ ।
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