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योगसार
प्रस्तुत संस्करण:
योगसार पर वि० सं० १६३२ में पं० पन्नालाल चौधरी ने ढूंढारी भाषा में वनिका लिखी थी। इस संस्करण में उसका सर्वप्रथम प्रकाशन हो रहा है ।
यह वचनिका पं० टोडरमल, पं० सदासुखदास, पं० जयचन्द छावड़ा आदि द्वारा प्राचीन सिद्धान्त-ग्रन्थों पर लिखी गई वचनिकाओं की शृङ्खला में अगली कड़ी है। हिन्दी भाषा के विकास की दृष्टि से इन वचनिकाओं का विशेष महत्त्व है । इसलिये इसका प्रकाशन आवश्यक माना गया । ___ इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये हमने प्रस्तुत संस्करण में योगसार के अपभ्रंश मूलपाठ के साथ देशभाषा वचनिका को दिया है। अन्त में खड़ी बोली में मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद भी दे दिया है । सम्पादन परिचय:
(क) प्रति परिचय।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में निम्नलिखित दो प्रतियों का उपयोग किया गया है
(१) 'मि०' प्रति—यह मोटे एवं पुष्ट कागज पर लिखी गई हस्तलिखित प्रति है। इसमें मूल अपभ्रंश दोहों के साथ पं० पन्नालाल चौधरी कृत देशभाषा वचनिका का समावेश किया गया है। अन्त में वचनिकाकार ने विभिन्न २० छन्दों में प्रशस्ति लिखी है। सबसे अन्त में लिपिकार ने तीन दोहों में प्रतिलिपि के लेखनकाल आदि की सूचना दी है । यह प्रति श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर, मिरजापुर ( उ० प्र०) से प्राप्त हुई है। इसमें कुल ३६ पत्र हैं। इनमें से प्रथम पत्र का प्रथम पृष्ठ खाली है। अन्तिम छत्तीसवें पत्र के दूसरी ओर मात्र ढाई पंक्तियाँ लिखी हैं। शेष सभी पत्रों में दोनों ओर लिखा गया है। इस प्रकार कुल ७१ पृष्ठों में ग्रन्थ लेखन का कार्य सम्पन्न हुआ है। प्रत्येक पत्र की लम्बाई २७, सेण्टीमीटर और चौड़ाई १२ सेण्टीमीटर है। प्रत्येक पत्र के दोनों ओर ८-८ ( एक पत्र में दोनों ओर कुल १६ ) पंक्तियां लिखी गई हैं। प्रत्येक पंक्ति में २८ से लेकर ३० अक्षरों तक का समावेश है । २० वें पत्र के दूसरी ओर ऊपर, नीचे एवं बगल में छूटा हुआ अंश लिखा गया है। २८ वें पत्र के प्रथम पृष्ठ की अन्तिम दो पंक्तियां कटी हैं। ये पंक्तियां प्रत्येक पृष्ठ के मध्य में २१ सेण्टीमीटर की लम्बाई एवं ८ सेण्टीमीटर की चौड़ाई में लिखी गई हैं। इस प्रकार वचनिका सहित पूरा ग्रन्थ लगभग ५११ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण है। अक्षरों की लिखावट सुन्दर एवं सहज पठनीय है। इसका संकेत 'मि०' दिया है।
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