Book Title: Yogasara
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ (१२) श्रद्धा-भक्ति के ही द्योतक हैं, क्योंकि कवि का यथार्थ नाम योगिचन्द्र (दे० योगसार गाथा सं० १०८) है । उसी से अपभ्रंश-भाषा के नियमानुसार योगीन्द्र > जोगिचन्द्र > जोइ+इंदु > जोइंदु नाम बना तथा सरल, सुकुमार एवं श्रुतिमधुर होने से कवि का जोइंदु नाम ही परवर्ती कालों में लोकप्रिय होता गया । जोइंदु के योगेन्द्र अथवा योगीन्द्र जैसे पर्यायवाची नाम भ्रमात्मक हैं और विविध जटिलताएँ उत्पन्न करने वाले हैं। कुछ विचारक योगिचन्द्र को किसी कवि का विशेषण भी मानते हैं, किन्तु यह धारणा भी उपयुक्त नहीं, क्योंकि योगसार में जोगिचंद को स्पष्टरूप से ही 'मुनि' कहा है (दे० गाथा सं० १०८) । विभिन्न अन्तर्बाह्य साक्ष्यों के आधार पर जोइंदु का समय ईसा की छठवीं सदी सिद्ध होता है। इस विषय पर प्रो० डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने विस्तृत प्रकाश डाला है ( दे० परमात्मप्रकाश की अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ० ६३-६७ ) । उनकी (१) परमात्मप्रकाश ( अपभ्रंश ), (२) योगसार ( अपभ्रंश), (३) नवकार श्रावकाचार ( अपभ्रंश), (४) अध्यात्म सन्दोह (संस्कृत), (५) सुभाषित तन्त्र ( संस्कृत ) एवं (६) तत्त्वार्थ टीका ( संस्कृत ) नामक रचनाएँ ज्ञात हुई हैं, जिनमें से प्रथम दो रचनाएं ही अद्यावधि प्रकाशित हो सकी हैं । __हमारी जानकारी के अनुसार अभी तक योगसार के तीन संस्करण प्रकाश में आए हैं। प्रथम संस्करण श्री राय चन्द्र जैन शास्त्र माला बम्बई से ( सन् १६३७ में ) प्रकाशित हआ, जिसका सम्पादनादि प्रो० डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने किया था, उसमें पं० ( अब डॉ० ) जगदीशचन्द्र जैन कृत मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद उपलब्ध है । दूसरा संस्करण गुना, मध्यप्रदेश से सन् १६३६ में प्रकाशित हुआ, जिसका सम्पादन कर उसकी विस्तृत हिन्दी टीका ब्रह्म० शीतलप्रसाद जी ने लिखी। तीसरा संस्करण भी उपर्युक्त स्थान एवं वर्ष में हुआ। इसमें मुंशी नाथूराम कृत मूलानुगामी हिन्दी पद्यनुवाद मात्र 'अध्यात्म संग्रह' के नाम से प्रकाशित हुआ । वर्तमान में उक्त सभी प्रकाशन दुर्लभ हैं । अतः प्रस्तुत संस्करण अपनी कुछ विशेषताओं के साथ श्री गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। ___ वर्णी संस्थान डॉ० कमलेशकुमार जैन के प्रति अपना आभार व्यक्त करता है, जिन्होंने योगसार की हस्तलिखित प्रति का सुयोग्य सम्पादन कर उसका मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद एवं मूल्यांकन किया। विश्वास है कि संस्थान के सारस्वत-कार्यों में आगे भी उनका इसी प्रकार का सहयोग मिलता रहेगा। प्रो० डॉ० राजाराम जैन दीपावली प्रो० उदयचन्द्र जैन २-११-८६ ग्रन्थमाला सम्पादक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108