Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
यदि अनंतरोक्त बौद्ध - उल्लेख और हमारा अनुमान ठीक मान लिया जाय तो यह सिद्ध होगा कि अजातशत्रु के राज्य के बाईसवें वर्ष में भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ क्योंकि महावीर की संपूर्ण आयु ७२ वर्ष की थी और अजातशत्रु के राज्यारंभ के वर्ष में वे ५० वर्ष से ज्यादा उमर के नहीं थे । इस हिसाब से महात्मा बुद्ध के निर्वाण से लगभग १४ वर्ष पीछे महावीर का निर्वाण हुआ होगा ।
ऊपर कहा गया है कि बौद्ध लेखकों ने ऐसा लिखा है कि अजातशत्रु के आठवें वर्ष में भगवान् बुद्ध का निर्वाण हुआ तो अब यह देखना चाहिए कि अजातशत्रु के राज्यकाल के साथ महावीर निर्वाण का संबंध भी जैन सूत्रों से सूचित होता है या नहीं, और यदि होता है तो कब ।
जैनसूत्रों में लिखा है कि श्रेणिक की मृत्यु के बाद कूणिक और उसके भाई हल्ल और विल्ल का आपस में, सेचनक नामक हाथी की मालिकी के बारे में, झगड़ा हुआ । तब हल्ल और विल्ल हाथी को लेकर अपने नाना राजा चेटक के पास चले गए । कूणिक ने अपने भाइयों को हाथी के साथ वापिस भेज देने का संदेशा देकर चेटक के पास दूत भेजा, पर वैशालीपति ने मगधराज की प्रार्थना स्वीकृत नहीं की । परिणाम स्वरूप कूणिक ने चेटक पर धावा बोल दिया और घमासान युद्ध करके वैशाली को बरबाद कर दिया । इस युद्ध का जैनसूत्र भगवती, निरयावली आदि में "महाशिला कंटक " नाम से वर्णन है ।
अब महावीर और गोशालक के उस झगड़े की ओर ध्यान दीजिए, जिसका भगवती सूत्र के १५ वें शतक में विस्तृत वर्णन दिया है ।
'गोशालक श्रावस्ती के उद्यान में तप कर रहा है, उसी अवसर पर महावीर भी श्रावस्ती के कोष्टक चैत्य में जाते हैं । उपदेश सुनने के लिये सभा एकत्र होती है और महावीर धर्मोपदेश करते हैं । उपदेश की समाप्ति
३. भगवती सूत्र के ७ वें शतक के ९ वें उद्देश में ( पत्र ३१५-३२१) "महाशीला कंटक" और " रथ मुसल" नामक दो संग्रामों का वर्णन है । इन संग्रामों में कोणिक और इसके सहायक वृजिक लोगों का जय और चेटक तथा उनके मददगार काशी कोशल के गणराजाओं का पराजय हुआ था ।
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