Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
आर्य महागिरि उनसे जुदा हो गए । पर बाद में राजपिंड न लेने की आर्य सुहस्ती की प्रतिज्ञा पर महागिरिजीने फिर उनसे संबंध जोड़ लिया ।'६८
उक्त कथानक से यह ज्ञात होता है कि जिस समय संप्रति उज्जयिनी का राजा था, उस समय आर्य महागिरि आचार्य जीवित थे ।
परन्तु, ऊपर कहा गया है कि संप्रति का राज्याभिषेक निर्वाण से २९५ में आता है और युगप्रधान-पट्टावली के अनुसार आर्य महागिरिजी का स्वर्गवास निर्वाण संवत् २४५ में ही हो जाता है, जिस समय शायद संप्रति का जन्म भी नहीं हुआ होगा । तब संप्रति द्वारा साधुओं की भिक्षासुलभता और उसके निमित्त आर्य सुहस्ती से आर्यमहागिरि का जुदा होना कैसे संभव हो सकता है ?
प्रश्न अवश्य विचारणीय है और इस समस्या को हल करने के लिये हमें इन तीन उपायों में से किसी एक को स्वीकृत करना होगा
(१) संप्रति के राजत्वकाल को आर्य महागिरि के स्वर्गसमय (२४५) के आसपास रखना ।
महाणसा काराविता, तेसु सो राया कज्जेसु सुणंतो(णितो) अइंतो य भुंजइ, केइ एवं भणंति, वयं पुण एवं भणामो-ताणि सत्राणि, तेसु णितो अइंतो लोगो भुंजति । पुच्छति राया दिणे दिणे सूवगारे पुच्छति केवइयं सेसं भुत्तं लोगेणं तं च सूवगाराणं आभवति, ताहे राया ते सूवगारे भणति-साधूण देवगाहा कंठा । ण केवलं सूवगारा भणति-एमेव तेल्लि गाहा कंठा। पणित्ति महल्लावणा, विपणित्ति दारिद्दावणा, एवं दाणे पुच्छाय महागिरिणो त्ति । महागिरिणा अज्जसुहत्थी पुच्छितो अज्जो ! पवरो आहारोवधी, जाणेज्जासि मा रन्ना लोगो पवुत्तओ होज्जा ताहे अज्ज सुहत्थिणा अगवेसित्ता चेव भणितं-अम्हं राया सम्मत्तं करेति तेण अणुराया जणो लोइयधम्ममणुयत्तमाणो देति । संभोइ त्ति । ताहे अज्जमहागिरिणा अज्जसुहत्थी भणिते अज्जो ! तुमं नाम एरिसो एवं भणसि । तत्ति संभोगपच्छद्धं कठं ।
-बृहत्कल्पचूर्णि उ० १ प० १३५ । ६८. देखो निशीथ चूर्णि की निम्नलिखित पंक्ति
"ततो अज्ज सुहत्थी पच्चाउट्टो मिच्छामि दुक्कडं करोति । ‘ण पुणो गेण्हामे एवं भणिए संभुत्तो ।"
-निशीथ चूणि उ० ८ प० १९१ ।
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