Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
ही वाचना में थे वैसे के वैसे प्रमाण माने गए ।
उपर्युक्त व्यवस्था के बाद स्कंदिल की माथुरी वाचना के अनुसार सब सिद्धांत लिखे गए,७८ जहाँ जहाँ नागार्जुनी वाचना का मतभेद और पाठभेद
७७. वर्तमान जैन आगमों का मुख्य भाग माथुरी वाचनानुगत है, पर उनमें कोई कोई सूत्र वालभी वाचनानुगत भी होने चाहिएँ । सूत्रों में कहीं कहीं विसंवाद और विरोध तथा विरोधाभाससूचक जो उल्लेख मिलते हैं उनका कारण भी वाचनाओं का भेद ही समझना चाहिए ।
आचार्य मलयगिरिजी ज्योतिष्करंडक-टीका में कहते हैं कि 'अनुयोगद्वार आदिक वर्तमान श्रुत माथुरी वाचनानुगत है और ज्योतिष्करंडक सूत्र के कर्ता वालभ्य आचार्य हैं, इसलिये अनुयोगद्वार के साथ इसकी संख्याविषयक शैली की भिन्नता को देखकर संशय नहीं करना चाहिए ।'
देखो आचार्य के मूल शब्द"तत्राऽनुयोगद्वारादिकमिदानी वर्तमानं माथुरवाचनानुगतं ज्योतिष्करंडकसूत्रकर्ता चाचार्यों वालभ्यः, तत इहेदं संख्यास्थानप्रतिपादनं वालभ्यवचनानुगतमिति नास्यानुयोगद्वारप्रतिपादितसंख्यास्थानैः सह विसदृशत्वमुपलभ्य विचिकित्सितव्यमिति ।"
-ज्योतिष्करंडक टीका । इससे यह बात तो निश्चित है कि वर्तमान श्रुत माथुरी वाचनानुसार है, केवल ज्योतिष्करंड के वालभी वाचना का ग्रंथ होने का उल्लेख है और हमारे विचारानुसार कतिपय युगप्रधान थेरावलियाँ भी वालभी वाचनानुगत हो सकती हैं, पर इसके सिवा कौन कौन सूत्र प्रकरण वालभी वाचनानुगत होंगे इसका निश्चय होना कठिन है । ।
७८. 'भगवान् देवर्द्धिगणि ने माथुरी वाचनानुगत आगमों को लिखाया और वालभी वाचनानुसारी पाठों को पाठांतर रूप में रखा' इस प्रकार की हमारी मान्यता के लिये निम्नलिखित प्रमाण दिए जा सकते हैं
(१) देवद्धिगणि नंदी की युगप्रधान स्थविरावली में स्कंदिल और नागार्जुन दोनों आचार्यों का वंदन करते हैं, पर नागार्जुन की अपेक्षा स्कंदिल के प्रति किया गया वंदन कुछ विशिष्टतासूचक है, नागार्जुन को किए हुए वंदन में उनके गुण और पद का ही स्मरण है, पर स्कंदिल के वंदन में उनके अनुयोग की भी सूचना है, इतना ही नहीं बल्कि यहाँ तक कहा गया है कि 'आज तक भारतवर्ष में स्कंदिलाचार्य के अनुयोग का प्रचार हो रहा है ।' देखो नंदी की निम्नलिखित गाथा
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