Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 192
________________ जैन काल-गणना-विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा १७३ उमास्वाति, श्यामाचार्यादिक स्थविरों को नमस्कार करके जिनागमों में मुकुटतुल्य दृष्टिवाद अंग का संग्रह करने के लिये प्रार्थना की । भिक्खुराय की प्रेरणा से पूर्वोक्त स्थविर आचार्यों ने अवशिष्ट दृष्टिवाद को श्रमण-समुदाय से थोड़ा थोड़ा एकत्र कर भोजपत्र, ताड़पत्र और वल्कल पर अक्षरों से लिपिबद्ध करके भिक्खुराय का मनोरथ पूर्ण किया और इस प्रकार वे आर्य सुधर्म-रचित द्वादशांगी के संरक्षक हुए । उसी प्रसंग पर श्यामाचार्य ने निग्रंथ साधु साध्वियों के सुखबोधार्थ 'पन्नवणा सूत्र' की रचना की ।१४ ___ स्थविर श्री उमास्वातिजी ने उसी उद्देश से नियुक्ति सहित 'तत्त्वार्थ सूत्र' की रचना की ।१५ स्थविर आर्य बलिस्सह ने विद्याप्रवाद पूर्व में से 'अंगविद्या' आदि शास्त्रों की रचना की ।१६ इस प्रकार जिनशासन की उन्नति करनेवाला भिक्खुराय अनेकविध धर्मकार्य करके महावीर-निर्वाण से ३३० वर्षों के बाद स्वर्गवासी हुआ । भिक्खुराय के बाद उसका पुत्र वक्रराय कलिंग का अधिपति हुआ।१७ १४. श्यामाचार्य कृत 'पन्नवणा सूत्र' अब तक विद्यमान है । १५. उमास्वाति कृत 'तत्त्वार्थ सूत्र' और इसका स्वोपज्ञ भाष्य अभी तक विद्यमान है । यहाँ पर उल्लिखित 'नियुक्ति' शब्द संभवतः इस भाष्य के ही अर्थ में प्रयुक्त हुआ जान पड़ता है। १६. अंगविद्या प्रकीर्णक भी हाल तक मौजूद है। कोई नौ हजार श्लोक प्रमाण का यह प्राकृत गद्य पद्य में लिखा हुआ 'सामुद्रिक विद्या' का ग्रंथ है । १७. कलिंग देश के उदयगिरि पर्वत की मानिकपुर गुफा के एक द्वार पर खुदा हुआ वक्रदेव के नाम का शिलालेख मिला है जो इसी वक्रराय का है । लेख नीचे दिया जाता है "वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहन वक्रदेप सिरिनो लेणं' । (जिनविजय संपादित प्राचीन जैन लेखसंग्रह पृ० ४९ ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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