Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
१७४
वक्रराय भी जैनधर्म का अनुयायी और उन्नति करनेवाला था । धर्माराधन और समाधि के साथ यह वीर - निर्वाण से तीन सौ बासठ वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ ।
वक्रराय के बाद उसका पुत्र ' विदुहराय' कलिंग देश का अधिपति
हुआ
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
विदुहराय ने भी एकाग्र चित्त से जैन धर्म की आराधना की । निर्ग्रथ समूह से प्रशंसित यह राजा महावीर - निर्वाण से तीन सौ पंचानबे वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ ।"
उज्जयिनी की मौर्य राज्यशाखा
महान् राजा अशोक के बाद मौर्य राज्य के दो हिस्से हो जाने का विद्वानों का अनुमान है, इस अनुमान का इस थेरावली से भी समर्थन होता है । मगध के राजवंशों के निरूपण में संप्रति के प्रसंग में कहा गया है। कि संप्रति अपने विरोधियों के भय से पाटलिपुत्र को छोड़कर उज्जयिनी में चला गया था । उसी प्रसंग में यह भी कहा गया है कि निर्वाण से २४४ वर्षों के ऊपर अशोक का स्वर्गवास हुआ था और २४६ में पुण्यस्थ ( पुराणों का दशरथ) पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा था । इसका अर्थ यह है कि अशोक के बाद संप्रति पाटलिपुत्र का राजा हुआ था पर विरोधियों से तंग आकर दो वर्ष के बाद उसके उज्जयिनी में चले जाने पर पाटलिपुत्र का सिंहासन पुण्यरथ (दशरथ) को मिला था ।
संप्रति के स्वर्गवास पर्यंत का वृत्तांत पहले दिया जा चुका है, इसलिये यहाँ पर संप्रति के बाद के मौर्य राजाओं का जिक्र थेरावली के ही शब्दों में दिया जाता है
१८. उदयगिरि की मंचपुरीगुफा के सातवें कमरे में विदुराया के नाम का एक छोटा लेख है । उसमें लिखा है कि यह लयन गुफा 'कुमार विदुराय' की है।
लेख के मूल शब्द नीचे दिए जाते हैं"कुमार वदुरवस लेनं"
Jain Education International
(एपिग्राफिका इंडिका जिल्द १३ )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org