Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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जैन काल-गणना - विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा
कुमारगिरि और कुमारीगिरि नामक दो पर्वतों पर श्रमण और निर्ग्रथियों के चातुर्मास्य करने योग्य ११ गुफाएँ खुदवाई थीं ।
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भगवान् महावीर के निर्वाण को जब ३०० वर्ष पूरे हुए तब वुड्ढराय का पुत्र भिक्खुराय कलिंग का राजा हुआ ।
भिक्खुराय के नीचे लिखे अनुसार तीन नाम कहे जाते हैं
निर्ग्रथ भिक्षुओं की भक्ति करनेवाला होने से उसका एक नाम " भिक्खुराय" था । पूर्वपरंपरागत " महामेघ' नामक हाथी उसका वाहन होने से उसका दूसरा नाम " महामेघवाहन" था । उसकी राजधानी समुद्र के किनारे पर होने से उसका तीसरा नाम "खारवेलाधिपति" था । ११
भिक्षुराज अतिशय पराक्रमी और अपनी हाथी आदि की सेना से पृथिवी - मंडल का विजेता था । उसने मगध देश के राजा पुष्यमित्र को १२ पराजित करके अपनी आज्ञा मनवाई | पहले नंदराजा ऋषभदेव की जिस प्रतिमा को उठा ले गया था उसे वह पाटलिपुत्र नगर से वापिस अपनी राजधानी में ले गया३ और कुमारगिरि तीर्थ में श्रेणिक के बनवाए हुए जिनमंदिर का पुनरुद्धार कराके आर्य सुहस्ती के शिष्य सुप्रतिबुद्ध नाम के स्थविरों के हाथ से उसे फिर प्रतिष्ठित कराकर उसमें स्थापित किया ।
पहले जो बारह वर्ष तक दुष्काल पड़ा था उसमें आर्य महागिरि और आर्य सुहस्तीजी के अनेक शिष्य शुद्ध आहार न मिलने के कारण कुमारगिरि
११. हाथीगुंफा के लेख में भी भिक्षुराजा, महामेघवाहन और खारवेलसिरि इन तीनों नामों का प्रयोग खारवेल के लिये हुआ है ।
१२. खारवेल के शिलालेख में भी मगध के राजा बृहस्पतिमित्र ( पुष्यमित्र का पर्याय) को जीतने का उल्लेख है ।
१३. नंदराज द्वारा ले जाई गई जिन-मूर्ति को कलिंग में वापिस ले जाने का हाथीगुंफा में इस प्रकार स्पष्ट उल्लेख है
“नंदराजनीतं च कालिंग जिनं संनिवेसं..... गृह रतनान पडिहारे हि अंगमागध-वसुं च नेयाति [1] "
( हाथीगुंफा लेखपंक्ति १२, बिहार-ओरिसा जर्नल, वाल्युम ४ भाग ४) |
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