Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ १७० वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना जो महावीर के निर्वाण से १४९ वर्ष बीतने पर कलिंग के राज्यासन पर बैठा था । चंडराय के समय में पाटलिपुत्र नगर में आठवाँ नंद राजा राज्य करता था, जो मिथ्याधर्मी और अति लोभी था । वह कलिंग देश को नष्टभ्रष्ट करके तीर्थ स्वरूप कुमारगिरि पर श्रेणिक के बनवाए हुए जिन-मंदिर को तोड़ उसमें रखी हुई ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठाकर पाटलिपुत्र में ले आया । इसके बाद शोभनराय की ८वीं पीढ़ी में क्षेमराज' नामक कलिंग का राजा हुआ । वीर निर्वाण के बाद जब २२७ वर्ष पूरे हुए तब कलिंग के राज्यासन पर क्षेमराज का अभिषेक हुआ और निर्वाण से २३९ वर्ष बीतने पर मगधाधिपति अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई की और वहाँ के राजा क्षेमराज को अपनी आज्ञा मनाकर वहाँ पर उसने अपना गुप्त संवत्सर चलाया । महावीर-निर्वाण से २७५ वर्ष के बाद क्षेमराज का पुत्र वुड्डराज' कलिंग देश का राजा हुआ । वुड्डराज जैनधर्म का परम उपासक था । उसने ७. हाथीगुंफावाले खारवेल के शिलालेख में भी पंक्ति १६ वीं में 'खेमराजा स' इस प्रकार खारवेल के पूर्वज के तौर से क्षेमराज का नामोल्लेख किया है । ८. कलिंग पर चढाई करने का जिक्र अशोक के शिलालेख में भी है । पर वहाँ पर अशोक के राज्याभिषेक के आठवें वर्ष के बाद कलिंग विजय का उल्लेख है। राज्यप्राप्ति के बाद ३ अथवा ४ वर्ष पीछे अशोक का राज्याभिषेक हुआ मान लेने पर कलिंग का युद्ध अशोक के राज्य के १२-१३ वें वर्ष में आयगा । थेरावली में अशोक की राज्यप्राप्ति निर्वाण से २०९ वर्ष के बाद लिखी है । अर्थात् २१० में इसे राज्याधिकार मिला और २३९ में उसने कलिंग विजय किया । इस हिसाब से कलिंग विजयवाली घटना अशोक के राज्य के ३० वें वर्ष के अंत में आती है, जो कि शिलालेख से मेल नहीं खाती। ९. अशोक के गुप्त संवत्सर चलाने की बात ठीक नहीं जंचती । मालूम होता है, थेरावली-लेखक ने अपने समय में प्रचलित गुप्त राजाओं के चलाए गुप्त संवत् को अशोक का चलाया हुआ मान लेने का धोखा खाया है । इसी उल्लेख से इसकी अति प्राचीनता के संबंध में भी शंका उत्पन्न होती है । १०. 'वुड्डराज' का भी खारवेल के हाथीगुंफावाले लेख में "वुड्डराजा स" इस प्रकार उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204