Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
__ आचार्य का उपदेश सुनकर राजा ने उज्जयिनी में साधुसाध्वियों की बृहत् सभा की और अपने राज्य में जैन धर्म का प्रचार करने के निमित्त अनेक गाँव नगरों में उपदेशक साधुओं को विहार करवाया, यही नहीं, अनार्य देशों में भी उसने जैनधर्म का प्रचार करवाया और अनेक जिन-मंदिर तथा प्रतिमाओं से पृथिवी को अलंकृत कर दिया ।
महावीर-निर्वाण से २९३ वर्ष पूरे हुए तब जैन धर्म का परम उपासक राजा संप्रति स्वर्गवासी हुआ ।
महावीर-निर्वाण से २४६ वर्षों के बाद अशोक का पुत्र पुण्यस्थ पाटलिपुत्र का राजा हुआ ।' यह राजा बौद्ध धर्म का आराधक था ।
राजा पुण्यस्थ महावीर निर्वाण से २८० वर्ष के बाद अपने पुत्र वृद्धरथ को राज्य देकर परलोकवासी हुआ ।
बौद्ध धर्म के अनुयायी राजा वृद्धरथ को मारकर उसका सेनापति पुष्यमित्र महावीर-निर्वाण से ३०४ वर्ष के बाद पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा ।"
राजा खारवेल और उसका वंश पाटलिपुत्रीय मौर्य राज्य-शाखा को पुष्यमित्र तक पहुँचाने के बाद थेरावलीकार ने कलिंग देश के राजवंश का वर्णन दिया है। हाथीगंफा के
५. यह पुण्यरथ और पुराणों का दशरथ एक ही व्यक्ति है । दशरथ के नाम के तीन शिलालेख खलतिक पर्वत पर आजीविक साधुओं को गुफाओं का दान करने के संबंध में लिखे हुए मिले हैं उनसे भी यह मालूम होता है कि प्रियदर्शि (अशोक) के बाद पाटलिपुत्र में दशरथ का राज्याभिषेक हुआ था । (देखो आगे का लेख ।)
"बहियका कुभा दषलथेन देवानं प्रियेना आनंतलियं अभिषितेना [आजीविकेहि] भदंतेहि वाष निषिदियाये निषिवे" ।।
(प्रियदर्शिप्रशस्तयः, टिप्पणविभाग, पृष्ठ ३८) ६. पुराणों में इसका नाम "बृहद्रथ'' मिलता है ।
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