Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
१५९
की चर्चा करने की हमें कोई जरूरत नहीं है । हमारी गणना का मर्यादास्तंभ शक काल है और उसमें किसी प्रकार का मतभेद नहीं है ।
__मि० जायसवाल की इस मान्यता के साथ हम सहमत हैं कि बुद्धनिर्वाण का समय वही ठीक है, जो सीलोन, ब्रह्मा तथा श्याम के बौद्ध और आसाम के राजगुरु मानते हैं । पर हम यह नहीं मान सकते कि महावीर का निर्वाण बुद्ध-निर्वाण के पहले हो चुका था । हमारी राय में बुद्धनिर्वाण के उपरांत बहुत अर्से तक महावीर जीवित रहे थे । इस बात को हमने प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया है, और हमारी इस गणना में कोई भी विरोध नहीं आता । बल्कि जैन सूत्रों और बौद्ध ग्रंथों का ठीक समन्वय भी हो जाता है जो कि पहले बताया जा चुका है ।।
वीर निर्वाण शक-पूर्व ६०६ (वर्तमान) और विक्रम पूर्व ४७१ (वर्तमान) वर्ष में हुआ११३ इस हिसाब से ई० स० पूर्व ५२८ (वर्तमान) वर्ष के
११३. वर्तमान समय के जैन पञ्चाङ्गों में वीरनिर्वाण के गत वर्ष लिए जाते हैं, पर इस बात को समझनेवाला शायद ही कोई जैन विद्वान् होगा । इस समय विक्रम संवत् का १९८६ वाँ तथा शक का १८५१ वाँ वर्ष वर्तमान है, हमारे जैन पञ्चाङ्गों में यही वर्ष वीर निर्वाण संवत् का २४५५ वाँ वर्ष लिखा हुआ है। इसके संबंध में यदि आप कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के पहले किसी जैन विद्वान् से यह पूछेगे कि 'अब तक वीर निर्वाण को कितने वर्ष बीते ?' तो तुरंत वह कह उठेगा कि 'निर्वाण को २४५४ वर्ष बीत चुके और ५५ वाँ चलता है', पर यह वास्तविक उत्तर कोई भी नहीं देगा कि '२४५५ वर्ष बीत चुके
और ५६ वाँ चलता है', इसका कारण स्पष्ट है, वर्तमान काल में जो जो संवत् प्रचलित हैं वे बहुधा वर्तमान वर्ष के सूचक हैं, इस कारण से वीर संवत् के संबंध में भी यही मान लेते हैं कि संवत् का अंतिम अंक वर्तमान वर्ष का बोधक है, पर यह कोई भी नहीं सोचता कि हमारे पंचाङ्गों में वीर संवत् के आगे जो वर्षसूचक अंक समुदाय है वह गत वर्षों का बोधक है । वीर संवत् २४५५ का अर्थ यह नहीं है कि निर्वाण का चौबीसौ पचपनवाँ वर्ष चलता है । पर इसका अर्थ यही है कि निर्वाण को २४५५ वर्ष बीत चुके हैं और इसके ऊपर का (छपन्नवाँ) वर्ष चलता है ।
हम उन जैन पंचांगप्रकाशक व्यक्तियों और संस्थाओं से अनुरोध करते हैं कि या तो वे अपने पंचांगों में यह स्पष्ट सूचना कर दिया करें कि ये निर्वाण के गत वर्ष हैं । यदि यह सूचना देना ठीक न समझें तो निर्वाणगत वर्षगण में एक संख्या बढ़ाकर उसे वर्तमान वर्ष-सूचक बना लें ता कि निर्वाणसंवत् के विषय में १ वर्ष का जो भ्रम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org