Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ जैन काल-गणना- विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा आचार्य हेमचंद्रने परिशिष्ट पर्व में निर्वाण से १५५ वें वर्ष में चंद्रगुप्त का जो राजा होना लिखा है उसका इस उल्लेख से समर्थन होता है । गाथा ७वीं में भद्रबाहु को अंतिम चतुर्दशपूर्वी और सूत्रनिर्युक्तिकार लिखा है । १६३ गाथा ९वीं में आर्य महागिरि को जिनकल्पी और आर्य सुहस्ती को स्थविरकल्पी लिखा है । गाथा १०वीं में आर्य सुहस्ती के शिष्य युगल सुस्थित सुप्रतिबुद्ध का वर्णन है, इसमें इन दोनों स्थविरों को कलिंगाधिप - भिक्षुराज - सम्मानित लिखा है । देखो आगे की गाथा "सुट्ठिय सुपडिबुद्धे, अज्जे दुन्ने वि ते नम॑सामि । भिक्खुराय - कलिंगा-हिवेण सम्माणिए जिट्टे ||१०||" इसके बाद इन्हीं गाथाओं में वर्णित आचार्यों की पट्ट-परंपरा का गद्य में वर्णन किया है, और कौन आचार्य निर्वाण पीछे कितने वर्षों के बाद स्वर्गप्राप्त हुए इसका स्पष्ट निर्देश किया गया है। इन संवत्सरों का उल्लेख हम आगे घटनावली में करेंगे । यहाँ पर भद्रबाहु के स्वर्गवास के संबंध में एक नई बात देखने में आई है। श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास किस स्थान पर हुआ, इसका वृत्तांत मेरुतुंगीय अंचलगच्छ पट्टावली के अतिरिक्त किसी श्वेतांबर जैन ग्रंथ में मेरे देखने में नहीं आया था । दिगंबर जैन साहित्य में भी इस बात का निर्णय नहीं है । बहुतेरे दिगंबर लेखक इनका स्वर्गवास मैसूर राज्य के हासन जिले में श्रवणबेलगोल के पास चंद्रगिरि नामक पहाड़ी पर हुआ बताते हैं, पर अन्य कतिपय ग्रंथकार इनका स्वर्गवास अवंति ( मालवा ) में हुआ ऐसा प्रतिपादन करते हैं, किन्तु हमें इन उल्लेखों पर कोई विश्वास नहीं है, क्योंकि ये उल्लेख वराहमिहिर के भाई द्वितीय भद्रबाहु को श्रुतकेवली समझकर किए गए हैं, जैसा कि मूल लेख में प्रतिपादित किया गया है । श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास किस स्थान पर हुआ, इसका वृत्तांत पूर्वोक्त पट्टावली के सिवा कहीं भी नहीं मिलने से हम सशंक थे, पर इस थेरावली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204