Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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'वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
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(४) नंदी-थेरावली में स्वाति सूरि के बाद श्यामार्य, और नंदिल के अनंतर नागहस्ती का वर्णन है । ये दोनों आचार्य विद्याधर गच्छ के थे ऐसा प्रभावकचरित्र के निम्नलिखित उल्लेख से ज्ञात होता है
"आसीत्कालिकसूरिः श्रीश्रुताम्भोनिधिपारगः । गच्छे विद्याधराख्ये आर्यनागहस्तिसूरयः ॥१५॥"
-प्रभावकचरित्र पादलिप्त प्रबंध ४८ । यह विद्याधर गच्छ आर्य सुहस्तीशिष्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध के शिष्य विद्याधर गोपाल से निकली हुई 'विद्याधरी' शाखा का ही पश्चाद्भावी नाम है। यदि प्रकृत थेरावली आर्यमहागिरीय शाखा की गुरुक्रमावली होती तो इसमें सुहस्ती की शाखा के इन दोनों स्थविरों के उल्लेख नहीं होते ।
(५) इसी थेरावली में आर्य मंगू के अनंतर आर्य आनंदिल का निर्देश है । युगप्रधान पट्टावलियों के लेखानुसार आर्य मंगू का युगप्रधानत्व पर्याय वीर संवत् ४५१ से ४७० तक था । परन्तु आर्य आनंदिल का समय मंगू से बहुत पीछे का है, क्योंकि ये आर्यरक्षित के पश्चाद्भावी स्थविर थे । आर्यरक्षित का स्वर्गवास वीर संवत् ५९७ में हुआ था इसलिये आर्यानंदिल ५९७ के पीछे के स्थविर हो सकते हैं । इस प्रकार दूर समय में होनेवाले आर्य आनंदिल आर्य मंगू के शिष्य नहीं हो सकते । इसके अतिरिक्त प्रभावकचरित्र में आर्य आनंदिल को आर्य रक्षितजी का वंशज भी कहा है, देखो नीचे का श्लोक
"आर्यरक्षितवंशीयः, स श्रीमानार्यनन्दिलः । संसारारण्यनिर्वाहसार्थवाहः पुनातु वः ॥१॥"
-प्रभावकचरित्र । ___ यदि यह कथन सत्य मान लिया जाय तो आनंदिल सुहस्ती की परंपरा के स्थविर होने से भी आर्य मंगू के शिष्य नहीं हो सकते ।
(६) थेरावली में रेवती नक्षत्र के बाद ब्रह्मद्वीपिक सिंह का उल्लेख है । पर यह कहने की शायद ही जरूरत होगी कि ब्रह्मद्वीपिका शाखा सुहस्ती की परंपरा के स्थविर आर्यसमित से निकली थी, और सिंह इसी ब्रह्मद्वीपिका शाखा के स्थविर थे-ऐसा स्वयं देवद्धि के लेख से ही सिद्ध है, तो अब यह देखना चाहिए कि यदि देवद्धि की थेरावली महागिरि शाखा की गुर्वावली होती तो उसमें अन्य शाखा के स्थविर सिंह का उल्लेख क्यों किया जाता ?
(७) सिंह के अनंतर थेरावली में स्कंदिल का वर्णन है, परंतु ये स्कंदिल भी
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