Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
१२७
२५. आर्य कालक
३०. आर्य धर्म २६. आर्य संपलित-भद्र
३१. आर्य सिंह २७. आर्य वृद्ध
३२. आर्य धर्म २८. आर्य संघपालित
३३. आर्य सांडिल्य २९. आर्य हस्ती
३४. आर्य देवर्द्धिगणि ___ इस गुरुक्रमावली से ज्ञात होगा कि देवद्धिगणि ३४ वें पुरुष थे और वे आर्य सांडिल्य के शिष्य थे । आचार्य मलयगिरिजी इनको दूष्यगणि के शिष्य लिखते हैं (दूष्यगणि शिष्यो देववाचकः । प्रसिद्धि में भी देवद्धिगणि दूष्यगणि के ही शिष्य कहलाते हैं पर हम समझ सकते हैं कि मलयगिरिजी का उल्लेख और उक्त प्रसिद्धि नंदी थेरावली को देवद्धि की गुरुक्रमावली मान लेने का ही फल है और जब हम यह देख चुके हैं कि नंदी थेरावली देवद्धि की गुरुपट्टावली नहीं है, तब उसके आधार पर यह कैसे मान लें कि देवद्धिगणि दूष्यगणि के शिष्य थे । कल्प थेरावली में भी दूष्यगणि का नामनिर्देश नहीं है, पर यहाँ अंत्यनाम सांडिल्य का है, इससे जाना जाता है कि देवर्द्धिगणि के दीक्षागुरु आर्य सांडिल्य ही होने चाहिएँ । नंदी में देवद्धि के पहले दूष्यगणि का नाम होने का अर्थ यह हो सकता है कि वे देवद्धिगणि के पुरोगामी युगप्रधान होंगे !
देवद्धिगणि की गुर्वावली का कोष्ठक ऊपर दिया जा चुका है, अब हम नंदी थेरावली में दी हुई माथुरी वाचनानुसारिणी युगप्रधान पट्टावली को अवतरित करेंगे जिसमें पाठकगण देख सकेंगे कि देवद्धिगणि को हम ३२ वाँ युगप्रधान किस प्रकार मानते हैं।
माथुरी युगप्रधान पट्टावली
१०.
भगवान् महावीर १. आर्य सुधर्मा २. आर्य जंबू ३. आर्य प्रभव ४. आर्य शय्यंभव ५. आर्य यशोभद्र ६. आर्य संभूतविजय ७. आर्य भद्रबाहु ८. आर्य स्थूलभद्र
१२.
आर्य महागिरि आर्य सुहस्ती आर्य बलिस्सह आर्य स्वाति आर्य श्यामार्य आर्य सांडिल्य आर्य समुद्र आर्य मंगु
१३.. १४.
१६.
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