Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre
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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
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वीर - विक्रम का अंतर बतानेवाली गाथाएँ बना डालीं और मेरुतुंग सूरि आदि पिछले लेखकों ने उन्हीं गाथाओं के आधार पर विक्रम के ४७० वर्ष पहले महावीर का निर्वाण - समय बताया, तो इसमें भी संदेह करने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि शक के १३५ वर्ष पूर्व और वीर निर्वाण से ४७० वर्ष पीछे एक संवत् चला था यह बात लगभग सर्वमान्य है, मेरुतुंग ने जो निर्वाण और विक्रम संवत् के बीच ४७० वर्ष का अंतर लिखा है उसका तात्पर्य इसी संवत्सर के अंतर से है, चाहे यह संवत् विक्रम से चला हो या दूसरे किसी से ।
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अब रही बुद्ध और महावीर की समकालीनता की बात, सो यह तो हम भी मानते हैं कि ये दोनों महापुरुष समकालीन ही थे, पर बुद्ध के संदेहपूर्ण निर्वाण - समय को निश्चित मान लेने और महावीरनिर्वाण - समय को, जो निश्चित और निस्संदेह है, इधर उधर घसीटकर उलटा अव्यवस्थित बना देनेवाली पाश्चात्य विद्वानों की नीति को हम किसी तरह स्वीकार नहीं कर सकते ।
बुद्ध का निर्वाण - समय आज से ही नहीं, हजारों वर्षों से संशयास्पद है, यह कहने की शायद ही जरूरत होगी ।
चीनी यात्री फाहिआन ने, जो ई० स० ४०० में यहाँ आया था, लिखा है कि " इस समय तक निर्वाण से १४९७ वर्ष व्यतीत हुए हैं ।"* इससे बुद्धनिर्वाण का समय ई० स० पूर्व १०९७ (१४९७-४०० १०९७) के आसपास आता है ।
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जैन ग्रंथों में पहले पहल आचार्य देवसेन के 'दर्शनसार' ग्रंथ में संवत् के साथ विक्रम के नाम का उल्लेख हुआ दृष्टिगोचर होता है । दर्शनसार के कर्ता उक्त आचार्य विक्रम की १० वीं सदी में थे । इसके बाद ग्यारहवीं सदी के जैन विद्वान् धनपाल की 'पाइअलच्छी नाममाला' में और आचार्य अमितगति के 'सुभाषित रत्नसंदोह' में विक्रम संवत् का उपन्यास है और इसके बाद के समय में बने हुए ग्रंथों और लेखों में तो ज्यादातर विक्रम संवत् का ही दौरदौरा है, पर दसवीं सदी के पहले के किसी जैन ग्रंथ में इस संवत् के साथ विक्रम शब्द का उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया ।
★ भारतीय प्राचीन लिपिमाला ।
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